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राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला
प्रधान सम्पादक–पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि [ सम्मान्य संचालक, राजस्थान माच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ]
ग्रन्थाङ्क ३३
ढाढी बादररो वरणायो
मा
वीरवांगण
प्रकाशक
राजस्थान-राज्य-संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR
“जोधपुर ( राजस्थान )
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला
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राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यत : अखिल भारतीय तथा विशेपतः राजस्थानदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी अादि भापानिबद्ध .
विविध वाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावलि
प्रधान सम्पादक
पुरातत्त्वाचार्य जिनविजय मुनि [ ऑनरेरि भेम्बर ऑफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी ] .
सम्मान्य सदस्य भाण्डारकर प्राच्यविद्या संशोधन मन्दिर, पूना; गुजरात साहित्य-सभा, अहमदाबाद; . · विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध-संस्थान, होशियारपुर; निवृत्त सम्मान्य नियामक
( प्रानरेरि डायरेक्टर )-भारतीय विद्याभवन, बम्बई
अन्थाङ्क ३३ ढाढी बादररो वरणायो वीरवाणा
प्रकाशक
राजस्थान राज्याज्ञानुसार
सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर ( राजस्थान )
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ढाढो बादररो बणायो
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वीरवांण
. . . . .
सम्पादिका श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत, रावतस
.
प्रकाशनकर्ता . . ___ राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर ( राजस्थान )
.विक्रमाब्द २०१७
(ख्रिस्ताव्द १९६०
मूल्य ४.५०
प्रथमावृत्ति १०००
भारतराष्ट्रीय शकाव्द १८८२.
- मुद्रक--मूल पाठ-जयपुर प्रिन्टर्स, जयपुर; भूमिका और परिशिष्ट आदि
अजन्ता प्रिन्टर्स, जयपुर; कव्हर आदि-साधना प्रेस, जोधपुर ।
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RAJASTHAN PURATANA GRANTHMALA
PUBLISHED BY THE GOVERNMENT OF RAJASTHAN A series devoted to the Publication of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsa, Old Rajasthani-Gujarati and Old Hindi works pertaining ::
to India in general and Rajasthan in particular.
.
:
GENERAL EDITOR ACHARYA JINA VIJAYA MUNI, PURATATTVACHARYA
Honorary Member of the German Oriental Society, (Germany); Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona; and Vishveshvrananda Vaidic Research Institute, Hosiyarpur, Punjab; Gujrat Sahitya Sabha, Ahemdabad; Retired Honorary Director, Bharatiya Vidya Bhawan, Bombay; General Editor, Gujarat Puratattva Mandira Granthavali; Bharatiya Vidya Series; Sinhghi Jain Series
etc. etc.
*
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NO. 33 VEERVANA
DHADHEE BADAR
OF
with
Introduction, Appendices, etc.
Published Under the Orders of the Government of Rajasthan
Ву The Director, Rajasthana Prachya Vidya Pratisthana
( Rajasthan Oriental Research Institute )
JODHPUR (RAJASTHAN ) V.S. 2017 ] All Rights Reserved
[ 1960 AD.
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VEERVANA .
OF .. .. DHADHEE BADAR.
EDITED
With introduction, appendices etc.
Shreemati Rani Lakshmi Kumari Choondawat ... . of Rawatsar
Published under the orders of the Government of Rajasthan
By : . ... RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE
JODHPUR ( Rajasthan )
.
V.S. 2016 ]
[ 1960 A.D.
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाके कुछ ग्रन्थ
प्रकाशित ग्रन्थ संस्कृतभापाग्रन्थ-१. प्रमाणमंजरी-तार्किकचूड़ामणि सर्वदेवाचार्य, मूल्य ६००। २. यन्त्रराजरचना-महाराजा सवाई जयसिंह, मूल्य १.७५ । ३. महर्षिकुलवैभवम्-स्व० श्रीमधुसूदन अोझा, मूल्य १०.७५। ४. तर्कसंग्रह-पं० क्ष्माकल्याण, मूल्य ३.०० । ५. कारकसम्बन्धोद्योत-पं० रभसनन्दि, मूल्य १.७५ । ६. वृत्तिदीपिका-पं० मौनिकृपण, मूल्य २.०० । ७. शब्दरत्नप्रदीप, मूल्य २.०० । ८. कृष्णगीति-कवि सोमनाथ, मूल्य १.७५ ९. शृङ्गारहारावली-हर्पकवि, मूल्य २.७५ । १०. चक्रपाणिविजयमहाकाव्य-पं० लक्ष्मीधरभट्ट, मूल्य ३.५० । ११. राजविनोद-कवि उदयराज, मूल्य २.२५। १२. नृत्त संग्रह, मूल्य १.७५ । १३. नृत्यरत्नकोश, प्रथम भाग-महाराणा कुम्भकर्ण, मूल्य ३.७५ । १४. उक्तिरत्नाकर-पं० साधुसुन्दरगणि, मूल्य ४.७५ । १५. दुर्गापुप्पाञ्जलि-पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी, . मूल्य ४.२५ । १६. कर्णकुतूहल तथा कृष्णलीलामृत-भोलानाथ, मूल्य १.५० । १७. ईश्वरविलास महाकाव्य-श्रीकृष्ण भट्ट, मूल्य ११.५० । १८. पद्यमुक्तावली-कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट, मूल्य ४०० । १६. रसदीपिका-विद्याराम भट्ट, मूल्य २.०० । २०. काव्य प्रकाशसङ्घत-भट्ट सोमेश्वर, भाग १, मूल्य १२.००, भाग २, मुल्य ८.२५। २१. वस्तुरत्नकोश, अज्ञात कर्तृक, मूल्य ४.०० ।
राजस्थानी और हिन्दी भाषा ग्रन्थ-१. कान्हडदे प्रवन्ध कवि पद्मनाभ, मूल्य १२.२५ । २. क्यामखांरासा-कवि जान, मूल्य ४.७५ । ३. लावारासा-गोपालदान, मूल्य ३.७५। ४. वांकीदासरी ख्यात-महाकवि वांकीदास, मूल्य ५.५० । ५. राजस्थानी साहित्यसंग्रह, भाग १, मूल्य २.२५ । ६. जुगल-विलास-कवि पीथल, मूल्य १.७५। ७. कवीन्द्रकल्पलता-कवीन्द्राचार्य. मूल्य २.०० । ८. भगतमाळ-चारण ब्रह्मदासजी, मूल्य १.७५ । ६. राजस्थान पुरातत्त्वान्वेपण मन्दिरके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग १, मूल्य ७.५० । १०. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची भाग २, मूल्य १२.०० । १३. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १, मूल्य ८.५० न.प. । १२. रघुवरजसप्रकास, किसनाजी पाढ़ा, मूल्य ८-२५ न.पं.। १३. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, भाग १, मूल्य ४.५० । १४. वीरवांरण, ढाढी वादर कृत, मूल्य ४.५० ।
. प्रेसोंमें छप रहे ग्रन्थ संस्कृत-भापा-ग्रन्थ-१. त्रिपुराभारतीलघुस्तव-लघुपंडित । २. शकुनप्रदीप-लावण्यशर्मा। ३. करुणामृतप्रपा-ठक्कुर सोमेश्वर । ४. बालशिक्षा व्याकरण-ठक्कुर संग्रामसिंह ५. पदार्थ रत्नमञ्जूषा-पं० कृष्ण मिश्र । ६. वसन्त-विलास फागु । ७. नृत्यरत्नकोश भाग २ । ८. नन्दोपाख्यान । ९ चान्द्रव्याकरण । १०. स्वयंभूछंद-स्वयंभू कवि ! ११. प्राकृतानंद-कवि रघुनाथ । १२
नद-कवि रघुनाथ । १२. मुग्धाववोध ग्रादि प्रीक्तिक-संग्रह । १३. कविकीस्तुभपं० रघुनाथ मनोहर । १४. दशकण्ठवधम्-पं. दुर्गाप्रसाद द्विवेदी। १५. भुवनेश्वरीस्तोत्र सभाष्य-पृथ्वीवराचार्य, भा. पद्मनाभ । १६. इन्द्रप्रस्थप्रवन्ध । १७. हम्मीरमहाकाव्यम्-नयचन्द्रसूरि । १८ ठपकुर फेरू रचित रत्नपरीक्षादि ।
राजस्थानी श्रीर हिन्दीभाषा ग्रन्य-१. महता नैणसीरी ख्यात, भाग २-मुंहता नरासी । २ गोरावादल पदमिणी चऊपई-कवि हेमरतन । ३. चंद्रवंशावली-कवि मोतीराम। . ४ सुजान संवत-कवि उदयराम । ५. राजस्थानी दूहा संग्रह । ६. राठोड़ारी वंशावली। . ७. सचिन राजस्थानी भापासाहित्य ग्रंथ सूची। ८. देवजी बगड़ावत और अन्य वाताएं । ६. वगसीराम और अन्य वािएं।
इन ग्रंथोंके अतिरिक्त अनेक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन राजस्थानी और हिन्दी भाषामें रचे गये ग्रंथोंका संशोधन और सम्पादन किया जा रहा है ।
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सञ्चालकीय वक्तव्य
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानकी स्थापनाके साथ ही हमारी कामना रही है कि राजस्थानसे सम्बद्ध विविध भाषानिबद्ध साहित्यिक ग्रन्थोंके संग्रह और संरक्षणके साथ ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका प्रकाशन भी किया जाये। इसी उद्देश्यकी पूर्तिके लिये हमने ‘राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' का कार्य प्रारंभ किया है जिसमें अब तक ३५ ग्रन्थ प्रकाशित किये जा चुके हैं। - प्रस्तुत काव्य ग्रन्थ राजस्थानी भाषामें रचित है और इतिहास-प्रसिद्ध राठोड वीर वीरमजीसे सम्बद्ध है। ढाढी बादर नामक मुस्लिम कविकी यह कृति साहित्यिक और ऐतिहासिक दृष्टिसे विशेष महत्त्वपूर्ण है। बादर अर्थात् बहादुर कविने प्रस्तुत काव्यमें विपक्षियोंका वर्णन भी पूर्ण निष्पक्षता
और उदारतासे किया है किन्तु साहित्यिक क्षेत्रमें यह कृति प्रायः उपेक्षित रही है।
इतिहास-प्रसिद्ध चूण्डावत राजवंशोत्पन्न विदुषी लेखिका श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारीजी चूण्डावतने कुछ साहित्यिक कृतियोंके साथ प्रस्तुत काव्य ''वीरवांण' हमें बताया तो हमने सहर्ष इसका प्रकाशन स्वीकार कर लिया। साहित्यिक सेवाओंके कारण श्रीमती रानी चूण्डावतजीको हम धन्यवाद देते हैं। साथ ही यह आशा व्यक्त करते हैं कि राजस्थानके राजवंशोंसे सम्बद्ध अन्य व्यक्ति भी श्रीमती रानी चूण्डावतजीके विद्यानुरागका अनुकरण कर अपने संग्रहकी साहित्यिक रचनाओंको शीघ्र ही प्रकाशमें लानेका उपक्रम करेंगे।
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर दशहरा, २०१७ वि०सं०
मुनि जिनविजय संमान्य सञ्चालक
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विषय-तालिका
++++
++
विषय
पृष्ठ संख्या
सञ्चालकीय वक्तव्य
सम्पादकीय प्रस्तावना
वीरवाण
१-६२
परिशिष्ट १
१-३२
१-२६
१-३०
परिशिष्ट २ परिशिष्ट ३ परिशिष्ट ४ परिशिष्ट ५
१-२२
१-५
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भाभका
गजस्थान बहुत प्राचीन काल से ही सुसांस्कृतिक प्रदेश रहा है । इस कथन के प्रमाण में शिल्प-स्थापत्य, संगीत, चित्रकला और साहित्य के हजारों ही उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। साहित्य में सम्बन्धित देश की आत्मा के दर्शन होते हैं और साहित्य वास्तव में किसी देश की संस्कृति का प्रतीक एवं प्रतिनिधि कहा जा सकता है । राजस्थान भारतीय साहित्य का भण्डार है । राजस्थान में निर्मित साहित्य द्वारा भारतीय संस्कृति का उत्तम और पूर्ण रूपेण चित्रण हुआ है।
___ राजस्थान में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, बृजभाषा और खड़ी बोली आदि में प्रचुर साहित्यिक निर्माण का कार्य हुआ है । अन्य भाषाओं में थोड़ा बहुत साहित्यनिर्माण होते रहने पर भी राजस्थानी भाषा में सर्वोत्कृष्ट साहित्य की रचनाएं प्रस्तुत की गई हैं । राजस्थानी भाषा वास्तव में राजस्थानियों की मातृभाषा है जिससे यह स्वाभाविक ही हुआ है कि इस भाषा में हृदयगत् भावनाओं का सजीव और सरस निरूपण हुआ है । राजस्थानी भाषां का साहित्य गद्य और पद्य दोनों में ही मिलता है । राजस्थानी साहित्य वास्तव में समुद्र की भांति गहन है. जिसमें नाना प्रकार के ग्रन्थ-रत्न छिपे हुए हैं। राजस्थानी भाषा में कई वर्षों से खोज-कार्य होते रहने पर भी कई ग्रन्थ-रत्नों की जानकारी साहित्य-क्षेत्र में नहीं के समान हैं । ऐसे ही ग्रन्थ-रत्नों में “वीरवांण" की गणना भी हो सकती है ।
"वीरवाण" नामक काव्य ग्रन्थ के अपर नाम "नीसाणी वीरमजीरी," "निसाणी वीरमाणरी", "वीरमाण" और "वीरमायण'' आदि भी कहे जाते । किंतु प्राप्त हस्तलिखित प्रति में "वीरवांण" नाम ही मिलता है इसलिये प्रकाशन में इसका नाम “वीरवाण' ही दिया गया है।
इस काव्य-ग्रन्थ के एक से अधिक नाम प्रचलित रहने का प्रधान कारण यही ज्ञात होता है कि इस काव्य को अभी तक प्रकाशन का सुअवसर नहीं मिल सका । ऐसा नहीं कहा जा सकता कि "वीरवाण" के विषय में सम्बन्धित लोगों को जानकारी नहीं रही है । वास्तव में राजस्थान के साहित्य-रसिकों और विद्वानों में "वीरवाण" की चर्चा बराबर रही है, जिसके परिणामस्वरूप इस काव्य के सम्बन्ध में थेड़ी-थोड़ी पत्तियां कई ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं किन्तु उनसे काव्य और कर्ता के सम्बन्ध में बहुत ही सीमित जानकारी मिलती है ।
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राजस्थानी भाषा और साहित्य के विकास एवं उन्नयन में प्रायः सभी वर्गों का थोड़ाबहुत सहयोग रहा है किन्तु इस क्षेत्र में प्रमुख कार्य चारणों, जैन साधुओं, यतियों, क्षत्रियों, रावों, मोतीसरों और ढ़ाढ़ीयों द्वारा सम्पन्न हुआ है । अब तक ढ़ाढ़ीयों द्वारा रचित साहित्य को विशेष महत्व नहीं दिया गया, इसका मुख्य कारण जातिगत द्वेष और रूढिनय विचारों से ढाढ़ीयों को निम्न कोटि का समझा जाना है । भारतीय स्वाधीनता के उपरान्त ऐसे विचारों का स्वतः उन्मूलन हो जाता है । अब सभी वर्गों के साहित्य का अनुसंधान, सम्पादन औ प्रकाशन होना चाहिये तथा साहित्यिक क्षेत्र में सत्रको समान रूप में प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
"वीरवांण" का कर्ता बादर अर्थात् बहादुर ढाढ़ी था जैसा कि काव्य से प्रकट होता है । राजस्थान के सुप्रसिद्ध विद्वान स्व० पं० रामकरणजी आसोया ने “वीरवाण" के कर्ता का नाम “रामचन्द्र" बताया है किन्तु बिना ठोस प्रमाणों के यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह अनिवार्य नहीं है कि साहित्य रचना का कार्य कोई विशेष वर्ग ही कर सकता है । हमारी वर्गगत उपेक्षा के कारण पता नहीं तथाकथित साहित्यकारों की कितनी रचनाएं नष्ट हो चुकी हैं और कितनी रचनाएं अभी अन्धकार में पड़ी हैं ?
___ चारणों की साहित्य-सेवा तो सर्व प्रसिद्ध है ही किन्तु कविरावों, मोतीसरों, नगारचियों और ढाढ़यों का कार्य भी वीरों को काव्यमयी वाणी से प्रोत्साहित करना और अपने आश्रयदाताओं का यश-वर्णन करना रहा है । मांगलिक अवसरों त्यौहारों और युद्धों में सुयश का. काव्यात्मक वर्णन प्रायः उपरोक्त श्रेणी के साहित्यकारों द्वारा ही होता रहा है। आज भी . राजस्थान में यह शुभ परम्परा किसी न किसी प्रकार से प्रचलित है।
..: ढ़ाढ़ी दमानियों और नगारचियों की श्रेणी में लिये जाते हैं तथा सारंगी अथवा सारंगी के प्रकार का एक वाद्य रबाब बजाते हैं । २ कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन दधिमहोत्सव अथवा नन्द महोत्सव पर वैष्णव मन्दिरों में ढाढ़ी-ढाढिन का स्वांग बनाकर लोग नाचते हैं जिससे ढाढ़ियों की प्राचीनता की जानकारी मिलती है। ढाढ़ी नीचे दिया हुआ पद्य कह कर र म जन्म के समय अपनी दिद्य मानता सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं-- . . दशरथ रे घर जनमियां, हंस ढादिन मुख बोली।
अठारा करोड़ ले चौक सेलिया, काम करन को छोरी ।। मध्यकाल में मुसलमान शासकों के दवाव से कई जातियों के लोग मुसलमान हो गये थे । “वीरवाण" ग्रन्थ का कर्ता बहादुर भो मुसलमान ढ़ाढ़ी था और इसके अश्रय दाता जोईया भी मुसलमान थे।
बादर ढाढ़ी ने मुसलमान होते हुए भी अपने प्राश्रय दाता की उदारता से प्रेरित होकर शत्रु पक्ष के राठौड़ वीर वीरमजी का यश वर्णन भारतीय संस्कृति के अनुरूप किया है। -- १. राजरूपक नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित, भूमिका पृष्ठ २०
. २. मुर्दम सुमारी रिपोर्ट रान मारबाड़, सन् १८१५ पृ. ३६८ ! .. .
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. इस प्रकार “वीरखांण" वास्तव में एक मुसलमान कवि की राजस्थानी भाषा में • लिखित महत्वपूर्ण काव्य कृति है। . . . राजस्थानी काव्य-ग्रंथ "वीरवाण" में वर्णित विषय का सारांश सम्बन्धित विशेष- ताओं सहित इस प्रकार है:-प्रारंभ में कवि ने शारदा और गणपति की वंदना करते हुए वीरमजी और सम्बन्धित वीरों के विषय में यथातथ्य निरूपण करने का अपना अभिप्राय प्रकट किया है (१ । १-३) 3 कवि ने लिखा है
- सुणी जिती सारी कहुँ, लहु न झूठ लगार ।
• मालजेत जगमालरो, वीरम जुध विचार ॥३॥ ___ तत्पश्चात कवि ने जोधपुर राव सलवाजी (वि० स० १४१४-१४३१ और ई० स० . . १३५७-१३७४) के चारों पुत्रों की वीरता का संक्षिप्त वर्णन एक ही नीसाणी में किया है
"सुत च्यारू सलपेसरा, कुल में किरणाला। . राजस बंका राठबड़ वरवीर बड़ाला ।। साथ लिया दल सामठा वीरदा रूखवाला । भिड़ोया भारत भीमसा दल पारथ वाला। देस दसु दीस दाबिया कीया धक चाला।
केवी धस गीर कंदरां वप संक बड़ाला॥"४ फिर जेतसिंह जी की गुजरात पर हुई लड़ाई का वर्णन किया गया है और "माल 'देवजीरो समो” लिखा गया है । इस युद्ध में गुजरात के यवन शासक मुहम्मद बेगड़ा द्वारा किये गये तीजणियों के हरण के बदले में जगमाल जी द्वारा व्यापारी के वेश में चढ़ाई कर ईद के अवसर पर बादशाह की पुत्री "गींदोली" को अन्य लड़कियों सहित लाने का और अपनी "तीनणियो" को मुक्ति दिलवाने का वर्णन है । फिर "रावजी मालदेवजी रो पेलो झगड़ो" लिखा गया है, जिसमें दिल्ली सुलतान और मुहम्मद वेगड़े की भीड़गढ़ पर सम्मिलित चढ़ाई और मालदेव जी की विजय का वर्णन है ।। .....मालदेव जी के गींदोली सम्बन्धी युद्धों का वर्णन करते हुए लिखा गया है
३. पहला अक पृष्ठ का और दूसरा अंक पद्य संख्या का सूचक है। . . . .. ४. राव सलखाजी के मल्लीनाथजी, जेतमलजी, वीरमजी.और शोभासिंहजी
नामक चार पुत्र थे (जोधपुर राज्य का इतिहास भाग १. डा. गोरीशंकरजी हीराचन्दजी श्रोझा पृ. १८४ । जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ के राठौड राजवंस वीरमजी.से सम्बन्धित है । बीकानेर दुर्ग के सूर्यपोल द्वारा की प्रशस्ति और वैशकुमार ग्रंथ पत्र ४)
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"गींदोलीरी लड़ाई में झगड़ा तीन तो रावल मालदेजी आपरै लोकसु एकला किया । झगड़ो चोथो भाटी घड़सी रावल जी वीरमदेजी कंवर जगमाल जी सोलंखी माधोसिंह जी । पांचमो झगड़ो कंबर जगमालसिंह जी एकलां भूतारे जोरसैं कीइंयां । पांचमां झगड़ा में तीन लाख यादमी खेत पड़ीया । अठी राठोरां रा यादमी लाख छा जांमासु आदमी हजार पचीस खेत महाराई चक्र जुद्ध हुयो।" पृ०१५
____वीरवांण और उसके कर्ता के सम्बन्ध में राजस्थानी ग्रंथ में दी गई टिप्पणी महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया है "मैं बादर ढ़ाढ़ी जोईया का ही हूँ सो मैने पूछकर जैसी हकिकत सुनी वैसी काव्य में प्रकट की है । मैंने अपनी उक्ति अथवा सामर्थ्य के अनुसार रावलजी, जगमालजी और कुंवर जी रिडमल जी के कहने से यश बनाकर सुनाया । इस युद्ध के बीच वर्ष बाद यह ग्रंथ बनाया है ।"५
वीरमजी और जोहीयों के सम्बन्ध का वर्णन दूहा छन्द संख्या ६३ से प्रारंभ होता है । प्रारंभ में महामाया का स्मरण करते हुए लुणराब के सात पुत्रों की वीरता का वर्णन किया गया है । फिर प्रकट किया गया है कि जोहीया माधव ने एक बार मुहम्मद शाह के अशर्फियों के ऊंट लूट लिये । तब मुहम्मद शाह ने सारे, जोहियों के सिंध को दवा लेने की धमकी दी । तब जोहिये वीरमजी से मिले
"मैमंद नै जगमाल रै, जबर बैर ओजाण ।
आया सरण जोहियां, सिंध छोडै साहिबाण ॥" दिल्ली सुलतान की सेना ने वीरमजी पर चढ़ाई की किन्तु वे जोहियों की रक्षा में . तत्पर रहे । युद्ध में वीरमजी की विजय हुई जिसके लिये लिखा है:
वीरम माल वीरवर, अरिअण. दिया उठाय ।
सरव फौज पतसादरी, पाली गी पिछताय ।। तदुपरान्त वीरमजी और जोहियों के संघर्ष का कारण बताया गया है, कि जो हेयों ने जवाद नामक सुन्दर घोड़ी की बछेरी वीरमजी के भाई मलीनाथ जी के मांग ने पर भी न दी।
__५. संभव है कि सवन्धित पंक्तियां काव्य की प्रमाणिकता बताने के लिये क्षेपक रूप में जोड़ी गई हो । काव्य का सम्बन्ध मुख्यतः हार्दिक अभिव्यक्ति से होता है । कवि के लिये शास्त्रज्ञ अथवा उच्च शिक्षित होना आवश्दक नहीं होता। क्योंकि विद्यालय की शिक्षा का सम्बन्ध बहुधा बौद्धिक अध्ययन से ही . होता है। सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी बहुश्रुत और अपनी कला के धनी होते हैं। किन्तु वे अपनी रचनाओं को कभी कभी शुद्ध लिखने में भी असमर्थ होते हैं। ऐसी अवस्था में काव्य में समय समय पर परिवर्तन होते रहते है । लोकप्रिय होने पर काव्य प्रायः मोखिक ही प्रचलित हो जाते हैं। फिर एसे काव्य में मूल छन्दों का सुलाना और नवीन छंदों का जुड़ना असंभव नहीं होता। ऐसा प्रतित होता है कि पीछे से किसी ने वीरवांण को लिपिबद्ध कर स्पष्टीकरण के लिये गद्यांश जोड़ दिये हैं।
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मलीनाथ मांगी मुपां, साकुर माले समाध।
जकां न दीधी जोहियां, उणसुवधी उपाध ॥ मलीनाथजी ने मधु जोहिया को रुपयों आदि का लालच दिया साथ ही दला ने भी समझाया किन्तु मधु नहीं माना । तब धोखे से जोहियों को मारने की योजना बनी --
मारै लेसु माल, साकुर पण लेसु सरब ।
जोयां पर जगमाल, रचै मूक उण राव रो ॥ एक बुढ़िया मालिन ने जोहियों को इस "चूक" की सूचना दी जिसका सरस वर्णन इस प्रकार किया गया है:--
मालण नै नितरी मोहर, दलो दिरातो दान । चूक तणी चरचा चली, आई मालण कान || जद उण मालण जाणीयो, दले दियो बहु दान । सीलू उणरो सीलणों, कथ आ घालूकान ॥ डिगती डिगती डोकरी, पूगी दले पास । दला चूक तो पर दुमल, नाज्ञ सके तो नास ॥ तलवाडै थाणा तठे, सावै बंदव सात ।
वीरा थां पर बाजसी, रुक झड़ी अधरात ।। राठौड़ों द्वारा होने वाली "चूक" का समाचार जान कर दलों ने अपने परिवारों को रवाना कर दिया:--
दलै कविला देस नै, बाहिरज कीधा वेग।
साथै वंदव सात ही, तिके उरसरी तेग ।। अब राठौड़ों और जोहियों, दोनों ही दलों की ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी। इसी समय दिल्ली बादशाह कुतबद्दीन की सेवा में जाने वाले तीस अशर्फियों के. ऊंटों को . वीरमजी ने लूट लिया:
ऊंटो तीसा ऊपरै असरफीयां आवै । सो मेली पतसाह के. जोगणपुर जावै ।।. पैसकसी पतसाहरै पतसाह पुगावै । मिलीया वीरम मारगां अस लीधां आवै ॥. सव मोहरां पतसाहरी लुटे लीवरावै । सांमल हुय सारा सुभट मीया फरमायै ।।
ओ धन वीरस आपरै घरमै नह मावै ।
वीरम औ भख वाघरो पोह केम पड़ावै॥ बादशाही सेना से हुए युद्ध और उसमें राठौड़ों की विजय का वर्णन इस प्रकार किया गया है:--
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चढ घोड़ा भड़ चालीया रज गेण ढकाया । मिलीया भारत जांगलु अध रतरा आया ।। मीर केइ रीण मारीया मदु मन चाया । . काट कटका काढ़ीया खल खेंग खपाया ।।। हुर अपछर हरप अत सुरां वर पाया। ग्रीधण साकण. जोगणी पल पूरा पाया ।। वीरम छोडे जांगलु साहीयांण सिधाया। सज जुध जोया सांपला वीरम वचवाया ॥ जद पीछा तठ पातसा धर अपणी धाया । दल जी कोसां दोय तक सामे ले आया । सजे उमंग साहिवाण मैं वीरम ध वाया। दीध वधाई राइकां जद गोगा जाया ।। एक महीनो आठ दिन थठ गोठां थाया। वैरो लप रहवास कुंदलजी दरघाया । बारा गाम ज बगसीया चिता वीरम चाया । डांण वले उचका दिया आधा अपणाया ॥ धाडै धन . धुर माझीया मांझी वैमाया ।
वीरमकु देवण. वलै लष वैरे, लाया ॥ . . . इस युद्ध से राठोड़ों की स्थिति सुदृढ़ हो गई और
लप वैरे पैदा सलप, सपरी आवै साप ।
सापांरा उपजै सदा, लेपे रिपीया लाप ।। राठौड़ भाई जोहियों से बदला लेने का उपाय करने लगे। एक दिन वीरमजी ने जोहियों की सांढणियां छीन ली:
दीठी वीरम हेक दिन पीती सर पांणी । वीरमरै सव सांढीयां निजरां ' गुजराणी ॥ वीरम चित विटालियां ऊंधी मत आणी ।, सात हजारु सांढीयां दिन हेक दगांणी ॥ आयर जिणरी अोठीयां कल कुकरांणी । दस हजार चढीया दुभल रज गैण ढकाणी ॥ . मारै वीरम मेटसा करसां तुरकांणी । . लप बरे वीरस लिये सांढयां प्रांपांणी ॥ दोय कोसां पूगो दलो लारे लुणीयांणी । मानों मानों मारकां सचो सलपाणी ॥
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मलिनाथ जगमाल सुतिण किसड़ी तांणी । आप तणी घर छोड़के आयो आपाणी ।।
आपां मारण उठीया लप कोट लगांणी । कवि ने अपने आश्रयदाता दला जोया की विशेष प्रशंसा की है
सरणायां साधार, ढलै जिसो नह देपीयो।
वीरमरा विनपार, जबर गुना जिण जारीयो ।। दला ने राटीड़ों से समझोते का प्रयत्न भी किया
दल भेज प्रधान कु ए जाय अपंदे। वीरम तुम गुना करो हम जाय पिमंदे ॥ ढाबो ढाबो ठाकरां धर पाय धरदे । मदु न मानें माहरी कल काहे करंदे ॥ हेकण जगा न मावही दोय सेर बकंदे। हेकण म्यान न मावही दोय पाग धकंदे ॥ तुम हिंदु गुना करो मुप चोलो मंदे।
दोय घर डाकण परहरे गाम वणीयां हंदे॥ वीरमजी ने दला को उत्तर भेजते हुए लिखा-.
आपै वीरम राठवड़ आगल पलावै । डाकण किरणने परहरै जब भूपी थावे ॥ गुण भूलो सारा दलो परधान मेलावै ।
आप प्रधान सु अपीयो वीरम वट पावै ॥ सूर उगै साइयांण मै नित ध्राह घलावै । जोयां हंदी नीपका पोसे ने पावै ॥ दले अरु देपाल कु. नित ध्राह सुणावै । वीरम न्याय नह लही अन्याव सुहावै ॥ जोइया बडपण जाणनै कथ नीत करावें ।
पौसै फेरू पाजलं साफरै रापवे ।। दला के समझौते के प्रयत्न व्यर्थ हुए और वह वीरमजी की अनिति से बहुत दुखी हुश्रा जिसके लिए कहा गया है
दोनु तरफारों दलो, दुष.भुगतै निस दीह। .
___ झलीया रहै न जोइया, लोपी वीरम लीह ॥ ' एक दिन वीरमजी ने जोहियों की धरती पर अधिकार कर अपने "दाणी" बैठा दिये नौर १५ जोहियों को भी मार दिया । तब जोहियों ने राठौड़ों पर चढ़ाई कर दी।
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इसी समय वीरमजी ने एक और चाल चली । जिसका वर्णन इस प्रकार किया गया है:
बुकणरै दोय बेटीयां गत एक नीहाले । नाम बड़ी कसमीदे परणो देपालै ॥ रांनल कंवरी राजवण ग्रभ अछरां गाले। सो मांगी देवराज यु कर जोड़ हताले ॥ रांनल मुझकु राजवण भाभी परणाले । भावज गुण भूला नहीं ध्रम पोड़ विचालै ।। कहीयो जद कसमीर दे चढ़ क्रोध अचाले । हु परणांसु हिंदयां तुरका हरटाले ॥ सो कुछ हिंदु हस सुणां जिसकुपरणाले । परणांसु सगपण करै वीरम विगतालै ।। जद पालो कहीदो जसु आगम अपतालै । मानै भाभी माहरो वायक सिर माले ।।
वैठी रोसै वापनै कर मुडे कालै । विवाह के अवसर पर हुई मारकाट का वर्णन महत्वपूर्ण है जिसमें कवि की अन्य समान कर्मवाली जातियों के प्रति उपेक्षावत्ति की झलक मिलती है
चारण चारण कुकतां आरण जगांणा । बामण भुरी वासता सिर आप दिरांणा ।। भागा मुडा भाठदां पुल दांत पिराणा । डोफा भागा डुलड़ा भाटक झेरांणा ॥ कटिया हात कमीणदा दत नेग दिरांणां.।। गहणा गायणीयां तणां लुटे लिवराणां ।। केतां पावज कटी हातां हेरांणा । जावै गुणीयण जीव लेकर पांचा तांणा ॥ ठांवां पंथ विच एकठां मिल ठाक घतांणा । फिर कोई इसड़ा ज्याग मै मत पाव दिरांणा ।। सलपाणी जिसड़ा सुपह वनड़ा वरवांणा। बुकणका घर पो के धन सोध लिरांणा ॥ चुकण सहतां बेलीयां इक पाड़ दिरांणा । भटोयाणीदे भागका क्या चक्र फिरांणा ॥
कह भाटी कसमीर कु क्या फाग पिलांणा ॥ दला जोहिया ने समझोते का प्रयत्न फिर भी चाल रक्खा और वीरमजी को अपने प्रधान द्वारा इस प्रकार रचित किया
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वीरवाण
दलैपान विचार कर परधान पठाया। लप वर वीरम कनै ए जाब कैवाया ॥ तगड़ तषी षग झार सै भंग वीरम आया।
आया कुआदर दिया हम लीध वघाया। लख रो रहवास कुदलजी दरवाया। धरती चोवी गांमड़ा सब राज समाया । उस मांसु वीरम तनै आधा वगसाया। डांण वलै उचका दिया आदा अपणाया। चोत्री गास चबुतरा कि काज बैठाया। पोसे इकसठ पाजरु सफरै रापाया । जोइया पग मांडे जिती धरे नीही रहाया। हाती रहै न जुटिया कैहर उकराया ॥ मीलीयां चिडीयां महलै अहि जाणक आया । जांणक डोकर पोलडै विच बाद्य वसाया। . क्या तेरा अवगुण किया हम लीध नीभाया।
पायरहिं दुगुण कियां सब जाय भुलाया ॥ वीरम जी की रानी मांगलियाणी भी जिसने सातों जोहियों को अपना राखी भाई बनाया था समझौते का प्रयत्न करने लगी किन्तु उसका कोई परिणाम न हुआ।
. युद्ध का मुख्य कारण यह हुआ कि वीरमजी ने दरगाह के "फरास" पेड़ को काट . . हाला जिसका वर्णन करते हुए मुस्लिम कवि ने अपनी श्रद्धा इस प्रकार व्यक्त की है
दरपत हरीपल पीरदां विच दरगह सोवै। जोइया देस वीदेस मै जिण सांमो जोवै ॥ पीर प्रचाइल प्रगट दुप दालद पौवै । राम रहिम जु एक हैं कबु दोय न होवै ॥ वीर फरासा बाढ़ बाढ़ वपाती ढोवै। .
के मुलां तागा करै हुब हाका होवै ॥ फ़रहास के कटने का समाचार सुन कर दला जोहिया को बहुत दुख हुआ और उसने एक दिन जाकर वीरमजी की गायों को घेर लिया
जेज न कीधी जोइयां, घेरी जायर गाय । सुण बीरम ग्वाला सवद, लागी उर मैलाय ।। दस हजार जोया दुझल, कठठ साररा कोट। ‘ढाला जंगा चालणा, ढाला करै न ठोट ॥
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वीरवाण
जोहियों द्वारा गायें घेर लेने पर वीरमजी ने भी विलंब नहीं किया और वे युद्ध के लिये चलने लगे । मांगलियाणी ने उनको समझाया मैं भाई को समाचार भेजती हूँ वह अवश्य ही प्रातः काल गायें लौटा देगा।
वीरमजी ने मांगलियाणी राणी को उत्तर दिया कि लखवेरे की सीमा से जोईये मेरी गायों को लेकर जीवित नहीं जा सकते और यदि मैं तुम्हारे कहने से चुप बैठेगा तो वे समझेंगे कि राठौड़ कायर हैं । ऐसी अवस्था में मेरा आलस्य कर बैठना असंभव है--
फणधर छाडै फणद सुन भार संभावै । अरक पिछम दिस उगवै विधि वेद विलावै ।। विग घटै वींहंगेस को सिव ध्यान भुलावै । गोरख भूले ग्यांन कुजत लिलमण जावै ॥ सत छाडै सीता सती हणमंत घबरावै। धणीयां धाडेता तणीकी परां पावै ॥
हुँ सुक कर वेठु घरे जग उलटो जावै ।। वीरमजी दो हजार सवारों को साथ ले जोइयों पर चढ़ाई करने के लिये तैयार हो गये।
इधर जोहीये दस हजार सवारों सहित युद्ध के लिये तैयार हुए । काव्य में युद्ध के प्रारंभिक वातावरण को सफलता पूर्वक अकित किया गया है । भूत, प्रेत जोगिनी, गिद्ध आदि का युद्ध भूमि में आना, वीरो की हुँकार आदि का वर्णन वीर रस के अनुरूप हुआ है।
वीरम ने सर्व प्रथम तलवार चलाकर ६५ जोहियों को मार गिराया। फिर वीरम और मदु के बीच भयंकर युद्ध हुया । दोनों घायल हो गये । कवि ने पुनः वीरमजी की वीरता का बखान करते हुए लिखा है--
लोप भवर गिर लंकरो वुण जावै बार।
आभ भुजां कुण श्रोढ मैं कुण सायर जारै॥ मिणधर दे मुप अंगुली मिण करण लिवारै।। सिंह पटा झर सांप हो कुंण मैंड पघारै ॥ तेरु कुण सायर तिरै जमकु कुण मारै । वाद करै रिण वीरमो नर कोण वकारै ॥ .
मदु तो बिन मारको कुण आसंग धारै। दोनों और के युद्ध का सजीव वर्णन करते हुए कवि ने बताया है कि अन्त में वीर और मदु दोनों ही युद्ध भूमि में मर कर सो गये । कवि कहता है--
अंग वीरमरै ओपीया, घाव एक सो दोय । अंग मदुरै उपरा, गिणती चढै न कोय ।
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वीरवाण
. तदुपरान्त कवि ने दोनों दलों की ओर से वीर गति प्राप्त करने वाले योद्धाओं के नाम दिये हैं--
निसारणी
पडीया वीरम पापती संग इतरा सुरा। सोलंपी माधो सुभट पडपेत सनुरां ।। पडीयो चायल सैंसमल पल कर भप भूरा । भीम पडै रिण सांपलो तन कर चक चूरा ।। दोलो पड़ मोयल दुझल पत्रवट वट पोर । हजूरी वनी पड़े दोयण दल दोर ॥ पडीयो आहेड़ी पनो झडीयो पग झोर । सांणी पड़ पांणक सुभट कीर मर तन कोर ॥
मांगलीयो मंगलो पडै जग सारौ जाणे । . सहंस दोय पड सूरमा पापर हय पाणै ॥ वीरम संग वीठीया विहद तद ऊंची ताणै । अछरां वर पोहता इता श्रग बैठ बिमाणे ।। .. ॥ दूहा ॥ सोडा हाडा सिसोदा, पड़झाला अरु गोड़।
चावड़ा तुर चबांण पड़, रिण पड़ीया राठोड़ ॥ जोहियों की ओर से मारे गये योद्धाओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है
जस रिण में जूझीयों कर जोस हमला । मदु जैल रिण रहे झड तेगा झला ॥ घट फूटा देपालदा धुड़ले वर चला। दोय सहंस जोया दुमल हुरां संग हला ।। चढीया डोली · चारसै गिरणै गलबला । , सब आया साही बांण में कर अला अला ॥ ... दलो कहै मै वरजीया मानी नर कोई।
वीरमसु जुध बाजनै सब सेन कराई ।। . मारे वीरम रिण मुवा भड़ च्यारू भाई।
धूड़ बलोइण धाडनै जो कीधी सो पाई। .
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वीरवाण वीरमजी के पाँच पुत्र थे, (१) चूडा,. (२) सत्ता, (३) गोगादेव, (४) देवराज और (५) विजय राज ।
उपरोक्त युद्ध के पश्चात् कवि ने चूण्डा के प्रसङ्ग में लिखा है कि एक समय चूड़ा सोया हुआ था । तब उस पर सर्प ने अपने फण की छाया की । तब पास ही खड़े बारहठ
आला ने नाना कि चण्डा वास्तव में कोई छत्रपति राजा है। फिर चण्डा द्वारा घास की गाड़ियों में सैनिक छिपा कर मंडोवर गढ़ में ले जाने और गढ़ पर अधिकार करने का वर्णन है।
तदुपरान्त गोगादेव द्वारा दल। जोहिया से युद्ध कर वीरमजी का बदला लेने का वर्णन है । चूण्डा जी ने गोगादेव से कहा कि "मैं तो मामे को मारूंगा नहीं सो तुम ही
युद्ध करो।"
गोगा देव ने पांच सौ सवारों को साथ लेकर दला जोहिया पर चढ़ाई की और दला को मार दिया।
दला के मारे जाने का समाचार पूगल पहुंचाया गया। समाचार प्राप्त कर लुणियाणी जोहीयों ने क्रोधित होकर गोगादेव पर चढ़ाई की। युद्ध मे गोगादेव ने वीरता पूर्वक युद्ध किया और अन्त में वीरगति प्राप्त की जिसके लिये कवि ने लिखा है--
हुय सिद्ध दसमो हालीयो संग नाथ जलंधर ॥ अन्त में कवि ने "चितहलोल" गीत में गोगादेव की प्रशंसा करते हुए और काव्य की छन्द-संख्या बताते हुए अपने काव्य को पूर्ण किया है ।२
'वीरवाण' में ऐतिहासिक घटनाओं का यथा तथ्य चित्रण करने का प्रयत्न किया गया है जिससे इम इसको ऐतिहासिक काव्य मान सकते हैं। प्राचीन काल में प्रत्येक विषय के लिये पद्य को प्रधानता दी गई है और गद्य को प्रायः उपेक्षित किया गया है। यों अपवाद स्वरूप राजस्थानी भाषा में गद्य भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। हजारों ही वार्ताएं, ख्यात, विगत और पीढ़ियां आदि राजस्थानी गद्य के अनूठे उदाहरण हैं । ऐतिहासिक घटनाओं के यथा तथ्य चित्रण की ओर रहता है । प्राचीन काल में कई कवि इतिहासकार भी रहे हैं। ऐसी अवस्था में इतिहास के आगे काव्यत्व की प्रायः उपेक्षा हुई है और ऐतिहासिक पद्यों में कान्यत्व नाम मात्र को ही मिलता है । किन्तु “वीरवांण" के लिये ऐसा नहीं कहा जा सकता।
"वीरवाण" में ऐतिहासिक घटनाओं का यथा तथ्य निरूपण किया गया है । साथ ही मार्मिक प्रसङ्गों के अनुकूल भावनापूर्ण काव्यात्मक अभिव्यात्ति भी हुई है। काव्य में वर्णित प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित हैं--
(१) मुहणोत नैणसो री ख्यात भाग २ (का० ना०प्र० सभा) पृ०८७ । कवि राजा वांकीदासजी ने वीरमजी के पुत्र ६ माने है--
गोगादे १, देवराज २, जैसिघ ३, वीजो ४, चुण्डा ५ व पाची ६। देखिये यांकीदासरी ख्यात, वार्ता सं० ५२ पृष्ठ ६, राजस्थान पुरातत्व मन्दिर जयपुर ।
(२) नोगादेव राठोड़ और सम्बन्धित विपयों में प्राप्त आदेश पर बातम्व परिशिष्ट में दिये गये हैं।
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वीरवाण (१) जैतसिंह रो झगड़ो-जैतसिंह द्वारा गुजरात के परमारों पर आक्रमण कर राजधग पर अधिकार करना ।
(२) मालदेजी रो समो-अहमदाबाद के मुहम्मद बेगड़ा से युद्ध कर गांदोली का हरण करना । इसमें पांच झगड़ों अर्थात् युद्धों का वर्णन हैं ।
(३) वीरम जी और जोहियों का युद्ध जिसमें वीरमजी और जोहियों के सम्बन्ध, युद्ध के कारण, युद्ध का वर्णन और युद्ध के परिणाम दिये गये हैं। इसी प्रसङ्ग में दिल्ली बादशाह के अशर्फियों से लदे ऊंटों की राठौडों द्वारा हुई लूट और युद्ध का वर्णन भी दिया गया है। .
