Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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आधुनिक भारतीय साहित्य की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है । सबसे पहली बात तो यह है कि माटी जैसी अकिंचन, पद दलित और तुच्छ वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाने की कल्पना ही नितान्त अनोखी है । दूसरी बात यह है कि माटी की तुच्छता में चरम भव्यता के दर्शन करके उसकी विशुद्धता के उपक्रम को मुक्ति की मंगल यात्रा के रूपक में ढालना कविता को अध्यात्म के साथ अभेद की स्थिति में पहुँचाना है। इसीलिए मूकमाटी महाकाव्य मात्र कविकर्म नहीं है, यह एक दार्शनिक सन्त की आत्मा का सङ्गीत है ।
मूकमाटी महाकाव्य में चार खण्डों में मुक्तछन्द का प्रवाह और काव्यानुभूति की अन्तरङ्ग लय समन्वित करके इसे काव्य का रूप प्रदान किया है । इस महाकाव्य में "सोने में सुहागा" उक्ति वस्तुत: चरितार्थ हुई है क्योंकि आचार्य प्रवर तपस्या से अर्जित जीवन दर्शन को अनुभूति में रचा पचाकर सबके हृदय में गुंजरित करने का लक्ष्य सामने रखा है । इस महाकाव्य में लोक जीवन के रचे पचे मुहावरे, बीजाक्षरों में चमत्कार, मन्त्र विद्या की लोकोपयोगिता, आयुर्वेद के प्रयोग, अङ्कों का चमत्कार और आधुनिक जीवन में विज्ञान से उपजी कतिपय नई अवधारणाएँ सर्वत्र देखने मिलती हैं । वस्तुत: मूकमाटी आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र है ।
आचार्य श्री कुन्थु सागर मुनि महाराज परिचय :
आचार्य श्री कुन्थसागर जी महाराज की असाधारण विद्वत्ता ने जन-साधारण व विद्वत् समाज में एक क्रान्ति पैदा कर दी है। उनकी विद्वत्ता, गम्भीरता, निःस्पृहता, सर्वजीव समभावना, लोक हितैषिता, विश्व-बन्धुता आदि गुण लोक विश्रुत हैं । वे जैन धर्म के महनीय दिगम्बर आचार्य थे । बीसवीं शती में जैन धर्म की निरन्तर प्रगति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे । अलौकिक प्रभाव :
पूज्य आचार्य श्री की वीतराग वृत्ति का लोक में अलौकिक प्रभाव है । यह दर्शनार्थियों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया है । आचार्य श्री ने अपने दिव्य विहार से असंख्यात आत्माओं का उद्धार किया । लोग किसी सम्प्रदाय या धर्म के हों आपकी निर्मोह वृत्ति पर मुग्ध हो जाते हैं - क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या क्रिश्चियन सभी लोग आपका धर्मामृत को उपस्थित होते हैं । आपने जहाँ जहाँ पुण्य विहार किया । आपस के मतभेद और द्वेषाग्नि बुझ गयी। नरेन्द्र वन्द्यत्व :
आचार्य श्री की तपोनिष्ठा, ज्ञान मंडिता का अमिट प्रभाव न केवल सर्वसाधारण पर बल्कि अनेक राज्य शासकों के हृदयों पर पड़ा है । बड़ौदा के न्यायमंदिर में खास बड़ौदा के राज्य के दीवान एवं हजारों श्रोताओं के बीच पूज्य श्री का जो तत्त्वोपदेश हुआ था, वह दृश्य अविस्मरणीय है । आचार्य श्री की जन्म-जयन्ती कई राज्यों में सार्वजनिक रूप से मनायी जाती है एवं वह दिन “अहिंसा दिवस' के रूप में घोषित हो जाता है। इस प्रकार धर्मोद्योत का ठोस कार्य जो पूज्य श्री के द्वारा किया गया वह सैकड़ों विद्वान् भी कई वर्षों तक नहीं कर सके । साहित्य सेवा :
आचार्यवर अपनी मौन बेला में ग्रन्थ रचना के कार्य में संलग्न रहते हैं । आपने पूर्वाचार्य परम्परा को कायम रखते हुए साहित्य निर्माण प्रणाली में आश्चर्य कारक उन्नति की है ।