Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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| 12 पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, पाण्मासिक एवं वार्षिक इन विभिन्न रूपों में संस्कृत भाषा में लिखित पत्र-पत्रिकाएँ उसके साहित्यिक विकास को सार्थक बनाती हैं। (क) अप्राप्य प्राचीन पत्र और पत्रिकाएँ :
1. सुनृतवादिनी (मैसूर), 2. संस्कृत चन्द्रिका (कोल्हापुर), 3. मित्रगोष्ठी (काशी), 4. विद्योदय (लाहौर), 5. उद्योत (लाहौर), 6. शारदा (प्रयाग), 7. कालिन्दी (आगरा), 8. वैदिक-मनोहरा (कांजीवरम),9.सुरभारती (बम्बई), 10. आन्ध्र-संस्कृत साहित्य-पत्रिका (आन्ध्र), 11. श्री (काश्मीर), 12. श्री शारदा (मैसूर), 13.आर्यप्रभा (कलकत्ता), 14. भारती (पूना), 15. अमरवाणी (राजस्थान), 16. मधुरवाणी (गद्ग-कर्नाटक), 17. अमर भारती (काशी), 18. वल्लरी (काशी), 19. उच्छृखल (वाराणसी), 20. आर्य विद्या सुधाकर (काशी) 21. ज्योतिष्मती (काशी), 22. संस्कृत प्रभा (मेरठ), 23. संस्कृत-मञ्जूषा (कलकत्ता), 24. प्रणय-पारिजात (कलकत्ता), 25. साधना (बडौदा), 26. मनोरमा (उत्कल), 27. कौमुदी (सिन्ध, हैदराबाद), 28. अमृत भारती (कोचीन), 29. साहित्य सुधा (पटना), 30. काव्य कादम्बिनी (लश्कर), 31. संस्कृत-साहित्य-परिषद् (कलकत्ता) (ख) वर्तमान पत्र-पत्रिकाएँ :
(1) साप्ताहिक - भवितव्यम् (नागपुर), संस्कृतम् (अयोध्या), गाण्डीवम् (वाराणसी), भाषा (गुन्तूर), पण्डित-पत्रिका (काशी) ।
(2) पाक्षिक - भारतवाणी (पूना), शारदा (पूना), संस्कृत-साकेत (अयोध्या)।
(3) मासिक - संस्कृत मञ्जूषा (कलकत्ता), उद्यान-पत्रिका (तिरुवैयक तंजौर), सूर्योदय (काशी), आनन्दकल्प तरु (कोयम्बटूर), अर्वाचीन संस्कृतम् (दिल्ली), गुरुकुलपत्रिका (गुरुकुल-कांगडी, हरिद्वार), जयतु संस्कृतम् (काठमाण्डू), दिव्य ज्योतिः (शिमला), बाल संस्कृतम् (बम्बई), भारती (जयपुर), भारती-विद्या (बम्बई), मालव-मयूर (मन्दसौर), संस्कृत-रत्नाकर (दिल्ली), सरस्वती सौरभ (बड़ौदा.),संस्कृत-सञ्जीवनम् (पटना), साहित्यवाटिका (दिल्ली),भारतोदयः (गुरुकुल महाविद्यालय,ज्वालापुर,हरिद्वार), सर्वगन्धा (लक्ष्मणपुरम्) विज्ञान ज्योतिः (खुर्जा)।
(4) त्रैमासिक- सङ्गमनी (प्रयाग)-कामेश्वर सिंह-संस्कृत विश्वविद्यालय पत्रिका (दरभंगा), ब्रह्मविद्या (अड्यार मद्रास), सारस्वती-सुषमा (संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी), सागरिका (डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर) विश्वसंस्कृतम् (होशियारपुर), महाराज संस्कृत पत्रिका (मैसूर) परमार्थ सुधा रांची (बिहार) विश्वम्भरा (बीकानेर) सम्विद (बम्बई) गुञ्जाखः (अहमदनगर)
(5) पाण्मासिक - पुराणम् (वाराणसी), संस्कृत प्रतिभा (नई दिल्ली), विद्वत्कला (गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर)
(6) वार्षिक - अमृतवाणी (बंगलौर)47
गीतिकाव्य - शास्त्रीय दृष्टि से गीतिकाव्य को खण्डकाव्य कहते हैं । इसमें जीवन का एकदेशीय चित्रण होता है और काव्यत्व के सत्य संगीतात्मकता का प्राधान्य होता है। ऋग्वेद के उषा, इन्द्र, अग्नि, वरुण आदि की स्तुतियों में भावों की सुकुमार एवं सहज अभिव्यक्ति ही गीतिकाव्य का मूलतत्त्व है । इसके पश्चात् बौद्ध ग्रन्थों उपनिषदों, रामायण महाभारत में गीतिकाव्य की अभिव्यक्ति पुष्पित होती गई । किन्तु कालिदास ही संस्कृत गीतिकाव्य