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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
पालन तत्परता और आस्था के साथ हो सका है। पाश्चात्य विद्वान् शापैन्टियर के विचार से 'जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों को दृढ़ता से पकड़ रखने में छोटी-सी जैन जाति की पुराण-प्रियता उसका मजबूत साधन हो गया।' यह तो विषयान्तर हुआ, लेकिन कहने का प्रयोजन यह है कि इतने महत्वपूर्ण धर्म को भारत के इतिहास में न राजकीय दृष्टिकोण से अगत्यता प्राप्त हुई, न विद्वानों से उचित सम्मान एवं न्याय मिल पाया। श्री सी० जे० शाह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए स्पष्ट लिखा है कि 'बहुत-सी बातों से सिद्ध किया जा सकता है कि बौद्ध धर्म जैन धर्म का समकालीन बन्धु धर्म है और आज वह हिन्दुस्तान की सरहद से प्रायः अदृश्य हो चुका है, फिर भी विद्वानों से उचित न्याय प्राप्त कर सका है। जबकि जैन धर्म अब तक टिक सका है, इतना ही नहीं, वह इस विशाल देश की संस्कृति और राजकीय व आर्थिक परिस्थितियों पर जबर्दस्त प्रभाव पैदा कर सकता है, फिर भी यह योग्य न्याय प्राप्त नहीं कर सका है, यह दुःख की बात है।" श्रीमति स्टीवन्सन ने भी जैन धर्म की महत्ता व प्राचीनता पर अपने विचार इसी रूप में प्रकट किये हैं। डा. हर्टल भी स्पष्ट रूप से लिखते हैं कि 'हिन्द की संस्कृति पर और विशेषकर हिन्द के धर्म और नीति कला और विद्या, साहित्य और भाषा पर उसने जो प्रभाव पहले डाला था और जो अभी भी डालता ही जा रहा है, वह सब समझने वाले और जैन धर्म की उपयोगिता स्वीकार करने वाले पाश्चात्य विद्वान् बहुत कम हैं। क्योंकि डा. होपकिन्स जैसे प्रसिद्ध पाश्चात्य तत्ववेत्ता भी प्रारंभ में जैन धर्म को स्वतंत्र धर्म का महत्व न देते थे, लेकिन बाद में उसके गहन अध्ययन के बाद उसकी महत्ता महसूस की। इसके विपरीत बहुत से पाश्चात्य विद्वानों ने जैन धर्म के महत्व को महसूस किया था और उसे एक स्वतंत्र धर्म की मान्यता दिलाने में और प्रचार करने में कम योगदान नहीं दिया है। इनमें जर्मन तत्ववेत्ता डा. हर्मन याकोबी, डा. बुल्हर आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रकार जैन धर्म की महत्ता न केवल प्राचीन भारत की संस्कृति के संदर्भ में ही उल्लेखनीय है, बल्कि भगवान महावीर के समय की परिस्थितियों से लेकर वर्तमानयुगीन
1. श्री सी०जे० शाह-उत्तर भारत में जैन धर्म, पृ॰ 3. 2. द्रष्टव्य-Mrs. stevenson-'The Heart of Jainism' Page.19. 3. द्रष्टव्य-Mr. Hertel, 'On the literature of the Svetambars of Gujrat,'
page. 1. 4. द्रष्टव्य-C.C. Shah, Xxiii, Page. 105. 5. द्रष्टव्य-डा. सी जे शाह-उत्तरभारत में जैन धर्म, पृ०11.