Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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शिवदास के "कथार्णव" में मूों एवं तस्करों से सम्बद्ध 35 कथाएँ निबद्ध हैं। ब्राह्मण संस्कृति की हीनता " भरटक द्वात्रिंशिका" में प्रतिपादित है, यह लोक भाषा में सम्गुफित कृति है । 14वीं शती में विद्यापति ने "पुरुष परीक्षा" की रचना की । इसमें 44 कथाएँ नैतिक एवं राजनीति पूर्ण हैं । 16वीं शती में बल्लालसेन द्वारा विरचित "भोजप्रबन्ध" अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है । इसमें भोज सम्बन्ध उदात्तवृत एवं संस्कृत महाकवियों से सम्बद्ध है दंतकथाएँ प्राप्त होती है । इसके साथ ही जैन विद्वानों की नैतिक एवं शिक्षा प्रद कहानियाँ इस काल की सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ मानी गयी हैं - "कथा रत्नाकर" हेमविजयगणि का 256 लघु कथाओं से सुसज्जित कथा संग्रह है । यह 17वीं शती की रचना है । जैन साधुओं से सम्बद्ध कहानियाँ हेमचन्द्र के "परिशिष्ट पर्व" में विद्यमान हैं । प्रबन्ध साहित्य में विख्यात "प्रबन्ध चिन्तामणि 7 और प्रबन्धकोश 78 जैन संस्कृति के अभिन्न अङ्ग हैं । प्रबन्ध चिन्तामणि" की रचना मेरुतुङ्गचार्य ने 5 प्रकाशों (खण्डों) में की है, इसमें ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक पुरुषों का जीवन चित्र अंकित है । "प्रबन्ध कोश" में राजशेखर ने 24 प्रसिद्ध पुरुषों के जीवन चरित का विवेचन किया है । अत: इसे "चतुर्विंशति प्रबन्ध" भी कहते हैं । जिनकीर्ति ने 15 वीं शती में "चम्पक श्रेष्ठ कथानक" एवं "बालगोपाल कथानक'' नामक दो रोचक कथा ग्रन्थों का प्रणयन किया । इस प्रकार और भी कतिपय कथाग्रन्थ लिखे गये । जैन कवियों के समान बौद्ध विद्वानों ने भी अपने "अवदान' ग्रन्थों के द्वारा कथासाहित्य को परिपक्वता प्रदान की। "अवंदान" का अर्थ है -"महनीय कार्य की कहानी' अवदान ग्रन्थों में जातक ग्रन्थों के समान बुद्ध के पूर्वजन्मों के विशिष्ट गुणों का प्रतिपादन हुआ है । “अवदान शतक में बौद्ध विचारों पर आधारित 100 वीरगाथाओं का सङ्कलन है । यह 2री शती की रचना मानी गई है । "दिव्यावदान'' में विनयपिटक की शिक्षाओं को कहानियों के माध्यम से समझाया गया है- इसके दो भाग हैं- प्रथम भाग में महायान सम्प्रदाय के सिद्धान्तों की व्याख्या है तथा दूसरे भाग में हीनयान सम्प्रदाय के सिद्धान्त दिये गये हैं। आर्यशूर का "जातकमाला भी 500 कथाओं का सङ्ग्रह ग्रन्थ है । "सूत्रालङ्कार" कुमार की कृति है। "अवदान कल्पलता" क्षेमेन्द्र कृत प्रौढ़ कथा संग्रह है । इसमें अनेक रोचक आख्यान मिलते हैं ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृत कथा कहानियों का संसार में इतना अत्यधिक प्रचार, प्रसार हुआ है कि विश्वसाहित्य का एक अभिन्न अंग बन गयी हैं। । नाटक - संस्कृत साहित्य के श्रव्य काव्यों का अनुशीलन करने के उपरान्त दृश्य काव्य का अध्ययन भी अभीष्ट है । संस्कृत नाटकों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक मत दिये गये तथा आधुनिक विद्वानों ने वैज्ञानिक विकासवाद एवं अनुसन्धान के आधार पर नाटक की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक विचार धाराएँ प्रस्तुत की है । वैदिक साहित्य की समीक्षा करने से यह ज्ञात होता है कि नाटक के प्रधान अंगों का अस्तित्व वैदिककाल में किसी न किसी में था । इन्हीं से हम संस्कृत नाटकों का उद्भव मानते हैं रामायण, महाभारत युग में नाटक साहित्य विकसित हुआ । इन ग्रन्थों में नाट्य सामग्री एवं कतिपय नाटकों के अभिनय किये जाने का विवरण मिलता है । इस प्रकार वैदिकोत्तरयुग में नाटक हैं जनसामान्य के मनोरञ्जन का उत्कृष्ट साधन था । पाणिनि ने "जाम्बती जय" नाटक लिखा था । पतञ्जलि ने महाभाष्य में कंसवध एवं बलिबन्ध नाटकों के अभिनय किये जाने का विवेचन किया है । भरतमुनि ने भी अमृत मन्थन, त्रिपुरदाह आदि नाटकों का विशेष उल्लेख किया है । इस प्रकार ईसा पू. 200 में नाटक रङ्गमञ्च पर अभिनीत होने लगे थे, इसकी प्रमाण स्वरूप