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मोहान्धकार के नाश हेतु दीप, अष्टकर्म समाप्ति हेतु धूप मोक्ष हेतु फल तथा अनर्घपद प्राप्ति हेतु अर्घ्य सहित समपर्ण स्वाहा देने के हवन आयोजन को प्रतिपादित किया है ।
"यजे सदाजिताब्धिसूरि मुदा सुखप्रदम् ॥" जयमाला :
जयमाला में आचार्य अजित सागर के महनीय व्यक्तित्व और लोकोत्तर कीर्ति का सादर संस्मरण बारह पद्यों में हुआ है, उन्हें कल्पवृक्ष, चिन्तामणि, कामधेनु, स्वर्णिकसुख दाता, विश्वबन्धुत्व के प्रतीकात्मक विशेषणों से अलङ्कत किया गया है - उनके-चरणों की वन्दना करते हुए रचयित्री की कल्पना द्रष्टव्य है -
संसारताप पवनाशनवैनतेय श्री भारतावनिविभूषण पूज्यपाद । शीतांशुशुभ्र यशसा परिवर्धमान भक्त्या नमामि तवपादयुगं मुनीन्द्र ॥ (2)
सम्यक्त्वत्रय से सुशोभित, पवित्र देह सद्गुरु आपशान्तिसागर जी महाराज के उत्तराधिकारी श्रीवीरसागर महाराज के सुशिष्य आपको नमन है। इस प्रकार रचयित्री ने जयमाला के अन्तर्गत आचार्य अजितसागर महाराज के बहुमुखी एवं अन्तरङ्ग व्यक्तित्व का सूक्ष्म विवेचन किया
आचार्य धर्मसागर स्तुति २२
"श्री आचार्य धर्मसागर स्तुति:" संस्कृत के आठ श्लोकों में निबद्ध स्पष्ट रचना है।
इसमें आचार्य श्री धर्मसागर महाराज की स्तुति प्रस्तुत है, अतः श्री धर्मसागर स्तुतिः नाम सवर्था उपयुक्त है।
आचार्य प्रवर के प्रति विशेष श्रद्धा, भक्ति होना ही रचयित्री का मूल उद्देश्य है।
इसमें महामुनि धर्मसागर की दिव्य कीर्ति लोक कल्याणकारी स्वरूप का विवेचन किया गया है - संसार समुद्र में डूबने वालों के पथप्रदर्शक, सांसारिक तापों के विनाशक, उदारता और करुणा की मूर्ति मोह रूपी अन्धकार के लिए सूर्य स्वरूप हे धर्मसागर मैं आपको भक्तिपूर्वक नमन करती हूँ। अशान्त एवं कलुषित चरित्र आपके दर्शन से प्रसन्न और शान्ति लाभ प्राप्त करता है - हे महर्षि आपके चरण कमलों की भक्ति की आकाक्षिणी में सद्वचन, और कर्म से आपके समक्ष श्रद्धावनत हूँ। आपका पूजन करती हूँ - "मां देहि वाञ्छितफलं गुरुधर्मसिन्धो !"
इस प्रकार आर्यिका श्री ने आचार्य धर्मसागर के तेजस्वी व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हुए उनकी मनसा, वाचा, कर्मणा आराधना की है । आर्यिका सुपार्श्वमति जी द्वारा सम्पादित महत्त्वपूर्ण संस्कृत एवं प्राकृत ग्रन्थ एवं हिन्दी की मौलिक रचनाएँ
नारी का चातुर्य - ग्रन्थ में आपने नारी जागृति का सजीव विवेचन किया है । "नारी नर की खान है - यदि नारी सुशिक्षित होगी तो समाज की रचना भी तदनुरूप ही होगी" कुछ अविस्मरणीय जैन नारियों के माध्यम से उक्त विचारधारा का पल्लवन "नारी चातुर्य" में हुआ है - इसमें नारी की महाना प्रतिपादित है । यह ग्रन्थ 1976 में प्रकाशित हुआ है।