Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महानिसीहं - ३/-/ ५९६ किरियं न कायव्वं जाव चेइए न वंदिए तहा अवरण्हे चेय तडा कायव्वं जहा अवंदिएहिं चेइएहिं नो संझायालमइक्कमेचा १२३ । ( ५९७ ) एवं चाभिग्गहबंधं काऊणं जावजीयाए ताहे य गोयमा इमाए चैव चिजाए अहिमंतियाओ सत्त-गंध-मुट्ठीओ तस्सुत्तमंगे नित्यारग पारगो भवेजासि ति उघारेमाणेणं गुरुणा घेतव्याओ अओम् णमओ भगवओ अरहओ इज्झ उ म्ए भगवती महा विज् ज् आ व् ई एम हुआ व्ई एजय व्ई र् एस् एण् अ व् ईर् एवद्ध म् आ ण व्ई एज य् अंत्ए अपर्आज् इए स् व् आ हा [ओम् नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवती महाविजा वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे यद्धमाणवीरे जयंते अपराजिए स्वाहा ] उपचारो चउत्यमत्तेणं साहिज्जइ एयाए विजाए सव्वगओ नित्यारंगपारगी होइ उवहावणाए वा गणिस्स वा अनुण्णाए वा सत्त वारा परिजवेयव्वा नित्थारग- पारगो होइ उत्तिमट्ट पडिवण्णे वा अभिमंतिज्जइ आराहगो भवति विग्धविणायगा उवसमंति सूरो संगामे पदिसंतो अपराजिओ भवति कप्प-समत्तीए मंगलवहणी खेमवहणी हवइ १४। (५९८) तहा साहु साहुणि-समणोयासग सढिगाड सेसा - सण्ण- साहम्मियजण- चउव्विहेणं पि समण-संघेणं नित्यरग- पारगो भवेजा धन्नो संपुत्र सलक्खणो सि तुमं ति उच्चारेमाणेणं गंधमुट्ठीओ घेतव्वाओ तओ जग-गुरुणं जिर्णिदाणं पूएग - देसाओ गंधड्ढऽ मिलाण-सियमल्लदामं गहाय स-हत्येणोभय-खंधेसुमारीवयमाणेणं गुरुणा नीसंदेहमेवं प्राणियत्वं जहा भो भो जम्मंतरसंचिय- गुरुय - पुन - पब्मार सुलष्म- सुविदत्त सुसहल- मणुयजम्मं देवाणुप्पिया ठइयं च नश्य- तिरियइ-दारं तुझं ति अबंधगो य अयस अकित्ती - नीया-गोत्त-कम्म-विसेसाणं तुमं ति भवंतर-गयस्सा विउ न दुलहो तुज्झ पंच नमोक्कारो भावि जम्मंतरेसु पंच-नमोक्कार- पभावाओ य जत्थ जत्योववज्जा तत्थ तत्युत्तमा जाई उत्तम च कुल-रूवरोग्ग-संपयं ति एयं ते निच्छयओ भदेखा अण्णं च पंचनमोक्कार- पभावओ न भवइ दास्तं न दारिद्द-दहूग-हीणजोणियतं न विगलिंदियत्तं ति किं बहुएणं गोयमा जे केइ एपाए विहीए पंच-नमोक्कारादि-सुयनाण - महीएत्ताण तयत्यानुसारेणं पयओ सव्वायस्सगाइ निधानुदुणिनेसु अङ्कारस- सीलंगसहस्सेसु अभिरमेजा से णं सरागत्ताए जइ णं न निब्बुडे तओ गेवेऽनुत्तरादीसुं चिरमभिरमेऊणे उत्तम - कुलप्पसूई उक्किट्ठलट्ठसव्वंगसुंदरत्तं सर्व्व-कला-पत्तट्ठ जणमणानंदयारियतणं च पाविऊणं सुरिदै विव महरिद्धए एगंतेगं च दयाणुकंपापरे निब्विण्ण-काम-भोगे सद्धम्ममणुऊणं विदुय-रय-मले सिझेजा ॥ २५ ॥ (५९९) से भयवं किं जहा पंचमंगलं तहा सामाइयाइयमसेसं पि सुय-नाणमहिजिणेयव्वं गोयमा तहा चैव विणओवहाणेणं महीएयव्यं नवरं अहिजिणिउकामेहिं अडविहं चेय नाणायारं सव्व-पयत्तेनं कालादी रक्खेज्जा अण्णहा महया आसायणं ति अन्नं च दुयालसंगस्स सुयनाणस्स पढम चरिमजाम - अहण्णिसमज्झयण- ज्झावणं पंचमंगलस्स सोलस-द्धजामियं च अन्नं च पंचमंगलं कय-सामाइए इ वा अकय-सामाइए इ वा अहीए सामाइयमाइयं तु सुयं चत्तारंभपरिग्गहे जावज्जीवं कय-सामाइए अहीजिणे न उ णं सारंभ-परिग्गहे अकय-सामाइए तहा पंचमंगलस्स आलावगे आलावगे आयंबिलं तहा सक्कत्ययाइसु बि दुबालसंगस्स पुण सुव-नागस्स उद्देगऽज्झयणे । २६ । (६०० ) से भयदं सुदुक्करं पंचमंगल महासुयक्खंधस्स विणओवहाणं पन्नत्तं महती य For Private And Personal Use Only

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