Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11१०३॥ ||१०४॥ 11१०९॥ अमाप (१०८) आउट्टीय महा-पावे कंदप्पा-दप्पे तहा अजयणा-सेवणे तह य सुपाऽसुय-पलितेतहा (१०९) दिट्ट-पोत्यय पच्छिते सर्व पच्छित-कप्पगे एवइयं एत्य पच्छितं पुव्वालोइय-मणुस्सरे (११०) जाती-मय-संकिए चेव कुल-पय-संकिए तहा जाती-कुलोमय-मयासंके सुत-लाभिस्सरिय-संकिए तहा ॥१०॥ (१११) तवो-मया-संकिए पेव पंडिन-मय-संकिए तहा सक्कार-पय-लुद्धे य गारव-संदूसिए तहा ।।१०६॥ (११२) अपुजो या विहंजम्मे एगजम्मेव चिंतगे पाविवाणं पि पावतरे सकलुस-चित्तालोयगे ॥१०७॥ (११३) पर-कहावगे चेव अविनपालोयगे तहा। अविहि-आलोयगे साहू-एवमादी दुरप्पणो ॥१०८॥ (११४) अनंतेऽणाइ-कालेणं गोयमा अत्त-दुक्खिया अहो अहोजाव सत्तमियं भाव-दोसेक्कओ गए (११५) गोयपनंते चिट्ठति जे अणादीए ससलिए निय-पाव-दोस-सल्लाणं मुंजंतेविरसं फलं ॥११॥ (११) चिट्ठसंति अजावितेणं सल्लेण सलिए अनंतं पिअणागयं कालं तम्हा सल्लं न धारए खणं मुणिति ॥११॥ (११७) गोयम समणीण नो संखा जाओ निक्कलुस नीसल्ल-विसुद्ध-सुनिम्मल-विमलमाणसाओ अज्झप्पविसोहिए आलोइत्ताण सुपरिफुडं नीसंकं निखिलं निरावयदं निय-दुश्वरियमादीयं सव्वं पि भावसल्लं अहारिहं तवो कम्मं पायच्छित्तमनुचरित्ताणं निदोयपाव-कम्म-मललेव-कलंकाओ उप्पण्ण-दिव्व-वर-केवलनाणाओ पहाणुभागाओ महायसाओ महा-सत्त-संपन्नाओ-सुगहियनामधेजाओ अनंतुत्तम-सोक्ख-मोक्खं पत्ताओ।। (११८) कासिंचि गोयमा नामे पुत्र-मागाण साहिमो जासिमालोयमाणीणं उप्पन्नं समणीण केवलं 119१२॥ (११) हा हा हा पाव कम्मा हं पावा पावमती अहं पाविट्ठाणं पि पावयरा हा हा हा दुइचिंतिमो (१२०) हा हाइस्थिभावं मे ताविह-जम्मे उवट्टिये तहावी न धोर-वीरुग्गं कहूं तव-संजर्मधरं (१२१) अनंता-पाव-रासीओ सम्मिलियाओ जया भवे तइया इस्थित्तणं लब्बे सुद्धं पावाण कम्पाण ॥१५॥ (१२२) एगत्थपडी भूताणं समुदय तणुतंतह करेमिजहन पुणो इत्थिहहोमि केवलि ११६॥ (१२३) दिडे विनखंडामि सीलं हंसमणि केवलि हा हामणेण मे किं पि अत्त-दुरुत्त-चिंतियं (१२४) तमालोइता लहुं सुद्धिं गेण्हे हे समणि-केयलि दट्टणमझ लावण्णं रूवं कति दित्तिं सिरि ११८॥ 1११३॥ ॥११४॥ ||११७॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154