Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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इस प्रकार जैन दर्शन के गूढ़ सिद्धान्तों का अभिव्यञ्जना सम्यक्त्व के प्ररिप्रेक्ष्य में ग्रन्थ में सर्वत्र हुई है । उक्त दार्शनिक विषयों को अलङ्कत एवं दृष्टान्तों के माध्यम से व्यक्त किया गया है । इस प्रकार सम्यक्त्वसारशतकम् में 100 पद्यों में उक्त प्रतिपाद्य विषय ही पल्लवित हुआ है ।
प्रवचनसार25 - यह ग्रन्थ श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य कृत हैं । इसमें तीन अधिकार हैं- ज्ञान प्ररूपक अधिकार-इसमें गाथाएं हैं ज्ञेयाधिकार में 108 गाथाएं और तृतीय चरित्राधिकार में 95 गाथाएं हैं । यह सम्पूर्ण ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रचित है । हमारे आलोच्य महाकवि ज्ञानसागर जी ने संस्कृत भाषा के अनुष्टुप पद्यों में इसका छायानुवाद प्रस्तुत किया है और हिन्दी पद्यानुवाद तथा सारांश भी स्वयं किया है । इस प्रकार यह संस्कृत एवं हिन्दी की मिश्रित रचना है।
इसमें जैनदर्शन के प्रसिद्ध द्रव्य, गुण, पर्याय, शुभोपयोग, अशुभोपयोग, शुद्धोपयोग, मोह, स्याद्वाद, द्रव्य-भेद, जीव, पुदगल, आत्मतत्त्व, ध्यान, आचरण, मुनियों के भेद, पापभेद, स्त्रीमुक्ति इत्यादि विषयों की विस्तृत विवृत्ति हुई हैं । आ. ज्ञानसागरजी की स्फुट रचना :
आपकी एक स्फुट रचना "श्री शिवसागर स्मृति ग्रन्थ में प्रकाशित हुई है | इस रचना में दो अनुष्टुप् छन्दों में आचार्य शिवसागर महाराज को नमन करते हुए रचनाकार ने उन्हें भली प्रकार से तीनों गुप्तियों से सहित बताकर कल्याण एवं ज्ञान का सागर कहा है तथा उनके आगे अपने को अज्ञानी बताकर अपना विनय गुण प्रकट किया है
सम्यक्त्रिगुप्तियुक्ताय, नमोऽस्तु शिवसिन्धवे ।
ज्ञानसागरतां नीतोऽहमज्ञः गुरुणामुना ॥ आगे रचनाकार ने शिवसागर महाराज के गुणों का उल्लेख किया है। उन्होंने उन्हें आर्य-ग्रन्थों का अध्येता, सर्वदा अध्ययन में लीन धर्म वात्सल्यमूर्ति और धर्म की प्रभावना करने वाला निरूपित किया -
ऋषिप्रणीतग्रन्थानां सदध्ययनशालिना ।
वात्सल्यान्वितचित्तेन सदा धर्मप्रभाविना ॥ ___ इस प्रकार कवि की प्रस्तुत रचना में भाषा का प्रवाह है । उपमाओं का और विषय वस्तु के अनुसार पदों का प्रयोग उल्लेखनीय है ।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज परिचय :
परम पूज्य, तपस्वी आचार्य विद्यासागर जी महाराज प्रखर बुद्धि सम्पन्न, सदैव चिन्तनशील, दिगम्बर महात्मा हैं।
आचार्य श्री का जन्म विक्रम संवत् 2003 (सन् 1947 ई.) की शारदीय पूर्णिमा की रात्रि में कर्नाटक प्रान्त के बेलगाम जिले में स्थित "सदलमा” ग्राम में हुआ । बचपन में इनका नाम “विद्याधर" जी रखा गया । आपकी गृहस्थावस्था के पिता श्री मल्लपा जी अष्टगे, सम्प्रति श्री मल्लिसागर जी मुनि के रूप में प्रसिद्ध हैं । आपकी गृहस्थावस्था में माता श्री श्रीमती जी, समाधिस्थ आर्यिका समयमती जी के नाम से विश्रुत थी ।