(४) वीरमजी के पुत्र चूण्डा द्वारा मंडोवर पर अधिकार करना ।
(५) वीरमजी के एक पुत्र गोगादेव द्वारा जोहियों से युद्ध कर वीरमजी की मृत्यु का बदला लेने और वीर गति प्राप्त करने का वर्णन ।
उपरोक्त पांचों ही घटनाएं इतिहास-प्रसिद्ध हैं और सम्बन्धित ग्रन्थों से प्रमाणित होती हैं । विषेश प्रमाणों के अभाव में इन घटनाओं को अनैतिहासिक नहीं ठहराया जा सकता । अन्य इतिहास ग्रन्थों से भी किसी न किसी रूप में सम्बन्धित घटनाओं का समर्थन होता है । सम्बन्धित विषय में प्रमुख इतिहासकारों के मत इस प्रकार हैं--
स्व. डा० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा मुहणोत नैणसी लिखता है-'वीरम महेवे के पास गुढ़ा ( ठिकाना ) बांध कर रखता था । महेवा में खून कर कोई अपराधी वीरमदेव के गुढ़े में शरण लेता तो वह उसे अपने पास रख लेता । एक समय जोहिया दल्ला भाइयों से लड़कर गुजरात में चाकरी करने चला गया, जहां रहते समय उसने अपना विवाह कर लिया। कुछ दिनों बाद वह वहां से अपनी स्त्री सहित स्वदेश की तरफ लौटा। मार्ग में महेवे पहुँच कर वह एक कुम्हारी के घर ठहरा और एक नाई को बुलवाकर अपने बाल बनवाये । नाई ने उसके पास. अच्छी घोड़ी, सुन्दर स्त्री और बहुत सा धन देखा तो तुरन्त जाकर इसकी खबर जगमाल को दी। अनन्तर जगमाल की याज्ञानुसार उसके गुप्तचर कुम्हारी के घर जाकर सब कुछ देख भाल आये। कुम्हारी ने इसका पता पा दल्ला से कहा कि तुम पर चूक होने वाली है । फिर रक्षा का मार्ग पूछे जाने पर उसने उसे वीरम के पास जाने की सलाह दी। तदनुसार दल्ला अविलम्ब स्त्री सहित वीरम के गुढ़े में जा पहुँचा। पांच - सात दिन तक वीरम ने दल्ला को अपने पास रखा और उसकी भले प्रकार पहुनाहि की। विदा होते समय दल्ला ने कहा कि वीरम, आज का शुभ दिवस मुझे तुम्हारे प्रताप से मिला है । जो तुम भी कभी मेरे यहां अायोगे तो चाकरी में पहुँचूंगा मैं तुम्हारा राजपूत हूं । वीरम ने कुरालतापूर्वक उसे उसके घर पहुंचवा दिया।
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वीरवाण
"माला के पुत्रों और वीरमदेव में सदा झगड़ा होता रहता था, (अतएव) वह (वीरम) महेवे का परित्याग कर जैसलमेर गया वहां भी वह ठहर न सका और पीछा याया तथा गांवों को लूटने और धरती का बिगाड़ करने लगा। कुछ दिनों बाद वहां का रहना भी कठिन जान वह जांगलू में ऊदा मूलावत के पास पहुंचा । ऊदा ने कहा कि वीरम, मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं, कि तुम्हें अपने पास रख सकू, अतएव आगे जायो । तुमने नागौर को उजाड़ दिया है, यदि उधर का खान श्रावेगा तो मैं उसे रोक दूंगा। तब वीरमदेव जोहियावाटी में चला गया । पीछे से नागोर के खान ने चढ़ाई कर जांगलू को घेर लिया, जिस पर गढ़ के द्वार बन्द कर ऊदा भीतर बैठ रहा। खान के कहलाने पर ऊदा उससे मिलने गया, जहां वह चन्दी कर लिया गया । खान ने उससे वीरम का पता पूछा, पर उसने बताने से इन्कार कर दिया । इस पर उसकी माता से पुछवाया गया, पर वह भी डिगी नहीं। दोनों की दृढ़ता से प्रसन्न होकर खान ने ऊदा को मुक्त कर दिया और वीरम का अपराध भी क्षमा कर दिया । ।
___ 'वीरम के जोहियों के पास पहुंचने पर उन्होंने उसका बड़ा आदर-सत्कार किया और दाण में उसका विस्वा ( भाग) नियत कर दिया । तब वीरम के कामदार कभी-कभी सारा का सारा दाण उगाहने लगे । यदि कोई नाहर वीरम की एक बकरी मारे तो यह कह कर कि नाहर जोहियों का है वे बदले में ११ बकरियां ले लेते थे। एक बार ऐसा हुआ कि ग्राभो रया भाटी बुक्कण को, जो जोहियों का मामा व बादशाह का साला था और अपने भाई सहित दिल्ली में रहता था, बादशाह ने मुसलमान बनाना चाहा । इस पर वह भाग कर जोहियों के पास ना रहा । उसके पास बादशाह के घर का बहुत सा माल और वस्त्राभूषण आदि थे । गोठ जीमने के बहाने उसके घर जाकर वीरम ने उसे मार डाला और उसका माल असबाब तथा घोड़े अादि ले लिये । इससे नौहियों के मन में उसकी तरफ से शंका हो गई। इसके पांत्र - सात दिन बाद ही वीरम ने ढोल बनाने के लिए एक फरास का पेड कटवा डाला । इसकी पुकार भी जोहियों के पास पहुंची पर वे चुप्पी साध गये । एक दिन दल्ला जोहिये को ही मारने का विचार कर वीरम ने उसे बुलाया । दल्ला खरसल (एक प्रकार की छोटी हल्की बैल गाड़ी ) पर बैट' कर पाया, जिसके एक घोड़ा और एक बैल जुता हुया था। वीरम की स्त्री मांगलियाली ने दल्ला को अपना भाई बनाया था। चूक का पता लगते ही उसने दल्ला को इसका इशारा कर दिया। इस पर जगज़ जाने का बहाना कर दल्ला खरसल पर चढ़कर घर की तरफ चल दिया । कुछ दूर पहुँच कर खरसल को तो उसने छोड़ दिया और घोड़े पर सवार होकर घर पहुंचा। वीरम जब राजपूतों सहित वहां पहुंचा उस समय दला जा चुका था । दूसरे दिन ही जोहियों ने एकत्र होकर वीरम की गायों को घेरा । इसकी खबर मिलने पर वीरम ने जाकर उनसे लड़ाई की । वीरम और दयाल' परस्पर भिड़े । वीरम ने उसे मार तो लिया पर जीता वह भी न बचा और खेत रहा । वीरम के साथी गांव बड़ेरण से उसकी ठकुराणी (भटियाणी ) को लेकर निकले । धाय को अपने
(१) मुहणौत नैणसी का पूर्ण वक्तव्य परिशिष्ट में दिया गया है।
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वीरवाण एक वर्ष के पुत्र चूण्डा को आल्हा चारण के पास पहुँचाने का आदेश दे वह राणी मांगलियाणी सहित सती हो गई।
(जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम खण्ड; पृष्ठ १६३)
श्री विश्वेश्वरनाथ रेऊ "यह सलखाजी के पुत्र और रावल मल्लिनाथजी के छोटे भाई थे । यद्यपि मल्लिनाथ जी ने इन्हें खेड़ की जागीर दी थी, तथापि जोहिया दला की रक्षा करने के कारण इनके और मल्लीनाथजी के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इससे इन्हें खेड़ छोड़ देना पड़ा। वहां से पहले तो यह सेतरावा की तरफ गए और फिर चूंटीसरा में जाकर कुछ दिन रहे । परन्तु वहां पर भी घटनावश एक काफिले को लूट लेने के कारण शाही फौज ने इन पर चढ़ाई की । इस पर यह जांगलू में सांखला ऊदा के पाम चले गये । इसकी सूचना मिलने पर जब बादशाही सेना ने वहां भी इनका पीछा किया, तब यह जोहियों के पास जा रहे । जोहियों के मुखिया कल्ला ने भी इनकी पहले दी हुई सहायता का स्मरण कर इनके सत्कार का पूरा पूरा प्रबन्ध कर दिया । परन्तु कुछ ही दिनों में इनके और जोहियों के बीच झगड़ा हो गया । इसी में वि० सं १४४० (ई० सं० १३८३) में यह लखवेरा गांव के पास वीरगति को प्राप्त हुए । विरमजी के पांच पुत्र थे: १. देवराज, २. चूंडा, ३. जैसिंह, ४. विजा और ५गोगादेव ।
(मारवाड़ का इतिहास प्रथम खण्ड) . "वीरवाण की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कवि ने मुसलमान होते हुए भी धार्मिक उदारता का परिचय दिया है । जोहिया मुसलमानों की सहनशीलता का परिचय भी प्रस्तुत काव्य द्वारा प्राप्त होता है । जोहियों ने वास्तव में वीरमजी और उनके साथियों की हठधर्मी पूर्ण कामों और अपराधों से विवश होकर ही युद्ध किया था। फिर वीरमजी की रानी मांगलियाणी ने जोहिया मुसलमानों को अपना राखीवन्ध भाई बनाया तो दोनों ही पक्षों ने अपने उच्च सम्बन्धों का निर्वाह किया। यहां तक कि चूण्डाजी भी अपने मामा पर तलवार चलाने के लिये नहीं तैयार होते हैं और गोगादेवजी को वीरमजी का बदला लेने के लिये भेजते हैं।
___ "वीरवाण" में वीररस का उत्कृष्ण निरूपण हुआ है । "वीरवाण" वास्तव में वीररस-प्रधान काव्य है और इसमें आलंबन, उद्धीपन, स्थाई एवं संचारी भावों का विस्तृत वर्णन हुआ है। युद्ध के कारण मध्य युगीन परिस्थितियों के सर्वथा अनुरूप हैं जैसे स्त्री हरण, मार्ग में जाते हुए धन का लटना, घोड़ों ऊंटों और गायों को घेरना, धार्मिक भावनाओं पर .. आघात करना आदि । युद्ध का वर्णन तो कवि कल्पना और अोझ से ओतप्रोत हुआ है ।
'वीरवाण' की तीसरी विशेषता कथा-वस्तु का सुसंगठित होना - है । काव्य सम्बन्धी प्रत्येक घटना पिछली घटनाओं से जुड़ी हुई है और वीरमजी तथा जोहियों के युद्ध में संघर्ष चरम सीमा पर पहुँचता है । संघर्ष का अन्त गोगादेव द्वारा जोहियों से बदला लेने से होता है और यहीं काव्य पूर्ण भी होता है । इस प्रकार काव्य की कथा वस्तु भी पूर्ण संगठित है।
- 'वीरवाण' की भाषा राजस्थानी है । 'वीरवाण' की भाषा पूर्ण रूपेण परिमाजित नहीं होते हुए भी विषय के अनुरूप ओजपूर्ण है । भाषा में कई स्थलों पर पंजाबी प्रभाव भी
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वीरवारण
झनकना है । पंजाबी की “दा" "दी" विभक्तियों का प्रयोग "रा" "0" के स्थान पर कई बार हुआ है । बहादुर ढ़ाढ़ी का शास्त्रीय अध्ययन नहीं ज्ञात होता है और इसलिये भाषा दोष और छन्द दोष भी कई स्थानों पर मिल जाते हैं।
__'वीरवाण' में राजस्थानी काव्य के प्रिय अलंकर "वैण सगाई" का सझल प्रयोग भी कई.छन्दों में किया गया है।
राजस्थान में ढाढ़ी कवियों ने नीसाणी और दूहा छन्दों को अधिक अपनाया है। इतिवृत्तात्मक वर्णन के लिये निसाणी, चौपाई और दूहा छन्द सर्वथा उपयुक्त रहते हैं । इसलिये 'वीरवाण' में भी नीसाणी और दूहों का प्रयोग किया गया है । कवि के शास्त्रीय अज्ञान अथवा प्रतिलिपि कर्ता के अज्ञान से कई छन्दों में मात्रा दोष भी वर्तमान है । काव्य के अन्त में एक गीत चितहिलोल है और यह काव्य कला का अनुपम उदाहरण है।
पद्य के साथ गद्य का प्रयोग कई राजस्थानी ग्रन्थों में मिलता है। राजस्थानी वार्ताओं और ख्यातों में गद्य की प्रधानता होती है तथा पद्य का प्रयोग न्यन होता है। इसी प्रकार कुछ.राजस्थानी काव्यों में कहीं-कहीं गद्य भी मिल जाता है । विषय के स्पष्ट किरण के लिये 'वीरवाण' में कहीं कहीं गद्य की कुछ पंक्तियां मिल जाती हैं । 'वीरवाण' में प्रयुक्त राजस्थानी गद्य पूर्ण परिमार्जित हैं और इसमें पद्य की तरह तुक मिलाने की प्रवत्ति भी दिखाई देती है।
'वीरवाण' का कर्ता स्व. पं. रामकरणजी पासोपा के लेखानुसार रामचन्द्र नहीं ज्ञात होता जैसा कि उन्होंने स्व० सम्पादित राजरूपक भूमिका में प्रकट किया है । 'वीरवाण' का कर्ता बादर अर्थात् बहादुर ढाढ़ी था । ढाढ़ी भी हिन्दु नहीं वरन् मुसलमान ढ़ाढ़ी था जैसा कि हिन्दुओं के लिये किये गये उसके क़ाफिर शब्द-प्रयोग से ज्ञात होता है। कवि के आश्रय दाता भी मुसलमान जोहिये थे और कवि ने अपने आश्रय दाता और इस्लाम धर्म के लिये बहुत ही आदर सूचक प्रयोग स्थान स्थान पर किये हैं। .
वास्तव में 'वीरवाण' सम्बन्धित इतिहास के लिये एक आधारग्रन्थ है। 'वीरबांण' काव्य का कर्ता ढाढ़ी बादर सम्बन्धित कई घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी, निष्पक्ष, उदार और काव्य-कला निपुण व्यक्ति ज्ञात होता है । ग्रन्थ की ऐतिहासिक और काव्यात्मक उपयोगिता समझ कर ही हमने अपनी नवीन खोज में प्राप्त तथा सम्बन्धित घटनाओं पर आधारित
आढ़ा पाड़खान जी रो रूपक, गोगादेव जी रो, वीरमदेवजी री बात, चूण्डाजी री बात, गोगादेवजीरी वात आदि और महणोत नैणसी का परा वक्तव्य परिशिष्ट में दिये हैं। साथ ही ग्रन्थ के परिशिष्ट में देवगढ़ से प्राप्त 'वीरवाण' की एक अन्य प्रति के पाठान्तर और काव्य-सम्बन्धी कठिन राजस्थानी शब्दों के हिन्दी अर्थ भी दे दिये हैं। वीरबांण की एक प्रति हमें श्री मांगीलाल व्यास, जोधपुर से देखने को मिली किन्तु इसका पाठ नितान्त अशुद्ध होने से हम इसका उपयोग नहीं कर सके।
___अन्त में मैं "राजस्थान अोरिन्टल रिसर्च इन्स्टीट्य ट" के संमान्य संचालक आदरणीय मुनि श्री जिन विजयजी महाराज के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करती हूं जिन्होंने प्रस्तुत उत्कृष्ट काव्य के सम्पादन और प्रकाशन के लिये प्रेरणा दी है । लक्ष्मी निवास काटेज, बनी पार्क, जयपुर
लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत श्रावणी तीज, सं० २०१४ वि०
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ढाढी बादररो वणायो
वीरवाणा
॥ श्री गणेशाय नमः । श्री सारदाय नमः ।।
॥श्री माताजी । श्री रामचन्द्राय नमः ।। अथ ग्रंथ वीरवाण ढाढी वादरो वणायो लिपंते । रावजी श्री सलपेजीरा कंवराँ च्यारांरा परवाड़ा लिपंते ।
दृहा सुमत समापो सारदा, आपो उकती अाप । कमंधा जस वरनन करूं, तुझ महर परताप ॥ समरूं गणपत सरसती, पाण जोड़ लग पाय । गाउंहु सलपाणीयां, विध विध सुजस बणाय ॥ . २ सुणी जिती सारी कहुं, लहु न झूठ लिगार । मालत जगमालरो, वीरम जुध. विचार ॥ राज समालो नगरमै, सोभत जैत समीयांण । थान पेड़ वीरम थपे, जगजाहर घण जांण ।।
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वीरवांण
मालदेजी जैतसींघजीरो वीरमदे जिसोवतजीरो राज-बरनन
- नीसाणी सुत च्यारूं सलषेसरा कुलमै किरणाला । राजस बंका राठवड वरवीर बडाला । साथ लियां दल सामठा वीरदाँ रूखवाला। भिड़िया भारत भीमसा दल पारथ वाळा ।। देस दसु दीस दाविया कीदा धकचाळा । केवि धस गीर कंदरां वपसंक वड़ाळा ।।
जैतसींघरो झगड़ो लिखते जैत चढ़े गुजरातकुं सामान सझाया। पमंग लिया संग पांचसै चड पुर चलाया। सामत चढ़िया सूरमा राडधरै आया। चित उजल चोगानमै तंबु तणवाया । अषैनंदै मीलणका . मनसोभा थाया ॥ बीसै विधविध वरजिया मत जावो भाई । देस दिषाया जैतकुं आ कुबद कमाई ।। गोयल पेड गमाडीया उंणहुंत सवाई।.. धर जासी घर लुटसो कर जेज न काई ॥ . वीसै वरज्या नह रेया थट भेळा थाया । . अषानंदा एकठा उठ डैरै आया । हुकमज दीयो हजूरियां लष दारू लाया। . चळं करंता चूक ही परी काट उड़ाया। जैत कमंधज जेण दीन धर श्रोण धपाया। पंमारां धर पालटी धर जैतल पाया। . गांवां अठचालीस सै राड़धरा आया ।। -
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वीरवाण
. . दहा राडधरो कायम कीयो, नरनामी नष तैत। . मेली रावळ मालन, जबर बधाई. जैत ॥
. नीसांणी .. .' लंगर लघु लार वैह. दळ पार न पाई । . . मालबीयो बलराव है जैचंद वीजाई ।
राज करै धूम रीतसों बध क्रीत सवाई । . घर घर पाणद है घणा थित मंगल थाई ॥ - महपत रावल मालरी प्रज फूलां छाई। .
मंडलीकां ज्यु मालदे वंका बरदाई ॥ ५ . इण रीत रावल. मालदेजी गुडै नगर राज करै जकां दिनाँ समीघांणैसु रावल जैतसीजी इडर गुजरातने चडीया। जाय राडधडे उतरीया। जठे अनंदै दो- कोटड़ीयां जाय राडरै पंमारांनै आदमी बांवनसुं मारनै राडधरौ लीनौ तरी राड़ संपूरण ।
- मालदेजीरो समो लिषते । .
दूहा . भायां परधानां भडां, दळबळ अथग दुझाल। कीधो उछब कांमती, मीण धर रावळ माल ॥ ६ रावल मालो राजवी, राज करै धुम रूप। .. बारां. हरचंदरा वहै, सागे सरग सरूप ॥ वीरम भाई बांकडो, ज्यूं बेटो जगमाल । दत्तक भाव रचावा दुनी, साह उरांरा साल ॥ तबेलै मालह तणे, पाणी पंथा पमंग । सांवत दरगह सूरमां, वे असवार उमंग ॥ तीकां दिनां मणीयर तीसो, दूजो नांही देस । घर घर व्यांवे घोड़ीयां, वदै वीछेरा वेस ॥
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वीरवाण
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पड़ मांहि नाहीं पड़े, घाट ईसै घोड़ाह । भड़ चढीया अत सोभ दै, ऐस आ घोडाह ॥ नग धर मीणीय नीपजै, कोड़ीधर केकाण । मैहमंद लेवण मेलीयो, मरवण पान पठाण ॥ सिणलागर सागर समै, भरीया नीर तळाव। किलमां प्राय डेरा किया, सोदागरां सुभाव ॥ तीजणियां दिन तीजरै, सजे साज सिंणगार। हीडे आई हीडवां, अपछररै उणियार ।। अरक तणो पण प्राथमण, मेह अंधारी रात । तीजणीयां लेगा तुरक, घोड़ां ऊपर घात ।। बोले बांमण बाणियां, मालहंत कह वात । तीज तणे मग रैत दिन, सुत मम लेगा सात ।। जिण कारण मेले जगो, छाने हेरा च्यार । मांडळरी धर मेलीया, वालण वैर विचार ॥ कंवरहुंत हेरु कहै, धुर सुण धणीयांह । मांडळपुर महमंद घर, बैठी तीजणीयांह ।। मैहमँदसारी डीकरी, गींदोलीरे साथ । मैह जीता आवै मुकर, जमैरातरी जात ।। कंवरजी जगमालजी मांडवैसु तीजणीयां लावण नै ___ वा गादोली लाया वो समो लिपंते
नोसांणी कथ हेरुकी सुण कंवर कमरां कसवाणी। भड चंगा लीधा भला तंग पैगां ताणी ।।
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वीरवांण
भुजं पारथ क्रन भीम सा ऐहड़ा आ पाणी। पाव धाव पंष राव सा अस पंथा पाणी ।। सुभटां वीसी सातसुं चढीयो मालाणी । पूगा दिना दसमें प्रथम मांडलगढ आणी ।। कहियो मै बंदगी करां पागल उचराणी । डेरो कर वेरो दियो जगमाल मालाणी ॥ तीजणीयां सब आवजो पूजण पीरांणी । कल मैहमदरै इदरौ मेळो मंडवाणी ।। आय हुई सब एकठी कथ जेम कहाणी । वेलि बा पुकारियां जगमल मालांणी ।। ऐ तीजणीयां एकठी आई आपांणी । सजो सुभटां सूरमां किम जेज करांणी ॥ श्रा कहतां भड़ ऊठीया वीरा दवी रांणी। ज्यु मृगं डार ज ऊपरै चीता मलफांणी ।। तुरंगा चाढी तीजण्यां हुब कुक हुवांणी । सापूत बेटी साहरी जगमालै जांणी ।। गींदोली करसुं ग्रहे हय पीठी चढांणी। लेगो ज्युहीं लावीयो जगमाल मालाणी ।। चावळ कमधां चाढीयां जसडा कव जांणी। कूक गई महमंदके जग सारै जांणी। इळ मीणीयर कर ऊजळो तीजणीयां प्रांणी ।।
दी छाने जगमालनै, मैंमदसा फ़रमास । दीनी गींदोली देऊ, जूनागढरो वास ॥. हुँ मैमदसा वेगडो, गोरीसाह दुझाल ।
२०.
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वीरवाण
राज गींदोली राषीयां, मरजांसो माहाराज ।। जगो महा भड़ जोरवर, भीरड़ कोट कुळ भांण। महमद गोरी साहरी, कंमध न मानी कांण ।। वैर सतावी वालीयो, सत्रवां उर साल। जिणरै उछवरो जवर, मेळो रचियो माल ।। मैले रावल मालरै, आया इसड़ा पीर । जांणक चौसठ जोगणी संग लै बावन वीर ।। अाया कितायक अवलिया, वड़ा बड़ा दरवेस । पाचांही पंडवां जिसा, उमियां सेत महेस ।। जैसळ नै तोली जिसा, सबै प्रावीया साथ । अाइ तषत वैठाविया, निकलंक हुअा सुनाथ ।। दरसण पाया देवता, सिध साधक ले साथ। . चौरासी पीरां सहत, नवही आया नाथ ।। राणी रूपादे जिसि, सापूतं जिका सकत । धारु जिसड़ा उण घरे, भव भव तणा भगत ।। मेलै रावळ मालर, रचीयौ सतजुग राह । वेरो देवण भीरड़ गढ, चढ़ पाया पतसाह ।।
नीसांणी दिलीसुं चढी पाया दुझल गोरी सुलताणा । मांडलगढ मैहमंद चढ, पांमद पुरसाणा ।। सांतु लोपी सायरा मिलपा जजलांणा । इण विध मैहमंद अावीयो सझ दल घमसांणा ।।
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वीरवाण
हजरत बेहुं भेळा हुआ पूरब पिछमांणा। है बेहुं घर मोटा बोहत छोटा रहमांणा ॥ पोज गमावण षूनीयां जोडै जमराणा । रीस करै ज्यां रोळवै वोळे महरांणा ।। कवण षून जांरो करै हींदु तुरकाणा ।. जलल करी जगमाल दे करडी कमरांणा ।। ओरत आणी एकरी एकण धी आणा । सझ बेहुं आया पातसा घुरता नीसांणा ।। पेड़ तणा वला पोसणा पलट लंक पाणा । प्रारंभ कीधा ऐहड़ा सज बेहुं सुरतांणा ॥ पंचिया दोळा घेडरै तंबू तूरकांणा । घेरो लागो भीरडगढ़ डेरा दरसांणा ।।
रावजी मालदेजीरो पैलो झगडो लिपंते :
... दूहा .. घेरो लागो भीरड़गढ, उडण लागो सोर । छूटण लागी नाळीयां, बोलण लागा मोर ।। . . ३१ सतगुरसुं कहियो बचन, विदा हुवंता वांण । भिलै नहीं गढ भीरड़रो, मलीनाथरो मांण ।। ३२
निसांणी इष घडा असुराणरी चित रोस चढाया । जागवीया अह रावकै जमराव षिजाया ।। धोम झलाहळ धेषमै उठं बाहर आया। मूछ धरै कर मालदे सझ कंवर सवाया ।। जरद कसै भड़ जोरवर अंग रोस न माया । कमधज उठियो धूप कर केकाण कसाया ।।
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वीरवाण
असुर दिली दल ऊपर अस एम उठाया। पाग चमकी बीज ज्यूं घण घाव लगाया ।। केता रुंड मंड काट कर रिण जंग मचाया। असुर गया रिण प्रोसके माले डकराया ।। कीलम अरावा त्यार कर दूजै दिन पाया ।।
रावलजी मालदेजीरो दूजो झगड़ो भुरजां भुरजां भीरड़ गढ बड़ नाळ गड़की । सोर धुंवारिण घोरसुं धर अंवर ढकी । आयर वीज अचीतकी असमान कड़की। भुप तुराटां भेळीया जुध कारण जकी ।। आलम अालम अषीयो धज नेज फरकी। रजवट वंका राठवड़ जुटा षळ जकी ।। म्लेछ तड़फड़ मारका गीधाण गहकी। पत्र भरे रत पूरिया वीरांणव भकी ॥ . जै जै जर्षे जोगणी आसीस अछकी। अपछर आय उतावळी हूरां वर तकी ।।
आसुर दळगा अोसके यण घावां छकी। सुणियां वायक पातसा सेना वेहुं संकी ।।
६.
दळ मेले गोरी दुझल, तीजै झगड़े तैड़ । मारां रावळ मालन, पोस लेवां गढ पेड़ ।।
३३ ।
सांहां वायक एम सुण, दे डाढी पर हत्थ । अला अला उचारकै, दळ मेले समरत्थ ॥
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वीरवांण रावल मालदेजीरो तीजो झगड़ो
नीसांणी
चढ दळ आया पेड़ पर हैदळ पुरसांणो । काली दांमण कुंजरां पाहाड़ प्रमांणी ॥ हींस हुवै ऐराकीयां पोह कीध पलांणी। चढीया धुसै वाजतां जंग भिडीयां जाणी ।। रावळ माला माहा बळी आगळ हिंदवांणी। सादुलो किम सांसवै सिरगाळ सहांणी ।। असमर ले कर ऊठीया जम रुठा जांणी । आप दरगह आवीया प्रायस फुरमांणी । वीडंगां चढीया वीरवर सुण रावल बांणी । मीर छड़ालां मारीया षग बाढ षीरांणी ।। केतां अरीयण काटीया धर सोण धपांणी । तेरे तुंगा भाजीया माले सलषांणी ।। दीन धौळे दळ दाटीया चाढे उर वाणी । मीर गजां घड़ मारीयां केता मुगलांणी ॥ माले मिणीयर देसमैं पंष चाढयो पांणी । मालन भागा मुगळां सांवत सलषांणी ॥
३५
. दूहा साह दोऊं मन संकीया, फोज विदा की फेर । भिळे नहीं गढ भीरडरो, माल तणो गिरमेर ।। राधै बाघ राडरा, भुज झेला भुरभार । चोथे जुध जुड़वा चमुं, लंगर लीधा लार ॥ राघो वागो वीरवर, इका वैहुं अवीह । जुध जुटा इण विध जबर, सांकल छूटा सीह ।।
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वीरवांण
राती वासो दैण रच, मन जुध चोथे माल । वीरम घड़सी वरजीया, माधैनै जगमाल ॥ वीरम घड़सी वीरवर, पाल माल परभात । अब यां अरीयां उपरा, रचसां जुध अधरात ॥
३६
रावळजी वीरमदेजी कंवरजी जगमालजी रावळजी घड़सीजी भाटी जवाई जेसलमेरीया नै सोलंषी माधोसिंघजी प्रधान वीरमदेजीरा झगड़ा लिषते ।
नीसांणी अजब ऊपर ऊरीयां घड़सी रिण घोड़ा। एकण घाव उतारीया जंगम वड जोड़ा । पाहड़पान पछाड़ियो विजड़ा दुजोड़ा ।. तेजलषां जुध . तीसरै चिमनो चोथोड़ा ।। पीरपान रिण पंचमै सारंग छटोड़ा। इकां षट ही पूटगा घर ढहगा घोड़ा ।. जद आयो जैतकर जस पाट भलोड़ा। माल वधांवां मोतीयां भर थाळ वडोड़ा। घड़सी बाई गरजके बागेषां ऊपर ।। गुरज धमोड़ी बागड़े घड़सीके धु पर ।। .. घोड़ा सहतो गुड़ गयो लुटीयो धरती पर । जांण कबूतर छुट गयो हातांबाजीगर ।।। १२ जितै पाग जगमालदे पछटी बागे पर। वगतर सहतो वोटकै निरलंग कियो नर ॥ . कीरमिर वाही करगसुं दुजै इका पर । जाण चमंकी वीजळी करकाळे डंबर ।। . १३ राधै फिर पग रोपीया इकै अड पाई। राधै ऊपर रूक रस वीरमदे वाई ।।
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वीरवाण · घिरते फिरते कूदतै ठठर तै ठाई । ठाई ठठर . ठोर भुज राधेषां वाई । बाई जीतरै वीरमै कर जोर कलाई । वीडंग तणा दोय टूक हुय राधा भागाई ।। रचियो भारथ माधडै समसेर चलाई। जाण मिरंगां डार पर चिंता मलफाई ॥ राघो बाघो कट पडै रिण मांझ सिपाई। वीरम घड़सी माधं. जगै वरदाई ॥ पतसाहारै सामनै समसैर चलाई । उरस छिबंतां प्रावीया भाटी अरु भाई । • माला वधाया मोतीयां कर कोड किताई ॥
राळा बोळे रातरा, पैले वषत पधार । इका घड़सी मारीया, बैयां प्रांगळ च्यार ।। भाटी आगळ भैचकै, नाठा जवन निराठ । घड़सीरै जुध जोरमै, जबरी वागी झाट । मैमंदसा नै मालरा, भिडीया बेहु भीच । घड़सी डोळी घालीयौ, बागो षाडा बीच ॥ चढीया डोळी च्यार सै, घड़सी साथे घाय ।
उतै जवन कट आठसै, षांपां दिया षपाय ।। ४३ रावळजी मालदेजीरै पातसार इकांरी लड़ाई थपी। भाटी घड़सीजीइका छव मारीयां । पछै राघो और बागो दो ही ईकां आपरी फोजसुं लड़ाई करी । भाटी घड़सीजी कंवरजी जगमाल जी रावळ जी वीरमदेजी सोलंषी । माधोसिंघजी प्रधान वीरमदेजीरा आं च्यारां ही राघे बाघेरी फोजसं लड़ाई करी और बाघो जगमालजी हाथसं मारीजीयो। इण रीत जुध हवो।
दहा राघो वागो रिण रैयो, संक्या साह मन सोय । .. धीरज दीनी उठ घर, दूजां ईका दोय ।।
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वीरवांण
वार
मंडीया नेड़ा मोरचा, तुरक लगावै ताप्न । मालै इमं कहियो मुषां, ए काइ दिये उठाय ।। जगै अरज कीधी जरां, अभंग मालनै आय। कुंपो है अस कवलीयो, अब दूं फोज उठाय ॥ मालै इम कहियो मुषां, सुघड़ बात दिल सौज । इण अस चढ तूं एकलो, फेरे किण विध फोज ।।
नीसांणी पालण कुंपो अथ वहै जाता जैसाणे । रिण मायां भूतां रची, तंवर तेजल आए ।।
आलणकुं तेजल कयो मासी सुत जाए । मैं रिणमैं अवगत गया धि भोजन पाएँ । पालण वेटी आपरी तू रिणमै आए । कंवर प्रणावो कुंपकुं जग सारो जाणे ।। धि चंवरी लागां धुंवों सुरलोक पयांए । कुंपैकुं आलणी कही अगल मुष पारणे ॥ कमधज परणी कूपसी आलण धि प्राणै । दीदो भूतां दायजो कवलो केकारण ।। फतेजीत वाजो दियो पांडो पुरसाणे । अकथ कुंपैरी इसी जग मालो जाण । वीरांरै वचनां तणो प्रायो अवसांग ॥
X
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अभंग नगारो पापीयो, अरि गंज पाग उचेट। . कुंपाने अस कवलीयो, भूतां कीदो भेट ॥ . . ४८ वीरां जद दीनो वचन, हतलेवो छुटवार । याद करो जद आपरै, हाजर वीस हजार ॥ ४६
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५३
वीरवाण कुंप कंवर विदा कियो, पांण जोड़ कर प्रीत । दोनों भूतां दायजो, कुळमें राषण रीत ॥ भीरड कोट दळ भेळ सी, हणसी हातां हुंत । आडा किण दिन आवसी, भीडज कवलीयो भूत ॥ कुंपादै अस कवलीयो, मुषसु कहियो माल । आलण वचनां याद कर, जुड़सी रिण जगमाल ॥. कूपे दीनो कंवलीयो, जद लीनो जगमाल । रातीवासो रातरा, देवण सज्यो दुझाल ।। अभंग नगारै बंब पड़, अरिगंज पाग उठाय । कवलै आगळ धूप कर, दीयो पागड़े पाय ॥ कमधज चढीयो कवलीये, वंध्यो रोस मन मांय । दळ फिरिया दरीयांव ज्यूं, अोळा दोळा आय ॥ मुजरो कर जगमालसुं, भाष्यो इण विध भूत । कहो जको कारज करां, राज तणां रजपूत ।। जगै हुकुम दे झोकी [या], किलमां पर कैकांण । बीस सहस लगि वहण, भूतांरी केवांण ॥ मीरांरा माथ उडै, मुष बक मारो मार। . मालावत जगमालरी, वहन लगी तरवार ॥ वरण साहां घड वीनणी, सझ आई सिंणगार । जिणनै परणी जण जगो, कसीयो राजकवार ।।
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जबर भूत लै जाणीया, दुलही फोज दुझाल । जुध हथलेवो जोड़ियो, मालावत जगमाल ।।
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वीरवाण
निसांणी .
भातीजो वीरम तणो मालारो बेटो। जुध चढीयो जगमाल दे कर टोप लपेटो ।। वगतर कुंठा वीडीया धुब पोरस धेटो । सिरपर वांध्यो सेहरो जस विरदा जेटो । चंवरी रिण कामण चमु फेरे दे फेटो। झुळलीयां संग जानीया हतलेवे पेटो । सावो अध रत साजीयो भारतमें भेटो । झांपां भरे कवलीयो रुकां बळ रेटो । जिण विध भेटे चालै जो समै भूतावळ भेटो ।। कुण जाएगै वावै कवण पावे नह पेटो ॥ पाडे दळ पतसाहरा षीमे कुण थेटो ॥
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बटका उडगा वगतरां झटकां कर झाडै । पतसाहां दळ पाधरै राठौड़ रमाडै ।। घोड़ा आगळं गैबका बाजा बजवाई । तेग बहै भूतां तणी राठौड़ अगाडै ।। मारै दळ मुगलांणका झाटां षग झांडै । धड़ लुटता दीस धरा मसतक भमाडै । पग पग नैजा पाडीया पग पग ढल पाई। अबकै ओ मोटो परव महमंद लीलाई ॥ गीदोली बांधी गळे जगमाल अनाडै । जको न देवै जीवतो कुण मार ले राई ।
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मैहमंद मांडळ पातसा गुजरात धरांरा । एलै फौजां अवीया लघु अठलारा ।। दीदो घेरो दोळीयां वीरम पुरारा। मैवै रावळ मालदे अोपण अवतारा ।।
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. वीरवाण परतक पोर पचीस मो चोवीस सिरारा । कया विगडै उसका कहो काम तकरारा । केस. वळे मुष केसरी कुण लेवणहारा । मिण लेवण वासष मुषां कर कोण पसारा ॥ गींदोली जगमाल घर नह देवणहारा । मैमंद गोरी घर गया कर कुच सवारा ॥ माल वधाया मोतीयां भर थाळ सोनारा ।।
दूहा तीन लाष जुध मत दिन, घोरा जवन चलाय । जुध जीत्यो जगमालदे, लीधो माल बधाय ।। पग पग नेजा पाड़ीया, पग पग पाड़ी ढाल । बीबी बुजै षांनने जोध किता जगमाल ॥
- गींदोलीरी लड़ाई में झगड़ा तीन तो रावळ मालदेजी आपरै लोकसं एकला किया । झगड़ो चोथो भाटी घड़सी रावळजी वीरमदेजी कंवर जगमालजी सोलंषी माधोसिंघजी । पांचमो झगड़ो कंवर जगमालसिंघजी एकलां भूतांरे जोरसे कीइंयां । पांचां झगड़ामें तीन लाष आदमी षेत पड़ीया । अठी राठोड़ारा आदमी लाष छा जांमासु आदमी हजार पचीस न पड़ीया । माहाराई चक्र जुध हुवो। जोईया राठोड़ा कनै आया जिंणसँ वरस पांच पैला ओ झगड़ो हुवो छो । हूं वादर ढाढी जोयारो ही । सो मै पूछनै सुणी जिसी हगीगतसँ वणावट करी। मारी उकत प्रमाण रावळजी जगमाल जी वा कंवरजी रिड़मलजीर कैणसुं जस वणाय नै सुणायो । ओ झगड़ो हुवां पछै वरस बीस ओ ग्रन्थ वणायो। जोया वरस पांच अठं राठोड़ां कनै रैया। जितै हु जोयां साथे हो सो वात सारीसुं वाकब हुवो और वीरमदेजी मधुरे आपसमें फूट पड़ी। झगड़ो हयनै मारी जिया। धीरदेजी गोगादे की तांई जिती बात सारीसं मार आंषीयां आगे हुई । मै जोइयांर नंगारै माथै हो। हेत बैर सारो निजराँ देष्यो। पछ धीरदेजी काम आया। जां पछै तेजमाल जोयै मनै कैयो के बादर सिरदार मारीजियां जिण तरै हुई थे देषी जिसी सारी हगीगत वरण करो। जरां जोइयां राठोड़ां कनै आया । धीरदेजी मारीजिया जिता दिनां मै जो जो वात
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वीरवाण वा झगड़ो हुवो जिसो वरणो। तिणरी हाजरी जोयांनै साही वाण मै तैजलरे -आगे दीनी। राठोड़ानै सेतरावै मंडोरकेतुमै चुडेजी देवराजजीने हाजरी दीनी । पछै चडैजी मंडोवर लीवी जिणरी हगीगत मनै कही। जिण रीत जस वणाय हाजरी दीवी। जा पछै नगर जाय जगमालजीने वा कंवर रिडमलजीने हाजरी दीनी। जद पैला झगड़ा हुवा जकांसुं हुं वाक्व हो । फेर कितीक हगीगत वाँ कही जिण मुजव पर्छ बणाय ग्रन्थरै आदमै वरण दीनी छ । हु तै झगड़े मधु वीरमजीरें वात हई जकण ठौड़ में के दीनो छ नला सला नीव. सो जाणे । अलामें निजरां देखी वा कांना सुणो जिण मुजव सची-सची वरणन करी छ । सो मारे ग्रन्थमें भूल चूक हुवे तो कवी लोक सुधार लेसी ।
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दूहा उकत समापो इसरी, माता सुण महमाय । गाऊं हुं लुणीयाणीयां, सांचो सुजस वणाय ।। दलो मधू देपाळ जसू, जैत देवति जमाल । सुत सांतू लुणरावरा, पतसाहां उर साल ।। जकां दिनों ए जोइया, लावे दस दिस लूट । षगधारां ऊपर षिमै, तारां जिम ही तूट ।। कोड च्यार रोकड़ कीमक, असरपीयारां ऊंट । सांप्रत मैमंदसाहरा, लायो मादव लूट ॥ दलो मधू देपाळ दे, सिंध गया स्रब जाण । . तुटी मैमंदसुं त दिन, छूटी धर साहि वाण ॥ मैमंदधरि सारो समन, जद यूं लिष्या जवाब। सिंधां लेसुं सात ही, द्र बरै बदलै दाब ।। सिंध धणी कद संकीया, मैमदरा सुण बोल। दो मोहरां पाछी दला, तिण दिन रहसी तोल ॥ जोइयां बदळे जावसी, सहर समेती संध। दलै समझायो दुझल, मानि न मदू मदंध ॥
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वीरवांण
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तुटि सिंधसुं ईण तरै, जोइयां गहियो जोर । सिंध तणी धर सोवनी, मधु उडाया मोर ॥
नीसांणी जद झडपी सिंध जोइयां सांतू चढ सारी। रयत सारी सिंधरी दरबार पुकारी ॥ जंग मचायो जोइयां सुणीयो जग सारी । जिण पर जीवणंषाननै तद कीध तयारी । मदु जीवण मारका भिडिया रिण भारी ।। सार भला भल साझीया भालां भळकाया । सिर तुटा फुटा सुघट रत पाल चलाया ।। मादु बाहादर मारकै षळ रिण केषाया। घट पड़ीया घट घायलां रिण जंग रचाया । जीवण मारै जैतका त्रमंक वजाया। लुटै सिंध जंग जीत कर इळ मीणीयर आया ।
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मैमंद नै जगमालरै, जबर बैर ो जांण ।
आया सरग जोइयां, सिंध छोडे साहिबाण ॥ मलीनाथ बंदु मुदै, वीरम करै सु बात । अंतहपुर वीरम त्रीया, मांगळीयाणी हात ॥
. नीसांणी . माल तलै घर बार मझ वीरम वरदाई । सारो वीरमरो सरब थित मंगळ थाई ॥ मिलिया वीरम जोया भेळप दरसाई । पाया . डोढी ऊपरै सामल साराई ।।
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वीरवांण मांगलियाणीसुं दलो भलहो धूम भाई । सात पोसाषां सातसो मोहरां गुंजराई ।। बेस किसुंमां सुवर्ण भूषा सिपवाई। आया सरणे आपरै प्रोडी उतराई ।। दलै कयो इण देसमै वैसां मै बाई । वीरमरा मै सांपरत सह कोय सिपाई ।। अरज करो थे आपसुं मो जाएँ भाई। रावलं सरणै राषसी . वको वरदाई ॥
दूहा मांगलीयाणी मोढ मन, पायो जोयो पीर । दलों, मदु, देपालदे, सांतुं वीर सधीर ॥
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राणीजीरी अरज मारो काको जैतमल, आप तणी की आस । मांनै तो जगमालरो, मुळ नहीं वैसास ॥ दस हजार जोया दुझल, घरची घररी षाय । प्राडा पासी आपरै, अवषी विरीयां मांय ॥ मांगलीयाणी महलरी, धीर म मानी वात । जरां ढवाया जोइया, सुष पायो सब साथ ॥ मुजरो रावल मालसुं, दीरम दियो कराय । माल कैयो इण मुलकमैं, बसो पान थे प्राय ॥ दलो. रहै दरवारमै, जोयो प्रारूं जाम । जंगा मझ भिडीयां जवन, काढे मोटा काम ।। तलवाडै थाणौ त,, पमंग रहै सो पांच । माल धणी घर मायन, आवण दिये न आंच
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वीरवाण
बंदडै बारा झूपड़ा, कर खेती विणपार । वीर[म]देरै हुकुमसुं, हालै - दसुं हजारः ।।
- नीसांणी .. .. .. ... सिंध दिली सुरतांणरी फोजां चढ़ आई। सांपो दलों जाइयों भड़ सातों. भाई ।। वीरम 'बोल्यो 'बीरंवर बंको वरदाई। दूं माथो नह दूं दलो वर घर सिर जाई । एण . जबानी ऊपरां · कमर कसवाई । बीडंगा चढीयां वीरवर समसेर समाई ।। केता दुसमण काट कर फोजाँ फिरवाई । मीर केइ रिण मारीया वीरम वरदाई । आइ न जोयां ऊपर तिल एक तवाई ।।
... दूहा . वीरम मालै वीरवर, अरिअण दिया उठाय । सरब फोज पतसाहरी, पाछी गी पिछताय ॥ वरस किताईक बीतिया, जोइया रहिया जाय । कीयो ठांण अस काळमी, बेटी भई बलाय ॥ जोइया अस लाया जकी, जिणरों नाम जवादः । प्रगटी उणरा पेटरी, साकुर नाम समाद ।। तिका हुई ब्रस तीनमै, बसुधा हुवा वषाण । मुंडा आगळ मालरै, किणीयक कीधी प्राण ॥ मुंडा आगळ मालरै, सो प्रांणी वरहासः। के पाबुरै कालमी के, सुरज रै सपतास ॥ मलीनाथ मांगी मुंषां, साकुर मोल समाध । जकां न दीधी जोइयां उणसुं वधी उपाधं ॥
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वीरवांण दस हजार रिपीया देऊ, बैंग देऊ दस पोल । आध देऊ सिणली अषी, मदु उरी दे मोल ।। दले घणोही दाषीयो, मदु परी दे मोल। मदु न जाणे मोट मन, राजवीयांरा तोल ।। जका बात जगमालरै, कीधी कीणीयक कांन । आग वलंती ऊपरां, दियो मुराड़ो दान ।। ए वीरमरा आवगा, जोया रहे जरूर । प्रांपांनै न गिणे अवे, मन छाया मगरूर ॥
सोरठो मारै लैसुं माल, साकुर पण लेसुं सरव । जोयां पर जगमाल, रचै चूक उण रातरो ॥
दहा मालणनै नितरी मोहर, दलो दिरातो दान । चूक तणी चरचा चली, आई मालण कांन । जद उण मालण जाणीयो, दले दियो बहु दान । सीलू उंणरो सीलणो, कथ आ घालूं कान ॥ डिगती डिगती डोकरी, पूगी दलै पास । दला चूक तो. पर दुझल, नास सके तो नास.॥ तलवाडै थाणो तठे, सोवै बंदव सात । वीरा थां पर बाजसी, रुक झड़ी अध रात ॥
नीसांणी कोट महेवा छंडीया सुध ले साही बांणा। दलै षान समाध चढ झांफी उपरांणा ।। जांण लंका गढ उपरां हनुमान कुदाणा । सूता बंधव सातकुं जो सैल जगाणां ।।
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वीरवांण
दूहा
दलै कबीला देसन, बहिर ज कीधा वेग । साथे बंदव सात ही, तिके उरसरी तेग ।। षेड मिलणनै आवीयो, वीरमसुं अधरात । चौड़े षोली चूकरी, वीरम आगळ बात ।। मदू न दीनी मोलमै, उणसुं बधी उपाध । वीरमनै दीधी बीडंग, सागे जका समाध ॥ वीरमरै उणहीज वषत, पमंग हुवा पलाण । दसैं साथ चढ़ीयो दुझल, जोवण धर साहिवाण ॥ कुसले षेमे काढीया, जोइयांने धण जांण । जोइया पर वीरम जबर, रोकीया अवसाण ॥ दलो पेड़ पूगो दुझल, हम न आवै हात । जद धिकीयो जगमालदे, भिडवा कज भारात ॥.
. नीसांणी . राष्या सरणे राव बड़ जग साष जपते । मांझी बैदळ मारका मन भार भारमते ॥ जगड़ षिजाया जोइयां जमराज विरतै । सांमा वीरम साळल्या असमान छिबंतै । वरदायी वीरम कमध जुडीया जुध जंगा। सझ दोऊ दळं सांफला कर तेगां नंगा ॥ वीरम मुडै न वीरवर जावै नह जंगा। एकणजोया वास तै हुय सेन विरंगा । माल विछोडै मांझीयां कीधा मन चंगा ॥ जद धिकीयो जगमाल मन रोस न मावै । वीरम काज विगाड़ियो, सो नांहि सुंहावै ।।
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वीरवाण यो अवषांणो याद कर किरणाळ कहावै । परत कहै कण पर दलो दोय तेग न मावै ।। एकण घर दोय राजवी वकवाद वढावै । इण घर रहणो आपरो थिर नाही थावै ॥ वीरम मालो बिछड़े भडं दोनु भाई। वीर भरत ज्यू राम विन बसीयो वन माई ॥ जुध कर लीनो जोइयां इहां अांच न आई। साज... मंडाया साकुरा वीरम वरदाई ॥ पणं लीनों जल पीणरो माला घर मांई। . नरं चढ़ीयों पाटण नवी की जैज न काई ।। .......... दूहा .. ... माळे कियो मनावणो, मांगलीयांणी तेंड । या धर वीरम आपरी षित वापोती पेड़ः ।। १०३ मालक यो सुष सातमों, पोह वीरम परताप । जोया पोहचावै ज दिनां आजे वेगा पाप.॥ .. १०४
..
