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153 ननमयययुतेयं मालिनी भोगि लोकैः । मालिनीछन्द के प्रतिपाद में क्रमशः दो नगण, एक मगण और दो यगण होते हैं तथा अष्टम और सप्तम अक्षरों के पश्चात् यति होती है । यह 15 अक्षरों का छन्द है
सकल जगति . दत्ता नीतिसाहित्यधारा, समजनि जनचित्ते येन वीर्यातिरेकः । गुरुजनपदकीर्तिः साम्प्रतं यस्य, तस्य ,
विदित सकलराष्ट्रे "भाडतुला भारतस्य।" अनुप्रास अलंकार भी इस पद्य में दृष्टिगोचर होता है । ये स्फुट रचनाएँ वर्तमान युग की अनुपम साहित्यिक और भावप्रवण झलकें उपस्थित करती है । गंगा नदी की गौरवगाथा का शङ्खनाद करते हुए लेखक ने उसे विभिन्न नामों से अभिषिक्त किया है
"हिमालयाद् विनिर्गता विशालदेशसंगता, मलाङ्गस्तापहारिणी पयः प्रवाहकारिणी । सुरम्यतीर्थमन्दिरा तृषात चक्रचन्द्रिका ,
त्रिमार्गगा गरीयसी नदीश्वरी नदीश्वरी । लेखक दयाचन्द्र साहित्याचार्य ने वर्णी जयन्ती के अवसर पर भी सागर में स्वरचित पद्य प्रस्तुत किये । जिनमें संस्कृत महाविद्यालय के संस्थापक गुरुवर पं. गणेश प्रसाद वर्णी की स्तुति और प्रभाव का निदर्शन है। प्रत्येक पद्य के अंत में "वर्णी गणेशो जयताँ जगत्याम्" की कामना की गई है । उन्हें समाज सेवक, शिक्षादानी, सर्वगुण सम्पन्न, क्षमा, त्याग, विनम्रता आदि का धारक निरूपित किया गया है ।
इसी प्रकार "जैन मित्र" के स्वर्ण जयन्ती महोत्सव पर भी शुभ कामना सन्देश दयाचन्द्र जी ने संस्कृत पद्य में प्रेषित किया है । जिसमें जैन मित्र विचार पत्र को जन हितकारी, कुरीति नाशक, समाजसेवी, आदि विशेषणों से अलङ्कत किया गया है । इसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत पद्य का आलङ्कारिक सौन्दर्य द्रष्टव्य है -
सरलतरल काव्ये नव्यवृत्तान्त लेखैः, गमयतु नवशिक्षा भारते जैन मित्रम् । समयनियमनिष्ठं
जैनपत्रेषु वृद्धम्, विलसतु नववर्षे मित्रवज्जैन मित्रम् ॥ इस प्रकार साहित्याचार्य का शुभ कामना सन्देश अत्यन्त गौरवपूर्ण बन गया है । उनका | कवित्व प्रशंसनीय और विद्वज्जनों के लिए पठनीय है ।
पं. जवाहरलाल सिद्धान्त शास्त्री परिचय - पं. श्री जवाहर लाल सिद्धान्त शास्त्री राजस्थान स्थित "भीण्डर" के निवासी है । आपके पिता का नाम श्री मोतीलाल बगतावत था । आपकी माता श्रीमती कञ्चन बाई धर्मपरायण महिला थीं । बचपन से ही शास्त्री जी की रुचि जैन धर्म के शास्त्रों में रही तथा श्री धर्मकीर्ति जी महाराज की प्रेरणा पाकर चावण्ड ग्राम में रहकर शास्त्री जी ने जैन शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन किया । पूज्यात्मा, सिद्धान्त भूषण पं. श्री रतनचन्द्र जी मुख्तार आपके गुरुवर है - इनकी असीम अनुकम्पा से आपने धवला-जयधवला-महाधवला ग्रन्थों में सिद्धि प्राप्त की।