Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(४६३) भयवं जे विदिय-परमत्ये सव्व-पच्छित जाणगे ते किं परेसिं साहिंति नियम-कचं जहट्ठियं (४६४) गोयमा- मंत-तंतेहिं दियहे जो कोडिमुट्ठवे से विदट्ठे विमिनेट्टे धारियण्णेहिं भल्लिए (४६५) एवं सीलुञ्जले साहू पच्छित्तं तु दढव्वए
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अत्रेसिं निउण-लद्ध सोहे ससीसं व पहावीओ जह त्ति बीए अग्झयणे तइओ उहेसो समतो बीअं अझयणं समत्तं
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तइयंअज्झयणं- कुसील लक्षणं
(४६७) अओ परं चउक्कणं सुमहत्याइसयं परं आणाए सद्दयव्वं सुत्तत्थं जं जह-द्वियं (४६८) जे उधाडं परूवेजा देजा व अजोगस्स उ
या अभयारी या अविहीए अनुदिनं पि वा (४६९) उष्मायं व लभेज्जा रोगायकं व पाउणे दीहं
भंसेज संजमाओ समरनंते वा नया वि आराहे ( ४७०) एत्थं तुजं विही- पुव्वं पढमज्झयणे परुवियं तीए चैव चिहिए तं बाएजा सेसाणिमं विहिं (४७१) बीयज्झयणेम्बिले पंच-नवुद्देसा तहिं भवे
तइए सोलस उसे अट्ठ-तत्येव अंबिले (४७२ ) जंतइए तं चउत्ये वि पंचमम्मि छायंबिले छट्टे दो सत्तमे तिण्णि अट्ठमे आयंबिले दस (४७३) अनिक्खित्त-मत्त - पाणेण संघट्टेणं इमो महा
(४६६) एएसिं तु दोन्हं पि अझयणाणं विहिपुव्वगेणं सव्व-सामण्णं वायणं ति ॥ ३२॥
निसीह - वर सुयक्खंधं वोढव्वं च आउत्तग-पाणगेणं ति ( ४७४) गंभीरस्स महा-मइणो उयरस तवो- गुणे
सुपरिक्खियस्स काले सय-मज्झेगस्स वायर्ण (४७५) खेत्त - सोहीए निद्यं तु उवउत्तो भविया जया
तया वाएजा एयं तु अत्रहा उ छलिजई (४७६) संगोवंग-सुथस्सेयं नीसंदं तत्तं परं
महा-निहि व्व अविहीए गिण्हंते णं छलिञ्जए (४७७) अहवा सव्वाई सेयाई बहु विग्धानं भवंति उ सेयाण पर सेयं सुयक्खधं निव्विग्धं (४७८) जे धत्रे पुत्रे महाणुभागे से वाइया
से भयवं केरिस तेसिं कुसीलादीण लक्खणं सम्मं वित्राय जेणं तु सव्वहा ते विवज्रए
मानिसी - २ / ३ / ४६३
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