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.. नीसाणी...... वीरम धीरप मालनै चढ पुर चलाया। .. साथ लिया. दळ सांवठा थळवटी आया । कमधज भूषा केहरी अंत . क्रोध अघाया। गहलोतां ऊपर गरज रचित रोस चढाया ।। पडिया पैगां पेड़सुं . अण चिंत्या पाया। . भड.. असायच भोमीयां सज सुर सवाया ॥ . पळ भष पाया पळचरां अछरां वर पाया ।... सूरा कट पड़ीयां समर गुण जोगण गाया ॥..
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वीरवाण. कूट असायच काढ़ीया षग बाड पीराया। कमंध बतीसुं गांवसै सेत्रावा. पोया । सेवै वीरम सधू बड थिर थानक थाया ॥
देवराज जैसिंघदे, विजै सहत वरवीर । सैत्रावै राषै सधर, कंवर तीर कंठीर ।।
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... . . . नीसांणी . . . जोइयां पोहचावण ज दिन उमंग मन आणी । देषण भागनेर दिस पोह कीध पलांणी ॥ कुंडल वीरमदे कमंध परणे भठीयाणी । नर गोगादे नेमीयो जग साष जपांणी ।।
रचे हगांमा राग रंग रिण तुर रूड़ाया। . दान हजारां दरब दै बध रीत सवाया । इम जोईयां घर अावीया भूपत मन भाया । उरड़ मोतीयां थाळ भर वीरम वधवाया। कर उछंब घर घर कितां गुण मंगळं गाया ॥
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. . . दूहा . पांनां फूलांमैं प्रकट, दलो पुगावै देस । आयो ‘वोरम आपरै, नाहर थाहर नेसं ॥
नीसांणी वीरम कुरंगां वळवै कैकांण कुदावै । • जका षटक जगमालरे मनमै नहीं मावै ॥ वीरम भारत वंकडो आगमणी न आवै । दलै रीज समाद दी संसार सरावै ॥
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.. वीरवांण वीरमसुं जुध बाजकै कुण कुसळ जावै । दळ बळसुं जगमालदे पोह बाज न पावै ॥ डेरा समीयांए दीया वीरम चेतावै । मेळ दिलीसु मेलीयो तुरकां तेडावै ।। चेतवीयोड़ो सिंह थळ हात न आवै । वीरम जिसड़ा वीरवर ठहके मठ गावै ॥ नगर धणी लिष नीतसुं पठ अपर पांन । माल कहै बैमारका मुझ वात न मान ।। जोथ केरै जगमालदे छळ घातां छाने । मेळ दिलीसुं मेलीयो तेड़े कां तुरकांनै ॥ वीरम तोसु वाजसी करसी धर कान । काढ कबीला छांन है चढ़ वीरम छान । जाय कबीला जांगळु घोड़ा घोडाने । रेवंत मांण करावरी कर लीधी कानें । जांण सीचांणे झड़फीया हद ठाळ हुलाने ॥ लीधा अस फिर लाडणु वीरम वीरथे ।
आय पोहता डांवरै सब मोयल सथे । वीरमको डंड पकड़ीयो भल तरगस भथे । चाढ चिमंठी चौट दै असवार उलथे ।। क्या निसांणी तीरदी मीरजादा कथे । जांण कबुतर छुट गया हुव लथो बथे ॥ . ऊंटां तीसां ऊपरै असरपीयां आवै । सो मेली , पतसाहके जोगणपुर जावै ।। पैसकसी. पतसहिरै पतसाह पुगावै । मिलीया वीरम मारगां अस लीधां आवै । सब मोहरां पतसाहरी लुटे लीवरावै । सांमल हुय सारा सुभट मीया. फरमावै ।।
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वीरवांण
ओ धन वीरम आपरै घरमै नह मावै । वीरम औ भष वाघरो पोह केम पड़ावै ॥ मंडोवरगा नारका मिल मुगलां मीयां । वासै चाढो बाहरां ढोलां पड़ ध्रीहां ॥ तीन सहंस चढ़ीया तरां अस लारै दीयां । जाण न पावै जीवंता असरपीयां लीयां ॥
मोकळ कला भारभल पुत्रे जिण जाया । वीरम वंका वीरवर उदै घर व्याया ।। इण कारण पड़ीया अठे जंगलपुर आया । सांमत सारा सांपला अत वेढ अघाया ॥
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दहा उदाउ सहर आवीया, कुतमदीन पतसाह । षत्रवट खेत बहारजे, रजवट हंदा राह ॥
नीसांणी उदलकुं पतसाहजी ए हुकम अषंदा । कमधज आद अनादसै खूनी मुझ हंदा ॥ लीया षजाना साहदा तुझ नाहि जरंदा । उदा गुनगार तु . पतसाहां हंदा ॥ साह तणां दल सामठा जंगलपुर आया । जुंजाउ पतसाहरा नीसाण वजाया ॥ सहर भिल्यो जद सतां मिल लूटी माया । वीरम षातर सांपला सिर कीध पराया ॥ वहादर उदै क्रोध कर रिणताल रचाया। लड पतसाहां सांपला भुजपाण दिषाया ।
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वीरवांण श्रा काढे अोठी कोटसु भीम जेहा भाई । सला दिराई सांपला जोइयां घर जाई ।। श्रीगे भीगे ढोलकी साहि वाण सुणाई । दस हजार चढीया दुझल मिल छव ही भाई ।। चढ घोडां भड़ चालीया रज गैण ढकाया । मिलीया भारत जांगळ अध रतरा पाया ।। मीर केइ रिण मारीया मदु मन चाया। काट कटकां काढ़ीया पळ पंग पपाया ।। हुर अपछर हरप अत सूरां वर पाया। ग्रीधण साकण जोगणी पळ पूरा पाया ।। वीरम छोडे जांगलु साहीयांण सिधाया । सज जुध जोया सांपला वीरम वचवाया ।। जद पीछा चढ पातसा धर अपणी धाया । दलजी कोसां दोय तक सामे ले पाया ।। सजे उमंग साहिवाणमै वीरम वधवाया । दीध बधाई राइकां जद गोगा जाया ।। एक महीनो पाठ दिन थठ गोठां थाया। वैरो लष रहवास कुंदलजी दरघाया ।। वारा गाम ज वगसीया चित वीरम चाया। डांण वले उचका दिया आधा अपणाया । धाडै धन धुर माझीया मांझी पैमाया । वीरमकु देवण वळे लष वेरै लाया ।।
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. दूहा लष वैरे पैदा सलष, सषरी आवै साष । साषांरा उपजै सदा, लेषे रिपीया लाष । पूजै हरीयल पीरकुं, जोइया भड सव साथ । वीरमरो देष बदन, जीवै जोया जात ॥
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वीरवांण जलम्या तीन जवादरै, जके जोड सपतास । पमंगा सिरै पडाहीयो, हीरा लोही हुबास । हैंसु चढे पड़ाहीये, मादु चढे .. जवाद । हीरा ले धीरो चढे, वीरम चढे समाध ।। पैलै ठाण' समाधरै, जलमी सींचाणीह । वीरम गोगेने दीवी,.. जग. सारै जाणीह ॥... ११२ मालावत जगमालरै, उरमैं पंठक अपार । जद केइ काढ्या आदमी, वीरम कनँ विचारं ॥
११३ ऐ आया वीरम कन, रचै सला दिन रात । जोयांसु जुध जुडणरी, वीरम आगळ बात ॥ ११४ सो पग वगां सूरमा, वीरमरा जुधवार । मुडवै नह पाछा मरद, जुडीयां रिण जोधार ॥ पीड लीधां सुरापणो, विध इण वनो उजीर । जामै छल धणीयां जिसा, आगे इसा उजीर । वीर चढे नित वीरमा, धर लेंवण चित धाव । घण मोडण जोयां घडा, वन रूठो वनराव ॥ ११७
नीसांणी . : . दीठी वीरम हेक दिन पीती सर पांणी ।.. वीरमरै सब सांढीयां निजरां गुजराणी ॥ वीरम चित विटाळिया ऊंधी मत, आणी । सात. हजारु सांढीयां दिन हेक दगांणी ।। आयर जिणरी. अोठीयां कल कुकरांणी ॥ .. दस हजार चढीया दुझळ रज गैण ढकाणी । मारे वीरम . मेटसां करसां तुरकांणी॥ .
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वीरवाण लष वैरै वीरम लियै सांढयां अांपांणी । दोय कोसां पूगो दलो लारै लुणीयांणी ।। मानों मानों मारकां सचो सलषाणी। मलिनाथ जगमालसुं तिण किसड़ी तांणी ।। आप तणी धर छोड़के आयो आपांणी । आपां मारण उठीया लष कोट लगांणी ॥ . ४१ लष वे रैसुं थट लीयां चढ़ कमंध चलाया । मोढलरै गढ पाषती एकण दिन आया ।। सरवर भरीया नीरसुं तरवर तट छाया । वीरम जेत विराजियां जाजम विछवाया । मोटल आवै मिलणकुं जहुवार कैवाया । जिसकी बाटां जोवता ओ भी चढ आया ।। केइ पकवान कढाविया वाकर बटकाया । हरिया मन राजी हुई गीतां गवराया ।। मोहले महले मंडली रंगराग रचाया । मुंगे अतर गुलाबका छिड़काव कराया ।। पोळां तोरण बंधीया सामेल सझाया । ऊपर मोती वार वार भल थाळ भराया ।। मोटल मिलीयां वीरमे आफु गळवाया। आफु हात उछाळके छळ चोट चलाया। मोटलकु भी मारीयो बेली बफनाया । धन लुटे लीधी धरा गढकुं अपणाया ॥ हरीया झाले हतसुं रथ पर चढ़वाया। हरीरा जेवर सुतन वीरम संभलाया ।। प्रोयत संग पठायके साहिवाण पुगाया । सो आया साहीवांणमै कूका कर लाया । मदु अषै मारको अत वेढ अघाया। जंगमां चढ़वा जोइयां वीर रस छाया ॥ .
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वीरवाण मोटलका धन मांगसां ले वैर सवाया। षाफर हिंदु काटकै करसां मन भाया । पोडां धर धूज पड़ाहीवै दलजी चढ़ आया । बातांसुं बिलमायकै ज्यानै जजमाया ॥ सीहै कहीया बचन सब नांही मन भाया। सुगन विचारो सुगनियां ए जाब कहाया । पांच दिहाड़ां पाळीयां मत बाहिर जाया ।। सुगन भला ले साथ सब भरजो पग भाया ।
दहा दले चिगायो देसन, इसड़ो बुध अांबेज । भायांनै भोळावतां, जिणरै कोसुं जेज ॥
[सोरठो] सरणायां साधार, दलै जिसो नह देषीयो। वीरमरा विनपार, जबर गुना जिण जारीया ।
नीसांणी दल भेज प्रधांनकुं ए जाब अपंदे । वीरम तुम गुना करो हम जाय षिमंदे ।। ढाबो ढाबो ठाकरां धर पाय धरंदे । मदु न मानै माहरी कल काहे करंदे ॥ हेकण जगा न मावही दोय सेर बकंदे । हेकण म्यान न मावही दोय षाग धकंदे ।। तुम हिंदु गुना करो मुष बोलो मंदे । दोय घर डाकण परहरै गाम धणीयां हंदे ॥
आष वीरम राठवड़ आगळ पलावै । डाकण किणनै परहरै जब भूषी थावै ।। गुण भूलो सारा दलो परधान मेलावै । आय प्रधांनसुं अषीयो वीरम वट पावै ॥
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वीरवांण
सूर उगै साइयांणमै नित ध्राह घलावै । जोयां हंदी जीवका षोसे ने पावै ।। दले अरु देपालकुं नित ध्राह सुणावै । वीरम न्याय नह लही अन्याव सुहावै ।। जोइया बडपण जाणनै कथ नीत कहावै । षोसै फेलं षाजरु सफरै । राषावै ।।
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जावे भागा जोइया, पाळे अगली प्रीत । धीर न वीरमदे धरै, निस दिन करै अनीत ।। दस हजार जोइया दुझल, लाष लोकरी लाठ । ज्यां जोयां ऊपर जबर, वीरम घाली बाट ।। दोनुं तरफारों दलो, दुष भुगतै निस दीह । झलीया रहै न जोइया, लोपी वीरम लीह ॥
निसांणी दिन उगै पसरा दियै उठ वीरम आया । उचका डांणी उथपै अपणा बैठाया । माणस पनर मारीया जोइयाणी जाया । झरती हतां जोइया कुकाऊ आया ।। सो सारा साहीयांणमै थट भैळा थाया । अधी उच आपां दई बधी अपणाया ।। आपां ऊभां आपणां माणस मरवाया । जमी गमावै जीवंता जाने किम जाया । ज्यांरी जननी जनमता षारा नह पाया । दस हजार चढ़ीयां दुझल रज गेण ढकाया । लष वैरे ऊपर लहर दरियाव हलाया ॥ . दोय कोसां पुगो दलो वातां विलमाया ।
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वीरवाण सो पाछा साहियाणमै अोठा ले आया । दाढे नित अवगुण दलो सलषांण सवाया। युं देपाले अषियो सुण दला लुणीयांणी ।। वास चोवीस वसावीया वक झूठी वाणी । तो मारे धर लेवसी वीरम सलषांणी ।। तडछै. जासी जोइयां आयो आपांणी।
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मुदै जवाइ मारीयो, लीधो सारो डांण । मसतक टोपी मेलन, सुंप परी साहीयांण ॥ दलो कहै देपालदे, मांझी बंस मरोड़ । भाया गुण भूलो मती, प्रो वीरम राठौड़ । दुसह वचन कहीया दलै, जोइयांनै जजमाय । तिण समीयै पुगल तणो, भाटी बूकण आय ॥
नीसांणी बुकणरै दोय बेटीयां गत एक नीहालै । नाम बडी कसमीरदे परणो देपालै ॥ रांनल कंवरी राजवण ग्रभ अछरां गाल । सो मांगी देवराज युं कर जोड़ हतालै ॥ रांनल मुझकुं राजवण भाभी परणालै । भावज गुण भूलां नहीं |म षोड़ विचालै ।। कहीयो जद कसमीर दे चढ़ क्रोध अचाले । हुँ परंणांसु हिंदवां तुरका हरटालै ॥ . सो कुण हिंदु हम सुणां जिसकुं परणालै । परणांसुं . सगपण करै वीरम विगतालै ॥ . जद पाछो कहीयो जसु आगम अषताले ।
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वीरवाण
मानै भाभी माहरो वायक सिर माले । बैठी रोसै बापन कर मुंडे कालै ॥
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झडपे बुकण लेवसी, दोलत दामो दाम । आसी वा भी आपने, तो सिर मुंड तमाम ॥ १२६ वीरमनै वर माळतां, मिटी अकल कसमीर । बुकणरो घर बूडसी, नदी बहते नीर ॥ १२७. गोडेमै जारै गया, धारा · जकै धणीह । वेहीज मारण उठीया, तेवर चूक तणीह ॥ १२८ सींहांनै सलषांणीयां, त्यांरी एक तरेह । .. श्रा दुअ पतीनो धरो, कुण विसवास करेह ॥ १२६ तिरिया हठ झाले तिको, मैलै नांहि परत । गम विन वाजै बेगमां; ज्यांरो नाम जगत ॥ १३० मेले जादम मोदसुं, बीरमनै नालेर ।
आप परणवा आवजो, विचै म करजो वेर । सार छतीसुं संकै, मसतक बांध्यो मोड़। वीरमदे चढीयो बिडंग, रचे चूक राठोड़ ॥ १३२
नीसांणी बुकणदे घर व्यावदां रंग राग रचांणा । चारण भाटां चोहटां गरटा दिवरांणा ॥ मन कुंता बहु मालरा लेषां लिवरांणा । बेहुं मुदाइ वादसी बे त्याग करांणा ॥ सोनारां घर सांपरत संचगर दिवरांणा । कंठीयां कड़ा मुंदड़ा घण घाट घडांणा ॥ ४८
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वीरवाण
कोड करै कसमीरदे भर मोतिन थाळा । वीरम संग बधावसां मेले वरमाळा ॥ जादुम चूक न जाणीयो विय्याह विचाळा । कपटरै कसमीरदे पयसु रच चाळा ।।
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सावैसुं इक दिन अवल अध रतरा आया। भाटी षागा भाजीया रिण चूक रचाया ।। व्याव न किधो वीरमै लालच मन लाया । बुकण वेटां बेलीयां षागा पलकाया ।। -
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चारण चारण कुकतां पारण जगांणा। 'बामण भुरी वासता सिर आप दिरांणा ॥ . भागा मुंडा भाठदां षुल दांत षिराणा । डोफा भागा डुमड़ा झाटक झेरांणा । कटिया हात कमीणदा दत नेग दिरांणां । गहणा गायणीयां तणां लुटे लिवराणां । केतां पावज कटी हाताँ हेरांणा। जावै गुणीयण जीव ले कर षांचा तांणा ॥ ठांवां पंथ विच एकठां मिल ठाक घतांणा । फिर कोइ इसड़ा ज्यागमै मत पाव दिरांणा ।। सलषांणी जिसड़ा सुपह वनड़ा वरवांणा । बुकणका घर षोदकै धन सोध लिरांणा ।।.. बूकण सहतां बेलीयां इक षाड़ दिरांणा। भटीयांणीदै भागका क्या चक्र फिरांणा ॥ कह भाटी कसमीरकुं क्या फाग षिलांणा ॥
.. . दूहा .. सत्रवां षागां साझीया, घणो उतारे घांणा । . व्याव न कीनों वीरमै, अण भग रच आराणा ।।
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वीरवाण
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आयो पुगलसुं अठ, बादै षडीयां ऊंट । . कसीद कैयो कसमीरदे, लेगा धन सब लूट ॥
निसांणी देपालक ने कसमीरदे बड़ एक तरोई। . वीरम साहंस तोलीया सलषांणी सोई॥ छूट पड़ी किरवांणीयां विमांह न होई । अवलज सुजो आषीयो सो सची होई ।। बुकणका घर बोटिया साला सातुई। बोतल हातल बटीयां विमाह न होई ।। आ सुण जोइया आवीया दलेषां आग । देपाळो मुष दाषबे लाणत लष लागै ।। मुझ गनायत मारीया जुध छटी जागै । वीरमसु जुध वाजसां अवगुण लष लागै ।। ऐ बल धारे उठीया षळ मारण पागै । आज वालां धर आपणी सलषांणी भागै ।। लष वेरै पैदा सलष वीरम सुष बोळे । हैंवर दोय हजारीयां सोहडां थट दोळे ।। सहंस दसुं ही सांडीया टोळायत टोलै । लाष पचासां लूटीया रोकड़ धन रोळे । मोटल सिरषा मारीया गढकी धग बोलै । जोइयांसु जुध जुटबा चित चेत न चौळे ।। मावै नह छाती मधु इणसुं रह प्रोलै । झलीया रहै न जोइया तैगां बळ तोले ।। दोउ दिसरा दुष दलो भुगतै मन भोळे । दिल फाटा दोउ ए दिसा घातां मन घोळ ।। दिन . उगै भायां दलो परचाय पंचोळे ।
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वीरवांण
अायो बीरम आपणो षित छोड़र षोले । लज सांकळ तोड़े लिया मदपुर मचोळे ।।
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दहा
कठा लगा कथ कुड़, दाढ़ भड़ भायां दलो। धमतां धमतां धूड़, सोनो ही होवै सदा ॥ १३५
नीसांणी दलैषान विचार कर परधान पठाया। लष वरै वीरम कनै ए जाब कैवाया ।। जगड़ तणी षग झाट सैभंग वीरम आया । आयाकुं आदर दिया हम लीध बघाया । लष वेरो रहवासकं दळजी दरवाया। धरती चोबी गांमड़ा सब राज समाया । उस मांसुं वीरम तनै आधा बगसाया । डांण वलै . उचका दिया आदा अपणाया । चोबी गाम चबुतरा किह काज बैठाया । षोसे इकसठ षाजरु सफरै . राषाया ।। जोइया पग मांडे जिती धरनीही रहाया । हाती रहै न जुटिया केहर उकराया । मीलीयां चिडीयां महलै अहि जाणक आया । जांणक डोकर षोलडै विच बाघ वसाया । . क्या तेरा अवगुण किया हम लीध नीभाया । पायरहिं दुगुण कियां सब जाय भुलाया ।। हमहो भाइ सात हैं भुज आ भठ भाई । मधु सीरीषा मारका थोड़ा जग मांहि ।। साकुर भड़भी सांतरा दस ‘सहंसा सोई। तो. भी वीरमतै वडे इसड़ी हम मांई ।।
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वीरवांणं .
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सब वेठां सीहांणमै जोइये कुल जाया । . सठ लेवण सीहांणकुं हैरा लगवाया ।। जावो जावो कह जोइयां एथी मत आया । पटकी जोयां पागड़ी सिर टोपी छाया ।। जोरु छोरु छोड़ कर वनवास वसाया। देषे सब निजरां दलो समझै मन माया ॥ दिन कितरा टाळे दलो अंत विरम आया । मेतो मारा आज लग स वचन निभाया । कांमेती कह कर इसी आतुर उठ पाया। मांगलीयांणी मोट मन भीतर बुलवाया । भोजायां भाया कंनै मुजरा मैलाया। दलै अरु देपाळकुं ऐ जाब कैवाया ।। पालो रुष न काटवै जो छांह. अछांह्या । मोरो पीहर थां घरे थे सांतु भाया । मे घर छाडे मांहरा घर थारै आया ।।
१३६
दूहा कथन दलाहु ता कया, पाछे आय प्रधान । बाइ समझायो बोहत, कमंद न दीनो कान ।।
नीसाणी . · मांगलीयांणी सांषली परचावै पीवै ।
जोइया तो जळ वारता तो दीठां जीवै ।। धर आधी दी धरपती क्युं कांकल कीवै । हक राठोहड हलणा थट चंगा थीवै ।। सुष छोड़े दुप सापरत अपजस किंम लीवै ।। वीरम चढ़ीया वीरवर कीधा घमसांणा। तुरंगां. वोम धड़क धर मेले डमरांणा ॥
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वीरवाण
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देष दरगह पीरदी आया सलषांणा । वीरम न्याव नह लही अनीयाव सुहाणा ॥ इम मुंजावर बोलीया चढीया मत आणा। पतसाही पाळा चले क्या रावल रांणा ।। है वे हिंदु समझ मन फरहास पीरांणा ।। • दरषत हरीयल पीरदां विच दरगह सोवै । जोइया देस वीदेसमै जिण सांमो जोवै ।। पीर प्रचाइळ प्रगट दुष दालद पौवै । राम रहिम जु एक हैं कबु दोय न होवै ॥ . वीर फरासा वाढ़ बाढ़ वषाती ढोवै । के मुलां तागा करै हुब हाका होवै ।। बाढ फरांसां वीरमै घड़ ढोल मंडाया। गुणपंत ढोली गेरका चढ कोट बजाया । वारै कोसां बैंब देवो ढोल सुणाया। सो सुणीया सीहांणमै डर इचरज प्रायां ॥ ऐसा जोगी उमदा एथी कुण लाया । सिंध दिली सुलतान दळ वीरम पर पाया ।। दसुं सहंसां हुता दलो चित सेस चढ़ाया । जांवा वीरम. जीवतां तो जांणे आया ।। इम दलो गल. उचरै भल सजो भाया । वगतर कुंठा वीड़तां मुंजावर आया ।
दरगासु मुंजावरां, कयो दलानै आय । वो फरहास ज पीररो, वीरम लीयो वडाय । फरहासांरा फाचरा, सबदा घुरै स तोल । . वैरै लष वजाड़ीया ध्रीगैः ध्रीगै ढोल ॥
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४०
वीरवांण
नीसांणी
साकुर अर पांडवन पुररा करवाया। वाप बाप विरदाव दे मुष वाग' चढ़ाया ।। मदु सेर जवाद पर पाषर पटकाया। सापत कर सव सोवनी अब वाहिर लाया ।। वगतर कुंठा बीडीया सिर टोप सुहाया। सार छतीसुं साझ सव इंम मदु प्राया ।। पांडव लाय जवाद पर असवारं कराया। जैतलसु देपालदे सझ सुभट सुहाया । मिलीया अव सारा मरद अंस पीठां आया । ।
चढीया सामत सुरमा मुछां वल घलै ।। तरगस भीडै तेजमै हाथां पग झलै । धनमै घेरा धांडमै कर · षवरां किलै ।। चढतां हैसु धीरनै घर राष्या दलै ॥
दहा जेज न कीधी जोइयां, घेरी जायर गाय । सुण बीरम ग्वालां सवद, लागी उरमै लाय ।। दस हजार जोया दुझल, कठठ साररा कोट । ढाळां जंगा चालणा, ठाला करै न ठोट ।
. १४५
१४६
नीसांणी आप गवालां पापीयो गायां घेरांणी.। अण भंग कोपे ऊठीयो पप चाढण पांणी ॥ ढोल वधाई वाजीया . वीरां रसवांणी । पाया सज भड एकठा नह जेज करांणी.।।
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वीरवांण मांगलीयांणी सांपली धण उभी पलै। रहजा नार वरजीयो सुण मेरी गलै ॥ आज पड पण आपरै धन लीधो दलै । जो फरहासन बाडतो कलकी थुहलै ॥ . फीर वीरमकुं आषीयो कही मांगलीयाणी । जे तुं ठाकर. सलषीयांण ए भी लुणीयांणी ।। दलो अवगुण दाटवै गुण आदु जांणी। दुष पायो. धायो दलो तद इतरी तांणी । कहीयो कमधज रीस कर रहजा अब रांणी । पण नेम जब दीयो पीवण मुष पांणी ॥ रावत सारा रीसमै जम रूठा जांणी । धन नह जासी घाडमै ऊभां सलषांणी ॥ उस वीरम उठ कर होकार दराई। साज मंडाया . साकुरां कमरां बंदवाई ।। कमधज ससतर भीड कर समसेर संभाई । सांणीकुं कहीयो सरस है बरस झवाई ॥
आ फुले उमंदा अंगा अडपाई। बोह तब थीटे बेलीयां मनवार कराई ।। विध विध कर मन वेठीयो षिम षुन किताई । भारतमै रहजो भला कथ रषां काई ।। मांगलीयाणी पालबा इतरै फिर आई। गुना. अनेकां जारीया दलै सिपवाई ।। एक गुनो दिन आजरो बगसो वरदाई । . मुझ तणी कंथ. मानकै ठहरो ठुकराई। ए सब गायां आपरी बिगड़े नह काई । दलो · सवारे देवसी लष वेरै लाई ।। हु पणं कागदं मोकलुं है महारो भाई ।।
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वीरवांण लष वेरोरो वाणीयो, उरे पण मिलियो आय । वागा ढोलांरी विगत, सारी कही सुणायः ॥ . १३६ मदु सुण पग मांडीया, हणीया छाती हात । जद सजीया भड जोया, संहंस दसुं इक साथ ।। सझतां भड़ मदु कयो, करै मुंजावर कूक । पीणी देष र पीवता, जको कटायो रूष ॥
दे टोपी हाते दला, बणां फकीरी वेस । .. मांगे पासां मुलकमें, नहँ प्रासां इण देस ।।
__नीसांणी . पीरां करवा पट कीया, आय आगळ दल । जीण करै मदु जवन मुंछां बळ घलै ॥ हीरा लै षंध थाळे अस आय अललै । कर पुररो लगांम दे जर पाषर घलै ।। आ जोका जोया इसा धरती उथलै । दलो हकालै दाटवै भड़ ओगण भूलै । वीरमसुं जुध बाजबा चित चेत न चलै ।। मालै अरु जगमाल मिल क्या गोठ रचाई। जांरो सरणो ताकीयो धणिया पधराई ॥ वे हीज मारण ऊठीया सोहीज़ सीहाई। मांगळीयांणी मोटको गुण कीनो बाई ॥ अपां कुसळे काढीया वीरम वरदाई । सिंध दिली दोऊ फोज सज प्रांपा पर आई ।। वीरम बदलै अापणे समसेर चलाई। प्रांपा. धरती आपणी पाछी जद पाई ॥ मदु वै दिन मारकां भूलो मत भाई ।।
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वीरवाण
कुछ वीरमकुं नह कैया उचभी अपणाई। बारै गांव ज बगसीया भेले हुय भाई ।। सात हजारां सांढीया दिन हेकण दगाई। मोटल सिरषा मारीया जीण सकड जवाई ।। पाधा पोसे षाजरु संक लोप सवाई।
आपां ऊभां आपणी घर लाज गमाई ।।। मधु अषै मारको संच.... ........... ||
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गुना अनेकां जारीया दलै लुणीयाणी । कर दरसण फरहासको पीता में पाणी ।। सो फरहास कटावीया अस मान गिरांणी। षाफर माल कुरांणकुं लष वेर लगांणी ।। दुझल मदु देपालदे भाषै आ वांणी । आज परा जो आलसां जोइया मन जांणी ।। अपणां बांधर अापणीके देदां पाणी । जावे घरसु जोइया के खुटै सलषांणी ।।
आज बराछ करी समै अणचित्या जासां । जाण हली घण कंठली वरसाल मचासां ।। हरषत मन सुरा हुवा बधते गांवासां । जुडसां वीरम सांजरां बटका उडवासां ॥
... . दूहा कहीया भड भायां दलै, बडपण कथन विचार । वीरमसुं जासो विडण, है जीतां ही हार ।।
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. बाई की मन जांणसी, भाई पाया भाय । .: . लष बेरै जाजो मती, घेरो जायर गाय ॥
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वीरवांण मांगलीयांणी माहरी गायां भिड़कावै । लपवैरैरी सीवमै कुसलै फिर जावै ।। जोइया मनमै जाणसी वीरम संक पावै । हु आलस बैठसुं हमै थित इतरा थावै ।। फणधर छांडै फणदसुं न भार संभावै । अरक पिछम दिस उगवै विधि वेद विलावै ।। विग घटै वीहंगेसको सिव ध्यान भुलावै । गोरष भूलै ग्यांनकुं जत लिछमण जावै ।। सत छाडै सीता सती हणमंत घवरावै । धणीयां धाडेता तणीकी पबरां पावै ।। हुँ सुंक कर बेठु घरे जग उलटो जावै ।। ऐ राठोहड़ आजरा उठीया अवतारी । हड हड नारद हसीयो भैरव ब्रद भारी ।। मांगलीयाणी स्यामनै पालै घण प्यारी। घुड बलोइण ढोलरै लष धो बालारी ॥ उंधी किण दीधी अकल विणतै इधकारी। वाढण वात फरहासकी मुप केण उचारी ।। मेटण राज समाहरी देवण दुष भारी । रांणी पाणी रालीयो आंषां अणपारी ।। वरजे चढतां वीरमो ग्रहचाल पलारी। रह रह ठाकुर समझ मन सुणीये गल मारी ।। जो फरहास न वाढाता टल जाती सारी। सांणी करी समांधकुं तद वैग तयारी ।। पाव रकेबां पर ठकै कीधी असवारी ।। दोय सहंस चढीया दुझल पमंगां पपराळा । . वीरम समांध कुदाडवै. झल साबल झाळा ।। आज न छोडां एक ही विच पेत वडाळा ।
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वोरवांण
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त्राये त्राये आवीया मोयल मतवाळा ।। मांगलीयां अरु सांपला सज साथे साळा ।। माणक हरीयो दोलीयो बड थाट बरवांणी। त्रीहूं हजूरी तेण दिन आया अगवांणी ॥ लेवण झांक लंगुर ज्यु मुसकण केकाणी । ठहरो ठहरो ठाकरां प्रायो सलषांणी ॥ मधु ऊपर · वीरमै झोकी केवांणी ॥ दस सहंसुं चढीया दुझल धारे मन धंकी । दल षागां दाठ दे पुरे भष पंषी । अछरां .आय उतावली हु ऐवर तकी । जोगण चोसठ घेतमै बोले बकबकी ।। सामंत तेग संभायके इम भारथ मंडे । वीत न छोडां वीरमा पड पाधर पीडे ।। सीह सपेखै कुंजरां बन घेर वीहंडे । मदु झोकी कालमी कर पोरस जडे ।। देव विनायक क्या करै ऊलळीये गडै ।। वर बासुरां सांवतां अपछर उतरांणी। गीधण आमष गीलणकुं पांषां बजवाणी ।। षेचर भूचर पलकीया केइ कोड करांणी । जुध सुण चौसठ जोगणी उछव मन आणी ।। जोइयो षडै ‘जवादकुं पष चाढण पांणी । झांफी सेर जवादकुं अंग प्रातस प्रांणी ।। सितर भालै साजीयां मदु लुणीयांणी ।। बाढ गणा सिर बैरिया रिण गाढा रहणां । साकुर एण 'जवादकुं केता रंग कणा ।। 'मुछा रंग थारां मदु रज वठदा गहणा ।
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वीरवांण
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वोहत तब कार है बेलीयां रिण गाढा रहणा ॥ जाता उण मारग वुहा आता उण बैहणा ।। वीरम बाग संभायक तोषार झपटी । छुप मियानां नीसरी पुरसांण चोहटी ।। पैसट जोइया पाडीया जंग वीरम जुटी। वीरम मदु वाजीया पल फँगां पुटी ।। वीरम मदु बाजीया रिण मांझ समथै । आगल रहसी प्रांपणी इल भारत इथै ।। घाग झाड फड पेलिया रिण फाग रमंथै । लल भष साबल लेवतां हुय लथो बथै ।। साजै हात कटारीयां नर वाहै षथै ।। वीरम मदु बकबकै घण घावां घाया। अस षड जोयां ऊपर डाचक डकराया ।। जद मिल सारा जोइया मदुपै आया। अस. वीरमकी उचकै घण दल घबराया । घट कुसलै जावा घरै लष धाड़ो लाया ॥
दहा . इत जवाद समाद उत, दापै दोउ दल देष । वीरम मदु थां बिना, अस भड बचै न एक ॥ -
नीसांणी , बलवंत मदु बोलीया 'विध चुक बताया। ढम ढम बाजी ढोलकी षोगीर बजाया । ताली तास कतोवरा सफरा षडकाया। धिरी धिरी धीरपै भाष मुष भाया । जोवै चोसठ जोगणी अछुरां रथ आया । वापा बापा बोल दे वीरम विरदाया ।।
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वीरवांण सुसती करण समाधकुं बाजा बजवाया। ऊँची. ऊँची ऊछले तंग पार्ष - आया । • नाचण लागी नाच पर रंभ नाच रचाया। ताजण मटकी तोप सालषतांन लगाया ॥ वीरम बदली बीडंग लष जद चावक बाया। भांण तमासो भालबा रथ ढाब रषाया ।। धीब प. तरवारीयां , के भागै काया । भाला भलकै सीस पर सिर ग्रीधां छाया । वीरम हांक वीडंककुं पलट नह पाया ।। जद वीरम मन जाणीयां अब मरणा आया । जद वीरमरै जोइया चहुं फेर फिराया । अला अला उचारकै चढ पैंगा चला। 'जुडिया तेंगा जोइया हुय वीरां हला ॥ . .
वीरम मलां वीटीया बाजी गलबला । .: भड बीरम मदुः भिड़े जाए ज़म टीला ॥
वीरमदे जोयां विचे भासै रिण भला। सिंह अचानक सांकडै घड़ कुंजर घला । केहर जाणक कोप कर उठीया गीर टीला । मधु वीरमकुं कहा सुण सांची सला ॥ पला विछाता पालता दिन कढ़ता दला। सो दला अलगा रहा करता रिवमला ।। मिलीया दलमै दानमै मांझी : कर----सला। सामा वीरम सारका बण बैठा · बला ।। कहां कवीला कुटम घर कहां भाई भला । बादुर ढाढी बोलीया नीसांणी गला ।। नला. “सला नीवगै सो . जाणौं अला ॥
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वीरवांण . मदु अषै वीरमा धीरज नह धारी। लाष गुना मै जारीया जोय जरणा मारी ।। वात कही मुष वीरमै सुण मदु मारी। थे नह गुना जारीया जरणा दलारी ।। दला विनां तुं जारतो थिर जरणा थारी। मदु आषै वीरमा क्या मरजी थारी ॥ वीरम कहीया बादमै पाषर उपगारी । वांण बंदूक कवांणकी तद चोट पलारी ।। भड सारा मांसु भिडो तोले तरवारी । . जद मदु हुं जांणसुं थिर जरणा थारी || कहीयो मदु कटककुं सुंणजो भड सारी । वीरमसु जुध जुटजो तो ले तरवारी ।। वाँण बंदुक कवांणकुं दुरी कर डारी ।।
- दहा .
.. दाषे मुष देपालदे, सांभल मदु सोय । वीरमसुं जुध वाजबा, कदम न धरसी कोय ॥ इतरी बातां आगमैं, मानव कुण जग मांय । वकारै कुण वीरमो, सांमी पाग संभाय ।
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नीसांणी लोप भवर गिर लंकरो कुण जावै बारै । अाभ भुजां कुण अोढमै कुण सायर जारै ।। मिणधर दे मुष अंगुली मिण कवण लिवारै। सिंह पटा झर सांप हो कुंण मैंड पधारै ।। "तेरु कुण सायर तिरै जमकुं कुण मारै । "बाद करै रिण वीरमो नर कोण वकारै ।।
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४.७.
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- वीरवांण मदु तो बिन मारको . कुंण प्रासंग धारै । ऐ राठोहड अाजरा पोरस विन पारै ।। दसा हजारां दोठसी हय दोय हजारै । मत धडको दायु मदु है साहिब सारै ।। राठोड़ां रिण रीठसा दे धीठ अकारें । जल चाढां कुल जोइयाँ कथ रषां लारै ।। वाथ घलां असमांणसुं लज हात अलारै ।। सजै दोऊ दल सांमटा विच घूमर वगी। राठोडां अरु जोइयां असमाण सिलगी। वाहे पग देपालंदे फिर पीछी दगी। जांणक नाचत अपछरा घुमावण लगी। जैतल वाही जोर कर विच मुठां लगी। पोड चहुं जब कपडा पग होय अपगी । पपर रांणी चीर जिम घोसांटण लगी। उतरीया वीरम · कमंध समाध कटाई । भाई भाई भाषीयो पुर ढोल बधाई ।। ढाल लियां हन वाहमै समसेर संभाई । .. पैंसठ अस चढ पाडीया वीरम वरदाई ।। वीरम पाला पेत विच ऊभा अड़ पाई ।। राठोडां अरु जोइयां भेरां घमकारा । बाजी हांक बहादरां हुय वर होकारा ।। भल भल वांड भलकीया पुरसाण दुधारा । झवरक सेला आग झड उर फुट अफारा ।। पडीया असफड पाषती धड न्यारा न्यारा। जाणक आप चोगानमे ढ़लीया विणजारा ।। पालै पनरै पाडीया सज वीरम सारा। उण पुल मोयल रिण भिडा पग झलै पारा ।।.
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वीरवांण ,
मांगलीया अरु सांषंला भिडिया जुध भारा। सोलंषी. चायल · सरब: बॉन तब रारा ।। नायक विदर नगारची कर समर करारा । वीरमरा जुध बीचमै तुटा जिम तारा ॥ बीरम बाही बीजळा मदु अर मथै । सामी मदु साजदी षग झाटक षथै ॥ फेर ठंठारा फाचरा घण जाण घडथै । जांण रमै रिणु गेरीया डंडे हड हथै ।। मदु वीरम माचीया सझ, आंमा सांमा । हाथी जाणक हुचकै मदुपुर अमांमा ।। साकल छुटासा परत नर नाहर नामा । मदु वीरम मारका हदपुरै हामा । परपावस मेरसा उण · वेर अमांमा। रीमा षंड वीहंड कर किदा हद कामा । मोटा दुसमण मारीया नर मदु नामा ॥ मदु ऊपर माधडै वल मुछा वाळी । एकण घाव उतारीया त्रजडां वह ताळी ॥ मदु पोढे मारको रिण पेत विचाळी । जेतल जसु मोठीया भंड कुलवट भाळी ।। अण भंग लूण उजालीयो चाल कल चाळी । परधांमैरी पागनै इण · विध उजवाळी ।। वीरम अंग विहंडीया 'मुंछा बल घलै । देष इतै देपाल दिस कर" क्रोध अचलें । भीलैपर्ने कु भाषीयो झट तरंगस झलै । पाव हात सब कट पडे किंधा वर्ष ललै ।। धानष सामा पाव सरदांता झलै ।
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वीरवांण
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छुटा तीर अचितका धड़ फुटा ढलै ।। चुका वैग पिलांणते उलटा कर चलै ॥ धनंष चढाया पुनीय पुरसांण चौहटी। तन फोडे तरगस गया ज्यूं बीज झपटी ॥ ढह पड़ीयो देपालदे धरलणी चोटी। परगट कीधी पनीये रजपूतां रोटी ।। राठोडां अरु जोइयां कलमा चकरारी । वीरम मदु पोढीया सझ पाग दुधारी ।। च्यार सहस पड सुरमा भुज चिरदां भारी । साषां सारी सोह चढ साषो धर सारी ॥
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दहा अंग वीरमरै अोपीया, घाव एक सो दोय । अंग मदुरै उपरा, गिणती चढे न कोय ।। १४६
नीसांणी जोइया दोड़ा देसरा जुटा सो वारे । ऐ मालक नवकोटदा 'लाषां दळ लारै ।। वीरमसुं जुध वाजन मानव कुण मारै । वीरम दाहक आयगा सो साहिब सारै ।। ६७
दहा विड रहीया रिण षेत बिच, सहंस दोय समराथ। . रहे उजागर चूंड रज, नव कोटी............॥ १४७
नीसांणी . पडीया वीरम पाषती संगः इतरा सुरा। सोलंषी माधो सुभंट पडषेत . सनुरां ।।
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वीरवाण पड़ीयो चायल सैंसमल षळ कर भष भूरा। भीम पडै रिण सांषलो तन कर चक चूरा ।।
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दोळो पड़ मोयल दुझळ पत्रवट वट पाटे ।' हजूरी वनी पड़े दोयग दळ दाटे । पडीयो आहेड़ी पनो झड़ीयो षग झाटे । सांगी पड़ पाएक सुभट कीर मर तन काटे । मांगलीयो मंगलौ प. जग सारौ जाए। सहंस दोय पड सूरमा पाषर हय पाणै ॥ वीरम संग वीठीया विहद तद ऊंची ताण । अछरां वर पोहता इता श्रग बैठ विमांग ॥
दूहा सोडा हाड़ा सिसोदा, पड़झाळा अरु गोड़ ।.. चावड़ा तुर चवाए पड़, रिण पड़ीया राठोड़
नीसांणी . जसु रिएमें जूझीयो कर जोस हमला। मदु जैत रिण रहे झड तेगा झला ॥ घट फूटा देपालदा घुड़ले : वर घला । दोय सहंस जोया दुझल हुरां संग हला ।।
चढ़ीया डोली च्यारसै गिरणे गलबला। • सब आया साही बांणमै कर अली अला ॥
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दलो कहै मै वरजीया मानी नह काई । वीरमसुं जुध वाजनै सव सेन कटाई ॥ मारे वीरम रिण . मुवा भड़. च्यारू भाई । धूड़ वलोइण धाड़नै जो कीधी सो पाई।
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वीरवांण . दलै बिगड़ी देखने की जेज न काई । तेजल संग दे मेलीया चुंडो अरु बाई । दोय दीहाड़ा पंथ बुही थळवटी आई । काका लाउ घर पालर तेजल पोहचाई ॥ टाबर चारै टोगड़ा जां साथे जावै । वाला बांदै बाछड़ा तक घोड़ा लावे ।। बाळक तोही न बीसरै घर रीत जणावै । वारट आलो बाछड़ा जोवण कज जावै ॥
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सूतो चूंडो नींद सुष, सिर अहि कीधो छत्र । जद आले मन जाणीयौ, है कोई छत्रपत ॥ अही फण कीधो उपरा, भुपत तप भारीह । पाल मन जद जाणीयो, प्रो कोई अवतारीह ।।
निसांणी आलो चूंडो अोळषै, मन हरष न मावै । चढ़ीया पालो चूंडरज, मिलवा कज जावै ॥ मालासुं चूंडो मिलै केई कोड करावै । मुरधर चूंडो महपती मालो फरमावै ।। तोर बंधसी ताहरो चंडी वर पावै । अस तो चंडो आपसी मन चिन्ता मिटावै । ... .... दहा .. उगमसी नै आषीयो, मुषां ज लावण माल । चूडानै संग ले चढो, ढाबो थे हुय ढाल ।। वीरमदेरा वेठरी, : घड़े जंगों मन घात । नाहर भेलाः रै नहीं, बसुधा जाहर बात ॥
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वीरवांण
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नीसांणी वर ले चूंडो माल से उगम संग आवै.। मिणधर सूताँ नींदमै चामंड फरमावै ।। वाड़ो करवट जेवड़ा घर घोड़ा आवै । उगमसी इंदोत. पोती परणावै । मंडोवरमैं दी कर महर माता फरमावै ॥ सूतां उठ चूंडेसधर वाड़ा छपवाया। उण दिन सगपण वासतै उगम फरमाया ।। चांमंडरै बरसुं करै अस अोझक आया । अस रंग बदल्यो ईसरी दूजा दरसाया । तद चूंडे चामंडका परचा सच पाया। चंडी वर हुय चुंडकुं सामांन सजाया । उगम घास मंगावणा मुगलां फरमाया। सज भड उगम पांचवें संग चुंडा लाया । छळ कींधा बळ दापीया धर कारण धाया। हर वळ इदा रांण हुय गाड़ा गरणाया ॥ . ऐम तळेठी आवीया चूंडे मन भाया ।। ऊमां सोवायत अटा निजरां गुजराया ॥ सो गाडा उगम सर वगड़ भितर लाया। चामंड चामंड मुप चवे जैकार जपाया । उसरा थांणा उथपे थिर थानक थाया। मुगला दोय हजारकुं घोर घलवाया । राज मंडोवर चूंडकु चामंड वगसाया ॥
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दूहा
प्रासुर काटे अंबका, कियो कम सिध काज । चांमंड दीधो चूंडन, रिघु मंडोवर राज ॥
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वीरवांण
५
३
नीसांणी उगम चूंडे आगला रजवाट बणाई । मुरधर लीधी महैपती धर फेर दबाई ।। कीलमां थांणा काटीया पाछी धर पाई। राणे पोती रावनै पेषे परणाई ।। दीध मंडोवर दायजे मिल सारां भाई । हरषस मन राजी हुये ऊगम फरमाई ॥ दुगर चौरासी गांव दे थिर राजस थाई। राव कहै सुण रांणनै कर चित न काई ।। साषी सूरज चंद है आपां बिच आई। रांण न बदलै राठवड जुग च्यारां ताई ॥
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इदांजी म करजो अवर, पाधर. मुगल पछाड़ । दीवी मंडोवर दायजे, चुंडो चंबरी चाड़ । सेत्रावैसुभ्रात सब, मिलण चढ़े माहाराज । मंडोवर आया मरद, जसो गोगदेव राज ॥ कायलाएँ राजस करै, धरै कनकी मन धीर । मंडोवररो भोमीयो, बल मांगै वरवीर ।। अगला भोम्या प्रांपणे, मांगै की माहाराज । वळ देवणनै वीरवर, सजीयो गोग सकाज ||
.. . नीसांणी रमै सिकारां गोगरज कायलांणे डूंगर । उठीयो दैतज कालीयो एही गल उचर ।। दुथणी जायो को नही मंसु जोड़े कर। . कर पकड़े पाड्यो कमद भेळो कीनो घर ।।
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वीरवांण
अबकै छोडै गोग रज मेळु जाळ घर । बह नह मांगू फेर वळ ऐ सच्चा प्रापर ।। वीर मिलायो गोगरज निजनाथ जलंधर ।। महर हुई सीर कर मया सिषराळ तणी धरः ।. वप गोगै वळ वादीयो उणवेर, उवंबर ।। रीजै सम पीरळ, तळी. सिधराव जोगेसर । पीठ फुरे नह ताहरी जपीयो , जालंधर ॥
. दूहा . : .. व्याव थपे जद धीररो, दलजी करै उछाह । एक धमळ गध एकरी, तो साषा नै चाह ।।
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नीसांणी ..
