Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(२६६) कह सहिहं बहु- मव-गहणे दुहमनुसमयमहण्णिसं घोर-पदंड - महारोद्दं हा-हा-कंद-परायणा
(३६७) नारय- तिरिच्छ-जोणीसु अत्ताणासरणा विय एगागी ससरीरेणं असहाया कडु-विरसं घणं (३६८) असिवण-वेयरणी जंते करवत्ते कूडसामलिं कुंभी- वायासा- सीहे एमादी नारए दुहे (३६९) नत्यंकण - वह बंधे य पउलुक्कंत-विकत्तणं
सगड़ा-कड़्ढण भरुव्वहणं जमलाय तन्हा छुहा (३७०) खरखुर - चमढण-सत्यग्गी- खोभण-मंजणमाइए परयत्तावस-नित्तिसे दुक्के तैरिच्छे तहा (३७१) कुंथू-पय-फरिस - जणियं पि दुक्खं न अहियासिउं तरे ता तं महदुक्ख संघट्टं कह नित्यरिह सुदारुणं (३७२) नारय-तेरिच्छ-दुक्खाओ कुंथु जाणिया अंतरं मंदरगिरि - अनंत-गुणियरस परमाणुस्सा वि नो घडे (३७३) चिरयाले संसुहं पाणी कंखंती आसाए निव्दुओ भवेदुक्खमयं पिसतो अांत- दुक्खओ (२७४ ) बहु- दुक्ख - संकडट्टेत्यं आवया लक्ख- परिगए संसारे परिवसे पाणी अयडे महु-बिंदू जहा (३७५) पत्थापत्थं अयागंते कज्जाकचं हियाहियं सेव्वो सेव्यमसेव्वं च चरणिजा चरणिज्जं तहा ( ३७६) एवइयं वइयर सोच्या दुक्खस्संत- गवेसिणो इत्थी - परिग्गहारंभे चेचा घोरं तवं चरे
भक्खरं पिव दणं दिट्ठि डिसमाहरे
( ३७९) हत्य-पाय-पडिच्छिन्नं कन-नासोट्ठि-वियम्पियं
महानिसीहं - २ / ३ / ३६७
दिक्खियं साहुणी वा वि वेसं तह य नपुंसगं (३८२) कहि गोणिं खरं चेय वडवं अविलं अवि तहा सिप्पिथि पंसुर्ति या वि जम्मरोगि महिलं तहा
(३८३) चिरे संसगमचेल्लिक्कं- एमादीपावित्थिओ पगमंती जत्थ रयणीए अह पइरिक्के दिनस्स वा
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॥१३७॥
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(२७७) ठियासणत्या सइया परंमुही सुयलंकरिया या अणलंकरिया वा निरक्खभाणापमयाहिदुब्बतंमणुस्समालेह गयाविकरिस्सई ।। १४७ || ( ३७८) चित्त - भित्तिं न निज्झाए नारिं वा सुयलंकियं
॥१४४ ||
।।१४५ ।।
समाणी- कुडवाहीए तमवित्वीयं दूरयरेणं बंभयारी विवञ्जए ।। १४९ ।। (३८०) धेर- मञ्जाय जा इत्थी पांगुष्मड-जोव्वणा
जुण-कुमारि पत्यवइं बाल-विहवं तहेव य (३८१) अंतेउरवासिणी चैव स - पर- पाखंड - संसियं
||१४८ ||
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।।१५२।।
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