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'सम्यक्त्व चिन्तामणि" : नवम मयूख ।
सम्यक्त्व चिन्तामणि : दशम मयूख, पद्य 2, पृष्ठ 340 । सज्ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी ।
सम्यक् चारित्र-चिन्तामणिः प्रकाशक- मंत्री वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी - 5 (प्रथम संस्करण) 1988 ई.
विस्तृत विवरण के लिए देखिए : सम्यक्त्व चिन्तामणेः समीक्षात्मकाध्ययनम् : अनिल
जैन |
धर्मकुसुमोद्यान प्रकाशक, दुलीचन्द्र परवार, जिनवाणी प्रचारक कार्यालय 161/1, हरीसन रोड, कलकत्ता ।
36.
धर्मकुसुमोद्यान पद्य 34, पृष्ठ 13
37. धर्मकुसुमोद्यान पद्य 40, पृष्ठ 14
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धर्मकुसुमोद्यान धर्मकुसुमोद्यान सामयिक पाठ
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महावीर स्तवनम् - साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रंथ 6/1 महावीर स्तोत्रम् - साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रंथ 6/2 बाहुबल्यष्टकम् - साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन, अ. ग्रंथ - 6/4 आचार्य श्री धर्मसागर महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ : पृष्ठ 225
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गङ्गा-सिन्धु, रोहित - रोहितास्या, हरित - हरिकान्ता, सीतासीतोंदा, नारी - नरकान्ता, स्वर्णकुला - रुप्यकूला और रक्ता- रक्तोदा ये महानदियाँ उपरोक्त सात क्षेत्रों में दोदो के युगल में बहती हैं ।
विस्तृत विश्लेषण के लिए सम्यक्त्व चिन्तामणि, चतुर्थ मयूख, पृष्ठ 140 से 143
तक ।
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान यदि मिथ्यादर्शन के साथ होते हैं तो ये मिथ्यारूप होते हैं तब ये - कुमति, कुश्रुत एवं विभङ्गाविधि नाम पाते हैं । समुद्घात के - कषायोद्भूत, वेदनोद्भूत, वैक्रियिक, मारणान्तिक आदहरक, केवली समुद्घात । ये 7 भेद हैं I
सम्यक्त्व चिन्तामणि षष्ठम मयूख, पद्य 2, पृष्ठ 182 सम्यक्त्व चिन्तामणि : सप्तम मयूख, पद्य 185, पृष्ठ 236 सम्यक्त्व चिन्तामणि : अष्टम मयूख, पद्य 5, पृष्ठ 259 द्रष्टव्य, तपसा निर्जरा चेति समुक्तं पूर्वसूरिभिः । तपसामेव तद्व्याख्या क्रियतेऽस्मिन्मयूखे ॥
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तैजस,
पद्य 64, पृष्ठ 24.
पद्य 100, पृष्ठ 37
साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जैन अ. ग्रन्थ 6/5-12
गुरु गोपालदास बरैया स्मृति ग्रन्थ : अखिल भारतवर्षीय दि. विद्वत् परिषद, सागर प्रकाशन, प्रथम संस्करण ई. 1967, पृष्ठ 88-89
" वर्धमान चम्पू" काव्य में पं. मूलचन्द्र शास्त्री ने अपना जीवन परिचय छन्दबद्ध किया है ।
वचनदूतम् पूर्वार्ध - पं. मूलचन्द्र शास्त्री : प्रकाशक- मन्त्री प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिग. जैन अ. क्षेत्र महावीर जी, (महावीर भवन), जयपुर - 3, प्रथम संस्करण- 1975 ई., वचनदूतम् पूर्वार्ध पद्य 7, पृष्ठ 6