. ...
बळ हाली कळ जाटसु वे नीत वधारी । जट कह वायक जोररा नह . बात विचारी ।। घघले घमळा जाटदा तद कीध तयारी। . जांन चढंतां जोइयां कर उछब . भारी ।। सुगन पलाऊ हुय सबै वळ वात विचारी। उठ दलो घर आवीयो हुवे होवणहारी ॥ ..
उदल धीरै जांन संग पुगळ पाघारी ॥ १०६ ..... ओ जाट धोरीयो वीरदेजीरो छो सो सींहाणमै परणोयो छो । पछै सिरदार
तो मारीज गेया नै ओ उठ ही वस रेयो । धीररी जानमै इणरा उंठ १, बळद १, 'बिनां दीनां जवरीस ले लीना । जद जाट मंडोर सेत्राव जाय नै राठोडांनै हेरो दियो ।
जाट कटावण थाट सब सुध मारग धायो । मुरधर षट पोहरां मधे पो हेरो आयो ।। चवै मिलतां . चूडनै सब . भेद सुणायो । दलो: अकेलो. घर · रयो ‘हूं देषर. आयो । पाग. संभावो ठाकरां लो वैर सवायो ।
या ॥
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.
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__वोरवांण . .
दहा चूडो :हेरु : सुचवै, पाछौ. वचन प्रीयोग। हुं मामो मारु नही, तु संग लेजा • गोग ॥ धर चित जा तु धीरीयां, गोगे कने चलाय । वाटां जोवै वीरवर, करसी जेजं न काय ।। धीरप दे मिल धीरसु, समपे विडंग सधीर । सुगन लेर चढीयो सरस, वेर लेवण वरवीर ॥
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१६१ ।
.
नीसांणी
तद सींचांणी त्यार कर सात सजवाया। सज. भड़ गोगै पांचसै चढ षुर चलाया । गड गड बंक गाजीया असमान गिराया। अस षडीया उबां बरै रज गैण ढकाया ।। बैडा उजड वाटते गिर झंगर छाया। जेण समे. मिळ जोगणी वळ डाक बंजाया । भाला आभ ठहकीया सिर ग्रीधां छाया । उरस तौँ मग उत्तरे इम गोगा आया ॥. काळा करहन कर भर नीर चलाया । सीहो सुगनं न संभवै करसां मन चाया ॥ सुंतां फोही सबद सुण दलजी उठ पाया। सुगन भयानक समजकै मन थाह न थाया ॥ उठे पान अंचीतका सीहरा जब लाया । अरदल दीसै आवता अत रोस अघाया । अंब. गळ सीहो उचरै है नीर पराया ॥ अळगासु अस खेड़ीया अर सीस असंगै । उठ बेदला जोईया सूतो . कन : ज़गे ॥ ऊभा , गोगा, .राठवड पित वैर ज मंगै ॥
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वीरवाण
निस आधी बल नेमीयो, वाजी हाक विकट । रोस न मावै रावतां, घण सिर फुटै घट ॥
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पांणां किरमर पकडे, रिदे जालंधर रट। रिण तती वारल तळी, लेवणं वीजंळ वट ॥ गोगै वीरम वैर कज, पुरा ही बल हट । अोध विगाडो वरत कट, ईसां पिलंग घरट ।।
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दुझल धन तो पित दलो, नव गढपंत नरेस । उण अंगे तूं उपनी, देउ धिम उदेस ।
नीसांणी देउ सषीयां साथ ले सज बारै आया। वधावे गोगे कमध गीतां गवराया । वैर पितारो वालीयो भल कीधी भाया। तिलक कीयो इण कारणे लैसुं मन चाया ॥ कहीयो जद गोगे कमध मांगो मुष बाई। सिर दु मारो काट कर विच थाल धराई ।
ओ सिर धड रहजो अषी पासीस दराई । हैसु पमंग पड़ाहीयो माने दे भाई ।। पवरां मेलं धीरपै पुगल पोहोचाई। पूंगां धड सिर वांटजो भिड वेन भाई ॥
. दहा देऊ दलारी डीकरी, वेठां हुत सवाय । तिलक करे गोगा तणे, हैसु लियो बचाय ॥
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वीरवांण
नीसांणी हैसु रोवण हक नही संज होय सधीरा। तुं जाया दल राजदा नाष चष नीरा ।। पमंग चढ़े पड़ाहीये पुगल जा वीरा । गोगा कुसल न जावसी धट ऊभा धीरा ॥
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कर पुररो लगाम दे, पिठ ज मंडे पलांण । पुगल जाइये पड़ाईया, एकण पोहर उडांण ॥ गोगै दलो मारीयो, जीतो मुरधर जाय । धाजे बाहर धीर दे, कीजै जेज न काय ।। राग मिटांणा रंगरली, सुणे अचीती ध्रांह । विध कह हैसुं वेढरी, दाणे धीर दुबाह । काहळीयो केहरकळी, कटकां उकट काट । धीर चढ़े अर धूंसबा, बीडे गांउ जड़ वाट ।
नीसांणी काह कटकां ध्राह सुण सजीयां भड़ सारा । धीर चढ़े अरि ●सबा लग गोगा लारा । उडे रज असमानमैं . इळ होय अंधारा । सेल चमके विच अणी निस काली तारा ।। बेढंगी षडीया बीडंग पंथ पार न पारा ॥ हेक मना हुय हालीया सज सेना सारी। असी कोस अफाळीया क्या लगै कारी ॥ वणीया दुलहा वाहरु बप वेर विचारी। एक मिले अण चिंतको रिण मांझ रेबारी ॥
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वीरवाण
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गोग लछु सिर उतरै मुझ बकरा मारी। धीर सुणै अरि धुधड़े लंग सषड़ लारी ॥ जलम्या पेट जवादरै अस दोय आपांणी । चढ़ीया उदल धीर दे धरती धुजांणी ॥ हीराळो न पड़ाहीयो जंगम जग जाणी। ऊजो आयो धीर दे कर तेग उबांणी ॥
आय लछुसर उतरा गहमें भरीयोड़ा। उरस तणै मग उतरै दल वादल दोड़ा ।। दूर अचाणक देषीया चंचळ चर तोड़ा। अस पकड़े कर आपरा रिण बजे रोड़ा ॥ भुषा तिरसा आपरा वांधीजे सोड़ा। ढलीया हात न आवसी गोगादे घोड़ा ॥
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अस सह हातां उतरे थहीया दळ पाळा । काळ ज्यूं ही करवा कलह उठे अळसाळा ।। भूषा सिंह जिम भूटकै रोसै लरढाळा । कंपै छाती कायरां धुब झाळो झाळा ।। सुरा सिंघण थेह ज्यूं धुबिया पंषाळा ॥ सांवत तेग संभायके सज सायर साया । लड़तां कांनो धीर ले तद होय तिसाया । कुड़ा रांण कसुंस कर जादम जल पाया। अभंग लुणाणी उठिया बल दाष सवाया ॥
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दूहा . पाणी पीधां जोइयां, पोह धर. मुछां पांण । दिस गोगारे मलफीया, डाकी भरता डांण ।।
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वीरवांण :: नीसांणी रजवट जोइया राठवड़ जुटा षळ जके । सेल भचड़का युं सहै किरमाळ कड़के ।। जरदाळा पर जोसमै कैमर खरळकै। धड़ पड़िया सिर धांफरै मुष मारस बकै ।। तेग धड़ां भड़ बिछड़े पड़ लोथ दड़कै । भंड़ घमसांण प्रमाण भल जमरांण जऊकै ।। अषाडै असमांनमै रथ भाण ठहकै । एसा गोगा धीर दे प्रांण चढ़ीया चकै । गुणीयण ऊभा बादमै वोहळा जस बकैः । बरवा हुरां अछरां बेहुं हकबकै ।। दोनुं प्रोड़ां पेग दे लोही धकधकै । जांणक भरीय पषालदा मुष पोल्या सिके । धरती पड़ीया धीरदे वायक मुष बकै । जांण न पावै जीवता नर गोगा जकै ॥
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धीर पोहडे घेत विच सिर बिछडे धड़ । उदल हेसु पाहडै बड जोस बड़ बड़ ।। कंवर भिडवा कारण असमान भुजा अड़ । जोध वेह रिण जुटीया षळ पाग षड़ा षड़ ।। पड़ीया अस भड़ पाषती रिणसु कैम छड़ । काळ तणी गत कोपिया भिडीयाळ महा भड़ ॥ पंषणीयां भष पूरीया रिण रैणा रतड़ । च. विमांणां चालीया लंकाळ बेहं लड़ ॥ उदल हैसु धीर दे रिण षेत विचा पड़ ।
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चड: वड धानंष चाढीया गुण किध भणंका । तीर छछोहा. छुटगा नह सु जतनंका॥..
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वीरवांण
केता बगतर तन कटा जुझा भड़ बंका । जोइया कमधज जुटीया अध जीत असंका ।। झिलमां वीजळ वाड झड़ षग बाज षणंका । ऐसा गोगा धीरदे भिड़ीया भड़ वंका ॥
१२४
गोग वहटा षेत विच रजवाट उजाळी । आयो जादम एतलै भूपत पग भाळी ॥ सगा रुक समाप दै कर रीझ वडाळी । रांणक वळतां गोगरज समसेर संभाळी ।।
१२५.
वैग वुही कर वीजळा जंगा दोय डाळी । कहीयो गोगै हास कर दे सगा ताळी ॥ घण तोडण जोइयां घड़ा जिते कर समर । कठीये पग गोगे कियो निज साद नरेसुर । दरसण सिध आपै दियो माथै कर मैहर । पाव उलटा . सांधीया ओलषाण तणीयर ।। इळ अंवर गोगादतै तो काया अमर । हुय सिध दसमो हालीयो संग नाथ जलंधर ॥
गीत चितइलोळ . ऐ वीरळ तळी आरांण उनी पळां तंडळ पाय । वीजला ज्युं वहै वाद्यै घड़ा एकण घाय ।। तो घण घाय जी घण धाय धापी रळ तळी घण घाय।
१२६
.
.
१
वैर वीरम तण वाही निसंष जोध । नीडा रहात गोगादेव हुंता धपाई इत धार ॥ . रत धार जी रतधार धापी रळ तळी रत धार ।
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वीरवाण कटे उदल दलो कटियो धीर हैसु वैर वैर । वीरम तणो वाले बालजे इम वैर ॥ इम वैर जी इम वैर गोगे वालीयो इम बैर । कट धर रहै सुता सला कर उभै वटका इस । छुटती घर जाय छुटी कीसे सवालै सिस ।। धर सीस जी धर सीस जाती वाजवी धर सीस । वीजड गमीय अरांवाळ जोइयां जड़मूल । वाप कज़ वैरीया वेटो घडच भेला धूल । ए धूल जी ये धूलजी अरीया काटीया काटिया ऐ धूल। ५ भाज रांणक देव भाटी सवलडो पर साथ । कमंध गोगो अमर कीधो नमो जलंधर नाथ ।। नवनाथजी नवनाथ नाथां ऊपरी नवनाथ ।
दहा सात वीस नीसांणीया, ऊपर पांच सवाय । एक गीत इतरा दूहा, भणीया गुण सुभ भाय ।। १७२।। नवगुण पूणा तीन सै, वीरवांण जसवार । सुध वाचीजो सकवीयां, वाधर कही विचार ॥ १७३ सवासे नीसाणीयां, दुहा पुण सत दोय ।
गीत एक इण ग्रंथमै, समजहु वाचक सोय ॥ १७४ इण पोथीमे वीरमाण ग्रन्थरा दुहा पुणी दोयसे है । गीत एक चितइळोल छै और नीसांणीया एकसो पचीस तो आंकां में छै और एक नीसांणीरो भूलसं आंक नहीं दरीजीयो? । और वादररै कैणैमै नीसांणीयां एक सौ पैंतालीस छ । सो उगणीस नीसाणीयां मिली नहीं। जैतमालजी मारीजीया जको समो इणमै नहीं छ । दुरजणसालजी डाभी और दलेरा धायभाई मारीजीया जका वारता नहीं । इण मुदैरी नीसांणीया मिल नहीं । इसो जुध आकारीठ महाभारत
१ नीसारणी छंद-संख्या ११७ देकर आगे की छंद संख्याओं में सुधार कर दिया गया है।
-संपादिका
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वीरवांण
माल सलपाणी, वीरम सलपाणी, जगमाल मालांणी, माधोसिंघ सोलंपी, वा घड़सी भाटी, वा मदु, जसु, जैतल, देपाल, ऐ च्यारू भाई लुणियांणी। जोया तथा गोगो वीरमांणी राठोड़ धीर मधु वाणी उदल हेसुदलाणी। जोयाऐ अथवा इयांरा भाई रजपूत आदमी हीज करै । सुणीयांसुं सूरमारी भुजा असमान अड़े। कायरांरा हीया पड़े। दोठां तो सापरत बांवन वीर चोसठ जोगणी ताळी दे हंस हंस पड़े । सांपरत हर अफछरां रथ पाथा षड़े। दले जोयेरो भरपीमापणो भेळप अवसांणीरी जाणतो केणहारो कठा तक कैवै। वे इदै उगमसीरो दायजो ही लाप सावासी लेवे।
इति
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1
परिशिष्ट ? अाढा पाड़षांनजीरो कीयोड़ो रूपग गोगादेजीरो ॥ श्री गणेशाय नमः । श्री सरस्वतीजी नमः
. अथ रूपग गोगादेजीरो आढा पाड़षानजीरो कीयोड़ो लिषते ।
गाथा चोसर अत मत कायब सुबल ऊकत्ती, सुप्रसन हुय दीजै सुरसत्ती । पोह राठोड़ अचल छत्रपत्ती, कहूं इम गोगो कीरत्ती ।। १ इल अजरामर वात उबारा, चाय छाडां तीडा जल चाढण । वैर वैराह पितारो बालण, दापू इम गोगादे डारण ।। २
. .. .. . दूहा सुत छाडो सलषो सकज, धुहड़ जगत साधार। घण जाणग सलषा घरे, वीरमदे - वडवार ॥ ३
... छंद मोतीदाम वडवार उदार संसार वषांण, जोधार जुझार दातार सुजाण । ‘दला थंभ वीरम तेज दराज, साजै दिन राजै ऐ सूर समाज ||
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वीरवाण भड़ां दरगाह हलोहल, भाल, तबैलै ऐ बाज वड़ा तेजाल । सत्रां जड़ काढण सूर सधीर, नरेसुर चाढरण बै पष नीर ॥ सधूवड़ वीरमदे सुभियांण, तणो सलषेस तपै तुड़ तांण । गाहे धर हैमर पेड़ गिरंद, नड़े भड़ अन्नड़ षाग नरीद ॥ दीय लष सांसण कुंजर दान, सुषत्रिय चित सो ईन्द्र समान । करै थह बैठोय सूर सकाज, गोढो गुर सिंह ज्युही अनाज । षेडे चांऐ वंस उपावण षार, जोइयाऐ आयाय भीच जैवार । दलै धर गूजर लोड़ दुगांम, महैवैय कीधोय प्राण मुकाम ॥ . दगो कर छोडेय साह इबार, चोरे लष कोड़ जमोर चियार । अमोलष ऊजल गात असाध, सालोतर घोड़ीऐ एक समाध ॥ इती मैहमंद तरणी लेय आथ, रोदां सिर नीसरियो अधरात । प्रथीपत सांभल तांम पुकार, मनंछिय तेड़व राज मंझार ॥ दिसा जगमाल षत्री दइवांण, मंडे मिसलत लिषे फरमाण। वेगावैग मेलिय दोय वजीर, वेगड़ह कोप कियो नरवीर ॥ दलारोय मेलैह सीस दुझाल, जाणू जद मूझ हितू जगमाल । सुणै गल हाल जगा सुभियांण, जोइलारै डेरैय जोध जवाण ॥ विचत्रिय आदर दाष नमेषं, आपे दोय तेग अने अस एक । इबै अस सुद्रब तेग अपाल, मालावत लोभ धरे जगमाल ॥ वड़ा परधानांय बूजिय वात, घड़ी देयपाल दला सिर घात । प्रमेसुर अंक तणै परमाण, मंडे धर छाड़ाय वेध मंडाण ॥ वेसासैय दाय कोल वचन्न, मारु राव ध्रोह धरै विच मन्न । जगै द्रब लोड़ण जैत जियार, ताता षग बावाय' कीध तयार ॥
आई नह आव तणे उपगार, जोंइयांय लाधोय चूक जैवार । इषै मन सोच अरोड़ अपार, हुवो लषवेरो ए कोस हजार ॥
आई तोय गत अलष अदेस, दोषी नजदीक दुरंतर देस । पुणे इम पान सवै परवार, हमैय कुरण . है. रषणहारः ।।
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वीरवाण
३
विच त्रिय दा सोच वरांम, तठे इक रावत बोलियो ताम । उबारग रंकाए चित उदार, वसै अोय वीरम जूह विडार ।। मारु सलषावत भायांय मोड़, ठावो प्रोय बैठोय ठाविय ठोड़। रिमां पड़गोह षत्री रठ रांण, तपै भड़ वीरम ऊंचीय तांण ।। उठे थां मेलुय जेथ अपाल, जठ नह गंज सकै जगमाल । विचत्रियसांभल वैण विचार, त्यारी करंजीण षड़े तोवषार ॥ जोइयांय कूच किलो विण जांण, उतारोय कीध दरगह आंण । दलो मिल वीरम हूंत दुबाह, आपे कर जोड़ समाध अथाह ।। हुवो जद धूहड़ जूह विडार, धंजाय बंध सरणायां साधार। पुणे इम वीरमदेव पुंचाल, अठे थां षांन करै कुरण पाल ॥ जिते मो सीस षवां पर जांण, इतै कुण गंज सकै तो आंण । प्रथीपत तेड़ वडा परधान, सोलंषिय मोधोय पाथ समांन । दुसासण डाभी दुरजणसाल, कांनां जगमाल सुणी किरणाल । धुणे पग धूहड़ लाग ध्रीलाग, उड़ पड़ जाण षंडी वन आग । वह वह वाहर वाज त्रमाल, पमंगां ए पीठ मंडे पषराल । ओपे सिव जेहा ए गात अथाह, सूरा भड़ भीड़ य टोप सनाह. ।। भुजा डंड सावल. तोलेये भूप, रकेबांय पाव दिया जम रूप । दला कर आरंभ भीच दुझाल, मालावतसाल लियो जगमाल ।। षेड़ेचों ए छात षड़े कर षीज, भिड़ेवाय काकाय हूत..भतीजें । मिले पंथ सालल फँग मरद्द, गमागम उमट घोर गरद्द ॥ निहंसेय राग सिंधू नीयसांण, वलोवल छायाय रंभ विवाण । पुगा अस पेड़ेय भिच वेभीत, जंगांथह वीरमरी जग जीत ॥ ४
दहो बड़ो . कोपे कबर करूर, जलामल मेले. जगो । आयो वीरम ऊपरै, जोइयां वेध जरूर ॥ ५
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धोरयाण
..
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पोह मेले परधान, काकसु दापै कतन । दो काढे बारै दलो, साहो जुध सांमांन ॥ ६ वीरमदे जिण वार, परधांनां हूंता पुणे । दू माथो नह दू दलों, साहौ जावो सार || सलषा तणो सवाल, कमंधां गुर वीरम कहै । जोड़े षग थारे जोडै, जुड़ी ज्यू जगमाल ॥ काको जैत सकाज, ते पागल सजियो तई । मालावत भूले मती, जिण भोले जगराज ॥ काकै तणो कंठीर, सबल भतीजेसू सुबद । हुवे मोहर हलकारिया, सक्कज भिड़े सधीर ॥ १० त्रहके तूरत्रमाट, गीधण जोगण गहगहे । काको भात्रीजो कलह, मिलिया लोह मुराट ॥ ११... .
छंद मोतीदाम.. मिले जुध बेहुंये लोह मुराठ, प्रथीपत बेहुंये अोपम पाठ । कमंधज बेहुय जोम कंठोर, वीरारस साललिया नर वीर ॥ जुड़े माय माहिय माह जोधार, अड़ीलय विहुये चित्त उदार । अड़ीलाय बेहुय लाग ध्रियाग, रुंड दल दोउव सींधव राग । बहु भड़ कंदल मांड दुगांम, मिटे सनमन्न सगप्पण माम । जरु अषत वैहु जगजीत, सिंधां हिंदवांण बेहुसुप्रवीत ।। षेड़े चोंयठात वैहु चित षोध, जुड़े रठ रांवरण बेहुय जोध । बेहु जरदैत बेहुं वीरदैत, बीठे धन वेध बहु बषलेत ।। घट रोवसैल बहु घर थंभ, खेड़ेचाए षार पंधा गज षभ । वहै वेयधार उराबांयवार, धजां सिर ग्रोध सरां धुवकार ॥
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वीरवाण सजै रुडमाल सिंभू सिरताज, विचैदल सूर होलोलैह बाज । तई झड़ झूल सत्रां तरवार, भड़ां घड़ डाडर घाव वंभार । लड़ रस लीधांय ग्रीध लंकाल, कमंधज काहलिया किरणाल. । बरघल घाव थड़ां गज बांह, छुटै गुण धानंष तीर छछांह ॥ करां षग पोगर धूण करुर, पटाझर आहड़िया मद पूर । हुवै जुध सूर भतीजोये हद्द, मुड़े नह काकोय हेक मरद्द ।। घड़ा मच धोम छके रिण धांम, जुझाउऐ वाज नंगारऐ जाम । तड़फ्फड़ हीजर साकुर तुंड, रड़व्वड़ कुंड गड़ा जिम रुंड ।। हड़बड़ जोगण घेतल होय, सड़व्वड़ कायर पंथ सजोय । तड़व्वड़ सायक पात्र सताड़, बल बल कालां जांयाव बंबाल.॥ चड़वड़ जोगणि रुद्र जोचोस, जुड़े भड़ धूहड़ बाधेस जोस । • भिड़े असताईऐ लोह भिड़ाल, गोल रस ग्रीधरण गुदगीडाल.॥ पाछा जगमाल धरै नह पाव, दीये नह वोरम हीणोय दाव । नरां भायत्रीज मुईं वायनेम, काको जुध भाजऐ दाषुय केम ॥ तड़ोबड़ तोल षत्री तप तेज, मिल सिरदार दोउं मुह मेज । इतै बिच वालाऐ सूर अपाल, मीणंधर प्रायोय रावल. माल ।। सपेरेय वातां वागाएसाय, जुदा दल बेहुंए कीधाय जाय । पुतारेय वालीए राड़ प्रवीत, जगानैय कुजर ज्यू जगजीत ॥ राठोड़ांऐ स्याम चड़े य कुरंग, उभा सलषावत माल अभंग । संपेषेय साव वले सिरदार, धरो जोवधार करो षग धार ।। १२
दुहा दाढे माल. दुमाल, राड़ वीरमनै राषी । उठी बात उबांबरे, मेटी नह जगमाल ॥ १३ । ते वाजे रिण ताल, धड़ पड़ ग्रीधणियाँ धपे । बहिंदुइ उबां हां - बरा, बाहड़िया बाहाल ॥ १४
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वीरवाण अण भंग कर प्रारांण, कारज अणचीता कवर। जंगम चड़ पुगो जगो, तलवाडै तुड़ताणं ॥ १५
आयो थह उजवाल, कंवरां गुर मिसलतं करी। जद लिषियो कागद जगै, वीरम दिस वेधाल ॥ १६ सज ओ न्याव संसार, वीरमदे सांभल वचन । पड़े न एकरण पड़दली, तोषी होय तरवार ॥ १७ ओ प्रोषांणो याद, जाणे छ सारी जगत । नविणे दाव निदांनरै, वीरम वासर वाद ॥ १८.. कागद सुणे सकाज, दाषे वीरमदे दुझल । पण पाणी न पीणरो, मालारी धर मांझ ॥ साझे भड़ां सधीर, धर जूनी हूँता धमल । . नर चढियो पाटण नवी, वीरमदे नर वीर ॥ २० डारघ षड़े दराज, सलषवित जोयां सहत । मारु थंभा मांडिया, सेत्रावे सिरताज ॥ २१ दल बल. हल. दइवांण, केकाणां हूकल कल ल । . राजै वीरम राठवड़, इन्द्र तणे अहनांण ॥ २२ वीरम सेत्रां वास, सीमाड़ां मेले सरद । सुत सुपसां जांयां सहत, मारु रहे छ मास ॥ .. २३ • उण समीय · उदार, कर जोड लागो कदम । डारण भड मांगी दल, जोइयां सीष जैवार । कर मिसलत किरणाल, सेत्रावै राष सथर । देवराज जैसिंघदे, उदभै कवर उजवाल ॥
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वीरवाण वीरमदे तिण वार, कहिया निरभावण कथन । पीहचावरण चढियो पहब, जोइयां जैत जुहार ॥ सलषावत सुप्रषाल, सुत सुपहां मेलां सहत । हिंदू देषण हालीयो, लषवेरै ल'काल ॥ २७ उडै रज असमांण, आधो फर छायो अरक । षड़िया अस वीरम षत्री, दिस उतर दइ वांग ।। २८ पंथ वहता प्रवीत, कुडल वीरमदे कमध । ........, परणीया चंदण पहव ॥ २६
............ । 'निजगोगादे नेमियो, वरदाइ जिणवार ॥ ३०* कुडल. सू कुल भाण, पंथ आतुर षड़ पमंग । पष एकण आयो पहव, जोइसां उतन जवांण ॥ ३१ उछ रंग राग अपार, आण घर घर आरती। कमध जोइयांरै कुटम, वाधावै जिण वार ॥ दलो अनै देपाल, भाषै इम सिषर भषर । श्रा वीरम थारी इला, सलषावत सु प्रषाल ॥ उण दिनरो उपगार, देष अनै दारे दलो । धर लषवेरै तु धणी वीरमदे वडवार ॥ ३४ रिमां देयण षगरेस, सूरा भड लीयां सकज । वीरम तलडाणां वहै, दूसर ज्यु परदेस ॥ ३५ आहेड़े उजवाल, सलषावत रमतां सकज ।
जद गोगादे जनमियो, सुरण वोरमसु प्रषाल ॥ ३६ * नं० २६ और ३० दूहे मूल पुस्तक में चरण अस्तव्यस्त होने से नहीं बनते ।
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वीरवाण
घुरै नंगारां घाव, हुय उछब घर घर हरष । कुल दीपक जनमे कवर, गालण अदवा ग्राव ॥ ३७ ऊच नषत उजवाल, वैर सनाहां वालवा । . जद गोगादे जनमियो, कुल जोइयां पैगाल ॥ ३८ संक नहीं संधीर, दिन उगै पसरा दियै । वेढी गारो राठबड, वहै अरोडां वीर ॥ ३६ जोइयां हूंत जैवाण, वीरमदे वीजै वरस । मारु षेटा माडिया, पोह अंक वेह प्रमाण ॥ ४० सक भड चढे सिकार, सझे छलासंबुर सुवर । कमधज पीरांरी कबर, ध्रम पैरु दूधार ॥ ४१ तागा करै तिवार, हीक धीक लेता हीयो । आया फिरियादू असुर, दला तणे दरबार ॥ सक षग षान संभाय, मकै हाल छोड़ा मुलक । वीरम सूर वीहंडिया, मैहजीतारै माय ॥ सूण फरियाद सकाज, उससिया जोइया अवर । डारण चेह न दोषियो, दलिय जोम दराज ।। दूजै दिन दइवांण, दला पुत्रिचो वरदयो । लषवेरै वीरम लियो, डारण प्राधो डांण ॥ सारो कुटम स धीर, दाणे तो लाणत दला। सकुज वाही साहियो, वले अग्राजै वीर ॥ दलो चवै दइवाण, साच वाच भायां सुणो। ....... वीरम सू चूकू वचन, भो यण उगै न भांण ॥ . ४७
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वीरवाण जग तप तेज · जुहार, तलवाड़ त्टो तरां । उण दिन वीरम उबारिया, वंस जोयां जिण वार ॥ षिम्या करै जिम षान, बीरम तिम अंबलो वहै । जुड़सी षेत जवान मै, मांझी दिनं दोय च्यारं ॥ ४६
. छंद जात चे अपरी दलै षिमंती जिम जिम अत दारे, राव कमध जिम जिम अंत राषै । परजा भाड़ गर्ने र पजावै, ऊगै दिन फरियादां प्रावै ॥ अरि घर गंजै षाग उवांणी, समहर रो भूषो सलषांणी । लाष भिच तिल मातर लागै, एकरण जोर ऑपरां प्रागै ।। पर घर सत्रु दुछर. जिम पालै, हींद आपस देणो हालै । धूहड़ • एक समै छत्रधारी, ग्राहेड़े चढ़ियो अवतारी ।। सज पीरां दरगाह सवायो, इक फरहास निजर तद आयो । आप रहंण रिण बात उबारण, उदर ऊपनी बात अंकारण ॥ काट फरहास ढोल करीजै, सोल कोसां सेंबद सुगीजै । पूछ ताम भड़ां पूचालां, डारण आप जिसां दूठालां ।। ६. कैहै सुपहं फरहास कटावो, घरणी सगोढो ढोल घड़ावो । षित ऐ वचन सुणे अत पारा, पांण जोड़ बोले पूजारा । है फरवास षुदाय हमारे, थांन राम जिम धूहड़ थारे । सुण वचन धिक वीर सिघाल, जाणक जेठ सालली ज्वाल ॥ . बाढ फरास वीर वरदाई, आप तण सिरयात उपाई । जड़ षिण ठा, वृछ जग जाहर, मारियो एक वल मुजावर ॥ तेथी नफर करै केइ तागा, भय पड़ केइ जीव ले भागा ! करता कूक रुदरं तन कायां, दलै तणी दरगा दरसाया ।। सारां पारा वचन सुणाया, वीरमदे फरहास वडाया। * : सज देपाल कहै पग साहै, महजो दला. जोइया माहै ॥५०
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वीरवाण
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करता कूक कुराल, आया फरियादू असुर । वीर फरास बडाविया, सुणजो दला सिघाल ॥ ५१ जोइयां मिले जै वार, कथन. दला हूंतां कहै । वेडीगारो राठवड़, मारै सै काय मार ॥ ५२ मुड़ियां ही नह मोस, मोस न वीरम मारियां। काम दलो कह मै कियां, दोजै किण नै दोस ॥ ५३ बै परधान बुलाय, दिस वीरम दापै दलो। अमां रीस न उपजै, षित अंत वैर षुदाय ॥ नाकी छिले निराट, दाष कुल नायक दलो। नर तो नेइ नियापरी, वीरम सू जीवाट ॥ ५५ दलै कथन मुख दीन, कमधज हात कहाड़िया। आप बंट चोथां अमां, तू लै वाटा तीन ॥ ५६ जोइयां रुप जिवार, दाष कुल नायक दलो। वीरम तांसू वाजियां, है जीतां ही हार ॥ . ५७ वीरम सू तिण वार, कहिया परधांनां कथन। आधी वांटे लेइ इल, नर वकवाद निवार ॥ ५८ सूरो कथन सुणेह, काहलियो केहर कली। आयर जांण अग्राजियो, मयंद तरणो सिर मेह ॥ ५६ मन धारे अभमांण, आपे सांमो अोलभा। .. दीसै तू भूलो दला, उण दिन रो अवसांग ॥ ... ६० जगपत जोम जिहाज, कुल जोइयां कतलत करत। देषत नह मेलत दला, ए विसटाला आज ॥ ६१
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वीरवारण
ऐ तोले औराक, बोलण घड़ उवाबरो। मेल वचन नह मानियो, वीरमदे वैडाक ॥
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पाछा आय प्रधान, कथन दला हूंतां कहै । मरसी का तोय मारसी, जालण हरो जवान ॥ कर झाले केवांण, नर वीरम सहजे नहीं । देषे नह जुड़सी दला, इण भव ओ अवसांण ॥ कीधा पून अनेक, भ्रूहड़ लषवेरै धणी । डारण मड़ षिमिया दलै, अन नर षिमे न एक ॥
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कवित छपै
पोह जिह हीज प्रभात, पहल सिकार पधारे । हड़वड़ भड़ हैवरां, निहस वाजते नंगारै ॥
डारण वीरम देहु, दुरंग वहतां तद दीठे । पेष सुरग पिंजरो, उरहि परजले अंगीठो ॥ षड़ आतुर तोषार, प्रगट नजदीक पधारे । गढपत कुण इण गांम, चितहि राठोड़ उचारे ॥ पूछ नकीब प्रसीध, स्यांम सू अरज सुणाई । दला तणो दइवाण, वसै धावड़ वरदाई ॥ तण सलषेस तिवार, ध्रोह वीरम मम धारे । वसुधा राखण वात, वे हद बोलियो वकारै ।। जयचंद हरो जयचंद जिम, हिंदू कंवर वजर हियो । सातहूँ पुत्र धावड़ हणे, कमधज किलो कायम कियो ।
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पोरंवांग
वीरम षाग वजाय, कल चाले लोधो किलो । दोड़ी भाडगनेर दिस, ध्राहां देती धाय ॥
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अोइ नीयाव अघात, सोह भाई भड़ सांभलो । वीरम षाग विहंडिया, सक धावड़ सुत सात ॥ कूकी तणो कथन, दांणव सुणी देपालदे । जोइयो पण, लीधो जरू, इण भव षाणो अन्न ।।
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हिंद देषे हेत, पांच दिनां मै पामणा । सक धावड़ पंच साजिया, षल कीया रिण षेत ॥
७० ।
७१
दुजड़ां हत देपाल, दाणे बल देपाल. दे। दीसै तू जायो दला, कुल. जोयां पैगाल ॥ सीस न वाधै सूत, वाध दला तें वींटियो । अबही रोस न उपजै, कायर फोट कपूत ॥
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बोल कोल अरु बाप, दोय न .चै देपाल दे । जावां मै वेगा जुड़ा, वै वीरम वै आप ॥
सूरै कथन सुणेह, दल तणा देपाल दे । अंबर छिबंतो ऊठियो, केहर ज्यू करणणेह ॥
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पमंगां हुवा पिलांग, हूँकल. दल तह मह हुऐ। अंग भिड़े उबांबरो, जरदां कड़ी जैवांण ।।
रुड़ दमांमा राग, हूर अपछर मन हरषिया । जंग मैं चड़िया जोइया, धरे सीस ध्रीयाग ।
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वीरवांग छंद मोतीदास
धरे जद रावत सीस ध्रियाग, विढे काहि ढोल वथोड़े वाग । षिमै फल साबल ऊपड़ बेह, छछोहाए पार लहै कुरण छेह ॥ अड़ीसल वीरम हतहां आज, सव्याजाए लेसिय पून सकाज । धुड़बय षेहांय काठ ध्रियाग, नागां अस धूज रसातल नाग ।। विढबाय हाल दलो धरवंद, उलटांय जांण असाढ्य इद । नरां मुष वाधेय सूरांयनूर, हले दल. साथेय जोगण हूर ॥ उमंगेय सांभल राड़ अगांम, तमासोये देषेत नारद तांम । अाया चढ़ सांड उमांपत ईस, सजे वाय माल सूरां भड़ सीस ।। उडे रज डमर व्योम अथाह, मिले निस जाणक भादव माह । दल कर वीरम हूंताय दाय, उरांतां सुर वितलीयोय प्राय ।। धुबे पड़ रोस अरराका धाक, हुबोहुब होय चहूं बल हाक । ढमंकैय वाहर बाहर ढोल, गां जड़ जीण दुवागाय षोल ।। कोपे अड़ अवर जोस करूर, सणा वित लीधाय वीरम सूर । सजे वट सूथण जांमियसार, जड़े छकड़ाल. कड़ी जोय धार ॥ प्रोपे सिर गूधर टोप अथाह, विण दस-तांनांय हाथ जवाह । जोइयांय साजण जैत जुहार, सुरा भड़ भीड़ छतीसुयसार । दुवाहांय भीचक तेड़ दुभल्ल, अमरोगेय गालेय नेस अमल्ल । अमलाय वाथेय जोस उगम्म, हुवो भड़ सारांये जीण हुकम्म । अमोलख उजल गात असाध, सजे हव साषत वैग समाध । अल वल्ल लेतिय झंप अपार, तांणे तंग हाजर कीध तयार ॥
चढंतांय वीरम देवड चिंत, पला गुहः पाप रांणी सुप्रवीत । • तवैगल मांगलियांगिऐ त्रास, उभे कर जोड करी अरदास ॥ रचो कोई दाव पत्री रढ राण, दल वित प्राज़ लियो दइवाण । किजै नह अाज चढे किरणाल., सत्रां चाय चींतविय सुप्रषाल ।।
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वीरवाण इसा थेय खून कियाय अनेक, आवे जद पूंन कियो इण एक । मैकुबिय आज करो महाराज, सवारैय यलीजोय वैर सकाज ॥ तवैगल रांणिल पहूंताय तांम, दलां थंभ वीरम कोप दुगांम । जावै वित उभांय मूझ जरूर, सनसेय सेस न उगैय सूर ॥ गजां पल आज नद्पल ग्रास, दषै मुष हूँत अला दरवास । प्रोजो हुँय आज चुकू अवसांण, वकै नह वेद मुषां ब्रहमाण ॥ जावै वित मूझ उभां जैय वार, धरा नह छोल दियै इदूधार । खला सिर आज न वाउय षाग, जलो जल सायर लाग जलाग॥ तइ हवता कुये अोलोयतन्न, करै दत देवण उत्तर क्रन । तोड़ नह सिंग सत्रां तरवार, सूरां कुण साष भरै संनसार ॥ आणू तिल मातर जीव अदेस, सनसय मूझ पिता सल षेस । आउनह आज नवनांय ईस, दिवाकर उगैय पिछम दिस ॥ ढहूँ नह आज गयंदाय ढाल, महेवैय लाजैय बंदव माल । राषु नह आज षत्री ध्रम रीत, सतो सत छोडेये कुताय सीत ।। वदोवद धूहड़ दाष वचन्न, मेले नह चाल राणी वड़ मन्न । दायु तद वीरम कोप दपट, हमै सुरण राणिय छोडोय हट । उछटैय चाल छत्री उजवाल , चवै गल पंडव सूकल चाल । योपै तन साज झलाहल आब, सजो तंम आंण समाध सताव ॥ अलोवल लेतिय झंफ अडोल, मुणै चितरांम समढ अमोल । रकेवांये पाव दिया रढ रांग, हुवो असवार सिधा हिंदवाण ॥ ताली मिल षेचर भूचर तांम, अपच्छर हूर धरै आयराम । कहकेय वीर वैताल करूर, बहकेय राग सिंधू रिणतूर ॥ बभकैय सार धधकेय वाय, गैहकेय ग्रीध चहकैय माय । व्हकेय श्रीह त्रमागल. ठोर, अपच्छर रथ्य हकै चहूं ओर ।।
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वीरवाण षल कय षाग हल केय षाप, उचकेए छकेय साकूर आप । डहकेय डायण वाय वैडाक, बहकेय रंक हुवा हक बाक ॥ चहकेय चील पंषी कल चाल, कहकेय रंभ गल चंप माल । रैवंतांय वाजेय पोड़ रडक्क, धरा पुड़ धूजय गोम धड़क्क । वणे मनु दांमण दीह वीचाल , मिले निस भाद्रव मेघाय माल । घमंकेय गूघर पाषर घोर, इला विच भंग पड़े चहूं ओर ।। सत्रां दिस वीरमदे सुभियांण, कमंधज ढीलविया केयकाण । धाड़ायत बाहरवां रिंण ठाण, दलां मुह मेज हुवो दइ वाण ।। अड़े सिर व्योम सजोम अरोड़, रिमासुय आपड़ियो रायठोड़ । मांडो पग धीर धरो मन माय, जोइयांय आज सको नह जाय ॥ षिमै फल साबल नागिय षाग, रुड़ दल कावल. सिंधव राग । चवै हक ग्रीध वीरांवांचेल., मिले दल दोय इणी मुहमेल ॥ गमागम श्रावट रुक गरीठ, रिमां पड़ साबल. सेलाय रीठ । सत्रां दिस वीरम वाहेय सार, आजुरणोय काल तणो उणियार ॥ धको कोइ साज सकै नहीं धींग, तइ मुष दाखेय दाद त्रसींग । चोड़ पल धुहड़ लाषइ चाक, वीरोल य लाष षलां वैयडाक ।। षत्री गुर वीरम धुणैए षाग, विछुटोय जांणक सांकल वाघ । चांपे नर कोण वियो जुग चाल , करै कुरण देषत टालोय काल । छाडाहर जाहर वाधैय छोह, लाषां सुऐ श्रावण जायोय लोह। कठै केइ सूराय आवैय काम, तके केइ कायर अोलाय तांम ॥ पड़ताय देषेय भीचकंचार, जोइयांय दाव कीयो जिणवार । ताली मुष दाख होकारिय ताम, घुरे जद कावल गेहर घाम ॥ सुरणे जद गोहर ढोल समाध, आइ जद माथेय पुन असाध । असल्लिय ताजण गोत उडांण, जची छिब नाच अपच्छर जाण ॥
रागां बल. चांपिय धुहड राव, घाले जद वीरम चावक घाव । . भलतिय उभिय षांधोय झाड, रही पग रोप विचाल य राड़ ॥
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वीरवारण
छाडाहर साझरण हिंदुय छात, घणा दल नीठ दरसिय घात । संभाइये पांणव नागाय सार, हुवा हुव दोलाय आठ हजार ॥ वागा जम रूपी षत्री बबाह, दलो भड़ वीरम हूंत दुवाह । जारेय सैंतीस सत्रां जम जाल , पाड़े रिण वीरमदेव पुचाल । जीते जुध जाहर पारथ जेम, उभो देयपाल अग्राय एम । प्रफुलत देष षड़ो देयपाल , लोहां छक वीरम बोल लंकाल । षड़ो कोही मूझ तणो रिण षेत, साजे ोय अांसुर पुत्र समेत । धरणी राय सांभल वैण सधीर, पाली कोय बोलेय तांम अधीर ।। भषू देयपाल देऊ पल भष, धणी कुण आपैय मूज धनंकं । सोलषिय माधोय अोपम साष, पना दिस नांष दीसंन्यो पैयदाक । सांमा पगं धाणष रोप सधीर, तण दंत हूंत हिलोलय तोर । घात देयपाल तणै तन घात, पाहैड़ीय की, प्रथी अषियातं ।। पनीयैय कीध पराक्रभ पात, हुवो निरलंग ऊभे कर हाथ । उजाले य ल ग धणी रोय आप, आहेड़िय पुगोय थान उद्याप ॥ मारे रिण ताल देपाल अमीर, वरे रंभ सुग्ग पोहतोय वीर ॥ ७७
दही
साजे पला सधीर, पाटो घर वीरम पड़े। रहे उजागर चूडरज, निज वंस चाढण नीर ॥
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सूग पितु गेयो सकाज, वरस वीस काढे विषों। लोहा छैल. चूडे लियो, रिधु मंडोवर राज ॥
धजवड़ हता सधीर, देवराज जैसींगदे । - सेत्रावै राजेस सधर, विजै सहत नर वीर ॥
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__ वीरवाण
छाडा तीडा छात; वेपष सुध उबांबरा। वरदाई दिन दिन वधै, गोगादेवड गात ॥
जाहर पारथ जोम, बाळ धमळ छिलसै वर। भड़ गोगो थोगै भुजां, वाहत डिगतो व्योम ॥
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अस भड़ झूळ असंष, सलषाहर मेळे सकज। वीरमदे रै वैररी, धरी गोगादे घंष ॥ अन जळ पान अहोड़, लीधो अंग लागे नहीं। वाप वैर किम वीसरै, गोगादे राठोड़ ॥ परणंत परजाव, इळ सिर षाटण अमर पद । दरसण गोगा नै दियो, अगठ जळधर पाव ।।
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८५
पूरी दाषे प्रीत, दणव रचावरणनै दलो। रीझ समापी रळतळी, सिध मोटे सुप्रवोत ।। अंग बळ धरे अरोड़, साच वाच मांगे सकज । 'अंबर छिबंता आवियो, गोगादे राठोड़ ।। गोगादे गज गाह, नर नाहर चित नेमियो । भड़ उण समै भतीजरो, मांडे दले विवाह ।। जदम चोक जेवांण, समपण विस पाटण सुजस ।
जोयां अोपम . जानरा, साजे दल सैमांन ।। . सोह जांनी सिरदार, इद ज्युदो सजिया अलल । - . पड़ी गरज इक पुरणरी, तोसाषांने त्यार ||
विध चित दाषवमेष, प्राय सेवग कीनी अरज । दीठो मैटयरै दला, एक धमळ गघ एक ॥
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वीरवाण. श्रीमुष दल सतोल, कहिया जद हूंता कथैन । आप धमळ थारो अमां, मुष मांग्यो ल मोल ॥ वचन सुणे तिण वार, ते धोरी मांगण तणो । झाटक कांधो जाटड़, नर कीधो नाकार ॥
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आप रहण आरांण, केवियां रा चीत्या करण । . दुझल धमळ लीधो दल, जोरीवारै जवाण ॥ त्रहके त्र त्रमाळ, धोरा सिंधुरा धुवै । जांन दलो चढियो जरां, पौह छावण पूचाळ ॥ वहतां पंथ विचाळ, सज तीतर दीधा सवद। जड़ काढण षिण जोइयां, गोगादे अरगाल ॥ तीतर तणा तिवार, दाणव सूण वायक दल । सीष करे सोह जानस, वळियो जूह विडार ॥ दलो समज दइवांरण, घण जांणग आयो घरे । चूडा दिस भट चालियो, आंटै धमळ उडांण ॥ मरद वेपारां माय, असी कोस काटे इला । आयो जाट उवांबरो, चूडै पास चलाय ॥ दलो सकज दइवांण, पिता वैर मारै पहुब । वेर म करमो कार वौ, कस चूडा केकाण ॥ सुत वीरम. समराथ, उत्तर चूडे पापियो । दीठा वायक दाखिया, हेरू पटके हात ॥
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६८
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रे चूडा सुण राव, कर सांजत चढ काछियां । जीवसी ज्यां जुड़सी नहीं, पोह इसड़ो परजांव ॥
