Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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उसके सम्बन्ध में सम्पूर्ण विवरण प्राप्त किया । उसने गोविन्द से मित्रता कर ली और इस प्रकार सोमदत्त को पुनः मारने की योजना बनायी, अपने षड्यन्त्र की सफलता के लिए उसने गोविन्द और सोमदत्त का विश्वास प्राप्त कर लिया - गोविन्द ने भी सोमदत्त को सेठ की सेवा में तत्पर कर दिया ।
___ एक दिन अवसर पाकर सोमदत्त को एक पत्र के साथ अपने घर उज्जैन भेजा। रास्ते में सोमदत्त एक वृक्ष की शीतल, सुखद छाया में लेट गया और थकावट के कारण नींद भी आ गयी । उसी समय वहाँ वसन्तसेना नामक वेश्या पुष्पसञ्चयन के लिए आयी और उस सुन्दर युवक के गले में बन्धे हुए पत्र को खोलकर पढ़ने लगी - उसमें सेठ गुणपाल ने अपने घर वालों से पत्रवाहक (सोमदत्त) को विष देने का आदेश दिया था। लेकिन बसन्तसेना ने विचार किया कि सेठ गुणपाल ऐसा घृणित कार्य नहीं कर सकता, निश्चय ही पत्र लिखने में भूल हो गयी है । ऐसा सोचकर उसने “विषं सन्दातव्यम्" के स्थान पर "विषा सन्दात्व्या" लिख कर पत्र को पूर्ववत बाँध दिया और वहाँ से अन्यत्र चली गई - सोमदत्त उठा और वहाँ पहुँचकर वह पत्र उसके पुत्र को दे दिया। तदनुसार माता से परामर्श करके सोमदत्त और विषा का विवाह सम्पन्न कर दिया गया। नगर में सर्वत्र. उनकी प्रशंसा होने लगी ।
पञ्चम लम्ब - विषा-सोमदत्त के परिणय के समाचार को सुनकर सेठ गुणपाल हताश और विचलित हो गया और घर आकर पत्र देखने के उपरान्त पत्र विषयक भूल का पश्चाताप करने लगा । किन्तु परिवारजनों के समक्ष उसने इस विवाह को उचित ठहराया । गुणपाल सेठ यह जानकर भी नृशंस षडयंत्र रचने लगा - कि उसकी पुत्री विधवा हो जायेगी, उसने दुराग्रहपूर्वक सोमदत्त को खत्म करने की नयी योजना बना ली और नागपञ्चमी के दिन सोमदत्त को पूजा सामग्री लेकर पूजा करने के लिए नागमन्दिर भेज दिया तथा दूसरी और चाण्डाल को प्रचुर धन देकर कह दिया कि आज नागमन्दिर में जो व्यक्ति पूजा सामग्री लेकर आवे, उसे तुम तुरन्त मार डालना । जब सोमदत्त पूजा सामग्री लेकर नाममन्दिर की और जा रहा था । उसी समय मार्ग में उसका साला महाबल गेंद खेलते हुए मिला। महाबल ने सोमदत्त से पूजा सामग्री लेकर अपने स्थान पर सोमदत्त को गेंद खेलने में नियुक्त कर दिया
और स्वयं पूजा सामग्री लेकर नागमन्दिर की ओर गया वहाँ षड्यन्त्र के अनुसार ही चाण्डाल ने उसका वध कर दिया । गुणपाल सेठ को जब सोमदत्त के जीवित रहने और महाबल की मृत्यु का समाचार मिला तब वह अत्यधिक निराश और व्याकुल हो उठा ।
षष्ठ लम्ब - अपने पुत्र महाबल की मृत्यु से गुणपाल सेठ अत्यन्त खिन्न और हताश था । उसकी पत्नी ने जब चिन्ता का कारण पूछा तो उसने रहस्य को स्पष्ट नहीं किया किन्तु पत्नी के बार-बार आग्रह करने पर उसने सम्पूर्ण वृत्तान्त सुना दिया और कहने लगा कि सोमदत्त को मारे बिना मुझे चैन नहीं मिल सकता । अत: उसे शीघ्र ही नष्ट करने का उपाय करो । उसकी पत्नी गुणश्री भी अपने पति के निर्णय से सहमत हो गयी और एक दिन उसने सबके खाने के लिए खिचड़ी बनायी किन्तु सोमदत्त को खाने के लिए विष मिलाकर चार लड्डू तैयार किये । इसके पश्चात् अपनी पुत्री को रसोई कार्य में लगाकर गुणश्री स्वयं शौच के लिए जङ्गल चली गयी । इसी समय गुणपाल सेठ रसोई में आकर पुत्री विषा से कहने लगा - मुझे राजकार्य से शीघ्र ही जाना है भूख भी लगी, यदि खाना तैयार नहीं हुआ है तो जो कुछ भी हो, उसे खाकर ही चला जाऊंगा । पुत्री ने भी उसे उन लड्डुओं में से दो लड्डु खाने के लिये दे दिये - सेठ ने जैसे ही वे विषयुक्त लड्डु खाये वैसे ही वह बेहोश