Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 318
________________ 297 में कवि ने पद्मप्रभु को सर्वस्व समर्पित करते हुए उनकी शरण में रहने की ऑकांक्षा की है यही दास्य भाव प्रेम रामचरित मानस में तुलसीदास का है। इस प्रकार स्वामी-सेवक का संबन्ध पद्मप्रभुस्तवन में कवि ने भी अंकित किया है । अन्य स्तोत्रकाव्यों में भी इस अनन्य भक्ति की झलक मिलती है । इसमे अन्य स्तोत्रों के समान गेयता, माधुर्य, एवं भावाभिव्यञ्जना का सफल संयोजन हुआ है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पं. जवाहर लाल शास्त्री बीसवीं शती के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि काव्य रचयिता हैं । ९. पं. गोविन्द राय शास्त्री का काव्यः "बुन्देलखण्डं श्री वर्णी च" "बुन्देलखण्डं श्री वर्णी च" रचना संस्कृत के 31 पद्यों में निबद्ध ऐतिहासिक महत्त्व का काव्य है । इसमें वीर रस के माध्यम से बुन्देलखण्ड के गौरवशाली इतिहास का निदर्शन है । इस रचना का प्रथम और अन्तिम पद्य अनुष्टुप् छन्द में है और शेष पद्यों में उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है । इस रचना में पदे-पदे अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलङ्कारों का प्रयोग काव्यसौन्दर्य की श्री वृद्धि करने में सहायक है । प्रसाद गुण पूर्ण वैदर्भी रीति का प्रभाव सम्पूर्ण रचना में है । भाषा सरल, परिष्कृत और भावानुकूल है । भाव और भाषा में समन्वय स्थापित किया गया है । पं. गोविन्द राय शास्त्री की लेखन शैली समृद्ध और समुन्नत है । उनकी रचनाएँ बीसवीं शताब्दी में जन-जन को लाभान्वित कर रही है । देश, समाज तथा संस्कृति की रक्षा में पं. गोविन्द राय का प्रशान्त योगदान है । १०. बीसवीं शताब्दी की अन्य प्रतिनिधि रचनाएँ उपरि विवेचन रचनाकारों और उनकी रचनाओं के अतिरिक्त बीसवीं शताब्दी में रचित अन्य रचनाओं में भी तुलनात्मक तथा समीक्षात्मक अनुशीलन के लिए उपयोगी साहित्यशास्त्र के समस्त तत्व विद्यमान हैं- विवेच्य शती के प्रमुख रचनाकारों में जहां एक ओर साधुसाध्वियों द्वारा रचित साहित्य है और इनमें भी आर्यिका सुपार्श्वमती माता जी, आर्यिका ज्ञानमती माता जी, आर्यिका जिनमतीमाता जी, क्षुल्लिका राजमती माता जी प्रभृति साध्वियाँ प्रमुख हैं- जिन्होंने अपनी कृतियों में सभी साहित्यिक मानदण्डों को अपनाया है । और संस्कृत भारती की सेवा की है, वहीं दूसरी और पं. जुगल किशोर मुख्तार, पं. बारेलाल जी राजवैद्य, ठाकुरदास जी शास्त्री, प्रो. राजकुमार साहित्याचार्य, डॉ. भागचन्द्र जैन "भागेन्दु" पं. भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री, डॉ. दामोदर शास्त्री, पं. अमृतलाल शास्त्री, साहित्य-दर्शनाचार्य, ब्र पं. सच्चिदानन्द वर्णी, पञ्चराम जैन प्रभृति अनेकानेक मनीषी गण हैं जिन्होंने अपनी स्फुट/स्तोत्र रचनाओं के माध्यम से संस्कृत साहित्य की अभिराम श्रीवृद्धि की है । इनका रचना संसार समृद्धशाली है - इनके चिंतन, विचारधारा, नव नवोन्मेष शालिनी भावाभिव्यक्ति और रचनाधर्मिता में सजीवता है । उक्त विद्वानों की रचनाओं पर दृष्टिपात करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इनकी कविता में अध्यात्म, दर्शन, धर्म, संस्कृति और नीतिशास्त्र का प्रतिपादन हुआ है । प्रसादमाधुर्य गुणों से ओत-प्रोत वैदर्भी शैलीमय इनकी रचनाएँ देश, समाज, साहित्य की अमूल्य निधि हैं । इनमें भाषा शास्त्र, काव्यशास्त्र, के सभी तत्त्वों का प्रसङ्गानुकूल निदर्शन

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