Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६१ ) एवं तिवग्गबाबाएं चिचोरु-दुक्ख-संकडे पविट्ठो बाढ - संखेज्जा आवलियाओ किलिस्सिडं (२६२) पुणे हुं कंडुयमेस कंडूये अन्नहा नो उवस्समे ता एयज्झवसाएणं गोयम निसुणेसुं जं करे (२६३) अह तं कुंथुं बावाए जइ नो अन्नत्थ गयं भवे कंडुएमाणोऽहमित्तादी अनुधसमाणो किलम्मए (२६४) जइ वावा एज तं कुंथुं कंडुयमाणो व इयरहा तो तं अइरोद्दज्झाणम्मि पविङ्कं निच्छयओ मुणे (२१५) अह किलामे तओ भयणा रोज्झाणेयरस्स उ कंडुयमाणस्स उण देहं सुद्धभट्टज्झाणं पुणे (२६६ ) समझे रोज्झाणट्टो उक्कोसं नारगाउयं दुभ- गित्यी-पंड-तेरिच्छं अट्टज्झाणा समजिणे (२६७) कुंथु-पद-फरिस - जणियाओ दुक्खाओ उवसमिच्छया पच्छ - हलफलीभूते जमवत्यंतरं वए (२६८) विवरण- मुहलावण्णे अइदीगे विमण-दुम्मणे सुत्रे त्रेय मूढ दिसे मंद-दर- दीह-निस्ससे ( २६९ ) अविस्साम - दुक्खहेऊयं असुहं तैरिच्छ-नारयं कम्पं निबंधत्ताणं भमिही भव-परंपरं (२७०) एवं खओवसमाओ तं कुंषुवइयरजं दुहं कह कह वि बहु किलेसेणं जइ खणमेक्कं तु उवसमे ( २७१ ) ता मह किलेसमुत्तिणं सुहियं से अत्ताणयं तो मुइओ हिट्ठो सत्यवित्तो वि चिट्ठई (२७२) चिंतइ किल निब्बुओमि अहं निद्दलियं दुक्खं पि मे कंडुयणादीहिं सयमेव न पुणे एवं जहा मए (२७३ ) रोद्दज्झाणगएण इहं अट्टज्झाणे तहेव य संवग्गइत्ता उतं दुक्खं अनंतानंतगुणं कडं (२७४) जं चाणुसमयमनवरयं जहा राई तहा दिनं दुहमेवानुभवमाणस्स वीसामो नो भवेज्जमो (२७५) खणं पि नरय- तिरिएसु सागरोवम-संख्या रस-रस-विलिए हिययं जं वाइच्छं ताण वि (२०६ ) अहवा किं कुंधु-गणियाओ मुक्को सो दुक्ख-संकड़ा खीण-कम्म-परीणामो भवेजे जणुमेत्तेणेव उ (२७७) कुंथुमुवलक्खणं इहई सव्व पञ्चक्ख- दुक्खदं अनुभवमाणो विजं पाणी न याणंती तेण वक्खई (२७८) अन्ने बिउ गुरुयरे दुक्खे सन्वेसिं संसारिणं सामणे गोयमा ता किं तस्स तेणोदए गए For Private And Personal Use Only महानिसीहं २ / २ / २६१ • ॥३६॥ ॥३७॥ ||३८|| ॥३९॥ ॥४०॥ 118971 ॥४२॥ ॥२४३॥ ॥४४॥ २२४५॥ ॥४६॥ ॥४७॥ ||४८|| १४९ ।। ॥५०॥ 114911 ॥५२॥ ॥५३॥

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