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धौरवाण अग कर रोस अघात, चूडे सु. हेरू चवै। ... .. वप मो घमळ न वीसरै, नकिम भूलो तात ॥ १०३
नर कमंधां चो नाथ, चूंडो हेरू सूचवै। .. दाणव संघारे दळो, पोहो गोगो पाराथ ॥ ... १०४ सांभळ वचन सधीर, सारां राव चूडै तणा। .::
क्रमियो गोगादे कनै, धिषत पार सधीर ॥ .:: १०५ . पंथ काटे. अण पार, मिलतांही दाएं मरद ।
दांणव संघारे - दली;. साहे गोगा “सार ॥ .. १०६ । सांभळ वचन सधोर, हेरू सू राजी हुवों। ... करै मैहर समपै कड़ा, वीरम रै नर वोर ॥ : १०७ - पोह धर मूछां पाण, पूतारे परगह पहव । ' “सक गोगो मांगे समरण, जाळण षळां जवांग ॥ १०८ करण कमंध सिध काज, जड़ काढण षिण जोइयां । दिल चिंत मीया सोदिया, समलै वैणस काज ॥ १०६ सूरो कथन सुणेह, सांमण रा साचा सबद ।. केवा काढण कोपियो, डारण गोगा देह ॥. .. ११०
छंद त्रोटक : ... . भड़ केवाय काढण ब्रद भलै, दइवांरण जुझाउऐ मेळ दळे । घण बोल घैसाहर जोस घणो, तेंहूंय हगांमोय कूच तणो ॥ हक होय हिंसारष साद हुबै, धूसा छक कावळ वैर धूबै । कर सिलह गोगाय वैर कजै, सिव जांण सिधांतर भेष सजै ॥ जमजाळ कड़ी जरदाळ जड़े, उतबंग भुजा जाम वोम अड़े । दसतांन सरबत बंद दिया, प्रोयणे दोय मोजाय ओपविया ॥
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वीरवाण जमदढ बांमै अंग भीड़ जड़ी, सज पेटिय ऊपर सांबरड़ी। घण वज्जर काळ लुहार घड़ी, गुण भार अठार कबांण गहै ।। नर नाहर साज तंडी वन है, प्रत वाढ अणी छड़ ओपवियो। लंयंकाळ कराळ सेलाळ लियो, तति अत्तिय जेरव होंय त्तिसी ॥ करवतिय ततिय जांण कसी, लड़वा सुत वीरम. भेद लहै । दीय रूक अचूक रकेब डहै, तेयथेट असलिय षेत तरणी ॥ वपवाह अली बंध ढाल विणी, मोहरां दस तीन उभै मुररो। तैय ऊपर सीस त? तुररी, भड़नाळ चषां सैयचोळ भड़े ॥ जमरूपिय सार छतीस जड़े, बोला जड़ काढण उबबरो। कैकोंणीय पंडव जीण करो, सुज वायक पंडव संभळिया ॥ . वप वाधेय जोस विलकुलिया, कंध थापल रषत दूर कियो । दाणे मुष ब्रद लगांम दियो, ह भटक पीठ कियो पुररो । सक गात कियो सुध साकुर रो, ध्रत गूगळ अग्गर षेव घजो । तन भीडियो साज जड़ाव तणो, पेसूज वरिणय हद गात परी ॥ केयकारिण सिंचारिण नैप त्यार करी, षोयले जद पंडव लेरषली। करती इम तंडव मोर कली, चत्रसाल अचप्पळ तेज चषां ॥ रस लग लगांण उडांण रुषां, वध तेज समांण विमांण वहै। . गुरण वांण कवारण जीवाण ब्रहै, अंगराग वीणीयोये गात इसौ । तथथये करंतीय रंभ त्तिसो, गहपूर त्रमाळ सिंधु गडड्ड । चक्रवत्त सिंचरिणय पीठ चड़े, अस पेड़ेय धूहड़ उतवळो । ते कोय चणे चौळ चाढे त्रसळो, चक च्यारुय देस चळ चलिया। सोय पांच इसा भड़ सालळिया, सुत वीरम गोग प्रवीत सहां ॥ दिपैय मुष सूरज चंद दहां, जोइयां जड़ काढण काळ जिसा । दळ हलेय भाडानेर दिसा, गैग ढाळ जटाळ वैताळ गजै ।।
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वीरवाण विकराळ वंबाळ माळ बजे, दुवठाळ षड़े धमचाळ दलै । मुजवां सिर घोर अंधार मिल, ओपेय असवार तोषार इसा ।। जुग जेठिय वुड य पाल जिसा, कळ चाळ षळां सिर चूक कीयो। उरसां हुँत जांगक उतरियो, घण ध्राह दिरावण सत्रु घरे ॥ कमधज्ज षड़े अस वैग करे, मांझिय दळ दोउ कटे मरसी । हद आज चकाबोय राड़ हुसी, धुप ऊढ धरस तुरा धमसां ।। दुषताय दहलांय देश दसां, मिल सालळ गोगोय सूध मुगां । तेय काढण प्रांटोय बाप तणां, धजराज नगां धरती धममै ॥ भालाय सिर ग्रीधण झूळ भमै, सकवै रपु ग्राहण सालळियो। अंध घोर षेह रिव अंबरियो, डहके पंथवा सिर डंबरियू॥ कर कोड वैताळ कह क्रहिया, रुद्र जोगण भूत छके रहियां । केइ षेचर भूचर संग किय , दोलिय फिर साद चुडेल दियै ।। पटेय गोर भार अठार पड़े पुसियाल हुई रथ रंभ षड़े। डाकियं भड़ धूहड़ बोम डहै, बैडाय अस उजड़ वाढ वहै । रिव धूधळ मंडळ पूर रजी, वंसरी जिम नास ब्रहास वजी । पंथ सालळ जुथ दलां फबळ , मिट तेज भासंकर घोर मिळे ।। जड़ आवध जोस मै पाथ जिसा, दळ पेड़ षत्री उतराद दिसा। . ग्रह पुर त्रमाळ सिंधु गड., पड़ ताळ तुरै अह भार पड़ ॥ : डमरु घण डाकरण डाक डहै, तेतालिय ताळिय वैताळ है ।
लागोय सिर अंबर रीस बधै, षड़िया अस गोगेय षार षधे ।। इम साथ सबै भड़ ओपवियो, देङ्गय छिव ठाळोय काळ दियै । हद सुर मांझी सलखैस हरो, आयोय अस पेड़ य उबंबरो॥
समणी तद सालऐ सीव विया, करहा भर नीर अग्रय किया । .. कमधज षड़े अलंगार कियां, लषवेरे रो साह बमिद लियां ।
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घोरवाण दोय साद फोही विपरीत दिया, सुतैय सुतल णक सांभळिया। सुण साद भयंकर सांवरणरो, जाग्यो दळ नायक जांमणरो॥ दइवांण जुझाउय ढोल दियो, सुगनी अब तेड़ हुँ वैग सियो । दा इम सीग्राय हूँत दलो, भण आज सुनग्ग भूडो क भलो । लड़ काढण वैर परत लियो, कमवज घरां सूय कुच कीयो । कर जोड़ सीयो अरदास करै, पण गोग अजु तीहै नीर परै ।। सुगनीराय वैण दलै संभळे, किरणाळ सुतो सुष नोंद करै । अस पेड़ कमंध जराइ इतै, प्रायोय भड़ काळजे उकळते ॥ . वैरीय जड़ काढ षत्री विषमो, सुप्रवीत धुबे अधरांत समे। सुपै अस जेळय भड़ां सघरां, केवांणिय षापांय छेक करां ।। रिम सीस पासो चित धार रळी, कमधापत भूषेय बाव कळी । चित देस दिसा नह चेतवियो, कमधज दळे सिर लोहकियों ।। कट अोध अरि त्रीय इस कढी, घणहैं सुष थाळ कटी घरटी। प्रिसणां घर ध्राह देवाड़ पड़े, चक्रवत महेवय नीर चड़े ॥ कर जैत सवैर कठै कलियों, वेह सात्रव गोग घरां वलियो ।
दूहा . .. रिण गेगि कर रीस, दल्ला सिर झोकी दुझल । घरटी एकण घाव सु, वड हुय वटका वीस ॥
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तें गोगा रिण ताळ, रिम सिर झाड़ी रळ तली। ... कट अोषण अरि त्रिय इ सकट, साठ सोना रा थाळ ॥ ११३
जे दिन दोयण जीत, वळियो काढण वैर नै । दाणव चढियोजेण दिस, पाय इयो सुप्रवीत ॥
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वोराण दुझल पिता धिन वेस नव गढ हां, छात नरेस । दुझल पित धिन दलो उण, देव धिनो उदेस ॥ कर पुररो लगामदे, पीठज मांड पिलांण । पुगळ जाइ पड़ाइया, एकज · पोहर उडांग ॥
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मसतक बाधो मोड़, फेर दियलेतां फजर । दाणव सुरिगया धीरदे, पनरा कोसां पोड़ ॥ ११७
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अण भंग वांह उभोय, मदु तणो दाषे मरद । अस पोड़ां धुजे धरा, काकै कुसळन कोय ।। पोहर पुल पैतीस, कुकाउ 'जोयाँ कनै । : पोहतो चड़े पड़ाहियै, हैसु कोस छवीस ॥ विधहै सुकहवात, सोह जानी मांडी सुणो । दुजड़ां मुह षामो दलो, घात रिमां अरघात ॥ रिण काको अगरेह, वहियो सुण चंवरी विचा। धीर धरके उठियो, छोडे दुलहण छेह ॥ दाषे . धोर. दुवाह, काहळियो केहर कळी । वलवंत सुसरो बोलियो, रांणकदे रिम राह ॥ जोइया रुप जैवार, पूरा ले फेरा पहन । करवा गोगेसू कळह, जंग मिळ मांडो जांव ॥
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परणे भड़ पूचाळ, सुषले निमक संसार रो। .. दाणव चढियो धीरदे, वेध करण वेधाळ ॥
धर अंवर धड़ड़ेह, हुर अछर सिव हड़हड़ । अस षडिया उबांबरे, जोइया जरद जड़े ॥
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वीरवाण ऊपड़ रज अणपार, गिधिरण जोगण गह गहै । हळ हले गो गादिसी, सजे छतीसु मार ॥
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छंद त्रीठक
वप तेज हळाहळ वाद वहै, सक सूर छतीसुये सार सहै । पैलां पत लैण बळी समथ, हूब होयक हूकळ वीर हथा ॥ ते बेठक भूषाय बाघ तिसा, डाढाळ कठठय गोग दिसा। बोहाळ षड़य अस मोड़ वंधो, कवली भड़ धीरोए नाह कंधो ॥ वप वाहर नाहर, जोम धके, जुध मांहि भिड़े नर जोध जके । दल पायल थाठ हलै दुझल, हुब जाणक सांमद सात हले ।।. डाकिय भुज अंबर धीर डहै, वह पूर विमाण कबा ग्रहै । भुरा मण तीन पुलाब बषै, चढिया षल षावण चोल चषै ।। प्रथमी दस देसांय भंग पड़े, ते भार दलां अहिधुह अतड़े। घण घोर अाडंमर षेह घणी, प्रोपेय जिम नषत्र सेल करणी ॥ काको जुध मांगण गोग कना, मिलाय हुय मारग हेक मना । षिध लागेय बाज घरण षड़िया, अरजीत गेया नही आपड़िया । वप सोच वले. तज मांण वहै, रायठोड़ अगे अध कोस रहै । दल नाथ हलै पंथ देस दिसी, असधीर अफालिया कोस असी॥ वकवाव वधारण वेद भळे, वह पंथ विचारियांम मिले । पुछेय मिल जैनुय वात यहां, सिघ गोग तणो सक साद सहां ॥ सुणतांय मराइके गलही, कर जोड़ हकीकत साच कही। भड़ षोस छला मद गैभरियों, प्रो गोगल छुसिर उतरियो । सूत्रणे अर नेडोय संभलियो, गल चाळण धीर विळकुळियो । भुज पोरस मूछ भुहार भिड़ौ, षेथे चड़ आतुर बाज षड़े ॥
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. वीरवाण सज राग सिंधुय नीसांण सहां, त्रबळी तद तूर त्रंबाळ तहां। . घण वेढक गोग दिसी भिधि रिया, पिंड सांमत पूण्य पाखरिया॥
किरबांण विमाण ग्रह अहिया, रिवा ढांण मसांण छके रहिया। गत घोर अरगज है गहरै, मग पग अमूजय मांय मरै ।
अळगांसुय देषेय थाट अरी, तैयधीर हियै विच धकंधरी। पैय काढण वैर पत्री प्रगटा, घण सालळ सांवण मेघ घटा ।
षड़ बाज नजीक आया षड़ता, तीषाय भड़ काळजै ऊकळता । लंकाळ आयोय घमचाळ लियां, छळ चाळ धीरो जमरूप कियां ॥
सुताय दळ गोग तणा सधरा, अस प्रांण अचांणक लीधै डरा। सुण देष षळां भड़ गोग सही, जागे रिण सुताय काळ जुही ।
विषड़ी रिण चांमंड तेमं विणी, तिण वारसी बीभड़ गोग तणीं। विढवा कज वीरम अोपम वीरमरो, जोइयां दळ सोस जाग जमरो॥
षळ फोज कमंधज देष षड़ी, चवळापत जांणक पंष चढी । बळ नाहर गोगाये देव वरै, कव षांन किसुय बाषान करै ।।
कस प्रावध साज बंधे कड़ियू, धुब सालळ सांमोय धूहडियू। केवियां सिर गोगे कोप कियो, इळ मायण बावन उससियो ।
चष्ष चोळ मुंछा भुयहार भिड़े, ऊतबंग भुजा ब्रहमंड अड़े । हुब रोस चढो सोह राव हणो, तेय नीर सजे दरियाव तणो ॥
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वीरवाण
विध तीर गुणांय धुकार बजै, ग्रह जाण वषा रुत मेघ घुरैजै । संक कुरम सेस सळसळिया, अत वेध दहूँ दळ आफळिया ।।
उवलां भुज यूषग व्योम अड़े पैयलां सिर मार अपार पड़े। जोइयां जद भारथ वाज जुवो, हक होय त्रषावंत साथ हुवो ॥
झिलियां मुंह घावांय हुँत झरे, पिंड वेदल व्याकुल नीर पषै । लड़तां जद कानोय धीर लियो, कूड जद रांणक दाव कियो ।
उर दादर घायक ओळवियो, कल मेलण गोग कनै क्रमियो। भड़ रांणक गोगाय हूंत भरणी, तैयवात हळाहळ मेळ तणी ॥
वध वीरम पाग दलो वहियो, सोइ भिंच दलो तैइ संग्रहियो । घर दोय मिलो कर हेत घणो, तिल सोच रैयो नहीं वैर तरणो॥
कर जोड़ उभै कुरनस करै, धुबवा फिर धीरदे हूँस धरै । हक होयकदादर फूट हियो, पोह नीर जीते ज़ोइयों जुपियो ॥
सोषेय जळ सायर रो सधरो, बळ दाष विरोवर उवंवरो। क्रमियो जद रांणक कूड़ करै, धुववा फिर धीरोय हूँस धरै ।।
जपियो जद रोदांय घात जुवो, हुवा सुर गोगो हुसियार हुवो । हुसियार संसार साधार जुवो, दायतार जूझार सलष दुवो ॥
सत्रु चुर करुरह : गोग सही, गह पुर करां समसेर सही। सह जीत पूर्वीत दळां सबळां, दोउं वेध दरसिय दोय दळां ॥
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वीरवाण रिष नारद जोगण रंभ रळे, बैयवार अड़ी सल लोह मिळे । गज सार अपार तोषार गुडै, रणकार अपार नंगार रूड़ ।।
बैयवार उरां तरवार वहै, कोयवार चंडी जैयकार कहै । भय आयर कायर षेत भजै, सजहार गळे जटधार सजै ।।
वैयवार जुझार गजां मुरड, जिण वार गोगोय जोयार जुड़े । भुज धार बंभार दुरार भड़ां, छणकार षगां रणकार छड़ां ॥
रिण रार सुरां अयगार रूड, भुय भार उतारण काज भिड़ । षग धार गजां असवार षपै, जैकार जट धार जैकार जपै ॥
घुब ताळ धुवाळ कराळ धुबै, बैताळ धुवाळ पंषाळ वजै । सेयलाळ धड़ाळ भड़ाळ सिलै, हद षाळ नदी लोहाळ हलै ॥
. जरदाळ घंटाळ दंताळ जई, भुरजाळ घड़ी विकराळ भई । · वैयमाळ कपाळ धराळ वहै, बैंगाळ दटाळ भोपाळ षैहै ॥
प्रळे काळ सेलाळ धड़ाळ पडै, कड़ियाळ चुनाळ तइ कड़ड़े । बंबाळ वियो रायपाळ बरै, षिमनाळ पुराळ है नाळ पुरी ॥
. धम चाळ अचाळ त्रमाळ घुरी, धूवहाळ मराळ दंताळ धुषै ।
भोयपाळ पंखाय गूदाळ भषै, चोटीयाळ लिया अत वोम चढ़ ।
. परनाळ घड़ा लोहाळ पड़, घड़ियाळ वजै किरमाळ घड़ी।
षेतपाळ रजै वैयताळ षड़ी, घर व्योम पताळ धड़हड़िया ॥
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वीरवाण उर दोनूय माजिय आहड़िया, जोइया अरु धूहड़राव जुवो। हर हूर रथां उदमाद हुवी, भूखीय थटं ग्रीधरण मांस भषै ॥
पड़ सूर धधकैय सीस परे, गज थट्ट गरट्ट ऊछट्ट गृहां। अरण थट्ट भिड़े उमंगें असहां, षगझट विकट्ट कुवट्ट पिरै॥
चट पट्ट प्रांमंषये ग्रोध चरै, तदं रत विकट्ट उपट्ट तरै । घण मट्ट फुट पर रिट्ट धिरै, घम चक्क भभक्क थर थरक धुवो।।
हुब ठक अरक्क थरक्क हुवो, कंधड़क बड़क बड़क्क कड़ी। सजड़क जड़क वैहै सजड़ी, सबड़क बड़क भषै संवळा ॥
गुडळक गळक्क गीघाण गाळ, रही ढक्क विठक्क धधक्कर जी। विरहक्क कटक्क ललक्क वजी, फिफरक्क फरक्क फरक्क फुरै ।।
घण डक्क त्रक्क त्रक्क घुरै, वप श्रोण धधक्क धधक्क वहै । रथ रंभ अरक्क थरक्क रहै, जग टोप कड़ी जडळक्क जड़े ॥
पिड लोथ दड़क्क दड़क्क पड़े, हुय हक्क अछक्क कढ़क्क हुवै । निधरणक्क गहकां चंडी गुरबै, घड़ दोय अकारण होय ॥
घड़ी पित सूर वरै रंभ हूर पड़ी, इम जोस दोउं दळ आफलियू। तटीय इळ अंत रळतळियु, पित सूरज राह निवाज षड़े ॥
लपवेरो अने नवकोट लड़े, वेयभीठ अरीठ गरीठ भिड़े। पांडीसांय रोठ नोत्रीठ पड़े, काळ कीठ वट्टि सदी? किये ॥
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वीरवाण
दोउं वांम झकोयन पीठ दियै, झिलमां सिर वीजळ वाढ़ जड़े । घंण जांण कांसी ठठियार घड़, पड़ेय छक लोहाये सीस परे ।।
थुड़बै विटीया रिणताळ . धकै, धारै सिर अंबर धुहड़ियू। अरियां सुए गोगोय आहड़ियू, रिण जंग तुरंग सुरंग रुळे ॥
पड़ कायर भंग विभंग पुळे, फुल डाडर चंग सुचंग षगां । . . उतवंग बरंग बरंग अंगां, धजरंग पतंग निढंग घड़ां ।।
.
भुज लाग उमंग निहंग भंडा, गुण बांण कबांग जुवांण ग्रहौ । . वप ढांण वेधारण संधांण वहै, अत सांण वाषांण आरांण अषै ।।
पड़ सुर धधकैय सेस संङ्ग, धुब घांण मथांण मसांण धरा । गिर बांण विमाण षड़े गैहरा, किरबांण जिवांण केकाण कटै ॥
जमरांण गोगो अवसांग जुटै, असमांण सुआंण विमांग अड़े। ". जमरांण जुाण आरांग जुड़े, केयवांण वहै तनत्राण कटै ॥
. जमरांण दोहुँ अवसाण जुटै, धुषवेध दळां निय सांण धुबै । .: हिंदवारण अन तुरकारण हुबै, पैय जोगण सुरांय श्रोण पियै ।।
: देय छिब लुहर रंभ दियै, विडतां सुत वीरम देव वकै ।
शत्रु कोय धको नह साज सक, भड़ धीर सधीरह ब्रद भळे ॥
मुह मेज कसंधज हूँत मिळे, गज ढल्ल अचल्ल हमल्ल ग्रहां । बहबल्ल सिंधू बबरै मल त्रहां, बरघल्ल कगल्ल कड़ी बड़. ॥
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वीरवारण
जुध्धमल बेहुँ अड़ियल्ल जुड़, भड़ठल्ल अचल्ल वहै झटकां । हुय हल्ल उथल्ल पथल्ल हकां, कसमस्स कगस्स तुरस्स कटै ।।
छड़ अंतस प्रातस तीर छंट, धसमस्स धमस्स तुरस्स धरा ।' बहु आफल सगंस ऊबंबरा, धजं घायक वायक पूर गहूं ॥
दळ नाथ पठाइक भीच दहूँ, गुण सायक दायक सौर गजै । रिष रंभ विनायक सूर रजै, षळ खायक दायक कूत षगे ॥
वरदायक गोगोय धीर वगै, सज धूहड़ धूहड़ राव सही। वध धीर तणी तरवार वही, अर सानण. मारुय उस सीयों ।।
ते तोडिय पांण रलतलियो, पडिया, पग गोगौये काप पहां । दह धीर अनै सत्र दोय दहां, बैठोय सत्र जारैय उबंबरां ॥
हुय लोह छको सलषेस हरो, ढिंय चाल, षत्री दल दोय दहै । रिण रांणक एक निलोह रहै, धिकतो रिण दीठोय षेड़ धणी ॥
तिह चाह हुई तरवार तणी कथ गा राणक गोगाय हूँत कही । सज प्राय अमां समसेर सही, जोइयो कोइ लेसीये आय जरे ॥
क्यूय रीझ सगा नेह मूझ करे, सुण देष, कमंधज तेण समै । आवे लोय राणक रूक हमै, नर धुहड़ तो मन ध्रोह नहीं ॥
सज प्रोडव मो दिस मूठ सही, चित काहळ मूछ ब्रहां अड़िये । धर मूठ अरी दिस धूहड़िय, सांमी जद राणक सालळियो ।।
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arran
वप गोगइ तैमै विलकुवियो, सत्र साजण रूक पत्री समरी । कल जाणक नट्ट कुलट्ट करी, घेषे कर वेग गोगैय धरि ॥
तद राणक भागोयो देषय, वियमोह हुतां षंग वैग वुही । हृद जंध उभै निरलंग हुई, ऊभी रह कम भाजै मुभि अग्ग ||
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सज तालिय तालिय आव सगा, कहरांणक तालिय हास किसो" । जुग की धोय गोय आप जिसो, चक च्यारुय नामीय चंदवडौ ॥
पाडेय पल हड़ षेत पड़े, घर सूंघट गोगाय काप घणो । तेहां जांप जप्यो नव नाथ तरगो, कटिये पग सेवग साद किये ॥
दरसाव इतै सिद्ध राव दियो, सुभरीझ जलंधर पाव सही । जग कीधोय अम्मर आप ज्युं हीं, हुय सिद्ध गोगो हुय ग्राप माँ ॥
इल अंबर सूरज चंद इतै, सज बाग बलां सलषेस दुवो । हद सूर दसमो नाथ हुवो, सुध वायक पाहड़ षान् सही ॥
"
कव क्रित उकत पर माणकही लष कोड़ करी अस पुत्र है | रिध सिध सदा अणषुट्ट रहै, मोमुज सात्रव दालद रोग मिटे ॥
पिंड प्राणद जोस कलाय गर्दै, कर धूप प्रभातेय पाठ करें । हुय जैत षगां सत्र दोष हरै, धिन धिन गोगा कनवज्ज धरणी ||
तैय पुरिय प्रास कविद तरणी, कव प्रीत हुँता तव क्रीत कहै । रिव चंद जितै तोय नांम रहे,, सिषैय गुण भाषेय क्रीत सु ॥
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वीरवाण तन वाधेय दोलत तास तणे, भव मत्त सारू कवि षांन भणों। तेय कीरत गोगैय राय तणी,घण सज्जन मात पित्र भ्रात घरै ॥
करड़े दुष पाप सिहाय करै ॥ .
संपूरण रूपग गोगादेजी रो । आठा पाड़ पानजी रोवणायोड़ो ।
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परिशिष्ट २
अथ वीरमदे सलपायतरी वार्ता लिखीयै छै ।
राव सलषाजीरो बेटो वीरमदे वडो रजपूत । परभोम पचायण । वडो आषाड़सिध रजपूत | महेवै टीकै रावल मलीनाथजी तपै । सो वीरमदे निपट ओनाड़। मलीनाथजीरा कथनमै नही । सो वीरमदे आठ पोहर अधूला रहै । अढंगा दांन दीजै । तिको वीरमदेजीरो जस सारा रजपूत बोले । तिको वात जगमाल मालावतनै सुहावै नहीं। इतरामें सुहांणा गढसु देपाल जोईयौ किण हेक आंटै नगर महेवै आयौ । वास कीयो । घणो माल वित लेनै घणा अमोलक घोड़ा लेनै महेवै आयौ । देपालजीरै नै वीरमदेजी जीवां चैन घणो बंध्यो । देपाल नै वीरमदेजी मेला रहै । वरस २ तथा ३ वीता | इतरामै मलीनाथजी नै जगमाल देपालरै घणो माल वित देष नै मारणो तेवड्यौ । घावड्या विदा कीया । तरै श्रा वात वीरमदे सांभली । तरै वीरमदेजी देपाल जोईयासु आण भेला हुवा । वीरमदेजी देपालजी बैठा बात करै छै। इतरामै घावड्या आया । आगै देबै तो वीरमदेजी बैठा छ । तरै काई सूझी नहीं । तरै पाछा वलि गया। जाय नै रावल मलीनाथजी नै जगमालजीने कह्यौ । आगै वीरमदेजी बैठा छा । तरै काई समि नाई । मालोजी जगमाल जी, वीरमदेजी सू घणा रीसाया कह्यो । वीरमदे घणी करडी ताणै छै । इतरामै वीरमदेजी मनमै विचारियो । देपालजीरै नै मांहरै हेत मालोजी करै। मारणो तेवड़यो तो देपालनै कुसले काढां । तो रजपूती पणो रहै । तरै देपालजीन कह्यौ। देपालजी अब महेवासु परा नीकलौ । थां उपरै मालैज़ी नै जगमाल चूक तेवड़यो छ तरे देपाल प्रापरो माल-वित, घोडा, रषत-बघत लेनै नीकल्यौ । तरै राठोड़ वीरमदे सलखावत देपाल जोईयारै साथे होय कितरेक दूर पुहँचाय श्राया । तरै वलतां नै वीरमदेजी नै देपाल जोईयै समाधि बछेरी दी । तिका ले नै पाछा महवै पाया । तरै मालैजी बात सांभली । वीरमदे समाधि बछेरी ले आयौ । तरै माले रावल
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वीरवाण
घणेरो बुरो मान्यौ । तिण समीयारी साष -
नीसांणी पवर हुई है वीरमै मन धीर बंधाई ।। जायै सब ही लूणीयांण राणे सरणांई । कुसली वर नो डाईयां संग जाय सिषाई ।। समाधि आंण सलपीयांण तै असमाधि उपाई ॥१
वार्ता
अबै मालैजी नै वीरमजी सासतः चित प्रांति पडती जाय । मलीनाथजी धरतीरा धणी . तिको वीरमदेजीनै क्यु ही दे नहीं । वीरमदे दातार-झझार। संसार उपर वहै सासता धाड़ा प्राणै । तिको इण भांति काम चलावै। गरीबरी प्रतपालणा करे । तिको स कोई चारण-भाट स कोई जस भेट त्यावै । मलां बोलै तिको मालाजीनै सुहावै नहीं। आपरा रजपूतांनै वरजै । वीरमदे कनै मती जावौ । बैसो मती । धाडा साथे मति जावो ।
सो एकरसु वीरमदे सलषावत एक श्राप अमवार नै एक साथे पालौ ले नै तठीनै मोहिलांरा गांव वठै बीकानेर परानै तटी हेरो घोडीयारो वराय नै उठीनै चढीया । वरसालारा दिन था । सो उठै महिलारो देस बापरावटी कहीजै छै । तठे घोडीयां निपट घणी छै। अमोलक हुवै छै । तिके छूटी मोक्ला तालर माहे चरै छ । सो उठै माछर डांस घणा छ। उठे वीरमदे जाय नै धूई कीनी । घोड़ीयां सगली माछरांरी संताई धूई उपरि आई । तिको वीरमदे पांडवां नै मारिनै घोडीयां ले नीसयौ । तद मेहिलारी बडी वार वहै छै । सो सात वीसी कवर पाषती तलाव झलता था । घोडा असवारीरा . कायजै कीया उभा था । त, किणहेक जाय नै बाहर घाली । तरै कह्यो सांहण, रावलो लीयां जाय छै । तरै कवरां कह्यो साथ पैलो कितरोयक छ । तरै उण कह्यो एक असवार नै एक. पालौ लीयां जाय छ । तरै सगलां मोहिलारां कवरां वात मांनी नहीं। इसड़ो. कुण छे? इण ठोड़सु एकल असंवार एक पालो रावलो सांहण ल्यै । यु कहनै वाहर चढीया । आगै घोड़ी -लीयां. जाय छै। दिन घणों चढीयो.छ। वीरमदेजी अमल घणों षाधौ थौ। तिगरी गरी घणी हुई छ। तितरै मारग. विचै एक गूजेगरो वाड़ो आयौ। तरै वीरमदेजी माहे गया। आगै गूजर वडो बष श्रावर ? छै । आगै 'गूजरी गरढी पीढी माथै बैटी उन करै छै। केयक माया दहीरा भरीया छै । केयक माटा दूधरा भरीया छै। केइक माटा चाछरा भरीया छ । तठे वीरमदेजी :नैड़ा प्राय नै कह्यो माता डोकरी थोडी सी तो चाल पाय । तर डोकरी वीरमदेजीन, कह्यौ: बेटा दूध दही तो परमेश्वरजी.घणो ही दीयो छै । तोनै मावै जिक्यु: हेठो उतरि नै. पी:तरै
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वीरवाण वीरमदेजी घोड़ासू हेठा उतरीया नै कटोरदांन काढीयौ । माटा उपरा प्राय नै माटो १ तो दहीरो पी गया । माटो १ दूध रोपी गया । उभा थका होन हाथ पोत्यासुलु या । कुरज़ा विण कीधां च ढि नै अाघा हीज षडीया। नै लारासु सातबीसी कवर वाहर दोडीया छै । तिको ठण गूजरी रै वाडै षोजारा घोजां आया । गूजरी नै कयो माता गोरस पाय । तर डोकरी माता कह्यो ऐ माय दही दूधरा भरीया छै । मोकलो चाछ माटा भरीया छै । थारी दाय आवै सो पीवौ । तरै कंवरांगे साथ घोड़ासू उतरि नै हाथ पग धोवण लागा । अांध्यां छांटण लांगा । चाकरांनै कह्यो पाणी पीवणरा वाटका काढि ल्यावौ । तरै पइसा ५ भरत छाछ भरी छोटी वाटको ल्याया। सो सातवोमी कबरा बारक्यां करि नै माटो १ दहीरो पीधो । तरै उण गुजरी कवरांने पूछीयौ-बेटा थे सिध जावो छो । तरै कंबरां कह्यो माता डोकरी एक असवार ने एक पालो महिरी घोड़यां लीयां जाय छै । तिगरी बाहर आया छां । तै दीठो होय तो बताय । तरै गुजरी कह्यो में दीठो । अठै आयो थी । घोड़ासू उतरिनै माटा २ दहीरा पी नै गयो छै । तिको वीरा थे अबै उण वांस मती जावो । तरै कंवरां कह्यो माता डोकरी ५ म्हांनै किसै वास्तै बरजै छै । तरै डोकरी कह्यो वेटां उणरी इसडी फुरत दीठी छ । थाहरी पिण दीठी छ । थे मत जावो । तरै कंवरां कह्यो बाई इण बातमै समझ नही । कांई हुवो किण ही घणो पाधो तो । पाधां तो बल हुवै नही । तरै डोकरीरा तो वरजीया कंवर लागा नही । कंवरां घोड़ा आगा पडीया कोस ७ तथा ८ गया । वीरमदेजी नै कंवरांरै साथ निजर देठालो हुवी । तरै वीरमदेजी चाकर नै कह्यो । यूं घोड़ी लेनै हालतो होय । वीरमदेजी वाइयांरो सांकडो सेरयो थो तठे उभा रह्या । सो उठे मोहिलांरा कंवर उतावला आया । तिको वीरमदेजी वडा तीरंदाज छै । तिको कारण झाली । सो कत्रांण दीनी । तिको कंवर ५ तथा ७ तीरंसु मारि लीया । जिणरै तीर लागै तिगरै दुवासु नीकल जाय । यु करतां पांच सात सिरदार काजु मारीया । तरै मोहिलांरो साथ भागो । तरै वीरमदेजी वांस घातीया । घोडानै घुरी कराय नै उपरै नाय । पाषतीसु तीरांसु मारै । वीरमदेजी हाथरो तीर पांवडा ५०० पांच से उपरै जातो पडै । तरै मोहिलारा कंवरां दीठो । नाठांही छूटां नही । तरै कंवरां उतरिनै दांतां तिणा लीया नै कह्यो मांने जीवता जांण द्यो । तरै वीरमदेजी कह्यौ हथीयार परा नांषो । तरै उणों हथीयार परा नांषीया ।' तरै वीरमदेजी सगलारा हथीयार भेला कराय नै भारा बंधाया । भारा करा.माथै देनै मुँहदा आगै करि लीया । उणांरा घोडा था तिणारी डोर उगाएँ हीज हाये दीनी नै मुँहढा प्रागै करिनै मोहिलांरा कंवरांनै महेवै ले
आया । सो इणं वातरो संगलांहीने इचरज हुत्रो नैं वीरमदेजीरै अतवर मांगलीयांणीजी थी । सो निपट समझवार छै । तिण वीरमदेजीनै कह्यो अापने इसड़ी बात कीनी न जोईजै । एक तो आप इणांरो वित लीयो । फेर इणां री गत गमाई ईजत गमाई । तिको इण भांति श्री परमेश्वरजी अति सांसवै न छै । तरै वीरमदेजी मांगलीयांणीजीनै कह्यौ । अबै मांगलीयां पीजी थे कहो ज्यु करां । तरै मांगलीयांणीजी कह्यौ जिके गांव माहे च्यार मिरदार हुवै तिणांरी बेटी, थांहरै भाई बंधारी बेटी इणांनै परणावो । इणांरा हाथीयार परा दिरावी । इणांरा घोड़ा वित ल्याया तिको दन डायजामै परो दिरावौ । तरै वीरमदेजी भाई बंधारी बेटी, रुडां रजपूतांरी बेटी परणाय दत डायजो सेझवाला देनै सीष .. दीवी । तिके आपरै ठिकाणी गया । तठा पर्छ
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योरवाण कितरेक दिने वीरमदेजी थटारै पैडै पातिसाही घोड़ारी सोबत श्रावती थी तिका वीरमदेजी मारि लीधी । घोडा लेने महेव पाया ।
___ इतरामै घोड़ारी पुकार पातिसाहजीरी हरि गई । तर मलीनाथजी वीरमदेजीने तेडिनै कह्यौ । वीरमदे मांहरी कितरेक ठकुराई छ। जे पातिसाही सोस्त मार तिणनै म्हे रापां । सवारै पातिसाही फोजां यावती तरै म्हा क्त थारो उपर कोई होसी नहीं । थे थांहरो सूल देपने रहो । तरै वीरमदेजी रीसायनै कयौ । माहरो फाड्यो म्हे हीज सीवां । इतराम वीरमदेजी उपरै पातिताही फोजां विदा हुई । तिका महेवा नजीक आई । तरै पातिसाही फोजारा प्रधान मलीनाथजी कनै यायां । कायो । थाहरै भाई वीरमदे पातिसाही सोरत मारी तिको किसे वासते ? कैतो थे घोड़ारो मन मनायो । नही तर म्हे यांहरो देस पराव करसां । तरै मलीनाथजी उकील प्रधानांने कायौ । म्हे तो पातिसाहरा हुकमी छां । यो वीरमदे नै ऐ थे । थांही दाय वि ज्यु करो । इगगरा गांव पिग जुदा छ: माहरा कथनमें श्री न छ। थाहरी गता गम पावै ज्यु करो । तितर पातिसाही फोजां महेवासु निपट नजीक आई । मालैजी उतर दीयो तिगरी परि वीरमदेजीन हुई । तरै अापरा साथरां रजपूताने कह्यौ ।
आपे पातिमाही फोजासुवेदि कीयां पड़प नावां । मालेजी नै जगमालजी तो पोत कादि दिपाल्यो । अापरी वसीरो लोक हतो तिणने थलीन विदा कीयो । बडो बेटो देवराज लोकरै माथे दीयो तिको वसी लोकनै लेनै थलवट माहे गयो । श्राप. असवार २०० साये लेने सेमवालो १ मांगलीयांणीजीरो साथे लेनै टालो दे गया । तिको जांगलुनै पडीया । वांस पातिसाही फोजा हुई । आगै वीरमदे नै पाछे पातिसाही फोजां । अत्रै वीरमदे सलषावत नै बाहादर दाढी नीसाणी कहे।
नीसारणी मोहर वीरम बांस पंधार जागिरु आया ।। वीसल मोमल भारमल बड़ हठ रचाया । जिगटै हथ कटारें मल पुत्र मुंजे जाया । वीरम कारण सांपले सिर कीया पराया ॥२१
वार्ता
. अजै वीरमदेजी पातिसाही फोजा लीयां जांगल आया । जसै उदो मजावंत सांषलो ठाकुर राज करै । सो जांगलुसु कोस १ नैड़ा आया । तरै आदमी २ मातबर वीरमदेजी मेलनै
* यह नी सांणी वीरवांण की नीसांणी सं० ३८ का परिवर्तित रूप है।
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वीरवाण सांपला उदा मूजावतनै कहाड़ीयौ जे मांहरै वासै पातिसाही फोजां छै । सो था वतै मांनु राषीया जाय तो म्हे माहे आवां । तरै उदै मुजावत उठिनै आपरी मांने पूछीयौ । माजी साहिब जो जांगलुरै ओले आज महेवो अावै तो. प्रांणीजै कै न प्रांणीजै । तरै मां कह्यो बेटा उदा आ देही कारमी छै । रजपूतरी वट छै । किणहेक अांठ आवसी जिकु होणहार छै सो होसी । ओ ओसर आय वण्यौ छै तो चूकज्यौ मती ।।
तरै उदो मुजावत सीमो जायनै वीरमदेसु मुंजरो कीयौ । घणौ आदर भाव मनुहारि करिनै वीरमदेजीनै कोट माहे आणीया । इतरामै प्रभाते ही लांरा लगी पातिसाही फोजां
आई । तिणसु उदो मूजावत जायनै सामो मिलीयो । तरै पांतिसाही फोजां माहे जिंके रुड़ा माणस उमरांव था त्यां कह्यो । म्हे इतरी दूर वीरमदेनै मुढा आगै कीयां आयां छां सो वीरमदे थांहरा कोट माहे छै । तिको वीरमदेने उरो सूपो । तरै उदै मुजावत सषिले ठाकुर कह्यौ । जे क्यु सूरज छाबडै ढकीयो रहै नही । तिको वीरमदे मारा घरमै समावै नही।
आप डेरो करावो । सवारै म्हे समझनें जाब देसां । तरै पातिसाही फोज डेरो कीयो । घास पाणीरो जाबतो करायौ । तुरक पिणं ठंढा पडीया । मन माहे जाणीयो सवारै मानै वीरमदेनै सूपसी।
उदो मुजावत कलविकल करिनै कोट माहे आयो । वीरमदेजीनै रह्यो जे पातिसाही फोजां निपट सबली आई । जे जांगलुग कोटसुधको सहणी आवै नही । उदै मजावत वीरमदेजीनै कह्यो जे श्राप हुकम करो तो राजरा मुढा प्रागै लडिनै काम आवां । जे राजरी दाय
आँचै तो घोड़ा ऊंट'र रजपूत लेनै आवां तरै वीरमदेजी मनमै विचार्यो । जांगलुरा कोटमै तो रह सका नहीं । तरै वीरमदेंजी घोडा ऊंट बलदं घरची उदाजी कनासु लेनै देपाल जोईयारी देंसनै रातूं रात षडीयां ।
वीरमदेजी तो देपाल जोईयों कनै गयो । तुरकरी फोज उठे हीजें रहीं । तरै प्रभाते ही नित्राचं फोजरै नायब उदा मंजावतनै बुलायौ । तरै उदै आयनै मुजरो कीयो । उदैजी आपरा साथनै कोटरो जाबतो दे आया था । कोटरी पोल सैठी जड़ मेलज्यो । इतरो जाबतो करि नै उदोजी तुरकां कंनै आया । तरै तुरकां कह्यौ उदाजी वीरमदेनै उरो ल्याव । तरै उदै मूजावत कह्यो । वीरमदे मारा घरमै समावै नहीं । थे थाहरी षबरि करल्यौ । कोट जोयल्यौ । वीरमदे तौ देपाल जोईयारै देस गढ सुहांणानु षडीया । तरै मुगलां उदा मुजावत नै पकडीयौ । तिको उदारी पग सूषाल पाडणी मांडी । तरै उदारी मा जांगलुरा कोट उपरा चढ़नै जोवती थी । सो उदारी पाल पाडतां दीठी। तरै उदारी मा मुगलांनै कह्यौ हेलो
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वीरवारण पाडिनै । वीरमदे तो उदारी घोपरीमै छै । पगारी षाल माहे न छै। सो थे उदारी षोपरी पाडौ । ज्यु वीरमदे नीकलै । तरै तुरकां कह्यो वा कुण छै । तरै किण हेक कह्यौ. या डोकरी उदा मूजावतरी मां छै । तरै तुरका डोकरीरो वचन सुणनै उदानै परो छोड़ीयौ । तिको उदो जांगलुरा कोटमै आयो । वीरमदे तो सुहाणा नै गयो । श्रागै जोयांरो मामलो करारो-दोठौ । तरै पातिसाही फोज अठासु पाछी वली।
वीरमदेजी जोईयांरै देस देपाल कनै गया । आगै जोईयौ देपाल बीजाई-जोया सिरदार दांण उगरै थो तठे दांणी चोतरै पाया था । तिण दिन वोरमदे सोहांणारै तलाव
आणि उतरीया था । सषरी छांह देखनै देपाल जोईयो दांणी चोतरै बैठो · 'यो । वीरमदेजीरो साथ देपालरी निजर अायौ । तरै प्रापरा भाई बंधांन देपाल कह्यो-। जिसड़ो राठोडरो साथ हुवै जिसडा दीसै छै । तरैः देपाल आपरा बेटा जैतसीनै कह्यौ तु षबरि ले आव । श्रो साथ कठारो छै? तरै जैतसी आपरै घोड़ चढिनै षवरि करणनै अायौ ।
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___ श्रागै वीरमदेजी बैठा था । उठे जैतसी आय जुहार कीयौ । वीरमदेजी पूछीयो. आपो कुण ठाकुर छो । तर जैतसी कह्यौ । हु देपाल जोईयारो बेटो छु । तरै वीरमदेजी जैतसीनै . आयो बुलायो । मिलीया । मिझमांनी कीनी। आपरा माथारी पाघ जैतसीरै माथै मेली । जैतसीरी पाव वीरमदेजी मेलीनै कह्यो। जैताजी देपालजीनै वीरमदे सलषावतरो जुहार कहज्यौ । वीरमदेजी पाघ जैतारै माथै मेली । .
.. तरै सांवणी कनै उभो थो नै ढाढी. बहादर हजूरि उभो थो। तरै सांवणी माथ धुणीयो नैं कह्यो । जे वीरमदेरो माथी इण धरतीरे जासी । इतरे जैतसी सीष करि
देपालजी नै पत्ररि दीनी । जूहार कह्यो छ । वीरमदे सलपावत छ । महेवासुझाया छै। ......... तरै देपाल जी उण सायत: ग्रामरो साथ लेने वीरमद्रेजी...कुनै अाया.. बांह पसाव करिनै मिलीया । वीरमदेजीरो घणो आदर भाव कीयौ नै सुहांणागढ़ · माहे.- वीरमदेजान ले
आया साथ सांमांन सूधा । वीरमदेजी रै प्रधान दोलो गहलोत छै । सघरी जायगा डेरो दिरायौ । घास पाणी घोड़ानै दांणारो जावतो करायो । भली भांति महमांनी करि नै वल कराई । घणा जतन कीया ।
इतरामै वीरमदेजी दोला गहलोतनै देपालजी कनै मेलिनै बात कर.ई ! मांहरो च्यार महीना पड़पाव करो तो म्हें अट रहा । तरै देपालजी मनमै विचार करिनै दोला गहलोतनै कन्यो । म्हे महेवै पाया जदि वीरमदेजी मांसु बढो उपगार कीयो छै। अठै घोड़ा रजपत
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वीरवाण गांव गोठःछ सो:वीरमदेजीरा छ । दस भाई म्हे लूणा, जोईयारै डीकरा करेछ । त्यांरा गढ सुहाणा. माहे दस हैसा छ । त्यु इग्यारमो हैसौ वीरमदेजीरो छ । वसीरा लोकनै घर बताया इग्यारमो हैनो दांणमै करि दीयो । तिको रोजीना दाम ढाल भरीया आवै। आपरी रहवासनै वसीरा लोकनै गांव बडेरणो बतायौ । जत्रै वीरमदेजी जाय रहवास कीयौ ! ..... ... वसीरां लोकां पिण जाय वास कीयौ । वीरमदे वडो रजपूत हुवो । पाकतीरा गांवांरा रजपूत आय नै 'वीरमदेजीरै वासि गांव बडेरणे वसीया । दिन २ ठकुराई वधती जाय । दांणरा गईसा निपटं घणा आवै । तिके रुपीया ढाला भरिनै वहचीजै । वीरमदेजीरी ठकुराई निपट जोरै 'चढी, तरै देपालजीन वल कहाड़ीयौ। इतगमै तो पड पावं न हुवै । तरी देपालजी टालिमा बीस पचीस 'गांव दिराया । वीरमदेंजीनै वीरमदे घणां रजपूतमै जंडांणो सात सै असवारांरी जमीत हुई। ठकुराई जोरै चढी । तिण समीया। नीसांणी ।
नीसांणी ऐहज वीर मराठ. वड सलपाणे जाया ।।
काढि : कटकां लेंघीया देपाल ठभाया ।। .. वीर मनतु सारै आपणै घर मांहि पराया । : झलर पपरीया वतां वीरमदे आया ।
१. नेप थीयां अनिपाईयां पेपि पावत्र बदे । -: चीहल मो हला सापले निव कढन बदे ।
लऐ मरोटह पटगु. नित धरम वंहदे । देस सम. परांणीया सहवीर वंसदें ।
बडे दें. . पन धलीया परिहस . पवंदे । . ..... बहादर उचभि दांणीयां बडे रायसल पहंदे ॥ . . .
