Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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का प्रणयन किया । इसमें जीवन्धर कथा ग्यारह लम्बकों में पूरी की गयी है । 14वीं शती में अगम्य कृत " कृष्ण चरित" भी विशेष महत्त्व का ग्रन्थ है । 15वीं शती में विद्यापति ने " भूपरिक्रमा" नामक गद्यकाव्य की रचना की । इसमें बलराम द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा किये जाने का मनोहर वर्णन किया गया है एवं भौगोलिक वातावरण की दिव्यता प्रदर्शित हुई है। 16वीं शती में वामनभट्ट वाण "वेमभूपाल चरित" की रचना की इसमें ऐतिहासिक सामग्री बिखरी हुई है । यह रचना हर्ष चरित के समान मानी गई है । देव विजयगणी ने इसी शती में " रामचरित" की रचना की, इसमें हेमचन्द्र कृत रामायण का प्रभाव परिलक्षित होता है । 17वीं शती में प्रमुख रूप से वरदेशिक की " गद्य रामायण", अहोबल नृसिंह की 'अभिनव कादम्बरी", कवीन्द्राचार्य कृत "कवीन्द्र चन्द्रोदय " एवं " कवीन्द्र कल्पद्रुम", महेश ठाकुर कृत “सर्व देश वृत्तान्त सङ्ग्रह " हरकवि कृत "शुंभुराजचरित" इत्यादि श्रेष्ठ गद्य रचनाएँ हैं । शैल दीक्षित ने " भारती विलास", "कावेरी गद्य", "श्री कृष्णभ्युदय' ग्रन्थों का प्रणयन किया है । कृष्णामाचार्य की संस्कृत रचनाएँ “सहृदय' पत्र में प्रकाशित होती रहीं है । उनकेगद्य काव्य " पातिव्रत्य", पात्रिग्रहण, " वररुचि" उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं। इनका सुशीला उपन्यास अत्यन्त लोकप्रिय हुआ । चक्रवर्ती राजगोपाल ने " शैवालिनी", "कुमुदिनी", "विलासकुमारी", "सङ्गर" आदि गद्य कृतियों की रचना की तथा संस्कृत का आलोचनात्मक इतिहास भी लिखा है । " कनक लता", "मन्दारवती", "जयन्तिका", "मेनका", "सौदामिनी", "कुमुदिनीचन्द्र" आदि श्रेष्ठ उपन्यास कृतियाँ भी गद्य काव्य का जीवन्त चित्र प्रस्तुत करती हैं । श्रीवामन कृष्ण चित्तले ने "लोकमान्य तिलक चरित'" 18सर्गों में निबद्ध गद्य काव्य लिखा । आधुनिक संस्कृत गद्यकारों में पंडित क्षमाराव, डॉ. रामशरण त्रिपाठी आदि ने उत्कृष्ट गद्य रचनाएँ की हैं ।
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अन्य ग्रन्थ
संस्कृत साहित्य में सूक्तिग्रन्थ निबन्ध युक्त रचनाएँ एवं संस्कृत भाषा के ऐतिहासिक अनुशीलन युक्त प्रकीर्ण ग्रन्थों का प्रणयन भी समय-समय पर साहित्यकारों ने किया और इस साहित्य को श्री समृद्धि प्रदान की । भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर भी संस्कृत में रचनाएँ की गई। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ज्ञान-विज्ञान की समस्त धाराओं पर संस्कृत भाषा में साहित्य उपलब्ध होता है ।
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कथा ग्रन्थ - विश्व साहित्य में भारतीय कथा साहित्य का अत्यन्त गौरवशाली स्थान है । भारतीय कथा साहित्य का उद्गम वेदों से माना गया है। ऋग्वेद के संवाद सूक्तों में कहानी के तत्त्व विद्यमान है ।" इनका विकसित रूप ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषदों में मिलता है । महाभारत के आदिपर्व शान्तिपर्व, वनपर्व में उपयोगी कहानियाँ उपलब्ध होती हैं" विदुर के मुँह से अनेक नीति कथाएँ कहलायी गयी हैं। रामायण में नीतिपूर्ण कथाओं का संक्षिप्त विवेचन हुआ है । तृतीय शताब्दी के भरत हुत स्तूप पर पशु कथाओं का नाम उत्कीर्ण हुआ है 8 पंतजलि के महाभाष्य" में अनेक लोकोक्तिपूर्ण पशु कथाओं का उल्लेख हुआ है । बौद्धों का" जातक" कथा संग्रह 380ई. पू. के लगभग विद्यमान था। आर्यशूर की" जातकमाला' भी संस्कृत भाषा में निबद्ध नीतिकथा विषयक ग्रन्थ है । जैन तीर्थङ्करों के पूर्वजन्म का वर्णन जैनों के जातक ग्रन्थों में किया गया । इसके पश्चात् 668 ई. के एक चीनी विश्वकोष में 200 बौद्ध ग्रन्थों से संगृहीत अनेक भारतीय कथाओं का अनुवाद मिलता है" इस प्रकार हमें ज्ञात होता है कि ईस्वी सन् के पूर्व भी भारत में नीति कथाओं का पर्याप्त प्रचार था । सामान्य रूप से संस्कृत कथा साहित्य दो वर्गों में विभाजित किया गया है - नीतिकथा और लोककथा |
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