Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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विभिन्न शब्दालङ्कारों और अर्थालङ्कारों से मण्डित यह ग्रन्थ अनेक छन्दों में निबद्ध है । इसके अतिरिक्त प्राञ्जल और प्रौढ़ संस्कृत में रचित
अभिनव स्तोत्रम्,
गणेश स्तुति:,
आचार्य ज्ञानसागर संस्तुतिः,
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आचार्य शिवसागर स्तुति:
प्रभृति अनेक स्तोत्रों एवं स्फुट रचनाओं के माध्यम से संस्कृत साहित्य के भव्य भंडार को समग्रतया पूर्णता प्रदान की है ।
"सोऽयं दरबारीलाल इह भोः स्थेयाच्चिरं भूतले"
प्रस्तुत रचना के माध्यम से न्यायाचार्य डॉ. दरबारी लालजी कोठिया का अभिनन्दन किया है ।
उपर्युक्त रचनाओं में काव्य सौन्दर्य की मनोहर झांकी पदे पदे चित्ताकर्षक है । भाषा प्रवाहशील सरस, बौधगम्य है । कोमलकान्त पदावली में भावों की अभिव्यंजना की है शब्द चयन करने में शास्त्रीजी पारङ्गत हैं । उपर्युक्त स्तोत्रों में " गागर में सागर " उक्ति सार्थक हुई है । कवि - हृदय से उद्भूत श्रद्धाभाव स्तोत्रों में शब्दायमान हो उठा है । शास्त्री जी की रचनाओं में वैदर्भी रीति का प्राधान्य है ।
इस प्रकार शास्त्री जी की काव्य साधना उत्कृष्ट और सुदीर्घ है ।
७. डॉ. (पं.) दयाचन्द्र साहित्याचार्य के काव्य
सागर के श्री गणेश जैन संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. (पं.) दयाचन्द्र साहित्याचार्य ने संस्कृत भाषा में निबद्ध अनेक स्फुट रचनाओं का प्रणयन करके संस्कृत साहित्य जगत् को समृद्धि प्रदान की है ।
सरस्वती वन्दनाष्टकम्
"सरस्वती वन्दनाष्टकम् " सरस संस्कृत के आठ पद्यों में रचित रचना है । इसमें वाग्देवी की गुणस्मरणपूर्वक वन्दना की है ।
दीपावली वर्णनम्
“दीपावली वर्णनम् शीर्षक रचना में दीपावली पर्व का यमकालङ्कारमय चित्रण है । रक्षाबन्धन पर्व
रक्षाबन्धन पर्व पर रचित यह एक पद्यीय रचना शार्दूलविक्रीडित छन्द में निबद्ध की
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" नक्तन्दिनं दहति चित्तमिदं जनानाम् "
प्रस्तुत पंक्ति का प्रयोग समस्यापूर्ति के रूप में संस्कृत पद्यों में सरल, सरस भाषा और वैदर्भी प्रधान शैली में किया है ।
"विपत्तिरेवऽभ्युदयस्य मूलम् "
प्रस्तुत पंक्ति का प्रयोग समस्या पूर्ति के रूप में संस्कृत पद्यों में सरल, सरस, भाषा और वैदर्भी प्रधान शैली में किया है ।