Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अजयणं-३
जया उन कहिं चि अन्नाण-मोह पमाय-दोसेण सहसा एर्गिदियादीणं संघट्टणं परियावणं वा कयं पवेजा तया य पच्छा हा हा हा दुट्ठ कयमम्महेहिं ति घणराग-दोस-मोह-मिच्छत्त-अन्नागंधेहिं अदिष्टु-परलोगपञ्चवाएहिं कूर-कम्मनिग्धिणेहिं ति परम-संवेगमावण्णे सुपरीफुडं आलोएत्ताणं निंदित्ताणं गरहेत्ताणं पायच्छित्तमनुचरेत्ताणं नीसले अणाउलचित्ते असुह-कम्मक्खयट्ठा किंचि आय-हियं चिइ-वंदणाइ अनुद्देञा तया तयट्टे चेव उयउत्ते से भवेज्जा जया णं से तयत्ये उवउत्ते मवेजा तया तस्स णं परमेगग्ग-चितसमाही हवेज्जा तया चेव सब्व-जग-जीव-पाण-मूय-सत्ताण जहिट्ठ-फलसंपत्ती-मवेशाता गोयमाणं अपडिकंताए इरियायहियाए न कफाचेच काउं किंचि विइवंदण-सज्झायाइयं फलासायमभिकंखुगाण एतेणं अटेणं गोयमा एवं बुइ-जहा णं गोयमा ससुत्तत्योभयं पंचमंगल-थिर-परिचियं-काऊणं तओइरियावहियं अन्झीए ११९॥
(५९५) से पयवं कयराए विहीए तं इरियावहियमहिए गोयमा जहा णं पंचमंगलमहासुयक्खंध।२०1
(५९४) से पयवं इरियावहियमहिजित्ता णं तओ किमहिजे गोयमा सक्कत्ययाइयं चेइयवंदण-विहाणं नवरं सक्कत्ययं एगट्ठम-यतीसाए आयंबिलेहिं अरहंतत्वयं एगेणं चउत्येणं तिहिं आयंबिलेहि चउवीसत्ययं एगेणं छट्टेणं एगेण य चउत्येणं पणुवीसाए आयंबिलेहि नाणस्थयं एगेणं चउत्येणं पंचहिं आयंबिलेहिं एवं सर-वंजण-पत्ता बिंदु-पयच्छेय-पपक्खर-विसुद्ध अविघा-मेलियं अहीएत्ता णं गोयमा तओ कसिणं सुत्तत्यं विष्णेयं जत्य य संदेहं भवेशा तं पुणो पुणो बीमंसिय नीसंकमवधारेऊणं नीसंदेहं करेजा।२१।।
(५.५) एवं स सुत्तत्योभयत्तगं चिइ-वंदणा-विहाणं अहिलेत्ता णं तओ सुपसत्ये सोहणे तिहि-करण-मुहत्त-नक्खत्त-जोग-लाग-ससी-बले जहा सत्तीए जग-गुरुणं संपाइय-पूओवयारेणं पडिलाहियसाहुबग्गेण य भत्तिभरनिअरेणं रोमंच-कंचुपुलइजमाणतणू सहरिसविस वयणारदिदेणं सद्धा-संवेग-विवेग-परम-वेरग्ग-मूलं विणिहय-घणराग-दोस-मोह-मिछत्त-मलकलंकेण सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-सुभ-सुभ-यरऽणुसमय-समुलसंत-सुपसत्यग्झवसाय-गएणं मुषणगुरु-जिणयंद पडिमा विणिचेसिय-नयण-माणसेणं अणण्ण-माणसेगाग-चित्तयाए य धन्नो हं पुनो हंति जिन-वंदणाइ-सहलीकयजम्मो त्ति इइ मण्णमाणेणं विरइय-कर कमलंजलिणा हरिय-तणबीय जंतु-विरहिय-भूमीएनिहिओभय-जाणुणा सुपरिफुङ-सुविइय-नीसंक जहत्य सुत्तस्थोभयं पए पए भावपाणेणं दढचरित्त-समयनु-अप्पमायाइ-अनेग-गुण-संपओववेएणं गुरुणा सद्धि साहुसाहुणि-साहप्पिय असेस-बंधु-परिवग्ग-परियरिएणं चैव पढमं चेइए वेदियव्ये तयणंतरं च गुणड्ढे य साहुणो य तहा साहम्मिय-जणस्स णं जहा सत्तीए पणावाए जाए णं सुमहग्घ मउय-चोखवत्थ-पयाणाइणा वा महासम्मणो कायब्यो एयावसरम्मि सुविइय-समय-सारेण गुरुणा पबंधेणं अखेय-विक्खेवाइएहिं पबंधेहिं संसार-निव्वेय-जणणि सद्धा संवेगुप्पायगं धम्म देसणं कायव्यं
(५९६) तओ परम-सद्धा-संवेगपरं नाऊणं आजम्माभिग्गहं च दायव्यं जहा णं सहलीकयसुलद्ध-मणुय भव भो भो देवाणुप्पिया तए अज्जप्पमितीए जावजीवंति-कालियं अनुदिणं अनुलारलेगग्गचित्तेणं चेइए वंदेयव्ये इणमेव भो मणुयत्ताओ असुइ-असासय-खणभंगुराओ सारं ति तस्य पुदण्हे ताव उदग-पाणं न कायच्वं जाव चेइए साहू य न यदिए तहा मझण्हे ताव असण
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