Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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के मन्त्री पद का कार्य कुशलता के साथ किया । आपकी साहित्यिक सेवाओं के संदर्भ में भारत सरकार आपको एक साहित्यिक अलोन्स भी देती रही । इस प्रकार पं. गोविन्द्र राय शास्त्री अप्रतिम प्रतिभा के धनी साहित्यकार के रूप में विख्यात हुए । "बुन्देलखण्डं सद्गुरुः श्रीवर्णी च ९५
आकार - " बुन्देलखण्डं सद्गुरुः श्रीवर्णी च" रचना इकतीस श्लोकों में निंबद्ध स्फुटकाव्य
है ।
नामकरण - बुन्देलखण्ड एवं श्री वर्णी जी की प्रशस्ति होने के कारण रचना का नामकरण "बुन्देलखण्डं सद्गुरु, श्रीवर्णी च" सर्वथा उपयुक्त है ।
रचनाकार का उद्देश्य - बुन्देलखण्ड एवं श्री वर्णी जी के माहात्म्य एवं प्रशस्ति को परिष्कृत करना रचनाकार का मूलोद्देश्य मालूम पड़ता है ।
अनुशीलन - बुन्देलखण्ड की प्रकृति, संस्कृति, ऐश्वर्य आकर्षक है । अनेक पर्वतों, नदियों, बगीचों, खेतों, वृक्षों से मण्डित पावन विन्ध्य भूमि अत्यन्त रमणीय है । इसकी सुरम्य गोद में तुलसी, बिहारी, रइधू, मैथिलीशरण गुप्त, केशवदास आदि कवियों ने क्रीडाएँ की है। यहीं (बुन्देलखण्ड में) महापराक्रमी आल्हा एवं परमाल अवतरित हुए। सर्वगुणसंपन्न यशस्वी. महाराज छत्रसाल बुन्देलखण्ड के शक्तिशाली राजा रहे हैं। वीराङ्गना दुर्गावती ने मातृवत् प्रजा की रक्षा की । सिद्धक्षेत्र अहार जी की मूर्तियाँ मूर्तिकला चातुर्य की प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
राष्ट्र प्रेम और आजादी की जीवन्त प्रतिमा महारानी लक्ष्मीबाई ने हाथ में तलवार धारण करके स्वतन्त्रता सङ्ग्राम का सिंहनाद किया । राष्ट्रवीर श्री गणेश शङ्कर विद्यार्थी भी बुन्देलखण्ड में जन्मे । बुन्देलखण्ड के पन्ना नगर में हीरे निकलते हैं । दतिया नगर में उत्पन्न "गामा' पहलवान ने अपने व्यायाम कौशल से विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की।
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बुन्देलखण्ड में ही सुवर्ण, देशव्रज, चित्रकूट, चेदि (चन्देरी) पपौरा, खजुराहो और नैनागिर तीर्थस्थल विद्यमान् हैं । बुन्देलखण्ड में जन्मे श्री गणेश शङ्कर विद्यार्थी एक विद्वान्, ज्योतिषी, त्यागी, प्रकृति प्रेमी, शिक्षा शास्त्री, कर्मयोगी, मधुरभाषी, दयालु राष्ट्रभक्त महापुरुष हुए हैं । जिन्होंने अपने कार्यों से समाज को नई दिशा प्रदान की है ।
"पं. जुगल किशोर मुख्तार युगवीर".
परिचय - साहित्य के भीष्म पितामह के नाम से विश्रुत, सरस्वती के वरद्पुत्र, निर्भीक, निराले व्यक्तित्व के धनी, निबन्धकार, सुप्रसिद्ध इतिहासकार, कुशलवक्ता, निपुण पत्रकार एवं संपादक, समीक्षक पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार युगवीर का जन्म सरसावा, जिला-सहारनपुर में श्री चौ. नत्थूमल जैन के घर में मार्ग शीर्ष शुक्ला एकादशी वि. सं. 1934 को हुआ था। शैशव से ही विलक्षण प्रतिभा और तर्क शक्ति के धनी मुख्तार जी की प्रारभिक शिक्षा गांव में स्थित पाठशाला में हुई । तत्पश्चात् संस्कृत में बढ़ती अभिरुचि ने आपको जैन शास्त्रों के स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया । मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत 1899 ई. में आपने प्रान्तिक सभा की ओर से उपदेशक का कार्य प्रारंभ किया, किन्तु दो माह के बाद उपदेशक वृत्ति से त्याग पत्र देकर मुख्तारी करने लगे। इस पेशे में आपने सदा न्याय और सत्य का आधार लिया । आपका अधिकांश समय, साहित्य, कला, पुरातत्त्व के अन्वेषण में व्यतीत होता था । भट्टारकों की साहित्यिक गति - विधियों से क्षुब्ध होकर मुख्तार जी ने "ग्रन्थ परीक्षा" के नाम से एक शोध ग्रन्थ प्रकाशित करवाया। इसमें भट्टारकों द्वारा की गई साहित्यिक चोरी का भंडाफोर करके लोगों को वास्तविकता से अवगत कराया गया 4