. वार्ता : . वले वीरमदेजी दोला गहलोत साथे देपालजी ने कहाड़ीयौ । इणा रोजगारां उपराइणां गांवां उपरा म्हारो पड पाव नहीं । अ परदेसरो मामलो। घोड़ा रजपूत राषीया जोईज । चारण भाटं आवै तिमनै च्यार एका विदारा दीया जोईजै-1. घटदरसण नै सेर बाटो दीयो चाहीजै । अाया गया रजपूतनै.रोटी खवाङी जोईजै । सो थे क्यु दाण माहे इधको है सो कराय द्यो। ... ... . .... ... .. . .. ----
तरै.देपालजी सुणिनै. आपरा भायांने कह्यो । वीरमदे. वडो रजपूत छै। आपांसु बड़ो .उपग़ार कीयो.छ । शापां कनै वीरमदे कठा पिगा वायरी मारी कोयल आवै ज्यु आयो छै। सो थे इणांनु दांण माहे हैसो पांचमो कर दयौं। तर देवालजीरा भाया भतीशं कह्यौः। आप
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वीरवारण
वडेरा छौ । आपरो कीयो कछू लायक छै । तरै वीरमदेजीन हैसो पांचमौ कर दीयौ। . तरै वीरमदेनी पड़ेरणै राजस्थांन घणा रजपूतांसु सुषै राज करै छै । वडेरणो गांव सुहांणासु सातां कोसां उपरा छ ।
__ अबै कितराइक दिन वितीत हुवा । तरै वीरमदेजीरा लोक रजपूत जोयारी धरतीरो विगाड घणो करै । तरै देपाल नै सगला क़हण लागा । श्रा थे किसी उपाधि घाटी । वीरमदेजीरा लोक दीठे दावधर । तीरो विगाड निपट घणो करै । तरै देपाल जोईयो गाडी जोतरि नै गांव वडेरणै वीरमदेजीनै ओलभो देणनै आया । आगै वीरमदेजी मांचे बैठा दाड़ी संवराता था । सो देपालजी आयनै जुहार कीयौ । सो वीरमदेजी मांचे बैठां होज जुहार कीयो । सांमो मांचो पडीयो थो। तठे देपालजीने कह्यो थे ब्रैसो। सो देपालज़ी मन मांहि अटक लीयो । जे धरती मांहरी मांहि रहै नै मो आयां उठि उभो न हुवै । तरै देपाल बोलीयो । वीरमदेजी म्हेतो थासु काई भुंडी न कीधी छै सो थे मांहरी धरतीरो विगाड करावो । तिणरी साप ।
नीसांणी वीरम असी तो साझि कै किते गुनह जाय खवंदे । मुणे सलष वनीडं कीया हुरतांण फुरंदे ॥ हैकण थेक न मावही दुय खग लोहंदे । हेकण झल न मावही दुहुँ सीह मुकंदे ॥ जोईयां भाल पहडीयै काम चालै मदे । । दुय घर डायण परहरै गांवै विढहंदे ॥
वार्ता देपाल वीरमदेजीनै कयौ। थे मांहरी धरती माहे रहिनै मांहग हीज देसरो विगाड करावी छो। सो भली वात । एक घर तो डाकणि हुवै जिका ई परहरै छ। तरै वीरमदे कयो देपालजी थे कहो तिका वात साची । जो डाकणि भूषी हुवै बाहिरलो न मिले तरै घररा नै पायक न पाय । तो बीजारी किसी वात । नीसांगी तिण समीयारी।
नीसांणी वडा दलै देपालदे हर पाल सरोवै । मदो लूणे हंदीय सवल जांधोवै ॥ मुह अपै वीर मराठ वडए नलहन रोवै ।
डायण किण ही न परहरै जो भूपी होय ॥* * यह नीसांणी यां चीखाण में प्रकाशित नीसांगणी सं० ४३ और ४४ परिवर्तित रूप हैं ।
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वीरवाण
... वार्ता . तरै वीरमदेनी देपाल, नै नाहर रो जबाव दीयो । जे थांहरा देसरो नाहर मांहरी वसीरा द्राव सगला मारीया सो थे मरवाया । तरै देपाल वीरमदेजी नै कह्यो । बड़ा ठाकुर इसड़ी वात. अनाकरी कांई करै । नाहर किणहीरा भरमाया लागै । थाहरै जो किण ही वात दिसा उपाव करणो हुवै तो थे जाणो । तिरण समीयारी ।
नीसांगी दला कु लाजै तसी लो झार. जूवारा । .. चोहिल सांजि अपणां वीर चडै सवारा ॥ तु. लेपो लपिवाईयै रेवंत सतारा । वीरम देस दिपावीया सिर देवण हारा ॥ .. वीरम न्याव. न भाव ही अनीयात्र पीयारा । सेई रोजे भिस्त नाय त्यां न्याव पीयारा ॥ •
वार्ता देपालजी वीरमदेजी नै कह्यो थाहरै नै महिरै वात विगाडी छ । अबै लौकनै वरजनौ । विगाड़ करण देज्यो मतो । विगाड़ कीयो तो अबै विगली । तिण समीयारी ।
नीसांणी • राठोडां नै जोईयां कालाई न कंपै ।
अजकल्ह क आभ्रमण पग बहि सेजंपै ॥ नँडो घेह न लम्भही वीरमां मन दपे । सरणागति तुम अावीया जल नावक नपे ॥ सै नर वीरम दिठीयां किरणाला कंपे । मीजां सिसिरं छत्रालीयां देवंगां चषे ॥
सचा धरिया वीर. नाम जिण पुत्र सलपे । - ... वीरम जांण अजाण होइ भै देवण सपे ।।
वार्ता देपालजी तो वीरमदेजी नै भोलभो देनै घरे आयो । तिण समै भाटी बूकण वैर सीयांण नाले आयौ । तरै देपालजी बूकण भाटी रै परणीयौ । तरै दोलै गहलौत राव वीरमदेजी नै.. .
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१०
पोरवाण कह्यौ । रावजी जोईया तो आगे ही चोवीस हजार घोड़ारा धणी छै। ठठा भखर रो पातीसाह मृगतमायची जिणरै परधान बूकण भाटी छै। तिणरै देपाल परणीयौ । अबै अापणे हाथ अांवणसु रह्या ।
तरै वीरमदेजी बूकण भाटीने मारणरो उपाव मांडीयो । भाटी बूकणनै नालेर मेलीयौ । सात बेटी छ । तिको श्रापनै वलेथाहरां भाई भतीजांनै परणावसां । नालोर झेलज्यो नै राज परणीजण पधारयो । सो उण वीरमदेजीरी वात सांभली थी। सो भाटी बूकरण नालर झाले नहीं । भाटी बूकण कयौ पहला वीरमदेजी मांहरै परणीजै तो पछै म्हे थांहरै परणीजसां । तरै भाटीयारो नाले र वीरमदेजीनु ल्याया । सो वीरमदेजी नाल र झेलीयो । मन माहे चूक तेवड़ नै । आ वात जसे लूणीयांण देपालजीर भाई सांभली । वीरमदेजी भाटीयारो नाल र झालीयौ । तिको चूकरो मतो दीसै छै । तरै जसै लूणीयांण देपालजीने कह्यौ । वोरमदेजी चूकरो नाले र झालीयो । तिको भाटीयांनु मारसी । तरै देपालजी कह्यौ जसा भाई था । वात हवां नही लाहोरसु सात कोस तलवडी छै। मारि सकै नहीं। धरती उभी छै! अत्रै वीरमदेजी नाले र झेलनै भाटीयांने कह्यौ म्हारै वैर घणी जायगा छ ! थे जाहर करो मती। असवार पचास साठिसु छनो सिकारै मिस अाउछु । थे कठै ही जणावजो मती ।
इतरो कहिन भाटीयांरा यादमीयांने सीख दीनी । . पाछै वीरमदेजी सातसै पखरैत असवारांसु चढीया सो मजलां मजलारा वीरमदेजी भाटीयांरी तलवड़ी गया। जायनै एक आदमी वधाईदार तलवड़ी मेलीयौ । जाय नै गोरवै उतरीया। आदमी जाय नै वधाई दीनी । तरै सातेई कवर भाटीयारा सामा अाया। प्रांणनै जुहार कीयौ नै ऊपरै तरवारि पड़ी। कंवरां ... नै मारि लीया नै वागां उपड़ी । श्रागै सांमेलो आवतो थौ । सो बूकण भाटीनै सामेला माहे मार लीयो । गांव मारि लूटि रोस करि नै वीरमदेजी पाछा आया । लारै देपाल जोईया कनै भाटीयांरी फिरयाद आई । तलवड़ी मारी । तरै जसै लणीयांण देपालजी नै कयौ । थाने म्हे पहला हीज ह्यौ न थौ तिगरी साबरी।।
नीसांगी देपालै कसमीर दे गल भणे न रोई । वीरम हइस तोलीया सलखाणे सोई ॥ कूटी पीटी तलवड़ी विवाह न होई । जसे जेही जाप दी तेवी ही होई ॥
वार्ता वीरमदेजी पाछा आया तरै दोलै गहलोत कह्यौ । अबै अठै अापां नै रह्यां भलाई नहीं । सवारै यापां उपरै जोईया आवसी । तरै वीरमदेजी गांव वडेरणो छांडि नै रातो राति गाड़ां भार घालि कागासर नै कवलासरमै वासारी वांकी जायगा छ तठे आयं नै
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वीरवाण वीरमदेजी भाग फाटती समा गाडा छोडीया । तरै वीरमदेजी दोला गहलोतनै कह्यो। जोईयांने मारणरो उपाय करो । इसो विचार करि नै वीरमदेजी कागासरनै कवलासर रहे है । इतरामै कासमीरदे भटीयांणी देपालजीनै कयौ मांहरा पीहररो वीरमदे नास कीयो। श्रा उपाधि थे क्यु राखी थी तिणरो फल अ देषौ वले देघसौ । कालंदार सरपनै घर में घाल्यौ तिको आप घणी दुध पावसौ । तरै देपाल मनमै विचार्यो हु जाय नै मोहिलानै तेड ल्यावु छु। मोहिलारै नै वीरमदेरै श्रागै ही वैर छै । उणांरी घोडी प्रांणी थी। उणारा सात आठ वेटा मारीया छै तिको उठीसुतो मोहि आवै अठीसु म्हे जावां तो विचै भिरडामै देनै वीरमदे नै मारि लेसां । इसो विचार करि नै देपालजी वहल १ जोतराय नै माहे बैस नै अादमी पांच तथा साथे लेनै रातो राति मोहिलारा देसनै षडीयां जाय छ। सो कागासरनै कवलासररै गौरवे पाय नीकल्या । सो देपालजी न नाणे आग वीरमदेजी रा गाडा छै सो अजाण थका अाया।
आगै वीरमदे समाधि वछेरी कुदावै छै। होकारा करै छै । तिके देपालजी साथीयांनु कह्यौ थे मोनै कठी ल्याया । श्रागै तो वीरमदे होकार करै छ । साथरां कह्यौ वडा ठाकुरां बीयौ मती । अठै वीरमदे कठासु । तितरै वीरमदेजी नैड़ा आयनै होकार कीया । तरै देपालजी अडायरो अोढि मांदरो मिस करि नै सुय रह्यो । तितरै वीरमदेजी घोडी दोड़ाय नै वहल कनै पाया । तरै वीरमदेजी देपालनै दीठो । तरै कह्यौ अाज युसै कठीनै । तर देपालजी सूतां हीजराम राम कीयो नै कह्यो मौसु भायां चूक तेवड़ीयौ यु कहे छै। देपालनै वीरमदेजी एक हुवा सोहुं श्राप कनै आयो छु । तै मोहिलांने तेड़णनै नाउ छु सो आये भेला होय नै भायां नै मारसां । आपार धरती आधो अाध छ।
तरै वीरमदेजी देपालजीन घरे ल्याया । कुमाररै घरे डेरो दिरायो । वीरमदेजी मांगलीयांणीजीने कह्यौ । म्हे अाज एकलौ देपालजीने तेड़ ल्याया छां नै दोला गहलोतनै वुलायो छै । तिको घर बैठा ही सिकार आई छ। तरै मांगलीयांणीजी वीरमदेजी नै कह्यौ । देपालजी तो थांरु काई वुरी न कीधी । भला थोक जिके देपालनीरा कीया छै । थे इसी विचारो । तिण समीयारी
नीसांणी . . . . . . मांगलीयांणी वीरमा इक सीप सुणीयै । .
'हेकण हथै जोईयां तो साम ठंभीयै ।। कालें रुप न कटीयै जो छांह अजीयै । मधी' पधी नां मरै परमल काजीयै ॥ जो बोहलांणी तांण होय तो अंग रोस जरीयै ।
वार्ता मांगलीयांणीजी देपाल कनै अाया। वीरमदेजी तो अमलां मै चाक हुवा पोढ्या छै। - दोलो गहलोत पिण आयो न छै। मांगलीयांणीजी देपालजीनै कह्यौ । देपालजी इसड़ी
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वीरवास वेला पडै ति बेला थे पिग्ण मां मु उपगार करज्यो । यो वचन याद रापच्ची । थे परा उटी । वहल जोतरो । थे नीकली । रावजी सृता छ । दोलो गहलोत अायां यां उपरै तरवार वाजसी । तरे. देपाल बहल जोति ने रातो राति नीकल्यौ । इतर दोलो गहलोत पायो । वीरमदेली की दोला वधाई देख्यो । देपाल एकलों यांपार हाथ आयो छ । तर दोले गहलोत को मारीयों कना नही । वीरमदेजी कयो अवै मारिल्यो । तर दोलो घावड्या . साथे लेजाय कुमार घरे खबरि कीनी । अाग देखें तो देपाल नहीं । कुमारनं पूचीयो। ... देपाल कठो गयो । तर कुमार कयौ अठामु तो पोदर १ रात से बहल जोतिनै नीकंल्यो। तिको पवरि काई नहीं । कटी ही गयौ । कोस ५ तथा ७ दोड्या पिण देपाल तो जातो रह्यो । दोडिने पाछा उरा पाया । देपाल तो कुसल घरे पुहतो।
अठं वीरमदेनीन दोले गहलोत पिछतायो घणो कीयो जे देपाल घरे आयो कुसले जाय । तरे. मांगलीयांगीजी को रावनी देपाल पापां मुं तो तपरी कीनी थी नै श्राप उणांरी रमिक पायन उगाने हीन मारण तेवडो छौ तिको नारायणनी सांसवै न छ। पछै तो याप जांगो । विगा वीरमदेजी रे मन मनि नही । मन मै मारगरो डाव घणो ही कर छ । हर भांति करिने बोईया मारिनं धरती धाबीजै । इसी वीरमदेनीरा मन में करते है।
इतरे होली बाई नै गेहर वाजगा लागी । सुहांणे गढ गेहर वाजे तिको दोन निपट सरवो वा छ । तरे वीरमदेशी काया जो यां टाकुरांरो ढोल बोहत सम्वो वाजै छ । तरै चाकरा कही महारान औयार ढोल यांबारो छ । अांपनी ढोल लोहरो छ। तिको मधुरो चाजै छ । सोहांगी ने कागासर कोस १२ रो अांतरो छ। ठंढी गतिरो ढोल निपट नैड़ो मुग्णीजे । तर वीरमदेजी कम्यो अांपगणे पिण ढोल अावांरो करायां तो प्रायो।
तरे कारीगराने बुलाय ने वीरमदेनी करो कटक यांवो वढाय ने ढोल करावो । तेरें कारीगरी अरज कीवी महाराज थलवट में गांव में फरास कठकै लामे । तर दोलै गहलोत कमी जोईयां में मार-गुरो उपाय करो छो तो ग्रांपा हालिने वीर धवल नांमा फरास वाढां ने ढोल करावां ने फरास जोयारे पूजनीक है। तिण उपरा जोईया पापांसु वेढ करंसी तर ग्रांपे देपालनै मारि ने सां ।
तरै दोलो गतलोत फरास वाढण नै गयौ । तर वीरमदेनीरै बहु मांगलीयांणीनी छतिका निपट समझगी छ । तिकण सुणीयो दोला गहलोतनै वीरमदेजी जोयांरो वीर धवल नामा फरास वाढणने मेलीयो छ । तरै मांगलीयांणीनी वीरमदेनीन कहे ।
- नीसांगी , उहीज श्रावै रतडी सिर लापै लोवै । .. धोत्री धोकपड़े मोटीयारी - धोवे ॥ चिणेज चवै सार वेप बहंदी होवै । मांगलीयांणीने सांपली . एकायज रोवै ॥ जे फरासन वढीये तो कलिकेथी हो । ....
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वीरवाण
वार्ता वीर धवन नामां फरास वढाय नै ढोल करायो । तरै टोले गहलोत कह्यो । अवै हुसीयार होज्यौ । सवारै आपां उपरि जोईया पावसी । इतरै फरास वाढीयांरी पत्रर गई । तरै सारां ही जोईयां मिल नै देपाल प्रागै पाघडी पटकी । कह्यो देपाजजी घरमै पिसादि घालि नै जोयारो माथो झुकायो पाघडीयां मै धूल पड़ी । जोयांरै पूजनीक फरास वाढ़ीयो तिको वीरमदे अवै पेट मै क्यु कर समावै।
तरै सगला जोईया भेला होय नै घोड़ो हजार २४ सु चढीया । तिण माहे दलो देपालांणी मोहर वधीयौ । आपरा साथ सु वधनै वीरमदेजीरी गायां लीधी नै गोहर श्रांणिनै वाहर घाणी । तरै वीरमदेजी चढण लागा । तरै मांगलीयांणी वरज्या । वडा रजपूत थे इणांरा इतरा खून कीया छै तो एक धून इणांने ही बगसौः। पिण वीरमदेजी तो मांन नही । तिण समीयारी ।
. . नीसांणी
जो फारस न वढही तो कलिकेथी चलै । मांगलीयांणी वीरमा धाय लगी पलै ॥ किणहेक पड पण आपणे धण लीया दलै । हाकां सुणि वीरम ची जोईया दहलै ।। अठ वीस पुडअ कंपीया तिके उथल पथलै । गह भरि वीरम गरजीया अरि तिही सलैः ।। कलि अकथ कीधी सलप सुत जोईया मिल किले । 'छाडावत छिल तेम छर केहरि गज पिलै ।। बरी . अपचर वीर वर माणिग महलै. ।
कविता ढाढी वीर कहि जोईया पर जलै ॥
...... . ... ... वार्ता . .:. मांगलीयांणीजी तो घणा ही 'पाल्या' पिण वीरमदेजी न'मांनी । सातसै सोव . पपरैत असवारांसु चढीया । तिण समैरी ।
नीसारणी 'वीरमदे पीडाईयांता . जिण पचवाणी । 'समाधि नचै पिड पपरी चंगा केकाणी ।।
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१४
वीरवारण वीरम पहरै कपड़े धोए सारक तांणी । राग रंगावलि अंग जिरह झमझपस प्रांणी ॥ वीरम चढीयां सब चढे सवें सलपाणी । माणिक हरीया दोलीया बड थट फरांणी ॥ पाऊं थहै लूझणा जसदी करवाणी । . वीरमनु केहा कहै कहै मांगलीयांणी ॥ जोतु वीरम सलपीयांण श्रागै लूणीयांणी । धीरे धीरे जोईयां आया सलपाणी ॥ . मदो आय विलंब सी वगजे ही पांणी ।
वार्ता वीरमदेजी तो वाहर चढीया । सगला साथसु जोईयांसु जाय नैदे ठालै हुवा ।
नीसांगी वीरमस माधि कुदाईयां जेहा मालाला । भापे भापे प्रावीयो .मोहिल मूछाला ॥ पाहु थट सलूझणा भाला · लूबाला । सा ज्या तोनै जोईयां सलपांण रढाला ॥ एकै कांनी दोलीयौ के वीरम छत्राला । मदो तेजा उथक्या . दल दो छै हीरा ॥ प्रोचक ढाहे दाढीयां तोह . उपर बीरा । वहादर मदो बधीयाद्रि मायं गहीरा ..।।
- वार्ता .. वीरमदेजी घोड़ी षमसाय नै आपड़ीया । मदो सगला कटक आगै छै । तरै मदाने वीरमदेजी दीठो । तगै मदा उपरि वीरमदेजो नांषीया नै आय नै मदानै तरवारि वाही। सोतरवारि तूटि गई । तिणरी साख । '
नीसांणी चावष लायो सलपीयांण छिडता जिण धुटी । थे कुलई यां न मिसरी पुरसाण चिहुटी ॥ .
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१५ .
- वीरवाण मदो दे सिरवालीया न सीस बीच चिमुढी । टेपे एकती फीयु जाण चांच बहुटी ॥ तुटे होवै मिसरी वाच वहादर फूटी । झमदे तेग सलपीयांण किरवाणी तुटी ॥ तर मेपे लास लपोयांण छेड तुरंग उगाही । वीरम दुही मिसरी सारमांतांही ॥ तुटी होय मिसरी बहादर सरांही । वाहण हारा क्या करै जब फवै नांही ॥
. वार्ता वीरमदे तरवारि वाहिनै आपरा साथमै पालो जाय. उभो रह्यौ । वीरमदेजी पिछतावो करै छै । जे मांहरी वाही मदो जीवतो रहै तिको आज दीसै छै। यां रै हाथ षेत श्रावसी । जैतसी देपालांणी को दीठो जिका कर गयो छै। आज आपां सगलांन मारसी। तरै जोईयां विचार दीठो समाधि वछेरी जैता थे फेरी छ । सो तोनै इणरी कीमत छै। तिको तुं इगताली डाकै ढोल वजाय । ज्यु समाधि वछेरी ना तो वीरम देपालो हुवै । तो अपे भेला होय नै वीरमदे ने मारा।
इतरै वीरमदेजी वाग उठाई । वीरमदे नै आंवतो देष जैतसी इगताली ढोल वजायौ नै होकार कीया । तरै समाधि तो नाचण लागी ज्यु ढोल वाजै ज्यु घोडी नाचै । आधो पग नचातरै । तरै दोलै गहलोत कह्यो । वडा ठाकुर उरो आव । अबै परो मरावै छै । तरै वीरमदे घोड़ी पाछी वाली । तरै जैतसो पाछ श्रायनै घोडीरा पाछलां पगारै झटका री दीधी नै घोड़ी तो हेठी पडी। तरै वीरमदेजी लाराने उतरीया । तिणरी साधरी ।
नीसांणी आंबदीया हीघ तीय न छोह छोही दगी सै। • जैतल झाडी कराचली आप केही वगी ॥ · समाधि दीयै क्यु नां रही त्रिगनालि विलगी। उझकै देता जिण करै निहु होय पगी ॥ वीरम समाधि कूद ही होकार देई । धाई धाई अखीय ढोल वजैघाई जैतलघुई ॥ मिसरी सो वन जडाई उतरीया कर्मध जै पगवडाई । वीरम समाधि गुझाय के असमाधि उपाई ॥
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. वीरवाण
वार्ता अठै मदोनै वीरमदे दोनु लथो बथी हुवा । माहो मांहि कटाां . वही । वीरमदेजी कटारी वाहै तिकौ मदो टाल जाय छै । वीरमदेजीरै कटारी लागी मरमरी मदो वीरमदेजीरी चोट फबणदे नही । तरै वीरमदेजी दांतां सुकटारी झाली मदानै बाथांमै झालि वीरमदे .. दांतां सुकटारी चलाई । सो मदोनै वीरमदे दोनु रिण घेत रह्या । तिणरी साख ।
नीसांणी मदो नै वीरमदे दल मझ समेत । उ जोयो उ राठवड़ राजै छत्र पते ॥. .. दुहु घती गलवथीयां दुहु अहथ घते । जाणै छाजां वजीयां किरमाल उलते ॥ . मदो नै वीरमदे रिण रो है फवै । . उ जोयो उ राठवड़ मन दुहुँ गरवै ।। वहादर लूणै सलपीयांण वहिगए सलछ । सके हथ कटारीयां मतवाले पछै ।।
वार्ता वीरमदेवज काम आया । तरै दोलै गहलोत पागड़ौ छाडीयौ । तरै सगल साथ पागड़ो छोड्यौ नै आमो सामा तरवारयां भिल्या । तिणरीसाष ।
नीसांगी राठोड नै जोईयां तेरी धुहकारा । माणिक हरीया दोलीया यड़ थाट कगरा ॥ रायाहु थटां लूझणा खांडा दो धारा । वीरम पासै दोलीयै भलकीया उतारा ॥
वार्ता दोलै गहिलोत माणिकदेनै कह्यो । माणिकदे मदांणी मदाजी प्रवाडै तो वीरमदे । वीरमदेजीरै प्रवाडैमदो । वड़ा रजपूत साँमै मुहडै आव । तरै माणिकदे मदांणी दोलो गहिलोत दोनु लथोवथी हुवा तरवार वाजि नै बेहु रिण खेत रहया । तिणरी साखरी।
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'वीरवाण ..... ... .तीमांगों
.. . . . :: .. राठोडां नै जोईयां बाजी निकरारी ।
दोलै धीहि मिसरी पुरसांण पलारी ॥ माणिकदे बल छंडीयौ . वडनरी करारी । माणिक लड़ीया दोलीया हुँ ईस हारी ॥
वार्ता माणिकदे ने दोलों दोनु लड़ि नै काम पाया ! कलौ मोहिल नै जसो लूणीयांण दोनु लडिनै काम आया । तिणरी साख ।
. नीसांणी.... . : त्रापे त्रापे आधीया - मोहिल : उदंडा. । __.. खवै खैडा चित्रकोट झरल झोरंदा ॥ .
वहादर · ढाढी अखीया नीसांणी छंदा । चाकहि जांण उतारीया सिर जे सोहंदा ।।
वार्ता . .अठ, वेढ नीवडी। देपाल पाछौ जाय उतरीयो । बगतर उतारि नै देपाल जोईयो अपूठो रिण जोवण नै अावै छै । निसंक थको पुनड़ा आहेडीरा हाथ पडि गया है। पिण सावचेत छै । तरै पुनडै आहेडी देपाल नै अावंतो देख नै दोला गहिलोत नै कह्यौ । दोलाजी देपाल नै अांवतो देखौ छौ । थाहरो हाथ सावता छै नै मारै डांगडै तीर चढायद्यो तो देपाल नै पाङि राषुः । तरै दोलै गहलोत विसनै डांगड़ो चढाय द यौ । पुनडै अाहेड़ी पगांसु डांगडो झाल नै तीर दांतांसु झालिनै देपाल रै बगल मै झाटकी । तिको तीर दुवासु फूटि बगवल मै जाय लागो । देपालजी तो रिण खेत रह्या । जो यां माझी मारि राख्यौ । तिणरी साख ।
.... नीसांणी धण हय झूती पुनडै जे पट. पलोटी । . चुण तरग सहुँ कढीया चे भरी क पोटी ॥
देपालै तन लाईयां बात करी न खोटी । .. चोगुणी कीनी पुनडै रावतां दी रोटी ॥ .
वार्ता ' राठोड़ वीरमदेजी रो साथ सगलो काम आयौ । जो यारो साथ साढी तीन हजार लोक 'कॉम अायो । देपाल जो यासु मांगलीयांणीजी उपगार कीयो थौ तिण सुगांव वसी लूटी गई । तरै मांगलीयांणीजी नै से झवाले छै सांण नै आदमी ४ साथेदेन मारवाडि नै पुहचता कीयाः।
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१६
वीरवाण
माल वित तो लूटि मै गयौ सो थलवट माहे चारणारो काला उगांव छै तमांगलीयांणीजी आप छोनों रह्या । चूडोजी नांना वरस ५ तथा ७ मै छ। संवत १४४० वीरमदे जी काम आया । काती वदि ५ राठोड वीरमदे काम आयो । तिण समीया रो गीत हर सूं बारट कहै- .
गीत वटाऊ वात कहो वीर मायण, जोषम दीह तणे जडीया । । पोरस अायस कोई पूछे, पैला केता रिण पडीया ।। विढण वारवांण कहो वटाउ, ऐता क्यु मैं आवडीया । सैहथ आप महेवा सांमी, पाडे माझी रिण पडीया ॥ वीरमसु देपाल विढंत, अणी चढे नह उवरीया । राव जोयां अनै कमधन राव, रावविहु भेला रहीया ।। रावधूरा भई वीसलदे, करे काट भ्रष साथ कीया। . अंतेवरां न मु क्या, एकल पण पर सुंय साझण हार पीया ।।
वार्ता
त
.
..
वीरमदे पुत्र राव चूडो १, देवराज २, गोगादे ३, जेसिंघ ४, विजो ५, देवराज वीरमोत बडो बेटो तिण नै वीरमजी महेवासु नीसरीया । तरै महाजन लोक वसी सगली दे नै थली माहे मेलीया था । सो लोक लेनै देवराज थली नु गयौ। तिको देवराजजी कालाउ सोम सिर विचै पूगलीयो को हर छै । तराज थान मांडि नै रह्या । जेठांणीयां कनै त, रहै छै । पमारांरी ठकुराई तद सहज मै भागी थी सो थलवट माहे गांव हुरडावै अासाय चांके इक फुटकर रजपूत रहता । तिण कालाउ गांव माहे देवराज श्राय रह्यो थौ। सो श्रो रजपूत दिन २ गलता गया ऐं धरतीग धणी होता गया । देवराजरी ठकुराई बंधी तिके देवराजौ तउठारा उठे हीज रह्या । देवराज पुत्र रावतराजो १, दुरजन सल २, महिराज ३, पूनो ४, चाहडदे ५, गोगो ६, रांणो ७, खीमकरण ८ । इति राठोड़ वीरमदे सलखावतरी वार्ता । अथ गोगादे वीर मोतरी वार्ता--
गोगादे वीरमोत वडो रजपूत । सेवालै राजथांन वडो आषाडसिध । गोगादेनु मांणकी तरवारि जलंधरी नाथ दीधी । वडेरणे रैहता वीरमदेजी थकां एकै दिन रावल मालाजीत नु जगमालजी नु दसरावा उपर गोगादे मुजरो करण नै महेवै आया था । सो रावलजी उठै ही राषीयौ थो।
एक दिन जगमालजी गोगादेजी कना भैसा नै झटकौ बुहाडीयौ सो गोगादेरा भटका सु भैसा रो माथौ अलगो जाय पडयौ । तरै सगले साथ झटको अषांणीयौ । तिको गोगा देरा वपांण जगमाल नै सुहावै नहीं । तरै जगमाल श्रोकर वचन बोलीयौ । भैसानै आगै पार्छ
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बोरवाण
बांधिनै माथो चाट तिणरा किसा बषांण । रजपूती पणौ गोगादेजीरो जद. जांणा दला जोईयारो माथो इण भांति पा. तो वापरो वैर लेतो । इसो वचन जगमाल, गोगादेनै सुणाय ने कह्यो । तिको गोगादेरा मनमै हुसार वही ।
गोगादे वरस ३५ री उमर छै । इतरै गोगादेजी जासूस मेलीया । तिकां जासूसी पजोय दला जोईयारी निगै लेनै गोगादेजीनै प्राण कह्यौ । दलो जोईयो ढांणीयां रहै छै। प्रांमो सांमा गाडा उभा करिनै हेठ ढोलीयो विछायनै धणी धणीयांणी सुवै छै । फलाणा थल हेढ़ दला जोईयारा गाडा छै । इतरी परि जासूसा आण दीधी।
__ इतरा मै धीरदे जोईयो दला जोईयारो भतीज जिण जेसलमेर परणीजण जातां का कीनै कह्यो थौ जे आज काल्हि सांवण श्राकरा बोलै छै । तिको अण चीतीया वैरीयां सुध को होय तिण सुमो श्रायां पहली मोसर देषो तो वेगी पबरि मेलजौ । इसोकहिन जांन चढो।
अठै गोगादेजी ३०० रजपूतांसु चढीया । तिको राती वाहो दीयौ । दलौनै दलारी बहु रथांरा अोधणां हे? सूता छै। त, आय गोगादेजी माणकीनां मा तरवारि मेली। तिको दोय रथांरा अोधण नीचे धणी धणीयांणी सीरष पथरणो दोवड मांचो नीचे घरटी एकण झटकासु इतरा वाढीया । तिण समैरा ।
दुहा समि गोगादे साट, वाही. वैरां वालवा । अोघट घरट निराट, दोय रथं अोधण वरभीया ॥१॥ गोगै वीरम वैर छल, ए वाही कुलवट्टः । दोय रथ अोधण वरत्रीया, सीरपइ सघरट्ट ॥२॥ गौगै वीरम वैर छल, भली ज वाली रीस । माऱ्या दला जोईया, बटका कीया बतीस ॥३॥
वार्ता इतरामै वितले नै पाछा वलीया । दला जोईया रो घोड़ो असवारी रो नाम पावटौ तिको भूहरामांहि बाधो छ। तिणनै ‘मदा जोईयारी बहु कह्यौ । थारा असवारनै मारयो लूण रीता सीर · वहो तो आ वेला छ। जेसलमेर जायनै धीर देने वाहर घालि घोडाने छोडीयो । तिको जेसलमेरो मारग लीयौ । तिको जेसलमेररै गोरिदै जांती हीस कोधी । तिका धीर दे कानां सुणी। .
तरै तीजो फेरो लेता था । तरै घोडै वले हीस कीनी । तरै धीरदे जोयो इथलेवो छुडाय नै चोथो फेरो विण लीधां चढीयौ । साथे रांणंगदे भावी हुवौ । सातसै असवारांसु
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बोरवारणः इणां पिण पाधरा यो सांटीया गोगादेजी रा साथसु देठालो हुवो। तरै गोगादेजी साथ तलाव रोकीयौ । बेहु साथ तरवारयां वागी । तिण समै जोईयां भाटीयारा साथनै तिस लागी तरै रांणंगदे भागी गोगादेजी नै कह्यौ तु मारवडिरो छत्र मांहरो साथ त्रिसी यो पांणी विण पीधा मरसी तौ अगत जासी । तिणसुमानै तलाव पाणी पावौ । म्हे पाणी पीनै तलाव थांनै पाछौ सूपदेसां थां विचै मां विचै कटारी उपरा हाथ दे कह्यौ आ छै । किण ही वातरो अपसोस जाणज्यो मती। रांणांगदे भाटी राम नमै धगो तिको कटारीरी पडदड़ी मांहि तीतर राखीयो छै । तरै गोगादे साच मांन आपरा साथसु अलगा जाय उभा रह्या । जोईयां भाटीयां पाणी पीनै फेर तलाव उपरा वेढ कीधी । गोगादेली रो साथ सारो काम अायौ नै गोगादेजी लोहांसुधापनै पडीया । गोगादेजी रा हाथ रो खडग विजैनांमा नव हाथ वधै । तिको गणंगदे नै कह्यौ । वडा सगा भो मांहरो खडग विजैनांमा थाहरा हाथमै राघौ । तरै रांणंगदे बोल्यो । थे राठोड भाई छौ । थाहरो वेसास किसौ। तरै गोगादेजी श्राप दिसी अणी कीधी । मूठि रांणंगदे भाटी दिसा करिनै हाथ पसारयो । तरै भाटी षांडो लेण नै सलबौ आयो दीठे। तिण समै गोगादेजी छुरीसु उछाल मूठ हाथमै झाल रांणंगदे नै वाही। तिको जांणे सावलमै तांत वही । गोडां उपरा पडी । तिको राणंगदे पूदा हुवाणा पटदे धरती पड्यौ।
तरै गोगादेजी हसीया । दांत चोकारा मोटा छा । तिको देषनै भाटी रांणंगदे कह्यो । वल्या दांतारो घोस । तद गोगादेजी कह्यो मांहरो कोई केडांयत होय । तिको पांचे पचासे दिने वैर ले । तिको भाटी ठाकुरां कना लेज्यौ । तटासु गोगादेरो पैर भाटीयां रै माथै टाहरीयो । संवत् १४४७ रा जेठ वदि १३ भुणीयारडा गांवरी पावती तलाव उपरा काम आया । .
कवित्त चुडो चरुं.. सु गाल राव गुरु राव मणीजै,
विजो वीर वीराधि लाप मै एक गिणी जै। गोगा देगिर मेर जिको नरपति नारायण,
जेसिघ दे जगपति अाहेत पण दांन परायण । देव राज दांनइ . लउ परै,
सरणाई सुहडां जणा । . ' कहीया प्रगट महि मंडले, . . . . . सात पुत्र वीरम तणा ॥१॥
वार्ता .. सात सिरदार जोईयांरा काम श्राया । गोगादेजीरा तीन सिरदार काम पाया । गोगादे पुत्र करमती १. सहसमहल २. केला ३. सैसा ४. उदेकरण ५. सहसमलरां वेटां पोतरानै टीवरी गांव पटै छ । फेलारां बेटा पोतरांनै पिरज गांव पटै छ । उदैकरण गोगादेजी साथे
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वीरवाणकाम अायौ । जेसिघ पुत्रः सूरो १, अल्हो २, नरो ३, तेजो ४, वैरो ५, इणैरा बेटा पोत्रा निने गांव छै।, . . . . . . . " इतिगोगादे वीरमोत्तरी वार्ता । - भाटी रांणंगदे गोगादेजी रे हाथ काम आयौ । तिणरो बेटौ तिण अरडकमल चुडावतनै मारयौ । तिणरो वैर राव चुडैजी काढीयौ । पछै तिण अांटै केलण भाटी मुलतांनरी
फोज ल्यायनै नागोर मराई । पछै तिण अांट राव रिडमलजी यासणी कोट जाय नै भाटी __. देवराज सातलोत मारीयो । पछै वैर भागौ ।
तरै राव रिडमल रो बेटा सह हुता.पिण एक ना थो। रिडमलजी रो बेटो वैर भांजणरी वेका न थो । तरै सारां राठोडां कह्यों भाटी ठाकुरां नाथो नहीं पायो छ। तरै केलण भाटी कह्यों राठोड ठाकुरां मांहरै ही इसडा नथड़ भथड घणाही छ । तरै सारां राठोडा कह्यो ठाकुरां नाथो रिडमलौत. बारै छै । तरै सगला भाटी ठाकुरां कह्यो इण वातरो विसो सोच छै । नथड भथड केई छै । इण वचनरा श्रांटा उपरि नाथै अको केलणत मारीयो । पछै नाथरां वेटा केलण भाटीरां बेटां यणा दिनताई वैर धषीयो । पछै राजा रायसिंघ बीकानेररो धणी जेसलमेर परणीयो तरै राजा रायसिंघ रावल भीमनै नाथरां बेटां पोतरांनै अका केलणौ तरां बेटा पोतरांनै भैला बैसाणीया । तद पूरों वैर भागौ । .. राठोड वीरमदेजी गढ़ सोहाणै जोयांरै मामलै काम आया तरै मांगलीयाणीजी चुडानै लेनै मारिवाडि माहे अाया छां। नाथ काथलवट माहे कालाउ गांव के चारणांरो तठे रह्या । श्रापो प्रकासीयो नहीं । मोल मजुरी करिनै पेट भरै नै चुडोजी वरस ७ तथा .८ मै छै । तिको गांवरा टोगडा चरावै । एक दिन चुडो टोगडा चरावतो षेजडी हे? सूतो छै। इतरामै एक कालंदार सरप चुडारा माथा उपरि फण करिनै बैठो छ। तिण समै अाल्हो चारण जाति रोहडीयौ घेत देषण नै प्रांवतो थौ । आगै देखें तो चुडो मारगमै जडी हेठे सूतो छै। उपरी निजरि आयौ वासिग राजा । तरै चारण मनमै विचारियौ वात उल्याडी नहीं। इतरा दिनांमै . इणडा वडारी ठीक न पडी। किणरो. वेटो । किणरो पोतरो । जाति किसी । तरै सोच विचारिनै राजा वासिग नै कह्यौ गोग धरमी वडा चहुवांण ओं ताकि हुवो तो. भली वात...! तरै सोग धरमी: तो पयाल-दाषल. हुवो..! तरै चुड़ा.ने जगायने पूछीयो.बाबा तु कुण 2.। साच कहि । घणो हठ करिने पूछीयौ । तरै चुडैजी कह्यो हु वीरमदे: सलषावतरो बेटो छु । तरे चारण मन मै जाण्यौ अावात जुगत छै । अठै चारण सुभराज दीयो । कह्यो बाबा तु माहरो धणी छै । थारै माथै छत्र बेगो मंडसी । तुंधरतीरो धणी हुसी । तरै तु मानै कांहु देसी । तरै चुडै कह्यो बारटजी राज हुं धरतीरो धणी हुवौ तो राज मांगसो तिकु देखें।
.. तरै चुडानै लेनै चारण मांगलीयांणीजी कनै आयो। मांगलीयांणीजी नै अोलभो दोयो । मांत लिछमी राज मांहरा धणी इतरा दिन वात पल मै राषी । तरै चारण मा बेटां नै कपड़ा कराय दीया नै कह्यो रावत मालाजी रै नाई भीवो प्रधान छ । तटै चालो तो राजरी जमीत टहरावां।
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वीरवाण तरै चारण मांगल यांणोजीनै चुडानै माथे लेनै महेवै छांना आया। मांगलीयांणीजी तो गांव मै छांना ओ ताकि राषीया । चुडीनै लेनै भीवा षवास कनै गया। राम २ कीयौ । हेठा बैठा । तरै भीवै षवास पूछयो । बारटजी राज ओ मोटीयार कुण छै ? तरै बारटजी भीवारा कान मै वात कही । वीरमदेजीरो बेटो चुडौ छै। मांगलीयांणीजी गांव माहे फलाणी जायगा छ । भीवाजी राज चुंडो आपरै षोलै छै। वरदासत करावज्यौ । इतरी भलावणि देनै बारटजी सीष कीनी । पछै भीवो षवास मांगलीयांणीजी रे पगां लागा नै घरची दिराई । कितरायक दिन तो इण तरै गुदरांन कीयौ । चुडोजी भीवा षवास कनै रहै सादो रजपूत रहै जिण तरे।
एक दिन मालोजी दरबार बैठा था । भोवो षवास चुडानै लेनै दरवार गयौ। मुजरो करि नै हेठा बैठा । इतरामै रावलजी नाडालोड करण नै उठीया । तरै चुडै उठिनै जोड़ी श्राधी कीनी । तरै रावलजी सांमी निजरि देनै जोयो । नाडा छोड करिनै पाछा पधारया । तरै भीवाने पूछोयो । भीवा ! श्रो मोटीयार तो कनै कुण छ । तरै भीवै हाथ जोड नै • अरज कीनी प्रथीनाथ तकसीर माफ हुवै तो रावलजी मु मालिम करु । तरै रावलजी कह्यौ हुवै तिका परी कहो । थारो कह्यौ कोई लोपां नहीं। तरै भीवै कह्यौ महाराजरो घांना नाद छोरु छै । वीरमदेजीरो बेटो चुडो छै । तरै रावलजी वतै भीवानै क्यु कहणीबायो नहीं। तरै भीवारा कह्यासु सालोडी गांव थांण मेलीयौ । तिको चुडो रोजिगार पावै ।
अबै चुडारो दिन वलीयौ । जिका ते वडे तिको पाधरी पडै। चुढारी ठकुराई बधी। चुडोवज वजीयौ । साथ सांमांन राषण लागौ । सो मालै रावल सुणीयौ । तरै भीवा षवास नै अोलंभो दीयौ । भीवा तै पा किसी उपाधि घाटी । वीरम विराघीरा छोरु वधारया । तरै भीवै कह्यौ । रावलजी सिलामत आप अागै जिण ठाकुर कही छै तिको षरीज हु सी । पिण मै तो घणो बधीयो क्युही दीठो नही। यु कहि नै भीवे वात टलाय दीनी । पछै तीण दिन सु चुडै भुजाई मांडी । लोकां माहे घणो जस हवौ । तिको रावलजी घणो दुष पावै । तरै रावलजी सालवडी जांणरो विचार कीयौ । तरै भीवै चुडाने कवाडि मेलीयौ जे रावल मालोजी साल वडी पधारसी । थे सादै सैलवेस माहे रहज्यौ । तितरै मालोजी पिण सालवडी आया । तरै . चुडारो लवेस सादी सलै दीठौ । तरै रावलजी कह्यौ । मां प्रागै जिणां ठाकुरां कह्यो तिणां रै मुहदै धूल पडसी । सरै रावलजी पाछा महेवै आया । वांस चुडो इणं हीज भांति वज वजीयौं ।
इतरामै चुडानै माता नागणेची । तूठी प्रतक्ष होय नै चुडासु वातां करै । जठै चुडो जठै चांमंड । सो एक दिन चांमंड अाधी रातिरी आय नै कहण लागी। चुडा जागै छै? . तरै चुडै कह्यौ माताजी जागु छु । तरै माताजी कह्यो । सवारै जालोर दिसले मारग व्यापारीयांग पोठ्या ४ लुणसु भरीया छै । माहे सोनारी ईट छै। उपरा लूण छै । तु सोनो उरोले । तरै चुडो पांच सात अादमी मातबर लेने जालोररा मारगमै जाय बैठो। प्रभाते ही पोठीया लीयां व्यापारी आय नीसरी या । चुडो व्यापारीयांनै पकडि नै पठीया ले आयो। मांहसु सोनो कादिनै परची कीनी । बाकीरो सोनो गांवरी सीव मै धरती मै गाडि दीयौ । पोठीया पाछा लूण सु भरिनै महेवै पुहचता कीया। पछै व्यापारीयां नै छोड दीया । तिके रावल
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वीरवास । मलीनाथजी कनै पाधरा फिरादु गया । तरै रावलजी चुडानै बुलाय नै हकीगति बूजी। इणांरो माल क्यु लुटांणो । तरै चुडैजी अरज कीवी महाराज राहगीरी दांण मांगतां बोलाचाली हुई । तर यां व्योपारयां दरबाररां चाकरां नै गोता दीया । तिण उपरा दिन १ तथा २ रोक वसांणीया । ऐ समाचार छ । तरै रावलजी वात सांची.माननै चुडा नै सीषदीनी । व्यापारीयांन परा धुरकार दीया । झषमारो छौ । कुडी फिरीयाद क्यु करणी पडै । तरै व्योपारी फीटा पडिनै परा गया । रावलजी दीठो लण मै माल कुण घालसी । कूडो तोफांन करै छै। अब चुडाजीर हाथ माल आयौ । खरचीरी बोहताज हुई । णि समै मंडोवररी धरतीमै तुरकाणी हुँती । धरती माहे फुटकर सा रजपूत हुता ने कोटे चाईदा मांगलीया । सिध लइणारी चोरारी हुती नै मंडोवर तुरकारो थांणौ रहतौ । तिको टेचा अासायच मांगलीया सीधलां कना घासरी षरहरी मंगाई सो इणां संगलां ही प्राणी । तरै मुगलां ईदांनै कहाडीयौ घासरी पर हरी थे पिण ल्यावज्यौ। तरै ईदां मनमै विचारि दीठौ । धरतीमै लोक कोई न छै नै श्रा वातं भली न लागै । सवारै वले म्हांनै हीज वेगार पकड़सी। तरै ईदां माहे वडेरो हर धवल गोडावत उदो गोडावत ए दोनु भाई बडा रजपूत छै । सो इणां मुगलांसु जबाव कीयो । म्हे षरहरी आणसां। घरांने सीष कीवी।
- श्रथमणरा भाई बंध बुलाय नै अालोच कीयौ जे मुगल तो जोरै चढीया । आप इणः भांति पडप सकसा नही । जे थे क्युबल बांधो तो आपे मुगलांन मारां । तरै सगला ही भाई बंधां कह्यौ महिरै थे बडेरा ठाकुर छौ । जिका थे करसो तिण बात माहे सगला ठाकुर छां।
तरै ईदां गाडा षडरा एक सौ १०० घाससुभरीया । गाडां माहे पांच २ जणा कट रजपूत बेसांणीया नै गाड्यां जोतर नै मंडोवर गढरी तलहटी जाय उतरीया । हर धवल गोडा डे तउ दो गोडा उत गढ उपर गया । वडेरा मुगल हुता तिणांने कह्यौ म्हे षडरा गाडा आणीया छ। तरै मुगल पांच सात सिरदार हुँता तिके षवास पासवान लेनै गाडा जोवण नै तलहटी आया । मुगल घात माहे आया दीठा । तरै एकण समचै गाडारा बंध षोलीया नै लोह उडायो । मुगलांनै तो. मारि लीया । मुगलांरा आदमी २०० मरण गया । इणारा पिण
आदमी पांच सात काम आया । तुरकांरा. माझी मरण गया । मादलीयो मारयौ नै फीटी गोट गढ मंडोवर ईदा उरोलीयौ । गढ लेनै ईदै हरधवल उदै मनमै विचारीयौ। भाई बंधा नै कह्यो । गढ आपणे पांचे पचासे दिने पछ ही रहसी नही । तिणसु गांव सालवडी रावल माला रो भतीज वीरमदेजीरो बेटो चुडो छै । तिणनै गढ दीजै । तरै सारां ही ईदां मिलने कह्यौ । राज मांहरै वडेरा छौ । रावलीदाय आवै ज्यु करो। __ तरै ईदो रायधवल सालवडी आयौ । प्रायनै चुडाजीनै कह्यो म्हे मंडोवरगढ लीनो। छै । राज गढ पधारिन टीको कढावो । तरै चुडौजी श्रा वात मानै नही । जे गढ लेने मांनै कुण देसी । तरै राय धवल ईदै आपरी बेटीरो नालेर दीयौ । तरै राव चुडो ईदारै परणीयो । टीको काढिनै गढ मंडोवर हथलेवा मांहि दीयौ । राव चुडों मंडोवररो धणी हुवो। ईदा रजपूत हुवा सो आगे धरती माहे सीधलकै कोटेचा मांगलीया रजपूत हुता । तिणांनै राव चुंडे काढीया नहीं। धरती माहे आपरा थका रजपूत राषीया । मांगलीयांणीजी आपरी मा राव चुडैजी महेवासु बुलायं लीया । मंडोवर ठकुराई चुडाजीरी वधती गई।
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वीरवाण
- दुहो .: . . . इंदोरो उपगार, कदेय भूलो · कमधनां । . . . .
