Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अणं-व
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(४७९) गोयमा सामन्त्रओ तेर्सि लक्खणमेयं निबोधय जे ना तेसि संसग्गी सव्वहा परिवज्रए (४८०) कुसीले ताव दुस्सयहा ओसने दुविहे मुणे पसत्ये नाणमादीणं सबले बाइसई विहे (४८१) तत्थ जे ते उ दुसयहा उ वोच्छं तो ताव गोयमा कुसीले जेर्सि संसग्गीदोसेणं मस्सई मुणी खणा
॥५॥
(४८४) तत्य कुसीले ताव समासओ दुविहे नेए-परंपर-कुसीले य अपरंपर-कुसीले य तत्य जे ते परंपर-कुसीले विउ दुविहे नेए-सत्त-इ-गुरु-परंपर-कुसीले एग-दु-ति-गुरु-परंपर-कुसीले
य |१|
-
॥१३॥
(४८३) जे विय ते अपरंपर-कुसीले ते विउ दुविहे नेह-आगमओ नो आगमओ य ॥२॥ (४८४) तत्थ-आगमओ गुरु-परंपरएणं आवलियाए न केई कुसीले आसी उ ते चेब कुसीले
३५
||१४||
भवंति ॥ ३॥
(४८५) नो आगमओ अनेग विहा तं जहा-नाण-कुसीले दंसण - कुसीले चरित -कुसीले तदकुसीले बीर-कुसीले ॥४॥
(४८६) तत्य णं जे से नाण-कुसीले से णं तिविहे नेए पसत्यापसत्य - नाण-कुसीले अपसत्यनाण-कुसीले सुपसत्यनाण- कुसीले १५ ॥
(४८७) तत्थ जे से पसत्यापसत्य - नाग- कुसीले से दुविहे नेए-आगमओ नोआगमओ य तत्य आगमओ-विहंगनाणी पन्नविय पसत्थाऽपसत्ययस्थ- जाल - अज्झयणऽज्झावण-कुसीले नो आगमओ अनेगहा-पसत्यापसत्य-पर- पासंड-सत्यजालाहिजण - अज्झायण - वायणाऽणुपेहणकुसीले | ६ |
(४८८) तत्थ जे ते अपसत्य-नाण-कुसीले ते एगूणतीसइविहे दट्ठव्वे तं जहा सावज्ज- वायविजा-मंत-तंत-पउंजण- कुसीले विज्जा-मंत-संताहिजण कुसीले वत्यु-विजा पउंजणाहिजणकुसीले गहरिक्ख चार जोइस- सत्य- पउंजणाहिजण - कुसीले निमित्त-लक्खण-पउंजणाहिजण कुसीले सउण- लक्खण-पउंजणाहिजण कुसीले हत्यि-सिक्खा-पउंजणाहिजण कुसीले धणुव्वेयपउंजणाहिजण कुसीले गंधव्यवेय-पउंजणाहिजण-कुसीले पुरिस- इत्यी लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले काम सत्य-पउंजणाहिजण कुसीले कुहुगिंद जाल-सत्य-पउंजणाहिजण-कुसीले आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले लेप्य-कम्म-विजा-हिजण कुसीले यमण-विरेयण- बहुवेल्लि जालसमुद्धरण-कढण काढण-वणस्सइ-बल्लि मोडण तच्छणाइ बहुदोस - विजग सत्य-पउंजणाहिजज्झावण-कुसीले एवं जाण जोग-पडिजोग चुण्ण-वण्ण-धाउव्वाय-राय- दंडणीई- सत्य- असणिपव्य-अग्घकंड-रयणपरीक्खा - रसवेह सत्य अमा-सिक्खा गूढ मंत-तंत-काल- देस- संधि - विग्गहोबएस-सत्य-सम्म- जाग-ववहार-निरूवणऽत्य- सत्य-पउंजणाहिजण - अपसत्य नाणकुसीले एवमेएसिं चैव पाव-सुयाणं वायणा पेहणा परावत्तणा अनुसंधणा सचणाऽयण्णण-अपसत्थ-नाणकुसीले [७]
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(४८९) तत्य जे य ते सुपसत्य-नाण-कुसीले ते विय दुविहे नेए-आगमतो नो आगमओ य तत्य य आगमओ-सुपसत्यं पंच-प्पयारं नाणं असायंते सुपसत्य-नाण-घरे इ वा आसायंते सुपसत्यनाण कुसीले १८

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