Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
View full book text
________________
आपके द्वारा रचित ग्रन्थ इतने लोकप्रिय हुए कि बहुधा उनका स्वाध्याय होते देखा आता
। जिनमें वस्तुतः विश्वकल्याण की भावना ओत-प्रोत है- वर्णनशैली की अत्यन्त सुगम और सुबोध है । जीवन के अल्प समय में लगभग चालीस ग्रन्थों का प्रणयन, आचार्य श्री के कठोर श्रम सङ्कल्प, धर्म एवं साहित्य सेवा का सजीव उदाहरण है - लगता है प्रमाद छू न गया ।
आपके अनेक ग्रन्थों का विदेशों में प्रचार हुआ। आपके ग्रन्थों का प्रकाशन संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती, कन्नड़ी और अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद होकर हुआ ताकि देश के सभी प्रदेशों में उनका समुचित उपयोग हो सके !
आचार्य श्री प्रणीत ग्रन्थ :
चतुर्विंशति - जिन स्तुति:
शान्ति सागर चरित्र
1.
2.
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9.
10.
11.
12.
13.
14.
15.
16.
17.
18.
19.
20.
बोधामृतसार निजात्मशुद्धि भावना मोक्षमार्ग प्रदीप
ज्ञानामृतसार लघुबोधामृतसार स्वरूप दर्शन सूर्य
नरेशधर्म दर्पण
87
लघुप्रतिक्रमण
लघुज्ञानामृतसार
मोक्षमार्ग प्रदीप
शान्तिसुधा सिन्धुः श्रावक धर्म प्रदीप मुनिधर्म प्रदीप
लघु सुधर्मोपदेशामृतसार स्वप्नदर्शनसूर्यः (षड्भाषात्मक)
भावत्रय फलदर्शी
नरेशधर्मदर्पण (षड्भाषात्मक)
सुवर्णसूत्रम्
इस प्रकार अनेक ग्रन्थों का प्रणयन आचार्य श्री की अनवरत साहित्याराधना से ही संभव हो सकता है ।
शान्ति सुधा सिन्धु
३
नामकरण - " शान्ति सुधासिन्धु " ग्रन्थ का यह नाम अत्यन्त उपयुक्त एवं सार्थक है । क्योंकि इसमें शान्ति की प्रतिष्ठा की गई है तथा इस ग्रन्थ का अनुशीलन करने के पश्चात् पाठक शान्ति के सुधापूर्ण सिन्धु में ही निमग्न हो जाता है और सांसारिक कार्यों, विचारों से निरपेक्ष होकर मुक्ति की कामना करने लगता है ।