Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 319
________________ 298 हुआ है । उपर्युक्त सभी रचनाकारों को काव्य रचनाओं को दृष्टिपथ में रखते हुए इस शोधप्रबन्ध में मूल्याकंन किया गया है इससे ज्ञात हुआ है कि बीसवीं शताब्दी में संस्कृत में जैन विषयों पर रचित काव्य की श्रृंखला बहुत लम्बी है । इनमें रचनाकारों का अनुभव, ज्ञान, पाण्डित्य, एवं प्रतिभा व्यक्तित्व की छाप अंकित है । अन्त में - अपने अनेक वर्षों के अध्ययन अनुशीलन के पश्चात् शोधकर्ता गौरव पूर्वक यह उल्लेख करना चाहता है कि -जैन विषयों पर काव्य रचना करने वाले बीसवीं शताब्दी के काव्यकारों ने भारत की राष्ट्रीय संस्कृति, चेतना, भाव प्रवणता, नैतिक आदर्शों, जीवन मूल्यों और उदात्त सिद्धान्तों के प्रतिपादन हेतु संस्कृत काव्य की धारा को अंगीकार किया है । उन्होंने अपनी अभिराम प्रतिभा, उच्चकोटि वैदुष्य और सतत् काव्य की धारा को अंगीकार किया है । उन्होंने अपनी अभिराम प्रतिभा, उच्चकोटि वैदुष्य और सतत् काव्य सृजन से-बीसवीं शताब्दी में भी अपने पूर्ववर्ती आचार्यों और मनीषियों के आदाय को न केवल अक्षण्य रखा है प्रत्यत उसे स व्यवस्थित ढङ से समन्नत भी किया है। इन सभी का काव्य कौशल भारतीय काव्यशास्त्र के मान दंडों को चरितार्थ करता है । इनकी संस्कृत भाषा प्रौढ़, प्राञ्जल तथा कोमलकान्त पदावली से अभिमण्डित है । काव्यशैली में अपने प्राचीन आदर्शों से सरंक्षण के साथ ही साथ युगानुरूप नवीनता का भी उल्लेख है। रचनाकार युग सापेक्ष्य आवश्यकताओं की सम्पूर्ति हेतु भी संस्कृत में काव्य प्रणयन करता है । ये सभी रचनाएँ भारत राष्ट्र, राष्ट्रियता, संस्कृत भारती, काव्य का इतिहास, भाषा शास्त्र, और संस्कृति के उदात्त आदर्शों और रूपों को अभिव्यक्त्व करती हैं । मेरा यह अध्ययन-अनुसन्धान प्रयत्न "संस्कृत काव्य के विकास में बीसवीं शती के जैन मनीषियों के योगदान' को रूपायित करने में सक्षम होवे, इस अन्तरंग भावना के साथ अपना यह प्रबन्ध सविनय अर्पित करता हूँ। फुट नोट ॐ3886668888888888885600202322803850566666683 2. श्रावक धर्म प्रदीप, पद्य 11, पृ.. 14 वचनदूतम्, पूर्वार्ध, पद्य 17 वचनदूतम्, पूर्वार्ध, पद्य 36 वचनदूतम्, पूर्वार्ध पद्य 38 "परिशिष्ट एक" सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 11. डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये 12. श्री अनिल जैन : भारतीय विद्या ग्रन्थावली प्रका. भारतीय विद्या भवन, बम्बई 1945 ई. सम्यक्त्वचिन्तामणे :समीक्षात्मकाध्ययनम् डॉ.भागचन्द्रजी जैन"भागेन्दु"द्वारा निर्देशित लघु-शोध प्रबन्ध 1989 ईं

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