________________
144 उन्होंने यह भी लिखा है कि वे अपने माता-पिता के एक मात्र पुत्र थे। पिता अढ़ाई वर्ष की अवस्था में ही दिवङ्गत हो गये थे । माता ने वैधव्य जनित कष्टों को भीगते हुए बड़े लाड-प्यार से इनका पालन किया था । दुःख अकेला नहीं आता । एक दुःख के बाद शास्त्री जी को दूसरा दुःख भी भोगना पड़ा । उनका बायाँ हाथ भग्न हो गया था । निर्धनता के कारण जिसकी चिकित्सा भी न हो सकी थी। श्री शास्त्री जी ने स्वयं लिखा है -
मदेक पुत्रां जननीं विहाय स तातपादः परमल्पकाले । दिवंगतस्तत्समयेऽहमासं सार्धद्विवर्षायुषि वर्तमानः ॥3॥ वैधव्यकष्टेन संमर्दिताम्बा मां पालयामास यथा कथञ्चित् ।
वामः करो मे ह्यशुभोदयेन भग्नोडभवद्रिक्तधनस्य हन्त ।4।। अपनी निर्धनता का सजीव चित्रण करते हुए श्री शास्त्री जी ने लिखा है कि वे अभाव में ही जन्मे और अभाव में ही बड़े हुए थे । विद्याभ्यास भी उन्होंने अभाव में ही किया था । इस प्रकार अभावों के होने पर भी वे कभी हतोत्साहित नहीं हुए, अपने कर्तव्यों का सदैव निर्वाह करते रहे। शास्त्री जी के शब्द हैं -
अभावे लब्धजन्माऽहं अभावे चाथ बर्द्धितः ।
अभावे लब्धविद्योऽहं स्वकर्त्तव्ये रतोऽभवम् ।।6।। , शास्त्री जी प्रतिभा के धनी थे । लेखनी में आकर्षण रहा है । शैली चित्ताल्हादक है । यदि उनकी प्रतिभा का सही उपयोग किया गया होता तो निःसन्देह संस्कृत भाषा की और अधिक समृद्धि होती । उन्हें अपनी जीवन यात्रा में अनेक धनिकों से सम्पर्क हुआ । अनेक अधिकारी प्राप्त हुए किन्तु गुणग्राही हृदय कोई दिखाई नहीं दिया । उन्होंने अपनी इस व्यथा को निम्न शब्दों में व्यक्त किया है -
दृष्टा मयाऽनेकविधा धनाढ्याः गणोऽपि तेषामधिकारिणां च । . . परं न विद्वज्जनगण्य गुण्य गुणानुरागी हृदयोऽत्र दृष्टः ॥
श्री शास्त्री जी ने मातृभक्ति का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है । उन्होंने न केवल प्रस्तुत ग्रन्थ उनको समर्पित किया है, अपितु आगामी पर्याय में भी अपनी इसी माता का पुत्र होने की कामना की है। माता की श्रद्धा-भक्ति का स्वरूप द्रष्टव्य है, कवि के निम्न शब्दों में
मातस्ल्वया मम कृतोऽस्ति महोपकारो, यावांस्तदंशमपि पूरयितुं न शक्तः । एतन्नवीनकृतिं वृद्धियुतं विधाय,
प्रत्यर्पयामि महिते ! तद्भुरीकुरुष्व ॥ कवि की यह विशेषता है कि उन्होंने नारी के सम्मान का सर्वत्र ध्यान रखा है। उन्होंने न केवल माता को सम्मान दिया है, अपितु अपनी पत्नी को भी आदर दिया है । उन्होंने साहित्य-सृजन प्रसङ्ग में पत्नी के योग को अपेक्षित बताया है । उन्होंने लिखा है -
साहित्यनिर्माण विधौ च पुंसो योगेन पत्न्या भवितव्यमेव ।
विशोभते चन्द्रिकयैव युक्तो विधोः प्रकाशोऽप्युनुभूत एषः ॥ ___ प्रस्तुत काव्य के स्तविकों के अन्त में कवि की पत्नी का नाम "मनवावरेण" पद से मनवादेवी बताया गया है । खुशालचन्द्र, नरेशकुमार, सुरेशकुमार और महेशकुमार, ये कवि