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श्री पं. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य परिचय - विद्वत् परिषद के भूतपूर्व अध्यक्ष और विद्वानों में अग्रगण्य डा. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य का जन्म वाबरपुर ग्राम (राजाखेड़ा, धौलपुर) राजस्थान में 16 सितम्बर ईसवीं 1922 को हुआ था । आपके पिता का नाम बलवीर जी और माता जी का नाम सावित्री बाई था । आप जायसवाल थे । आपके पिता जी आपकी छ: माह की उम्र में ही स्वर्ग वासी हो गये थे।
मामा के यहाँ प्राथमिक शिक्षा लेकर स्याद्वाद विद्यालय बनारस से आपने जैनधर्म शास्त्री, ज्योतिषतीर्थ, न्यायतीर्थ किया था। हिन्दी, संस्कृत और प्राकृत में एम. ए. करने के बाद ई. 1961 में पी-एच.डी. और ई. 1965 में डी.लिट. किया था । ईसवी-1937 में सुशीला देवी के साथ आपका विवाह हुआ । नलिनकुमार आपके पुत्र का नाम है। आपने आरा की सभी संस्थाओं में कार्य किया था । ई. 1939 से ई. 1974 तक लगातार 34 वर्षों तक आप शिक्षक रहे । 15 व्यक्तियों ने आपके निर्देशन में पी-एच.डी. के लिए शोध प्रबन्ध लिखे हैं।
रचानाएं - मुहूर्त मार्तण्ड, भारतीय ज्योतिष, आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, संस्कृत गीतकाव्यानुचिन्तनम्, और भगवान् महावीर और उनकी आचार्य परम्परा आपकी मौलिक रचनाएँ हैं।
उनके अध्ययन-अनुभव-अभ्यास की थाह पाना बड़ा मुश्किल रहा है। आपने केवल जैन धर्म की ही नहीं भारतीय धर्म और संस्कृति की भी बड़ी सेवा की है । वे सही अर्थों में सरस्वती के सफल सिद्ध वरद् पुत्र थे । दुःख है वे अधिक श्रुत - सेवा न कर सके। 10 जनवरी 1974 ईसवी को आपका अवसान हो गया ।
पं. कमलकुमार न्यायतीर्थ परिचय - आप बकस्वाहा (छतरपुर) के निवासी थे । आप सहज और सरल थे। जो सोचते वही कहते और वही आचरते थे। व्याकरण, न्याय, काव्यतीर्थ, साहित्य और धर्मशास्त्री की परीक्षाएं आपने उत्तीर्ण की थी । आपकी भाषण शैली चित्ताकर्षक थी । सागर विद्यालय में व्याकरण का अध्यापन करने के पश्चात् आप कलकत्ता चले गये थे। वहाँ आप सेठ गजराज जी गङ्गवाल के घर रहते और उनके परिवार को धार्मिक शिक्षा देते थे । रात्रि में प्रतिदिन शास्त्र-प्रवचन करते थे । संस्कृत धारा प्रवाह बोलने में आप कुशल थे ।
रचनाएं - आपकी दो स्फुट रचनाएं हैं। इनमें एक रचना में आपने अपना परिचय दिया हैं । अपनी बीस श्लोकों में रचित रचना पूज्य वर्णी जी को समर्पित करके अपने द्वारा |. उत्तीर्ण की गयी परीक्षाओं और आवासभूमि का उल्लेख किया है -
पूर्वं विच्छितान् विविधान्, ध्यायन् ध्यायन् तवोपकारानिह । नमस्तेकोऽहमधुना, समर्पये वर्णिविंशतिकाम् ॥1॥ साहित्य-धर्मशास्त्री, व्याकरणन्यायकाव्यतीर्थश्च । विद्याधनोपजीवी, नित्यं धर्मोपजीवी च ॥2॥ नाम्ना कमलकुमारः, श्रीमच्चरणारविन्दवन्दारुः । चारुश्चरित्र - चित्रान्, श्रावं श्रावं गुणग्रामान् ॥3॥ कालिकातायां वासो, वासो भाषा त्वदीयगुणकस्य । आज्ञां निर्मल-वृत्तेः, साक्षान्मोक्षस्य मार्गों मे ॥4॥