Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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| 108 राजीमती समाख्याता क्षुल्लिकापदमाश्रिता ।
त्रिकरणेन शुद्धेन नमामि यतिनायकम् ॥ (9) इस प्रकार सम्पूर्ण रचना में सबल भाषा का प्रयोग है । अध्यात्म की गहराई है। तप की उत्कृष्टता का बोध और आचार्य श्री के गुणों का गान है ।
उपसंहार - प्रस्तुत तृतीय अध्याय में संस्कृत काव्य के विकास में बीसवीं शताब्दी के उन जैन मनीषियों के जीवन दर्शन और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है, जो संसार, शरीर और भोगोपभोग के साधनों से विरक्त होकर जैन दर्शन के अनुसार अपने व्यक्तित्व का चरम विकास करते हुए मोक्ष मार्ग के उत्कृष्ट अनुगामी हैं । इसमें परम्पूज्य जैन आचार्यों और मुनियों के अतिरिक्त साध्वियों आर्यिकाओं आदि के प्रकृष्ट योगदान का विवेचन किया गया है । जैन मनीषियों (गृहस्थ) के योगदान का विश्लेषण आगामी चतुर्थ अध्याय में किया गया है।
फुट नोट 1. विस्तार के लिए देखिये - द जैनस् इन द हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचरः अहमदाबाद
1946 पृष्ठ 4 देखिये - अनुयोग द्वार सूत्र : ब्यावर प्रकाशनः सूत्र संख्या 127 विशेष विवरण के लिए देखिये - जैनमित्र (साप्ताहिक, मुनि श्री ज्ञानसागर का संक्षिप्त परिचय, वीर संवत् 2492, वैशाखसुदी 8, 24.4.1966 पृष्ठ 253 वीरोदय आ. ज्ञानसागर, प्रकाशक मुनि श्री ज्ञानसागर जैन ग्रन्थमाला, पृष्ठ 3, ब्यावर (राजस्थान) प्रथम संस्करण 1968 ई. वीरोदय 8.6.124 वीरोदय 9.17.141 (अ) जयोदय, आ. ज्ञानसागर, प्रकाशन-ब्रह्मचारी सूरजमल (सूर्यमल जैन) श्री 108 (भूरामलशास्त्री) श्री वीरसागर जी महामुनि का सङ्घ, जयपुर प्र. सं. 2476 वी. नि. सं. सन् 1950 (ब) जयोदय के त्रयोदश सर्गों का प्रकाशन - मुनि ज्ञानसागर ग्रन्थमाला पृष्ठ 5 ब्यावरं (राज.) सन् 1978 जयोदय 7.34.346 जयोदय 12.21.567 सुदर्शनोदय, आ. ज्ञानसागर प्रकाशित मुनि श्री ज्ञानसागर जैन ग्रन्थमाला (मंत्री प्रकाशचन्द्र
जैन) ब्यावर (राजस्थान) प्रथम संस्करण 1966 ई. 11. सुदर्शनोदय 2.9.27 __ वही 2.37.38
सुदर्शनोदय 3.15.48 14. सुदर्शनोदय 4/ पद्य 17 से 27 तक 15. सुदर्शनोदय 5.19.98 16. सुदर्शनोदय 8.10.147 17. सुदर्शनोदय 8.15.150
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