सहु जाणे संसार, मंडोवर हथलेवै दीवी ॥१॥ ... : तठा पछै राव चुडौ नागोर उपरां गयौ । तरै नागोर मांसु तुंरक नाठा । नागोर राव चुडै लीधी । पछै राव चुडो नागोर हीज रह्यो । ठकुराई निपट जोरै चढी । राव चुडारा पवाडा घणा छ । इतरामै अालो रोहडीयो कालाउ गांवसु चुडानै धरतीरो धणी हुवो सुणीयौ तरै नागोर राव चुडा कनै अायौ । दिन पांच सात रह्यो । पिण अोल नही । तरै चारण समझावणी कीनी ।
दुहो
ऊकाला उकाह, तोनै चीत न आवै चुडरा ।
फाटो फुटो जाह, डीडवांणो डंडीया पछै ॥१॥.... इतरा मै राव चुडै दुंहो सुणनै तुरत श्रौलष्यौ । रावजी उभा होयनै मिलीया । घणौ श्रादर सनमान दीयो । मास छ मास राषनै चारणनै लाष पसाव दीयौ । धिरज गांव सांसणमै दीयौ । बारट जी सीष कीनी । तिण समीयारी। .
नीसांणी .. ... .... राव चुडाबड राव न राणा, डगर उठीया वीरांणा । वहै मंडोवर कीया धीगाणा, लीया पाटनै डीडवाणा ।
ढाढी वाचे कागद पत्र, चुडै राव उठाया छत्र ।
पछै राव चुडै मोहिलारी धरतीसु निपट जोर पुहचायो । तरै राव चुडानै मोहिला लाडणुरै धणी धुणपुररै धणी आपरी वेटी परणाई । सो राव चुडो मोहलांणीरै वसि हुवो।
जगतमै राव चुडो प्रसिध हुवौ । वडो दातार पट दरसणरो. अाधार हुवो। रजपूतारा मूलरा कनै रहै । हर हमेस माज रोज दीजै । भुजाई निपट घणी हुई । रोजीनो घ्रित १२ 'मण लागै । इण माफक बीजोई सराजांम हुवै । तरै भुजाई मोहिलांणीरै हवाले हुई । श्राप दारु पीनै मतवाला थका रहै । मोहिलांणी भुजाई दिन २ घटोवती गई । चुडाजीरै घरची भुजाईमै निपट सांकडी प्रांगी । तरै रजपूत था सो तो परा गया । घ्रत सेर अढ़ाई मै भुजाई प्रांण रापी । मोहलांणी एक दिन राव चुडाजीनै कह्यौ । रावजी म्हे थांहरै किसडेक सवार कीधी छै । बारै मण घत लागतो तिको अढाईमै अांणीयौ छ । तरै राव चुडै कह्यौ । रजपूतांणी ते तो वात विगाडी । माथा उपरि दुसमण घणा छ । तरै राव चुडै चारै आय नै दीठौं । दे सो रजपूतांरो साथ कोई नही । .. .. .
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वीरवाण सो चुडे पहला सगलांसु दुसमणीगीरी कीनी थी। तितरै केल्हण भाटी मुलतान सु सालमखाँननु ले आयो । सांषलो देवराजमुलतांन जायनै फोज ले आयो । फोजरा मुषी होयनै राव चुडा उपरि आया । तरै चुडानै आपरां रजपूतां कह्यौ । रावजी सिलामति साथ थोड़ो छै । आप नीसरो तो भलो काम करो । तरै रावजी कह्यो । वडा रजपूतां नीसरिनै जावां कठी । तरै अाप चुडोजी मरण रुपी होय छै ठा नै कवरांनै काढणरो मतो कीयौ तरै कवर रिडमलनै बुलायनै चुडैजी कह्यौ । म्हे तो अठै मरण रुपी हुवा छां पिण मांहरो मन ठोड न छ । तरै कवर रिडमलजी. कह्यौः रावजी सिलांमति राजरा मन मांहि हुवै सौ फुरमावै । आप फुरमावसो तिक्युम्हे करिसां । तरै राव चुडै रिडमलजोन कह्यौ मांहरो जीव "मरतां सोरो जो नीसरे जो मोहिलोणीरा वेटा कानानै टीको द्यो तौ ।।...,
तरै रिडमलजी कह्यौ राजरो जीव सो हरो करो । म्हे कोनानै टीको देसा । जठासुधी कांनो धरतीरो धणी रहसी तठा सूधो ऊ कानारी धरतीमै उभो रहिनै पाणी न पीयां । कहिन कवरां इतरो सो साथ नीसरीयो नै राव चुडोजी १२ आसामीयांसु वाजिनै नागोर काम आया लारै सतीयां नागोर हुई संवत् १४६५ रा बैसाख वदि १४ | राव चुडा पुत्र रिडमल १, भीम २, रिणधीर ३, अरडकमाल ४, पचायण, ५सतो ६, कांनो ७, रामो ८, पूनो, ६, सिवराज १०, लुभो ११, विजो १२, भोपत १३, राजिग १४ ।।
....... रिडमल राजगराव. सतोहर चंद पटतर, .......
रावत गुरु रिणधीर भुजां बल भीम समंगल । .... कांनो अंरडकमाल पुनो पोहवी अरिंगंजण, ...
सहसमाल अर विजो लषे दल' लंदो मंजण : ...
सिव राज राम गोपाल कहि भोपति सेना सवली, . चवदै ही राव चुडा तणा हेक हेकसु अगला ।
वार्ता संवत् १४३२ राव रिडमलजीरो जनम संवत् १४६५ । राव रिडमलजी चुडाजी टीकै बैठा । मुगल सेलमषांन मुलतानरो। सोवायत राव चुडा नै मारिनै अजमेर रै पीररी जात आयौ । सो जात करिनै पाछो वल्यौ । तरै राव रिडमलजी साथ भेलो करिनै राव चुडारा वैरमै सेलमत्रांननै कुट मारयौ ।
.
.. इति राव चुडारी वार्ता
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सम्पादकीय टिप्पणी
परिशिष्ट संख्या २ के रूप में वीरवाण सम्बन्धी तीन राजस्थानी वार्तायें दी गई हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं
१ वीरमदे सलखावतरी वार्ता। . . . . . २ गोगादे वीरमोतरी वार्ता ! . . ३ राव चूण्डारी वार्ता ।
वीरवाण का विषय इतिहास की दृष्टि से बहुत उलझा हुआ है । अव तक हमारे इतिहासकारों ने हजारों की संख्या में प्राप्त होने वाली ऐसी वार्तानों को कपोलकल्पित मान कर इनको महत्व नहीं दिया है । वास्तव में ऐसी वार्ताओं का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व हैं।
"वीरवाण" काव्य के अनेक अंश भी इन वार्तामों में मिलते हैं, जिनसे काव्य की लोकप्रियता और सम्बन्धित विषय का ऐतिहासिक महत्व प्रकट होता है । साथ ही प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों से भी इन वार्ताओं की पुष्टि होती है।
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परिशिष्ट ३
पाठान्तर
د
له
. दूहा ११ २
له
مه
ر مه
नीसाणी १
مه
.
م
س
नीसांणी १
*
१. तूझ महर परताप २. . गाउंहूँ सलखाणियां ३. . सुणी जिती सारी कहूँ
लहूँ न झठ लगार ४. वीरम जुद्ध विचार ५. सोम जैत समियांण ६. कुल में किरणाला ७. वरवीर बडाना ८. साथलियां दल सामटा
विरदा रुखवाला ६. दल पारथ वाला १०. देश दसू दिस दाविया
, कीधा धकचाला ११. केवी धस गिर कंदरा १२. · जैत चढ़े गुजरात कू १३. चड पूर चलाया १४. चित उजल चोगान मैं
तंबू तणवाया । १५. अषैनंदे मीलाणका १६. देस दिसाया जैत कू १७. गोयल पेड गमाडिया
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१८. धरजासी घर लुट्टसी १६. अषानंदा एकठा २०. हुकम'ज दियो हजूरियां २१. चल करंतां चूक व्ही
अरि काट उड़ाया २२. राइधरो कायम कियो २३. लंगर लषू लार वहै २४. माल बियो वलराव है २५. राज करै ध्रम रीत सो २६. थित मंगल थाई २७. मंडलीकां न्यू मालदे २८. मिणधर रावल माल २६. रावल मालो राजवी
राज करै ध्रम रूप ३०. दत्तक भाव रचषा दुनी ३१. तवेलै मालहा तौँ। ३२. तिकां दिनां मणियर तिम्रो ३३. घर घर व्यावै घोड़ियां
बधै बछेरा वेस ३४. प. मांहि नाहीं पड़े
घाट इसे घोड़ाह ३५. ऐसा आघोड़ाह ३६. . नग घर मीणियं नीपजै ३७. तीज तणै मगरै त दिन
सुता'ज लेगा सात ३८. मांडल री धर मेलिया ३६. कंवर हूँत हेरू कहे
ध्रुवै ज सुण धणियांह ४०, कथ हेरूकी सुण कंवर ४१. ऐहड़ा पापाणी ४२. चढियो मालाणी
४३. तीजणियां सब आवजो - ४४. कल मैहमद रै ईद से
४५.. ए वीजणियां एकठी
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४६. वीराद वीराणी ४७. हुब कूक हुवांणी ४८. गींदोली कर ग्रहे
हय पीठ चढ़ाणी ४६. लेगो ज्युहीं लावियो ५०. चांवल कमधां चढ़ियां ५१. इल मीणियर कर ऊजलो ५२. दीनों गांदोली देऊ ५३. हूँ मैमदसा बेगड़ो ५४. राज गांदोली राषियां ५५. भिरड़ कोट कुल भाण ५६. बैर सताबी बालियो
सत्रवां रै उर साल ५७. सबै आविया साथ ५८. राणी रूपादे जिसी - सांप्रत जिका सकत्त ५६. धारू जिसड़ा उण घरे
भव भव तणा भगन्त ६०. रचियो सतजुग राह ६१. घेरो देवण मिरड़ गढ़ ६२. दिली सूचढि अाया दुझल ६३. मांडलगढ़ मैहमंद चढ़े ६४. सांत लोपी सायरा
मिल पाजेजलांणा ६५.. इण विध महमंद आवियो ६६. हजरत बहु भेला हुआ ६७, पोज गमावण पूनियां ६८. हीन्दू तुरकाणा ६६. पेड़ तणा वल पोसणा ७०. तबूतुरकाणां ७१. छूटण लागी नालियां ७२. सतगुरस् कहियो वचन
७३. ईष घड़ा असुराण री ___७४. जागविया अहराव के
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७५. मूछ धरै कर मालदे ७६. किलम अराबा त्यार कर ७७. भुरजां भुरजां भिरड़गढ़
बड़ नाल गड़की सोर धुवा रिण घोर सू
धर अंबर टंकी ७६. असमान कड़क्की
भूप तुराटां भेलिया जुध कारण जक्की अालम अालम अषियो
धज नेज फरक्की ८२. जूटा षल जक्की ८३. म्लैछ तड़फड़े मारका
गीधाण गहक्की ८४. वीरांण वभक्की ८५. आसीस अछक्की ८६. हूरां वर तक्की ८७. यण घावां छक्की
सेना बेहुँ संक्की हींस हुवै ऐराकियां चढिया धूसे वाजता जंग भिड़िया जांणी सादुलो किस सांसवै असमर लेकर उटिया श्राप दरगह आत्रिया विडंगां चढिया वीरवर मीर छडांलां मारियाः खग बाग खिराणी केतां अरियण कटिया तेरै तुंगा भांजिया मीर गजां घड़ मारियां माले मिणियर देस में माल न भागा मुगलां । • साह दोऊ मन संकिया
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चोथे जुध जुड़वां चमू इक्का विहूँ ऊबीह. जुध जूटा इण विध जबर वीरम पाड़सी वरजिया अबयां अरियां ऊपरां अज ऊपर ऊरियां एकण धाव उतारिया इक्का षट ही छूटगा माल बधावां मोतियां लुटियो धरती पर किरमिर वाही करग सू दूजे इक्का पर राधै फिर पग रोपिया इक्के अड़ पाई ठठूर ते ठाई वाही जितेर वीरमै बिडंग तणा दोय टूक हुय चीता मलफाई जगो वरदाई उरस छिवंतां आविया माल वधाया मोतियां इक्का पाड़सी मारिया मिडिया धेहूँ भीच घड़सी डोली बालियो चढ़िया डोली च्यार सै दूजां इक्कां दोय . मंडिया नेड़ा मोरचा कूपो है अस कवलियो आलण कूपो अथ वहै आलण कूतेजल कयो धी भोजन खाणे कंवर परणावो कूप आलण धी आणे
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दीधो भूतां दायजो अकथ कूपै री असी अभंग नंगारो आपियो कूपा नै अस कवलियो भूतां कीधो भेंट कूप कंवर विदा कियो भिरड़ कोट दल भेलसी हणसी हाथां हूँ। भिड़ज कवलियो भूत कूपा दे अस कवलिया मुख सू कहियो माल कूपै दीनो कवलियो कवले आगै धूप कर दियो पागड़े पाय कमधज चढियो कवलिये दल फिरिया दरियाव ज्यू मुजरो कर जगमाल सू जगै हुकम दे झोकिया मीरां रा माथा उडै कसियो राजकंवार जबर भूत लै जाणिया जुध चढ़ियो जगमाल दे वगतर कुंठा वीडिया चंवरी रिण कामण चमू झुललीयां संग जानिया झापा भरे कवलियो जिण विध चालै जो सनै पग पग नेजा पाड़िया कुण मारै रा. ए लै फौजां अविया ल अठ्ठ लारां दीधो घेरो दोलियां वी-म पूरा रा
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कहो कामात करारा कर कूत्त सवारा माल वधाया मोतियां तीन लाख जुध में त दिन पग पग नेजा पाडिया बीबी बूझे खान ने
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उकत समापो ईसरी
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गाऊ हूँ लुणियाणियां जसरपियां रा ऊंट तूटी मैमद सूत दिन जद यू लिखा जबाब सिंधां लेसू सात ही सिंध धणी कद संकिया तूटि सिंध सूइण तरै मधू उडाया मोर सुणियो जग सारी सार भला भल सझिया . सिर तूटा फूटा सुघट · मादु बहादर मार के · घट पड़िया घट घायलों त्रामक बजाया लूटै सिंघ जंग जीत कर इल मिर्णियर आया . मलीनाथ बंदू मुदै
अंतहपुर वीरम त्रिया मांगलियाणी हात मिलिया वीरम जोइया मांगलियाणी सूदलो बेस किसूमा सूवर्ण अरज करो थै श्राप सू मांगलियाणी मोद मन दलो, मदु, देपालदे सातू वीर सधीर मूल नहीं वैसास
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अवखी विरियां माय मांगलियाणी महल री वीरम मानी बात जंगा मंझ भिड़िया जवन वीरमदे रे हुकम सू हालै दसू हजार सांपो दलो जोइयो विडंगा चढिया वीरवर मीर केई रिण मारिया वरस क किताइक बीतिया कियो ठाण अस कालमी मूडा पागल माल रै किणि यक कीधी प्राण मूंडा आगल माल रै कै पाबू रै कालमी कै सूरज रै सपतास उण तूं वधी आध दस हजार रिपिया देऊ मदु ऊरी दे मोल दले घणो ही दाखियो • राजवियां रा तोल कीधी किणि यक काम मारै लेसू माल साकुर पण लेसू सरब जद उण मालण जाणि यो पूगी दलै रै पास रूक झड़ी अध रात सुध ले साहिबाणा दलै खान सामाध सूता बंधव सात क जौसेल जगाया खेड़ मिलण ने प्रावियो उण सूबधी उपाध वीरम नै दीधी विडंग
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वीरम रै उणहिज व खत - पमंगा हुआ पलांण दहा १०० दलै साथ चढियो दुझल कुरुले खेमे काढिया . . , १०१ • जद विकियो जगमालदे .. , १०२ 'मन भार रमंते
नीसाणी २४ • जमराज विरंतै
जुड़िया जुध जंगा एकण जोइया वासते माल विछोड़े मांझियां जद धिकियो जगमाल परतख हेकण परदलो वीरम मालो बीछड़े . भड़ दोनू भाई बसियो वन माई नर चढियो पाटण नवी
" " मांगलियांणी तेड़
. दूहा १०३ जोया पोह चावै न दिन
, १०४ 'चढ़ धूर चलाया । नीसाणी २८ थलवट्टी या . रचि रोस चढ़ाया षडिया षेगां षेडुसू .भड़ पासायच भोमियां सज सूर सवाया सूरा कट पड़िया समर
कूट असाचय कढिया __ षग बाढ़ षिराया
कमंध बतीसू गांव से सेवै वीरम संघु बड़ ऊमंग मन आणी परणे भठियाणी नर गोगादे नेमियो रिणतूर रूड़ाया इम जोईयां घर आविया
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उरड़ मोतियां थालभर नीसाणी ३० वीरम कुरंगां वालवै जका षटक जगमाल रे आगमणी न श्रावै
- " " दलै रीझ सामाद दी वीरम सू जुध बाज के दल बलसू जगमालदे
" " डेरा समियांणे दिया मेल दिलीसू मेलियो .. . " , चेतवियोड़ों सिंह थल नगर धणी लिष नीत सू पढ़ पाषर पनि
.. , ३२ माल कहै वै मारका
जेथ करै जगमालदे . नीसाणी, • मेल दिली सू.मेलियो तेड़े तुरका ने. वीरम तो सूवाजसी जाय कबीला जागंल जांण सिचांणे झड़फिया...., 'लीधा असल फिर लाडणू . . . पीरम बीरथ्थे · सब मोयल सथ्थे
वीरम कोडंड पकडियो 'भल तरगस मथ्थे असवार डलथ्थे क्या नीसाणी तीरदी मीरजादा कथ्थे जांण कबूतर छुट गया हुन लथो बथ्ये असरपियां पावै मिलिया वीरम मारगां
तीन सहस चढ़िया तरां .. श्रसरपियां लीयां मोकल कल्ला भारमल
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इण कारण पंडिया अठे . जंगलपुर अायां नीसाणी ३६ उदा उ सहर आविया • दूहा १०७ उदल कू पतसाहजी नीसाणी ३७ लिया पजाना साहदा ऊदा गुनै हगार तू जंगलपुर आया झझाऊ पतताहरा ... रिणताल रचाया .. काढे बोटी कोटर . दस हजार चढ़िया दुझल .. ..चढ़ घोडां भड़ चालियां . मिलिया भारत जागंल.
मीर केइ रिण मारिया . नीसाणी, .. काट कटकां काढिया
, " .. हर अपछछर हरष अत . " 'वीरम घोड़े जांगल साहियांण सिधाया वैरोलष रहवा कुदलजी दरवाया : बारा गाम नबगसिया ।
डांण वले उचका दिया
धाडै धन धुर माझिया · वीरम कूदेवण वले लषवैरे पैदा सजष
दूहा १०८ लेखे रिपिया लाप - पूजै हरियल पीर कु
पमंगा सिरै पड़ाहियो । हीरलोहि हुबास
, ११० 'मादू चढ़े जवाद
, १११ , हीराले धीरो चढ़ : जोयांसू जुध जुड़णरी .... .: सो षग वागां सूरमा
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दूहा ११५ , .. २ पिंड लीधाँ सुरापणो
" ११६ जामै छल धणियां जिसा वीरम रै सब सांढियां वीरम चित्त विटालिया सात हजारूं सांढियां
आयर जिणरी अोठियां कल कूक कराणी दस हजार चढिया दुझल लारै लुणियांणी साचो सलाषाणी मलीनाथ जगमालसू __" " प्रांपां मारण उठिया लपवेरै यूँ थटलियां : सरवर भरिया.नीरतूं मोढल श्रावै मिलण . . .
नीसाणी , मूंछै अतर गुलाब का पोलां तोरण बंधिया मोटल मिलियां वीरमे आफू गलवाया आफू हाथ उछाल के मोटल . भी मारियो
" . . . : धन लूटे लीधी धरा
गढ़ . अपणाया हरिया झाले हाथ सू
., . . . .१७ मदू अप मारको वीर रस छाया' पाफर हिंदू काटकै
२६... २४ वाता सूविलमाय के सीहै कहिया वचन सत्र : " " . पांच दिहाड़ों पालियां
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" . . . .२६ . जिगरै कार जेज
दूहा ११८ . , . २ दलें जिसो नह देखियो सोरठो ११६ .. " जर गुना जिग जारिया .
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कर मूडै कालें झड़पे वूकण लेवसी तो सिर भूड तमाम बूकणरो घर वूडसी वेहीज मारण उठिया सीहांनै सलपाणियां यादू अपती अोधरो मेले जादम मोद सू वीरम दे चढियो विडंग वूकणादे घर व्यावदां मन कुतां बहु मालरा जादुम चूक न जाणियो कपर करै कसमीर दे भाटी षागा भाजिया व्याव न कीधो वीरमै बूकण बेटां बेलिया चारण चारण कुकता স্বাৰান্য ভাষা बामण भृरी वांसतां भागा मूडां भांठदां डोफा भामा डूंमड़ा गगा गायरिणयां तणां लूटे लिवराणां वृकण का घर पोदकै वृकण सहतां वेलियां भटियाणी दै भागका कह भाटी कसमीर पु सभ्रयां पागां साझिया घो उतारे घांग अगा भग रच याराना आयो पृगल में अटै बाद पडियांऊट दपालक. कामामारदे
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वीरम साहस तोलिया छूट पड़ी किरवाणियां वीमाहं न होई अवलज सूजो प्राषियो सो सांची होई : बूकणका घर बोटिया साला सातूई बोतल हातल बेटियां वीमाह न होई श्राविया दल्लेषां श्रागै मूझ गनायत मारिया जुध छट्ठी जागे वीरम सू जुध वाजसा ऐ बल धारे ऊठिया उजवांला घर अापणी हेवर दोय हजारियां सहंस दसूही सांडिया लाख पचासां लूटिया मोटल सिरषा मारिया जोइयां सूजुध जूटबा मावै न छाती मधू झलिया रहै न जोइया दोऊ दिसरा दुष दलो मदपूर मचोल कठा लगा कथ कूड़ लष वारै वीरम कनै : पाया आदर दिया लष वेरो रहवास कू
उसमांसू वीरम तनै :. चोत्री गाम चबूतरा घोसे इकसठ षाजरू
धरनीहि रहाया . हाती रहै न जूटिया .. मिलिया चिड़ियां महलै
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वीरम सूजुध बाजना चित चेत न चल्लै नीसाणी ६२ जारो सरणो ताकियो धणियाप धराई वेहिज मारण ऊठिया सोहीज सहाई : मांगलियांणी मोटको .. आपां कुसल काढिया
: मदु वै वै दिन मारकां । .: कुछ वीरम कनह कैया ।।
बारै गांव ज बगसिया सात हजारां सांदिया दिन हेक दगाइ मोटल सिरषा मारिया जिण सकड जवाई षाधा षोसे षाजरू मधू अष्षे मारको संच . , . , " गुना अनेकां जारिया दल्लै लुणियाणी सो फरहास कटाविया षाफर माल कुरांण कू. दुझझल मदु देपालदे , अपरा बांधर अापणी केदेहां पाणी जावे घरसू जोईया के खूटे सलषाणी हरषत मन सूरा हुवा " ,६६ कहिया भड़ भायां दलै .. ' दूहा १४३
वीरम सूजासो विडण " लषवेरै जाजो मती .. ,,१४४
साकुर अरपा पांडवनै नीसांण ६७
मदू सेर जवाद पर .. जगतर कुठा बीडिया : " " - 'सार छतीसू साझ राब
इम मदुवे आया 3; जैतलसू देपालदै सझ .:.:. .. "
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मिलिया अब सारा मरद चढीया सामंत सूरमा मुछां बल घल्लै हाथां खग झल्लै कर पवरां किल्ले घर राख्या दल्ले याप गवाला आपियो श्रण भंग कोपे ऊठियो ढोल बधाई बागिया मांगलियांणी सांपली धण उभी पल्ले रहना नार वरजियो सुण मेरी गल्ले आन पडप्पण. श्रापरै धन लीधो दल्लै · कलकी यहल्लै फिर वीरम कश्राषियो कही मांगलियाणी जे तू ठाकर सलपियांण . ए भी लुणियाणी दल्लो अवगुण दाटवै गुण आदू नाणी कहियो कमधन रीसकर सांणी कहियो सरस है श्राफू ले उमंदा बोहतवथीटे वेलियां विध विधकर मन वेठियो पिम पून किताई मांगलियांणी पालबा गुना श्रनेका नारिया दल्लै सिपवाई मग तगी कंथ मानकै लपवेरे लाई हूँ पण कागद मोकलू
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मांगलियाणी माहरी हू आलस बैठसूः अरक पिछम दिस ऊगवै वेग घटै वीहंगेसको गोरष भूले ग्यानक धणिया धाडेता तणी हूं सुख कर वेठू घरै उठिया अवतारी हड़ हड़ नारद हसियो मांगलियांणी स्यामनै धूड़ बलो इण ढोल रे लष धोत्रां लारी रांणी पाणी रालियो "सुणिये गल मारी 'सांणी करी समांधकू 'दोय सहस चढिया दुझल
भाये भाये आविया 'मांगलियां अरूं सांपला 'माणक हरियो दोलियो बड थाट बरवाणी त्रिए हजूरी तेणे दिन लेवण झांक लंगूर ज्यू दस सहसुचढिया हुऐ वर तक्की. बोले बकबक्की. पड पाधर पिड़े सीहस पेखै कुजरां बन घेर विहंडे. कर पोरस जड्डे उललिये गड्डे वरबा सूरां सांवतां गीधण आमष गिलणकू षेचर भूचर पल किया जोइयो षडै जवाद क्
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सिर भालै साजियां मदु लुगीयांगी 'वाढ घणा सिर वैरिया साकुर एण जवाद . फेता रंग कैण मूछा रंग थारां मदु रजवट दा गहणा बोहत बकारे वेलीयां तोपार झपट्टी छुपी मियानां नीसरी पुरसांण चोहट्टी पैसट जोड्या पाडिया .जंग वीरम जुट्टी पल पंगां पुट्टी रिगण मांझ समथ्र्य इल भारत हथ्थे पागां झड फडं पेलिया रि फाग रमंथ हुय लथो बथ्थे साने हाथ कटारियां • नर वाहे वय
अस वीरम की उच्चके "इते जवाद समाद उत बलवंत मदुबोलिया विध चूक बताया ताली तासक तोवरा धीरी धीरी धीरपे अछरां रथ याया मुसती फरगा समाध कृ ऊंची ऊंची ऊरल ताजग मटकी तोपमा लपतान लगाया वीरम बदली विहंग लप
धार पतरवारियां .. वीरम हाक बीटक
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अला अला ऊंचार के • चढ बेंगा चल्ला ___... , ८५
हुय वीरां हल्ला वीरम मल्लां वीटिया बाजी गलबल्ला भड़ वीरम मदुपै भिड़े 'जाणे जम टिल्ला भासै रिण भल्ला
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सुण सांची सल्ला .दिन कढ़ता दल्ला
करता रिवमल्ला मिलिया दल मैदान में मांझी कर सल्ला 'बण बैठा बल्ला कहां भाई भल्ला बादुर ढाढी बोलिया नीसांणी गल्ला नल्ला सल्ला नीवगै • सो जाणों अल्ला. • मदुः अष्षे वीरमा 'लाष गुना मैं जारिया
थें नह गुना जारियां दला विनां तूंजारतो ।' वीरम कहिया बाद में 'भड सारा मांसू भिडो . जद मदु हूँ जाणवू कहियो मदू कटक कू
" , । वीरम सूजुध जूटजो : तोले तरवारी. बाण बंदुक कमाण दूरी कर डारी : सांभल मद सोय
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वीरम सूजुध बाजना बक्कारै कुण वीरमो सिंह पटाझर सांप हो तेरू कुण सायर तिरै जम कू कुण मारे मदू तो चिन मारको मत धड़को दायै मदू कथ राषां लारै वाथ घलां असमांणसू सज दोऊ दल सांमटा विच घूमर वग्गी . असमाण सिलग्गी फिर पीछी दग्गी घूमावण लग्गी विच मूठा लग्गी पोड चहुँ जब कंपडा पग होय अपग्गी उतरिया वीरम कमंध भाई भाई भाषियो पैंसठ अस चढ़ पाडिया भल भलवाड भलकिया झड उर फूट अफारा पडिया असफड पापती दलिया विणजाग पालै पनरै पाडिया भिड़ पग झल्लै पाग मांगलिया श्रय सांपला बनित बगरा त्या जिम तारा मदपै अर मध्थै गामी मदु पै साजदी पग झाटक पथ्ये घण जाग घाथै
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जांण रमै रिणु गेरिया डंडे हड हथ्थै
निसाणी ६१ मदुपै वीरम माचिया हाथी जाणक हूँचकै साकल छूटा सपिरत हदपूरै हामा
.. . " कीदा हद कामां मोटा दुसमण मारिया वल मूछा वाली एकण घाव उतारिया
, " जेतल जसू मोठिया अणू भंग लूण उजालियो चाले वीरम अंग विहंडिया मूंछा बल घल्लै कर क्रोध अचल्लै भीलपनै भाखियो झट तरगस झल्लै कीधा चष लल्लै धानष सामा पाव दे सर दांतां झल्लै छूटा तीर अचिंतका
धड़ फूटा ढल्ले • चूका वैग पिलोणते
उलटा कर चल्लै : धनंष चढाया पनियै ढह पड़ियो देपालदे
धरलैणी चोटी . परगर कीधी :पनिये . वीरम मदुरै पोढीया . प्यार सहस पड़े सूरमा अंग वीरमरै अोपिया
दूहा१४६ जूदा सो वारे
निसाणी ६७ वीरमसू जुध बाजणे विड रहिया रिण घेत बिच .. .. दूहा १४७ जव कोटी रा नाथ . .. "
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पडिया वीरम पाषती संग इतरा सूरा पडषेत सनूरां पडियो चायल सैंसमल पडियो आहेड़ी पनो झड़ियो षग झाटे किर मर तन काटे मांगलियो मंगलौ पडै वीरम संग वीठिया रिण पड़िया राठोड़ जसू रिण में जूझियो कर जोस हमल्ला झड तेगा झल्ला घुडले वर घल्ला हूरां संग हल्ला चढिया डोली च्यार गिरणे गल बल्ला कर अल्ला अल्ला दलो कहै मै वरजिया वीरम सूजुध बाजनै धूड़ लो इण धाड़ नै जो कीधी (सो) पाई दलै त्रीगड़ी देख ने तेजल संग दे मेलिया चूंडो अरु बाई दोय दिहाड़ा पंथ बुही थलवट्ठी आई तक घोड़ा लावै वालक तोहि न चीसरे . नद श्राले मन नाणियो ग्रही फण कीधो ऊपरा भूपत तप भारीह श्राले मन जद नाणियो और कोई अवतारीह चदिया पालो चूंडरज
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माला सू चूडो मिलै मन चिन्त मिटावै उगमसी नै प्राषियो मंडोवर (मैं) दी कर महर चांमंडरै बरसू करै चंडी वर हुय चुंडकू संग चूंडा लाया छल वींधा बल दाषिया हर बल ईदा रांण हुय ऐम तलेठी आविया सो गाडा उगम सरत्र
गड भितर लाया . 'मुगला दोय हजार
राज मंडावर चूंड . रिघू मंडोवर राज ऊगम चूडे अागला किलमां थांणी काटिया इदांजिम करजो अवर दिवी मंडोवर दायजे चूंडो चंवरी चाड़ सेत्रावैसू भ्रात सब जसो गोग देवराज
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मंडोवर रो भोमियो सजियो गोग-सकाज उठिदो दैतज कालियो एही गल ऊचर महर हुई सिरकर मया
वप गोगै वल वादियो .. जपियो जाल धर
बल हाली कल जाट सू . . . . ऊठ दलो घर आवियो .
ऊदल धीरै जान संग पूगल पाघारी
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चूडो हेरूसू चवै पाछो वचन प्रियोग
दूहा १५६ . हूँ मामो मारू नहीं धर चित जा तू धीरियां दूहा १६० धीरप दे मिल धीरस दूहा १६१ सुगन लेट चढियो सरस वेर लेण वरवीर
" " चढ घर चलाया
नीसाणी १११ गड गड चबंक गाजिया अस षडिया उनां वरै बैडा ऊजड वाटते भाला पात्र ठहकिया '. सूतां फोही सबद सुण श्रव गल सीहो ऊचरै अलगास अस घेड़िया
नीसाणी ११२ ऊठ वेदला जोइया सूतो कन जंगे निस आधी पल नेमियो
दूहा १६२ घण सिर फटै घट पांगां किरमर पाकड़े रिदे जालधर रट्ट
दूहा १६३ . लेवण वीजल वट्ट पूरां ही बल हट्
दूहा १६४ ईमां पिलंग घरट
" , नवगढ पत्त नरेस
दूहा १६५ देउ सपियां साथ ले नीसाणी ११३ वाधावे गोगे कमध वैर पितारो वालियो तिलक कियो इण कारण .. कहियो जद गोगे कम नीसाणी ११४ सिर दूं मारो काटकर हेमु पमंग पड़ाहियो पवरां मेलू धीरपै भिट न माई
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तूं जाया दल राजदा . नीसाणी ११५ - पमंग चढ़े पड़ाहिये ..
कर पूररो लगाम दे पिछ न मंडे पलांण . दूहा १६७ पुगल जाइये पड़ाइया . गोगै दल्लो मारीयो
दूहा १६८ काहलियो केहरकली
दूहा १७० विडे गांउ जड़ वाट
". " काह कट्टका ध्राह सुण • सजियां भड़ सारा
नीसाणी ११६ . ऊडै रज असमान मैं बेढंगी षडिया विडंग पथ । हेक मना हुय हालिया नीसाणी ११७ असी कोस अफालिया क्या लग्गै कारी वणिया दुलहा वाहरू वप वैर विचारी गोग लछु सिर ऊतरै धीर सुणै अरि धूधड़े लंग सषड़े लारी चढ़िया उदल धीर दे धरती धूजाणी
नीसाणी ११८ हीरालो न पड़ाहियो
आय लछूसर उतरा गहमें भरियोड़ा
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थहिया दल पाला नीसाणी १२० . रोसैल रढ़ाला
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ग्या हायनका व एकत्र टोली पंगद नाही वर्ष सांगाक मरिय पपालदा गुप पाल्या मित्र पग्नी परिया धारद यायका माप यः नर गोगा जा
दान र श्रा हंगर भीगया कारगी आँध बद्र गिटिया पलिया श्रम मार, पापी गिदियान महास infinity परिया fm
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१२४ तीर छछोहा छूटगा नह सूज तनंका जूझा भड़ बंका जोइया कमधन जुटिया मिडिया भड़ बंका . सग्गा रुक समाप दै . नीसाणी १२५ कहियो गे.गै हास कर
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काठये पग गोगे कियो. . . . , " . 'पाव उलटा सांधीया . . . , , । . तो काया अझर
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सम्पादकीय टिप्पणी
वीरवांरण का कर्ता ढाढी बादर विशेष शिक्षित नहीं ज्ञात होता । साथ ही एका ढाढी को कृति होने से इसको काव्य शास्त्र की दृष्टि से शुद्ध करने और प्रतियां लिखने यो प्रयत्न भी बहुत कम हुए । मूल पाठ में किसी तरह का परिवर्तन करना हमने वैज्ञानिक दृष्टि से ठीक नहीं . समझा है । परिशिष्ट ३ के अन्तर्गत हमने देवगढ़ प्रति के पाठान्तर दिये हैं जिनसे अर्थ समझने में सुविधा रहती है।
वीरवांण में काव्य-शास्त्र की दृष्टि से अनेक भूलें दिखाई देती हैं किन्तु इस पाव्य की पूरी शुद्ध प्रतियां नहीं उपलब्ध हो जाती तब तक मूल पाठ में फेर-बदल करना उचित नहीं ज्ञात होता।
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परिशिष्ट ४. मुहणोत नैणसी का वक्तव्य
"बीरम महेवे के पास गुढ़ा बांधकर रहता था । महेवे . में खून कर कोई अपराधी वीरमदेव के गूढ़े में आ शरण ले लेता तो वह उसे रख लेता और कोई उसको पकड़ने न पाता । एक समय जोइया दल्ला भाईयों से लड़कर गुजरात में चाकरी करने चला गया; बहुत दिनों तक वहां रहा और विवाह भी कर लिया। अब उसकी इच्छा हुई कि स्वदेश में जाना चाहिये, अपनी स्त्री को लेकर चला, मार्ग में महेवे पहुँचकर एक कुम्हारी के घर डेरा किया । कुम्हारी से कहा कि वाल बनाने के वास्ते किसी नाई को बुला दे । वह नाई को लै आई, बाल बनवाये ! नाई की जात चकोर होती है, चारों ओर निगाह फैलाई, अच्छी घोड़ी, सुन्दर स्त्री देखी और यह भी भांप लिया कि द्रव्य भी बहुत है, तुरन्त जाकर राव जगमाल से कहा कि आज कोई एक धाड़ेती यह! आकर अमुक कुम्हार के घर उतरा है, उसके पास एक अच्छी घोड़ी है और स्त्री भी उसकी निपट सुन्दर मानों पद्मनी ही है । जगमाल ने अपने आदमी. भेजे कि जाकर खबर लावो कि वह कौन है । गुप्तचर कुम्हार के घर आकर सब देख-भाल कर गये । तब कुम्हारी ने दल्ला को कहा कि ठाकुर ! तुम्हारे पर चूक होगा । दल्ला उसका अभिप्राय न समझा, पूछा क्या होगा ? बोली, बाबा तुम्हें मारकर तुम्हारी घोनी और गृहिणी को छीन लेंगे।
दल्ला-कौन ? कुम्हारी-इस गांव को ठाकुर । दल्ला-किसी तरह बचाव भी हो सकता है ? कुम्हारी-यदि बीरमजी के पास चले जाओ, तो बच जाओ।
उसने चट घोड़ी पर पलाण रखा और स्त्री को लेकर चल दिया, वीरम के गुढ़े में जा पहुँचा । जगमाल के आदमी आये, परन्तु उसको वहां न पार लौट गये और कह दिया
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कि वह तो गुढ़े को चला गया। पांच-सात दिन तक बीरम ने दल्ला को रक्खा, उसकी भले प्रकार पहुनई की, विदा होते वक्त उसने कहा कि बीरम ! अाज का शुभ दिवस मुझे अापके प्रताप से मिला है, जो तुम भी कभी मेरे यहां अायोगे तो चाकरी पहुँचूंगा मैं तुम्हारा रजपूत हूं । बीरम ने कुशलतापूर्वक उसे अपने घर पहुंचा दिया ।
मालाजी के पौत्रों और बीरमदेव से सदा खटाखट होती रहती थी, इसलिए महेवे का वास छोड़कर वीरम जैसलमेर गया; वहां भी ठहर न सका और पीछा नागोर पाया, जहां यह लगा गांवों को लूटने और धरती में विगाड़ करने, परन्तु जब देखा कि अब यहां रहना कठिन है तो जांगलू में ऊदा मूलावत के पास पहुंचा । ऊदा ने कहा कि वीरमजी! मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं कि मैं तुमको रख सकू, तुम आगे जायो, तुमने नागोर में उजाड़ किया . है सो यदि वहां का खान बाहर लेकर ग्रावेगा तो उसको मैं रोक दूगा । तब बीरम जोहियावाटी में चला गया । पीछे से नागोर का खान चढ़कर भाया, जांगलू के घेरा लगाया, ऊदा गढ़ के कपाट मूद भीतर बैट रहा । खान ने उसे कहलाया कि मालव और बीरम को हाजिर कर । तब ऊदा खान से मिलने के वास्ते गया और वहां कैद में पड़ा । उससे वीरमं "को मांगा तो कहा कि "बीरम मेरे पेट में है, निकाल लो।" खान ने ऊदा की मां को "बुलवाया और उससे कहा कि या तो वीरम को बता नहीं तो ऊदा की खाल खिंचवाकर "उसमें भुसा भरवाऊंगा । ऊदा की माता ने भी वही उत्तर दिया कि "वीरम अदा की खाल में नहीं है, उसके पेटे में है सो पेट चीर कर निकाल लो।" उसके ऐसे उत्तर से खान खुश हो गया, अपने साथ वालों से कहने लगा-"यारो ! देखा राजपूतानियों का बल, कैसी निधड़क होती हैं।" ऊदा को कैद से छोड़ा और वीरम का अपराध भी क्षमा कर दिया । । वीरम जोहियों के पास जो रहा । जोहियों ने उसका बहुत आदर किया, जाना कि यह आफत
का मारा यहां आया है। पास खर्च न होगा सो दाण में उसका विस्वा (भाग) कर दिया और बड़ा स्नेह दरमाया । वीरम के कामदार दाणं जगाहें तत्र कभी कभी तो सारा का सारा ' ले श्रावे और जोहियों को कह दे कि कल सब तुम ले लेना । यदि कोई नाहर वीरम की बकरी "मार डाले तो एक के बदले ११ बकरियाँ ले लेवें और कहे कि नाहर जोहियों का है । एक बार ऐसा हुया कि ग्राभोरिया भाटी, बुक्का को जो जोहियों का मामा व बादशाह का शाला था और अपने भाई सहित दिल्ली सेना में रहता था, बादशाह ने मुसलमान बनाना चाहा, वह भाग कर जोहियों के पास या रहा । उसके पास बादशाह के घर का बहुत माल, तरह तरह के गदेले गलीचे और बढ़िया बढ़िया वस्त्राभूषण थे । वे वीरम ने देखे और उनको . लेने का विचार किया। अपने आदमियों को कहा कि अपन बुक्कणं को गोट जीमने के बहाने उसके घर जाकर मार डालें और माल ले लेवें । राजपूत भी सहमत हो गये । तब वीरम ने बुधाण को कहा कि कभी हमें गोठ तो जिंमायो । बुक्कण ने स्वीकारा, तैयारी की और वीरम को बुलाया । वहाँ पहुँचते ही वह बुकगा. को मार उसका माल असत्रात्र और घोड़े अपने डेरे पर .ले श्राया । तब तो जोहियों के मन में विचार उत्पन्न हुया कि यह जोरावर अादमी घर में आ घुसा
सो अच्छा नहीं है। पांच सात दिन पीछे वीरम ने ढोल बनाने के लिए एक फरात का पेड़ कटवा
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बोरवाण डाला। उसकी पुकार भी जोहियों के पास पहुँची, परन्तु वे चुप्पी साध गये । कहां हम वीरम से झगड़ा करना नहीं चाहते हैं । एक दिन बीरम ने दल्ला जोहियों ही को मारने का विचार कर उसे बुलाया । दल्ला खरसल (एक छोटी हलकी गाड़ी) पर बैठकर पाया जिसके एक तरफ घोड़ा और दूसरी तरफ बैल जुसा हुआ था। बीरम की स्त्री मांगलियाणी ने दल्ला को अपना भाई बनाया था। उसने जान लिया कि चूक है. सो जल के लोटे में दातने डालं कर वह लोटा दल्ला के पास भेजा । वह समझ गया कि दगा है । चाकर से कहा कि मेरा पेट कंसकता है सो जंगल जाऊंगा, फिर खरसल पर धैठ घर की तरफ चला। थोड़ी दूर पहूँच बैल व खरमल को तो वहां छोड़ा और याप घोड़े सवार हो घर पहुंच गया । घोड़े के स्थान पर एक राठी जुतकर खरसल खींचने लगा, बीरम अपने राजपूतों को इकट्ठे कर रहा था । जब वे सलाह कर आये और दल्ला को वहां न देखा तब पूछा वह कहां गया है ? चाकर ने कहा
जी ! उसका पेट कसकता था सो जंगल गया है तब तो दलिया गहलोत बोल उठा कि दल्ला • गया । वीरम ने कहा कि खरसल चढ़ा कितनी दूर गया होगा, चलो अभी पकड़ लेते हैं ।
राजपूत ने कहा खरसल छोड़ घोड़े पर चढ़ गया । इन्होंने एक सवार खबर के लिए भेजा। उसने पहुंचकर देखा तो सचमुच एक तरफ बैल और दूसरी तरफ आदमी जुता खरमल खींच लिये जाते हैं । उसने लौटकर खबर दी कि टल्ला तो गया । सब कहने लगे कि भेद · खुल गया, अब जोहिये जरूर चढ़कर यावेंगे । दूसरे ही दिन जोहियों ने इकठे होकर वीरम की गायों को घेरा । ग्वाल याकर पुकारा, वीरम चढ़ पाया । परस्परं युद्ध ठना, बीरम और दयाल जोइया भिड़े बीरम ने उसे मार तो लिया परन्तु जीता वह भी न बचा और वहीं
खेत रहा
.. वीरम के साथी राजपूत गांव बड़ेरण से वीरम की ठकुराणी को लेकर निकले ।
मार्ग में जहां ठहरे वहां धाय ने एक आक के झाड़ के नीचे बीरम. के एक वर्ष के बालक पुत्र ...चूंडा को सुलाया, परन्तु चलते वक्त उसको उठाना भूल गयी । जब एक कोस. निकले. गये,
तब बालक याद आया, तुरन्त एक सवार हरीदास - दल्लावत पीछा दौड़ा । इस स्थान पर
पहुंचकर क्या देखता है कि एक सर्प चूण्डा पर छत्र की भांति फण: फैलाये ,पास बैठा है । .. यह देख पहले तो हरिदास को भय हुआ कि कहीं बालक पर आपत्ति तो नहीं प्रा. गई. है. ।
जब थोड़ा निकट पहुंचा तो सर्प वहां से हटकर बांची में घुस गया और सवार चण्डा: को
उठाकर ले आयां, माता की गोद में दिया और सारी रचना कह सुनाई। अागे जाते हुए . : मार्ग में एक राठी मिला । उसको सब हकीकत कह इसका फल पूछा। राठी ने कहा यह .
