Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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बौद्ध स्तोत्रों में नागार्जुन के भक्तिपूरित चार स्तोत्र " चतुः स्तवन" नाम से विख्यात है । 7वीं में सम्राट् हर्षवर्धन कृत " अष्महा श्री चैत्यस्तोत्र" एवं "सुप्रभात् स्तोत्र" अत्यन्त प्रसिद्ध है । बौद्ध देवी तारा की स्तुति सर्वज्ञमित्र के "स्रग्धरा स्तोत्र" में व्याप्त है । कालिदास के नाम से " काली स्तोत्र "," गङ्गाष्टक स्तोत्र विख्यात हैं" शृङ्गारिक विषयों पर "पुष्पवाणतिलक' और " राक्षस काव्य" इनकी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं । मूककवि की "मूकपञ्चशती" में 500 पद्यों में कामाक्षी स्तुति वर्णित है ।
इस प्रकार गीति काव्य शैली पर अनेक स्तोत्र काव्य लिखे गये तथा नीति पूर्ण शैली पर अनेक काव्य ग्रंथ विरचित हुए, जिनसे यह संस्कृत साहित्य पुष्पित एवं पल्लवित होता रहा है ।
गद्यकाव्य - संस्कृत साहित्य में गद्य का प्रयोग अनेक रूपों में प्राप्त होता है। वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों आरण्यकों, उपनिषदों में विद्यमान गद्य "वैदिक गद्य" है । भारतीय षड्दर्शन, व्याकरण, अष्टाध्यायी में प्रयुक्त सूत्र शैली तथा इन ग्रन्थों की दुर्बोधता दूर करने के लिए भाष्य ग्रन्थों, निरुक्त, न्याय मञ्जरी की रचना सरस गद्य शैली में की गई तथा अर्थ शास्त्र, वैद्यक ग्रन्थ आदि सभी ग्रंथ शास्त्रीय गद्य में निबद्ध हैं । पौराणिक गद्य में इन दोनों गद्य शैलियों को साथ मिलाने का प्रशस्त प्रयास किया गया है । इसके बाद के सभी ग्रन्थ साहित्यिक गद्य में आबद्ध हैं ।
गद्य काव्यों में दण्डी कृत " दशकुमार चरित" श्रेष्ठ ग्रन्थ है । इसमें 5 उच्छ्वासों में पूर्व पीठिका तदुपरान्त 8 उच्छ्वासों में मूलकथा है । इसमें पुष्पपुरी (पटना) के राजा राजहंस के शासन सञ्चालक तीन मन्त्रियों के पुत्रों पर आधारित कहानी को कवि ने अत्यन्त कुशलता के साथ प्रस्तुत किया है । इसके पश्चात् सुबन्धु कृत " वासवदत्ता" में कन्दर्प केतु और राजकुमारी वासवदत्ता के प्रणय और परिणय का ह्रदयस्पर्शी वर्णन किया गया है । यह ग्रन्थ प्रौढ पाण्डित्य की कसौटी ही है । इनके समकालीन महाकवि बाणभट्ट ने " हर्षचरित' ऐतिहासिक वृत्त पर आधारित " आख्यायिना” की रचना की। इसमें आठ उच्छ्वास हैं प्रथम तीन में कवि की आत्मकथा तथा शेष पाँच उच्छ्वासों में हर्षवर्धन के जीवनवृत्त, दिग्विजय तथा बौद्ध धर्म स्वीकार करने के समग्र घटनाक्रम का विवेचन किया गया है । इनकी दूसरी रचना “कादम्बरी” गद्य काव्य का भेद " कथा " है । इसमें पुनर्जन्म की कहानी चित्रित हुई है । अंत में प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं से मिलते हैं, इस प्रकार तपस्यामूलक प्रेम की सफलता और मानव की उदात्त भावनाओं का विवेचन भी हुआ है । 18वीं शती में विश्वेश्वर पाण्डेय ने “मन्दारमञ्जरी गद्य काव्य की रचना की । इसमें चन्द्रकेतु और मन्दार मञ्जरी के प्रणय एवं परिणय का सजीव चित्र अङ्कित है । इसमें व्याकरण, ज्योतिष, दर्शन, पाण्डित्य का समन्वय हुआ है। पं. अम्बिका दत्त व्यास ने ( 12 निश्वासों / अध्यायों में) शिवाजी का जीवन चरित " शिवराज विजय" नामक ऐतिहासिक उपन्यास में प्रस्तुत किया है । इस ग्रन्थ में प्रगतिवाद की प्रेरणा, स्वतन्त्रता की पुकार, आदर्श, यथार्थ, इतिहास एवं कल्पना का मणिकाञ्चन समन्वय मिलता है। ऋषिकेश भट्टाचार्य की " प्रबन्ध मञ्जरी" ग्यारह निबंधों का संग्रह ग्रंथ है- इनमें उद्भिज्ज परिषद, महारण्य पर्यवेक्षणम्, उदर दर्शनम् एवं संस्कृत भाषाया वैशिष्टयम् प्रमुख हैं । यह ग्रन्थ रोचक, व्यंग्यात्मक दृश्यों से ओत-प्रोत है । धनपाल कृत तिलक मञ्जरी 10वीं शती में लिखी गई श्रेष्ठ गद्य रचना है । इसमें तत्कालीन भारत के सांस्कृतिक जन-जीवन का चित्रण हुआ है । 12वीं शती में वादीभसिंह ने कादम्बरी के अनुकरण पर " गद्यचिन्तामणि "
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