Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ ॥१७०॥ ||१७१॥ ||१७३॥ 11१७४|| ||१७५॥ ||१७६।। ||१७७॥ महानिसीह - २/३/१७ (४२७) सम्बन-देसियं मगं सब-दुक्ख पणासगं साया गारव-गरुए विअनहा मणिउमुज्झए (४२८) पयमक्खरे पिजो एग सव्यन्नूहिं पवेदियं नरोएन अण्णहा मासे मिच्छ-दिट्ठीस निच्छियं (१२५) एवं नाऊणसंसग्गिदरिसणालाव-संथवं सबासंचहियाकंखी सब्बोवाएहिं वञ्जए ॥१७२॥ (४३०) भययं निब्मट्ठ-सीलाणं दरिसणंतं पिनेच्छसि पच्छित्तं वागरेसी य इति उभयं न जुझए (४३१) गोयमा भट्ठ-सीलाणं दुत्तरे संसार-सागरे धुवं तमणुकंपित्ता पायच्छित्ते पदरिसिए (४३२) भयवं किं पायच्छित्तेणं छिदिशा नारगाउयं अनुपरिऊण पच्छित्तं यहवे दुग्गइं गए (४१३) गोयमा जे समझेशा अनंत-संसारिक्त्तणं पछितेणं धुवंतं पिछिंदे किं पुणो नरयाउयं (४३४) पायच्छितस्स मुवणेत्य नासझं किंचि विजए बोहिलाभ पमोतूणं हारियं तं न लब्मए (३५) तं घाउकाय-परिभोगे तेउकायस्स निच्छिय अबोहिलामियं कम्मं बन्झए मेहुणेण य ॥१७॥ (४३६) मेहुणं आउ कायंच तेउ-कायंतहेव य तम्हा तओ यि उत्तेणं वजेचा संजइंदिए (४३७) से मयवं गारत्यीणं सव्वमेवं पवत्तई, ता जइ अबोही भवेज एसु तओ सिक्खा-गुणाऽणुव्वयधरणं तु निष्फलं ॥१८॥ (४३८) गोयमा दुविहे पहे अखाए सुस्समणेय सुसावए महव्यय-धरे पढमे बीएडणुब्बय-धारए ॥१८॥ (४३५) तिविहं तिविहेणं समणेहिं सब्ब-सावञ्जमुझियं जावजीवं वयं घोरं पडिवझियं मोक्ख-साहणं ॥१८२॥ (rro) दुविहेग-विहं तिविहं वा थूलं सावजमुन्झियं उद्दिट्ट-कालियं तु वयं देसेणं न संवसे गारस्थीहिं (Mrs) तहेव तिविहं तिविहेणं इच्छारंभ-परिग्गडं वोसिरंति अणगारे जिनलिगंतुधरेति ते 11१८४॥ (४२) इयरे उणं अनुज्झित्ता इच्छारंभे-परिग्गहं सदाराभिरए सगिही जिण-लिंगंतु पूयए न धारयं ति ||१८५॥ (mr) तो गोयमेग-देसस्स पडिकूकंतेगारत्ये भवे तं वयमनुपालयंताणं नो सिं आसायणं भवे ॥१८६॥ (rre) जे पुण सव्वस्स पडिक्कंते धारे पंच-महव्यए जिनलिंगंतु समुव्यहइतं तिगं नो वियञ्जए ॥१७९।। ॥१८३॥ ॥१८७॥ For Private And Personal Use Only


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