बालक छत्रधारी राजा होगा । वे लोग पड़ोलियां में आये । वहां राजा : लोग इकटठे हुए। ..
चूण्डा की माता ने कहा कि मेरे पति से दूरी पड़ती है, मुझे तो उसी से काम है, इसलिए .मैं सती होऊगी । फिर चूण्डा को धाय के सुपुर्द कर कहा कि:"पृथ्वी माता और सूर्यदेव : इसकी रक्षा करें । तू इसे लेकर आल्हा चारण के पास चली जाना।" : फिर. चूण्डा की -माता और मांगलियाणी दोनों सती हुई और साथ. सब बिखर गया | चूण्डाजी के दूसरे तीन भाई गोगादेव, देवराज, और जैसिंह को उनके मामा उनकी ननिहाल को ले गये और
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चूण्डा, को. पाल्हा चारण के पास भेज दिया ! जहां धाय चूण्डा को सदा गुप्त रखती और भलीभांति उसका पालन पोषण करती थी।
राव वीरमदेव के चार राणियां थी ? भटियाणी जसहड़ राणा दे, जिसका पुत्र राव चूण्डा; २-लालां मांगलियाणी कान्ह केलणोत की बेटी, जिसका पुत्र सत्ता; ३-चन्दन यासराव रिणमलोत की. वेटी, जिसका पुत्र गोगादेव; ४-इदी लाछां, अगमसी सिखरावत की . बेटी, जिसके पुत्र देवराज और विजपराज। .
राव चूण्डा-जब धाय चूण्डा को लेकर कालाऊ गांव में आल्हा चारण के पास पहुँची, तो उससे कहा कि बाई जसहड़ ने सती होने के समय तुमको श्राशीष के साथ यह कहलाया ... हैं कि इस बालक को अच्छी तरह रखना, इसका भेद किसी पर प्रकट मत करना मैंने. इसको तुम्हारी गोद में दिया है । चूण्डा वहां धाय के. पास रहने लगा। कोई पूछता तो चारण कहता कि यह इस रजपूतानी का बालक है. । इस प्रकार चूण्डा अाठ नव वर्ष का हो गया। एक दिन बर्सात के दिनों में ग्वाल गांव के बछड़ों को लेकर जल्दी ही.. जंगल में चराने को ... चला गया था और चारण के बछड़े घर पर रह गये, तब अाल्हा की माता ने कहा "वेटा ... चूण्डा ! ना, इन बछड़ों को जंगल में दूसरे बछड़ों के शामिल तो कर या ।" चूण्डा उनको लेकर वन. में गया, परन्तु दूसरे बछड़े उसको कहीं नजर न आये, तब तो रोने लगा। पीछे से चारण घर में पाया चूण्डा को न देखकर माता को पूछा कि चूण्डा कहां है ?. कहा बछड़े छोड़ने वन में गया है । चारण कहने लगा, माता तूने अच्छा नहीं किया, चूण्डा को नहीं भेजना चाहिए था । जब दूसरे बछड़े न मिले.. तो अपने बछड़ों को वहीं खड़े कर चूण्डा एक वृक्ष की छाया में सो गया । पीछे से आल्हा भी हूँढता हूँढता वहां पहुंचा तो देखा कि बछड़े खड़े हैं, चूण्डा सोता है और एक सर्प उस पर छत्र किये बैठा है । मनुष्य के पांव की श्राहट पा नाग बिल में भाग गया, चारण ने जा. चूण्डा को जगाया, कहा बाबा तु जंगल में क्यों अाया, घर पर चल । घर आकर मां को कहा कि अब कभी. इसको बाहर मत भेजना । फिर चारण ने एक अच्छा घोड़ा लिया, कपड़े का उत्तम जोड़ा बनवाया, शस्त्र लाया और चूण्डा को सजा सजू कर महवे रावल मल्लिनाथ के पास ले गया । मालाजी का प्रधान
और कृपापात्र एक नाई था । पाल्हा उससे जाकर मिला, बहुत कुछ कहा सुनी की, तो नाई बोला, रावलजी के पावों लगायो । शुभ दिवस देख चारण चूण्डा को राव मालाजी के पास ले गया और उसने बहुत कुछ धैर्य बंधाकर अपने पास रक्खा । चूण्डा भी खूब चाकरी करता था । एक दिन रावल के पंलग के नीचे सो रहा और नींद या गई। जब मालाजी सोने को अाये तो पलंग तले एक आदमी सोता पाया । जगाया, चूण्डा को देख रावलजी राजी हुए । अवसर पाकर नाई ने भी विनती की कि. चूण्डा अच्छा रजपूत है इसको कुछ सेवा सौंपिये । माला ने चूण्डा को गुजरात की तरफ अपनी सीमा की चौकसी के वास्ते नियत . किया और अपने भले राजपूतों को साथ में दिया । तब सिखरा ने कहा कि रावलजी मुझको समझकर साथ देना। रावलजी ने कहा कि जो हमारी याज्ञा है । घोड़ा सिरोपाव देकर चूण्डा को ईदे राजपूतों के साथ विदा किया । वह काछे के थाने पर जा :
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बठा और अच्छा प्रबन्ध किया । एक बार सौदागर घोड़े लेकर उधर से निकले ।चूण्डा ने उनके सब घोड़े छीन लिये और अपने राजपूतों को बांट दिये, एक घोड़ा अपनी सवारी को रक्खा । सौदागरों ने दिल्ली जाकर पुकार मचाई, तब वहां से बादशाह ने अपने अहदी को भेजा कि घोड़े. वापस दिलवादो । उसने ताकीद की, माला पर दबाव डाला, तब उसने चूण्डा के पास दूत भेजा घोड़े मंगवाये । चूण्डा बोला कि घोड़े तो मैंने बांट दिये, केवल यह एक घोड़ा अपनी सवारी के लिये रक्खा है सो ले जायो । लाचार माला को उन घोड़ों का मोल देना पड़ा और साथ ही चूण्डा को भी अपने राज्य में से निकाल दिया । वह ईदावाटी में ईदों के पास आकर ठहरा और वहां साथी इकट्ठे करने लगा। कुछ दिनों पीछे डीडणा गांव लूट लाया । तुर्कों के पडिहारों से मंडोवर छीन ली थी और वहां के सरदार ने सब गांवों से धास की दो दो गाँडियां मंगवाने का हुक्म दिया था। ईदों को भी घास भिजवाने की ताकीद
आई तब उन्होंने चूण्डा से मंडावर लेने की सलाह की । घास की गांडियाँ भरवाई और हरेक गाड़ी में चार चार हथियार बंद राजपूतों को छिपाया । एक हांकने वाले और एक पीछे पीछे चलने वाला रक्खा । पिछले पहर को इनकी गांडियां मंडोवर के गढ़ के बाहर पहुंची । गढ़ के दरवाजे पर एक मुसलमान द्वारपाल भाला पकड़े खड़ा था । जब ये · गाड़ियां भीतर घुसने लगी तो द्वारपाल ने एक गांड़ी में बर्छा, यह देखने को डाला कि वास के नीचे कुछ और कपट तो नहीं है । बर्खे की नोक एक राजपूत के जा लगी, परन्तु उसने तुरन्त कपड़े से उसे पोंछ डाला, क्योंकि यदि उस पर लोहू का चिन्ह रह जावे. तो सारा. भेद खुल, पड़े, दर्बान ने पूछा-क्यों ठाकुरों, ! सब में ऐसा ही घास है ? कहा हां जी, और गाड़ियां डगडगाती हुई भीतर चली गई । इतने में संध्या हो गयी; अंधेरा पड़ा। जो रजपूत छिपे बैठे थे, बाहर निकले., दरवाजा बंद कर दिया और तुर्कों पर टूट पड़े। सबको काट कर चूण्डा की; दोहाई. फेर दी, मंडोवर लिया और इलाके से भी तुओं को खदेड़ खदेड़कर निकाल दिया। .
- जब रावल माला ने सुना कि चूण्डा ने मंडोवर पर अधिकार कर लिया - है तब वह भी वहाँ अाया । चूण्डा से मिलकर कहा-शाबाश राजपुत्र ! चूण्डा ने गोठ दी, काका भतीजे शामिल जीमे । उसी दिन ज्योतिषियों ने चूण्डा का पट्टाभिषेक कर दिया और वह मंडोवर. का राव कहलाने लगा। चूण्डा ने दस विवाह किये थे, जिनसे उसके १४. पुत्र उत्पन्न हुर- रणमल, सत्ता, अरड़कमल, रणधीर, सहसमल, अजमल, भीम, पूना, कान्हा, राम, लूभा, लाला सुरताण और वाया । (कहीं लाला और सुरताण के स्थान में बीना और शिवराज नाम दिये हैं।)
एक पुत्री हंसवाई हुई, जिसका विवाह चितौड़ के राणा लाखा के साथ हुआ जिससे मोकल उत्पन्न हुअा था । पांच राणियों और उनके पुत्रों के नाम निचे दिये हैं
राणी साखलों सूरमदे, बीसल की बेटी, पुत्र रणमल | तारादे गहलोताणी, सोहड़ सांक सूदावत की बेटी, पुत्र सत्ता।
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वीरवारणं भटियाणी लाडां कुतल केलणोत की वेटी, पुत्र अरड़कमल ... - सोना, मोहिल ईसरदास की बेटी, पुत्र कान्हा । ।
ईदों केसर गोगादे उगाणोतरी बेटी, पुत्र-भीम, सहसमल . वरजांग, रूदा, चांदा, ऊजु ।
____ मंडोवर हाथ थाने पर राव चूण्डा ने और बहुत सी धरती ली और उसका प्रताप.... दिन ब दिन बढ़ता गया । उस वक्त नागोर में खोखर राज करता था और उसके घर में राव चूण्डा की साली थी। उसने रांव को गोठ देने के लिए. नागोर के गढ़, में बुलाया। वह चार-पांच दिन तक वहां रहा और वहां की व्यवस्था देखकर अपने राजपूतों से कहा कि चलो नागोर लेवें, राजपूत भी इससे सहमत हो गये | एक दिन वह राजपूतों को साथ ले नागोर में जा घुसा, खोखर को मारा, दूसरे सब लोग भाग गये और नागौर में राव को दुहाई फिरी । वह वहां रहने लगा और अपने पुत्र सत्ता को मंडोवर रक्खा । नागोर नगर सं० १५१२ (सं० १२१५ होंगे ।) कैमास दाहिमे ने बसाया था ।
एक दिन राव चूण्डा दरबार में बैठा था कि एक किसान ने आकर कहा कि महाराज मैं चने बोने को खेत में हल चला रहा था कि कुएं के पास एक खड्डा दीख पड़ा। सम्भव है, उसमें कुछ द्रव्य हो । यह विचार कर कि वह धन धरती के धनियों का है मैं
आपको इत्तला करने आया हूँ । राव ने अपने आदभी उसके साथ द्रव्य निकालने को भेजे। उन्होंने जाकर वह भूमि खोदो, परन्तु माल वहुत गहराई पर था, सो हाथ न आया । उन्होंने
आकर राव चूण्डा से कहा तो राव स्वयं वहां गया और बहुत से वेलदार लगाकर पृथ्वी को बहुत गहरी खुदवाई, तो उसमें से रसोई के बर्तन निकले अर्थात्-चरवे, देंगे, कूडियां, थालियां आदि । राव ने उनको देख, ऊपर गछावड़े का नाम था और ऐसा लेख भी था । कि जो इस भांति रसोई कर सके वह इन बर्तनों को निकाले । राव ने कहा कि इनको यहीं डालदो । तब सरदारों ने कहा कि इनमें से एक अाध चीज तो लेनी चाहिये, तब एक पली ( तेल या घी निकालने की )-ली। नागोर आकर उसको तुलवाई तो १५ पैसे भर की उतरी । राव'चूण्डा ने आज्ञा दी कि यागे को मेरे रसोवड़े में इस पली से घी परोसा जावे, सबको एक एक पूरी पली मिले, यदि आधी देवे तो रसोड़दार को दंड दिया जावेगा।
एक दिन अरड़कमल चूण्डावत ने भैंसे पर लोह किया । एक ही हाथ में भैसे ..के दो टूक हो गये, तब स। सरदारों ने प्रशंसा कर कहा कि वाह वाह ! अच्छा लोह हुआ। राव चूण्डा बोला कि क्या अच्छा हुया, अच्छा तो जब कहा जावे कि ऐसा घाव राव रामगदे अथवा कुंवर सादा (नादूल) पर करे । मुझको भाटी (राणगदे) खटकता है उसने गोगादेव को जो विष्ठाकारी (बेइज्जती) दी वह निरन्तर मेरे हृदय का साल हो रही है। अरपकमल ने पिता के इस कथन को मन में धर लिया, उस वक्त तो कुछ न बोला, परन्तु कुछ काल बीतने पर सादे कुबर को अवसर पाकर मारा। इसके बदले राव राणगदेव ने
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वीरवारण . संखला महाराज को मार डाला । महाराज के भांजे राखसिया सोमा ने राव चूण्डा के पास जाकर पुकार की और कहा जो आप भाटी से मेरे मामा का वैर लेवे तो आपको कन्या व्याह कर एक सौ घोड़े दहेज में दूंगा ! रात चूण्डा चढ़ चला और पूगल के पास जाकर राणगदे को मारा और उसका माल लूटकर नागोर लाया, राव चूण्डा के प्रधान स.वदू भाटी और ऊना राठौरं थे। .. राव चूण्डा की एक राणी मोहील के पुत्र जन्मा, नाम कान्हा रक्खा । मोहिलाणी ने बालक को घूटी न.दी, यह खबर गव को हुई । उसने जाकर रानी से पूछा कि कुवर को घूटी न देने का क्या कारण है । वह बोली कि जो रणमल को राज से निकालो तो घूटी दूं। राव ने रणमल को बुलाकर कहा बेटा तू तो सगृत है, पिता की आज्ञा मानना पुत्र का धर्म है । रणमल बोला-पिताजी, यह राज कान्हा को दीजिए । मुझे इससे कुछ काम नहीं ।
ऐसा कह पिता के चरण छूकर वहां से चल निकला और सोजत जा रहा । (रणमल को :, निकालने का दूसरा कारण वहीं पर ऐसा लिखा है ) भाटी राव राणगदे को जब राव चूण्डा • ने मारा तो राणगदे के पुत्र ने भाटियों को इकट्ठा किया और फिर सुलतान के बादशाही ।
सूबेदार के पास. गया, अपने बाप का बैर लेने के वास्ते वह मुसलमान हो गया, और अपनी सहायता पर मुलतान तुर्क सेना ले नागोर आया । उस वक्त राव चूण्डा ने अपने बेटे रणमल को कहां कि तू बाहर कहीं चला जा, क्योंकि तू तेजस्वी है सो मेरा बैर लेने में समर्थ होगा । जो राजपूत तेरे साथ जाते हैं उनको सदा प्रसन्न रखना, उनका दिल कभी मत दु:ख.ना । जेठी घोड़ा सिरवरा उगमणोत को देना । मैंने कान्हा को टीका देना कहा है जो इसको (काहूगांव) खेजड़े ले जाकर तिलक दिया जावेगा।.. ..... राव की राणी मोहिलाणी ने एक दिन घत की भरी हुई एक गाड़ी पाती देखी,
अपनी दासी भेज.खबर मंगवाई कि क्या रावजी के कोई विवाह है जो रोज इतना घत आता है । दासी ने आकर कहा बाईजी विवाह तो कोई नहीं यह घत तो रावजी के रसोडें के खर्च के लिए है जहां बारह मण रोज खर्च होता है । मोहिलाणी बोली यह त लूटता है । रावजी से कहा कि रसोड़े का प्रबन्ध मुझको सौंपिए । राव ने स्वीकाग, राणी पांच सेर घृत . में रोज काम चलाने लगी और गवजी को कहा कि मैंने आपका बहुत फायदा किया है,
परन्तु इस कार्यवाही से सब राजपूत अप्रसन्न हो गये थे इसलिए बहुत से रणमल के . साथ चल दिये। ... ......
. .. जब नागोर पर भाटी व तुर्क चढ़ आये तो राव चूण्डा भी सजकर मुकाबले के वास्ते . गढ़ के बाहर निकला, युद्ध हुआ और सात आदमियों सहित राव यूण्डा खेत रहा ।
भाटियों ने राव का सिर काटकर बर्छ की नोक पर धग और उस चर्च को भूमि में गाड़कर . . राव के मस्तक को ऊपर रक्खा और मसखरी के तौर पर भाटी अा अाकर उसके सामने । यह कहते हए सिर झुकाने लगे कि “राव चूण्डाजी जुहार।" तब राव कैलण वहां आया । , वह बड़ा शकुनी था, कहने लगा-ठाकुरो, सुनो अागे को भाटी राठौड़ों के चाकर होंगे और
उन्हें तसलीम करेंगे। . ..
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राव चूण्डा के सरदार रणमल को ढढाण की तरफ ले गये । रणमल ने पिता के आज्ञानुसार साथ के सब राजपूतों को राजी कर लिया। केलण भाटी रणमल के पीछे लगा। रणमल एक गांव में पहुँचा, एकं पनघट के कूऐ के पास ठहरा । वहां पनिहारियां जल भरने आई । उनमें से एक बोली "बाई ! आज कोई ऐसा यहां. श्राया है कि जिसने अपने बाप को मरवाया, धरती खोई, उसके पीछे कटक आता है सो ऐसा न हो कि अपने को भी मरवावे ।" पनिहारी के ये वचन रणमल के कान में पड़े । वह बोला आगे नहीं जाऊंगा, पीछा करने वाली सेना से लडूंगा सब पीछे फिरे, शस्त्र संभाले, युद्ध हुआ, सिखरा ने बादशाही निशान छीन लिया । मुगल और भाटी भागे और रणमल नागोर में आकर पाट बैठा।
गोगादेव थलवट में रहता था। वहां जब दुष्काल पड़ा तो मऊ (लोग या प्रजा). चली, केवल थोड़े मनुष्य वहां रह गये । आषाढ़ आया तब लोग गांवों में आकर बसे । उनमें बानर तेजा नाम का एक राजपूत गोगादेव का चाकर था, वह भी मऊ के साथ गया था। पीछे लौटता हुआ वह अपने पुत्र पुत्री और एक बैल स.हेत गांव मीतासर में रात्रि को ठहरा । प्रभात के समय जब वह स्नान को गया और पानी में बैठकर नहाने लगा. तब उस गाँव के स्वामी मोहिल ने उसको बेटी की गाली दी और कहा "अरे पापी, लोग तो यहां जल पीते हैं और तू उसमें बैठकर नहाता है ।" इतना कहकर उसके पराणी (घह लकड़ी जिसके एक सिरे पर लोहे की तीक्षण कील लगी रहती है) मारी; जिससे उसकी पीठ चीर गई । लोगों ने कहा कि यह गोगादेव का राजपूत है तो मोहिल बोला कि “गोगादेव जो करेगा सो मैं देख लूगा ।" तेजा वहां से अपने गांव आया । उसके घरमें प्रकाश देखकर गोगादेव ने अपने आदमी को खबर के लिए भेजा और फिर उसको बुलाया। दूसरे दिन जब गोगादेव तालाब पर स्नान करने गया तो तेजा भी उसके साथ गया था। जब नहाने लगे तो गोगादेव ने तेजा की पीठ में घाव देखकर पूछा कि यह कैसे हुआ ? उसने उत्तर दिया कि मीतासर के राणा माणकराव मोहिल ने मेरी पीठ में पार लगाई और ऐसा कहा है । इस पर गोगादेव साथ इव टठा करके मोहिली पर चढ़ा। उस दिन वहां बहुत सी बरातें आई थीं। लोगों ने समझा कि यह भी कोई बरात है । द्वादसी के दिन प्रातःकाल ही गोगादेव चढ़ दौड़ा, लड़ाई हुई, राणा भाग गया, दूसरे कई मोहिल मारे गये, गांव लूटा, और २७ बरातों को भी लूटकर अपने राजपूतों का बैर लिया।
गोगादेव जब जवान हुआ, तब अपने पिता का बैर लेने के लिए उसने साथ इकटठा किया और जोहियों पर चढ़ चला । इस बात की सूचना जोहिंधों को होते ही वे भी युद्ध के लिए उपस्थित हो गये । ( शत्रु को धोखा देने ने लिए) गोगादेव उस वक्त पीछा मुड़ गया और २० कोस आकर ठहरा । अपने गुप्तचर को बैरी की खबर देने के लिए . छोड़ श्राप उसकी घात में बैटा अवसर देखने लगा । जोहियों ने जाना कि गोगादेव चला गया है तो फिर अपने स्थान को लौट आये । गुप्तचर ने पाकर खबर दी कि मैंने दल्ला जोहिया और उसके पुत्र धोरदेव का पता लगा लिश है और जहां वे सोते हैं वह ठौर
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निकला । धीरदेव इस अमें में पूंगल के राव राणगदे भाटी के यहां विवाह करने गया था ।
और उसके विछोने पर उसकी बेटी सोती थी, धीरदेव के भरोसे तलवार झाड़ी। उसकी कृपाण उस बाला को काट, बिछौने को चीर, पलंग को काटती हुई घट्टी से जा खटकी। इसी से वह तलवार 'रलतली' प्रसिद्ध हुई । जत्र दल्ला मारा गया तो उसका भतीजा हांसू ' पडाईये नाम के घोड़े पर चढ़ धीरदेव को यह समाचार पहुंचाने के लिए पूगल को दौड़ा । धीरदेव विवाहोत्तर अपनी पत्नी के पास सोया हुआ था, कंकन डोरडे अब तक न थे। पहर भर रात्रि शेष रही होगी कि घोड़ा पड़ाइया हिन हिनाया. । धीरदेव-की. अखि खुल गई, कहने लगा कि पड़ाइया हिन हिनाया । साथ के नौकर चाकर बोले, जी!. इस वक्त यहां पड़ाइया कहां ? इतना कहते तो देर लगी कि हांसू सन्मुख आ खड़ा हुआ।धीरदेव ने पूछा कुशल तो है ? उत्तर दिया कि कुशल कैसी, गोगादेव बीरमोत ने आकर तुम्हारे पिता दल्ला को मारा, अब वह वापस जाता है। धीरदेव तत्काल उठा, वस्त्र पहने, हथियार बांधे, घोड़े जीन कराया, सवार होने ही को था कि राव गणगदेव भी वहां आगया, कहने लगा कि कंकनडोरे खोलकर सवार होो। धीरदेव ने उत्तर दिया कि अब पीछे- . श्राकर खोलेंगे । तत्र तो राव राणगदेव भी साथ हो लिया और दोनों चढ़ धाये ।,आगे गोगादेव पदरोला के पास ठहरा हुआ था, घोड़ों को चरने के लिए छोड़ दिया था, साथ सब जल के किनारे टिका हुआ था । भाटी और जोइये . निकट पहुंचे । घोड़े चरते हुए देखे तो जान लिया कि यह घोड़े गोगादेव के हैं, तब उनको लेकर पीछे फिरे और पदरोला श्रये । कटक प्यासा हुआ तब कहने लगे कि जल पीकर चलें। जलपान किया, घोड़ों को भी पिलाकर ताजा कर लिया और फिर दो टुकड़ी हो दोनों तरफ से बढ़े । इन्हें देखकर गोगादेव ने पुकारा-अरे घोड़े लायो ! तब ढीढी ( कोई नाम ) बोला-"अरे ! गोगादेव के घोड़े नहीं मिलते हैं, जोहिये ले गये, छुडायो।' युद्ध शुरू हुआ । भाटी जोहिया राठौडों से भिड़े । गोगादेव घावों से पूर होकर पड़ा, उसकी दोनों जंघा कट गई, उसका पुत्र ऊदा भी . पास ही गिरा । घायल गोगादेव अपनी माण की तलवार को टेके बैठा घूम रहा था कि राव राणगदे घोड़े चढ़ा हुआ उसके पास से निकला तो गोगादेव कहने लगा "राव राणगदे का बड़ा सांका (साथ) है । हमारा पारवाडा (जुहार ? ) ले लेवे।" राणगदे ने उत्तर दिया कि "तेरे जैसी विष्ठा का पारवाडा हम लेते फिरे" इतना कहकर वह तो चला गया और धीरदेव आया । तब फिर गोगादेव ने कहा "धीरदेव तू वीर जोहिया है, तेरा काका मेरे. पेट में तड़प रहा है, तू मेरा पारवाडा ले " यह सुन धीरदेव फिरा, गोगा के निकट प्रा. घोड़े से उतरा । तब गोगा ने तलवार चलाई और वह पास आ पड़ा । गोगा ताली देकर हंसा, तब धीरदेव ने कहा- 'अपना बैर टूटा, हमने तुझे मारा और तूने धीरदेव को, इससे महेवे की हानि मिट गई।" धीरदेव के प्राण मुक्त हुए तब गोगादेव बोला "कोई हो तो सुन लेना। गोगादेव कहता है कि.राठोडों और जोहियों का बैर तो बराबर हो गया, परन्त जो कोई जीता जागता हो तो महेवे जाकर कहे कि राव राणगदे ने गोगादेव को "विष्टागाली" दी है सो बैर भाटियों से है ।'' यह बात झीपां ने सुनी और महेवे जाकर सारा हाल कहा ।
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वीरवाण इधर रणखेत में जोगी गोरश्वनाथजी आं निकले । गोगादेव को इस तरहं बैठा देखा, उन्होंने उसकी जंघा जोड़ दी और अपना शिष्य बना कर ले गये, सो गोगादेवं अंब तक चिरंजीव है। . . . . . . . . .
. . . . .' अडकमल या अरडकमल चण्डावत ( राठौड़ राव चण्डा का पुत्र)-जैसा कि. ऊपर लिख आयें हैं कि अडकमल को भैंस. का लोह करने पर उसके पिता ने बोल. मारा, (कि भैंस का लोह किया तो क्या, मैं तो प्रशंसा जत्र करु, कि ऐसा- ही लोह राव गणगेद. या उसके बेटे सादा पर किग जावे । ) पिता का वह बोल पुत्र के दिल में खटंकता था ! उसने स्थल स्थल पर अपने भेदिये यह जानने को बिठा रक्खे थे कि कहीं राणगर्दै या. . सादुल कुवर हाथ आवे तो उनको मारू । तभी मेरा जीवन सफल हो और पिता के बोल को सत्य कर बताऊँ। छापर द्रोणपुर में मोहिल ( चौहान ) राज करते थे वहां के राव . ने अपनी कन्या के सम्बन्ध के नारियल पूगलं में कुवर सादल राणगदे बोत के पास भेजे । ब्राह्मण पूगल पाया और भाटी राव से कहा कि मोहिला ने कुँवर सादल के लिए यह नारियल भेजे हैं । राव राणगदे ने उत्तर दिया कि हमारा राठौडों से बैर है, अतएव कुवर व्याह करने को नहीं आ सकता और ब्राह्मण को रुकसत कर दिया । यह समाचार संदूल को मिले कि रावजी ने मोहिलों के नारियल लौटा दिये हैं तो अपना आदमी भेजकर । ब्राह्मण को वापस बुलाया, नारियल लिये और उसे द्रव्य देकर विदा किया । प्रतिष्ठित. सरदारों के हाथ पिता को कहलाया कि नारियल फेर देने में हम अपयश और लोकनिंदा के भागी होते हैं, राठोडों से डरकर कब तक घर में घुसे बैठे रहेंगे, मैं तो मोहिलाणी को व्याह कर लाऊंगा । वह टीकावत पुत्र और जवान था। राव ने भी विशेष कहना उचितं नं समझा। इसने अपने राजपत इकट्ठे कर चलने की तैयारी करलो और पिता के पास मोरं नांमी अश्व संवारी के लिए मांगा। राव ने कहा कि तू इस घोड़े को रखना नहीं जानता; या तो हाथ से खो देगा या किसी को दे श्रावेगा। वेटा कहता है पिताजी ! मैं इस घोड़े की अपने प्रोण के समान रक्खूगा । अब पिता क्या कहे, घोड़ा दिया, कुवर केसरिये कर व्याहने चढा, छापर पहचा और माणकदेवी के साथ विवाह किया । राव कलण का पुत्रा मागणुक भाटियाणी जबर्दस्त थी । उसने गढ द्रोणपुर में विवाह न करने दिया, तब राव माणक सेवा ने अपनी कन्या और राणा खेता की दोहिती को अोरीठ गांव में ले जाकर सादूल के साथ व्याही थी। मोहिलों ने सदूल को सलाह दी कि तुम अपने किसी बड़े भरोसे वाले सरदार को छोड़ जाओ । वह दुलहन का रथ लेकर पूगल पहुंचा जावेगा, तुम तुरन्त चढ़ चलो, क्योंकि दुश्मन कहीं पास ही घात में लगा हुयां है । सादूल ने कहा कि मैं त्याग बांटकर पीछे चढ़ेगा । राठोडों के भेदिये ने जाकर अरडकमल को खबर दी कि सादुल मोहिलों के यहां ब्याहने आया है, वह तुरन्त नागौर से चढ़ा। इस वक्त एक श्रशुभ शकुन हुआ । महाराज साथ था, उसको शकुन का फल पूछा तो उसने कहा कि अंपन कालू गोहिल के यहां चलेंगे, जब वह आपकी जीमने की मनुहार करे तो उसको अपने शामिल भोजन के लिए बैठा लेना । पहला ग्रास श्राप मत लेना, गोहिल को लेने .
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. वीरवाण
देना । जब वह ग्रास भरे तब उससे पूछना कि हमने ऐसा शकुन देखा है उसका फल कहो। . वह विचार कर कह देगा । ये गोहिल के घर जाकर उतरे, उसने गोठ तैयार कराई, जीमने बैठे, पहला ग्रास कालू ने लिया तब अरडकमल कहने लगा-कालूजी हम सादूल भाटी पर चढ़े हैं, हमको ऐसा शकुन हुआ उसका फल कहो । कालू कुछ विचार कर बोला "तुम जिस काम को जाते हो वह सिद्ध होगा, तुम्हारी जय होगी और कल प्रभात को शत्र मारा
जायेगा।" जीम चठकरः चढ़े, महाराज सांखल के बेटे अाल्लणसी को राव राणगदे ने मारा ... था इसलिए अपने बेटे का वैर लेने को ' महाराज आगे होकर राठोडों के कटक को सादल
पर ले चला । सार्दूल भाटी त्याग बांट, ढोल बजवाकर अपनी ठकुराणी का रथ साथ ले ' रवाना हुआ था कि लायां के मगरे (पहाडी) के पास अंरडकमल ने उसे जा लिया और ललकार कर कहा-"बड़े सरदार जावे मतं । मैं बड़ी दूर से तेरे वास्ते आया हूं।" तब ढाढ़ी बाला-- "उडे मौर करे पलाई मोरे जाई पर सादो न जाई," । मोर (घोड़ा) उज्कर भाग जावे परन्तु
सादा नहीं जावेगा । राजपूतों ने अपने अपने शस्त्र संभाले, युद्ध हुआ, कई आदमी मारे .. गये, अरडकमल ने घोड़े से उतर मोर पर एक हाथ ऐमा मारा कि उसके जारों पवि कंट
गये और साथ ही सादूल का काम भी तमाम किया । उसके साथ राजपूत मर मिटे तब मोहिलाणी ने अपना एक हाथ काटकर सादूल के साथ जलाया और आप पूगल पहुची, सासू ससूर के पंग पकड़े और कहा "मैं आप ही - के दर्शन के लिए यहां आई थी, अब पति के साथ जाती हूं।' ऐसा कहकर वह सती हो गयी । अरडकमल ने भी नागौर कर · पिता के चरणों में सिर नवाया; राव चूण्डा हुआ और उसे पट्टे में दिया ।
(ऊपर कह आये हैं कि राव चूण्डा ने अपनी राणी मोहिल के कहने से अपने पुत्र रणमल को अपना उत्तराधिकारी न बनाकर उसे. निर्वासित किया और मोहिल के पुत्र कान्हा को मंडोवर का राज दिया था । ) जब रणमल विदा हुआ तो अच्छे अच्छे राजपत अर्थात् सिखरा उगमणोत, इंदा, ऊदा त्रिभुवन सिंहोत, राठोड़ काजोटिवाणो उसके साथ .. हो लिये । आगे जाकर एक रहट चलता देखा, वहां घोड़ों को पानी पिलाया । उनके मुह छांटे, हाथ मुह धोकर अमल पानी किया। वहीं सिखरे ने एक दोहा कहा-"कालो काले हिरण जिम, गयो टिवाणों कूद । आयो परवत. साधियों त्रिभुवन बालै ऊद ।' तब ऊदा और काला ने कहा कि हम सिखरा के साथ नहीं जायेंगे, यह निंदा करता है अतः पीछे लौट जायेंगे । इतने में दल्ला गोहिलोत का पुत्र पूना उठकर आया, जिसको सिखरे ने कहा कि पीछे फिरो । वह बोला "मैं नहीं लौटूंगा, ऐसा अवसर मुझे कत्र मिले ।" तब कला और
ऊदा ने कहा कि हम पना के साथ पीछे जावेंगे । सिखरा ने कहा तुम जाओ, मैं नहीं. - आऊंगा । एक दोहा मुझे भी कहो
घुमडलेह सिरावणी, कहियो उगह विहाण ।
. ऊगमणावत कूदियो,. बट वंगे केकाण ॥ .. ... फिर पना, राव (चूण्डा ) के पास चला गया । ५०० सवारों सहित नाडोल के गांव. धणले में आकर ठहराः । नाडोल में उस वक्त. सोनगिरे ( चहुवाण ) राज करते थे। .
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वीरवाणराव रणमल के यहां तीन बार रसोई चढ़ती और वह अपने दिन सैर शिखार में बिताता था। जब सोनगिरों ने उसका वहां प्रा उतरना सुना. और उसके ठाट ठस्से के समाचार उनके कानों में पहुंचे तब उन्होंने अपने एक चारण को भेजा कि जाकर खबर लावे कि रणमल . के साथ कितनेक आदमी है । चारण ने राव के पास आकर आशीष पढ़ी, राव ने उसको पास बिठाकर सोनगिरों का हाल पूछा । इतने में नौकर ने श्राकर अर्ज की कि जीमण तैयार है । चारण को साथ लिये नाना प्रकार की तैयारी का स्वाद लिया, फिर चारण को कहा कि तुझे कल विदा मिलेगी। दूसरे दिन प्रभात ही शिकारियों ने आकर खवर दो कि अमुक पर्वत में ५ वराहों को रोके हैं । रण मल तुरन्त सवार हुआ और उन पांचों शूकरों का शिकार कर लाया । रसोई तैयार थी, जीमने बैठे, भोजन परोसा गया, साथ के लोग नीमने . लगे कि एक शिकारी ने आकर कहा कि पनोते के बादले (बहने वाली बर्साती जलधारा या छोटी नदी ) पर एक बड़ा वराह श्राया है । सुनते ही रण मल उठ खड़ा हुआ और घोड़ा कसवाकर सवार हो चला । चारण भी साथ हो लिया । सवार होते समय जोहियों को अाज्ञा दी कि पनौते के बाहले पर जीमण तैयार रहे । जब वराह को मारकर पीछे फिरे तो रसोई तैयार थी । जीमने बैठे, आधाक भोजन किया होगा कि खबर आई कि कोलर के .. तालाब पर एक नाहर और नाहरी आये हैं । उसी तरह भोजन छोड़फर वह उठ खड़ा हुआ
और वहां पहुंचा जहां बाघ था । जाते वक्त हुक्म दिया कि जीमण तालाब पर तैयार रहे। चारण भी साथ ही गया । जब सिंहों का शिकार कर लौटे तो रसोई तैयार थी-सब ने. सीरा . परी आदि भोजन किया । उस चारण को मार्ग में से. ही विदा कर दिया और कहा कि नाडोल यहां से पास है । चारण ने घोड़ा हटाया, नाडोल वहां से एक कोस ही रह गया था। .. चारण ने पुकार मचाई "दौड़ो दौड़ो" । बाहर आई है गांव में राजपूत सवार हो होकर
आये । चारण को पूछा कि तुझे किसने खोसा ? कहा-मुझे तो किसी ने नहीं खोसा है । परन्तु तुम्हारी धरती लुट गई। पूछा कैसे ? बोला-यह रणमल पास आ रहा है और इतना खर्च करता है, बाप ने तो निकाल दिया, फिर इसके पास इतना द्रव्य आवे कहां से ? यह कहीं न कहीं छापा मारेगा या तो सोनगिरों से नाडोल लेगा, हूलों से सोजत लेगा । इस कान से सुनो या उस कान से, मैंने तो पुकार कर कह दिया है।
कितनेक दिन वहां ठहरकर रणमल चित्तौड़ के राणा लाखा के पास गया जहां छत्तीस ही राजकुल चाकरी करते थे । बड़ा राजस्थान, रणमल भी वहां जाकर चाकर हुया । . (श्रागे राणा लाखा और चूण्डा की बात, राणा का रणमल की बहन से विवाह करना
और मोकल के जन्म आदि का हाल पहले सिसोदियों के वर्णन में राणा लाखा के हाल में लिख दिया है-देखो भाग प्रथम पृष्ठ २४ )।
एक बार रणमल थोड़े से साथ से यात्रा के वास्ते गया था, पीछा लौटते ढढाड में पाया । वहां पूरणमल कछवाह राज करता था ( यह राजा पृथ्वीराज का पुत्र और सांभर का राजा था)। उसने रणमल को पूछा कि हमारे यहां नौकर रहोगे । उत्तर दिया-रहेंगे ।
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वीरवाण एक दिन जोधा कांधल और पूरणमल चौगान खेल रहे थे । जोधा ( रणमल का पुत्र ) जेठी घोड़े पर सवार था । पूरणमल ने वह घोड़ा देखा, कहा हमें दे दो। कांधल बोला कि रणमलजी को पछे बिना मैं नहीं दे सकता । पूरणमल ने कहा, मैं छीन लगा। फिर जोधा कांधल ने डेरे पर आकर घोड़े की कथा रणमल को सुनाई । रणमल अपने भाई बेटे व राजपूतों सहित दरबार में आया। पूरणमल जहां बैठा था वहां उसका घोड़ा दबाकर बैठ गया । उसकी कमर में हाथ डाल पकड़कर खड़ा कर दिया और अपने साथ बाहर ले आया, घोड़े पर सवार कराया और उसके घोड़े के बराबर अपना घोड़ा रख कर ले चले । पूरणमल के राजपूत इन्हें मारने को आये तो रणमल कटार खींचकर पूरणमल को मारने को तैयार हो गया । तत्र तो वह अपने आदमियों को झगड़ा करने से रोककर उनके साथ साथ हो लिया । बहुत दूर ले जाकर रणमल ने उसे आदरपूर्वक वह घोड़ा दे इतना कह लौटा दिया कि "हमारे पास से घोड़ा यूलिया जाता है, जिस तरह तुम लेना चाहते थे वैसे नहीं।" :.
अपने पिता के मारे जाने पर रणमल नागौर आया और अपने पिता के आज्ञानुसार कान्हा को राजगद्दी पर बिठाकर आप सोजत में रहने लगा। भाटियों से बैर था सो दौड़दौड़कर उनका इलाका लटने लगा । तब उन्होंने चारण भुज्जा संढापच को उसके पास भेजा । चारण ने यश पढ़ा, जिससे प्रसन्न होकर रणमल ने कहा कि अब मैं भाटियों का बिगाड़ न करूंगा । उन्होंने अपनी कन्या उसे ब्याह दी जिसके पेट से राव जोधा उत्पन्न हुआ था।
अपने पुत्र सत्ता को पहेर की जागीर राव चूण्डा ने पहले ही से दे दी थी, (दूसरी ख्यातें से:) सं०.१४६५ में कान्हा का मंडोवर गद्दी बैठना पाया जाता है परन्तु . वह अधिक राज न कर सका । उसके भाई सत्ता ने राज छीन लिया, और राज प्रबन्ध अपने भाई रणधीर को सौंपा । सत्ता के पुत्र नर्बद और रणधीर के परस्पर अनबन हो जाने से रणधीर चित्तौड़ गया और रणमल को लाया. । राणा मोकल ने रणमल की सहायता कर सं० १४७४ के लगभग उसे मंडोवर की गद्दी पर बिठाया । रणमल और उसके पुत्र जोधा ने नर्बद से युद्ध किया, वह घायल होकर गिरा, तीर लगने से उसकी एक अांख फट गई
और उसके बहुत से राजपत मारे गये । राव रणमल ने मंडोवर ली। राव सत्ता को-अांखों - से दिखता नहीं था इसलिए राव रणमल ने उसको गढ़ में रहने दिया और जब वह उससे . मिलने गया, अपने पुत्रों को उमके पांवों लगाया । जब जोधा जिरह वक्तर पहने शस्त्र सजे
उसके चरण छूने को गया । सत्ता ने पूछा कि "रणमल यह कौन है ?" कहा "आपका दास जोधा है ।" सत्ता बोला कि टीका इसे देना, यह धरती रक्खेगा। रणमल ने भी उसी को अपना टीकायत बनाया और मंडोवर में उसे रक्खा और आप नागौर चला गया। .
एक दिन राव रणमल सभा में बैठा अपने सरदारों से यह कह रहा था कि बहुत .. दिन से चित्तौड़ की तरफ से कोई खबर नहीं आई है । उसका क्या कारण ? थोड़े ही दिन ... पीछे एक आदमी चित्तौड़ से पत्र लेकर आया और कहा कि मोकल मारा गया। राव
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१४
वीरवाण
विस्मित और शोकातुर हो बोला हैं ! मोकल को.. मार डाला ?" पत्र वंचवाया, मोकल को जलांजलि दी और चित्तौड़ जाना विचारा । पहले २१ पांवड़े (कदम) भरे और फिर खड़े होकर कहा कि “मोकल का बैर लेकर पीछे और काम करूंगा।” “सिसोदियों की बेटियां वैर में राव चूण्डा की संतान को परणाऊ तो मेरा नाम रणमल ।' कटक सज चित्रकूट पहुंचे। सीसोदिये ( मोकल के घातक) भागकर पई के पहाड़ों में जा चढ़े और वहां घाटा बांध रहने लगे । रणमल ने वह पहाड़ घेरा और छः महीने तक वहां रहकर उसे सर करने के कई उपाय किये, परन्तुः पहाड़ हाथ न आया। वहां मेर लोग रहते थे । सिसोदियों ने उनको वहां से निकाल दिया था उनमें से एक .मेर राव रणमल से आकर मिला और कहा कि जो दीवाण की खातरी का पर्वाना मिल. जावे तो यह पहाड़ में सर: करा दू। राव रणमल ने पर्वाना करा दिया और उसे साथ ले ५०० हरियार बन्द: राजपूतों को लिये पहाड़ पर चढ़ने को तैयार हो गया । मेर बोला, श्राप एक मास तक और धैर्य रक्खें । पूछाकिसलिए ? निवेदन किया कि मार्ग में एक सिंहनी ने बच्चे दिये हैं । रणमल बोला कि सिंहनी. से तो हम समझ लेंगे तू तो चल । मेर को लिए आगे बढ़े। जिस स्थान पर सिंहनी थी वहां पहुंचकर मेर खड़ा रह गया और कहने लगा कि आगे नाहरी बैठी है। रणमल ने अपने पुत्र अरड कमल से कहा कि वेटा, नाहरी को ललकार । उसने वैसा ही किया । शेरनी झपटकर उस पर आई । इसका कटार पहले ही उसके लिए तैयार था, घूस घूसकर उसका पेंट चीर डाला । जब अगुवे ने उनको पहाड़ों में ले जाकर चाचा मेरा के घरों पर खड़ा कर दिया । रणमल के कई साथी तो चाचा के घर पर चढ़ और राव आप महपा पर चढ़कर गया । उसकी यह प्रतिज्ञा थी कि जहां स्त्री पुरुष दोनों घर में हों उस घर के भीतर न जाना, इसलिए बाहर ही से पुकारा कि "महपा बाहर निकल व तो यह शब्द सुनते ही ऐसा भयभीत हुआ कि स्त्री के कपड़े पहन झट से निकलकर सटक गया; रणमल ने थोड़ी देर पीछे फिर पुकारा तो उस स्त्री ने उत्तर दिया कि राज ! ठाकर तो मेरे कड़े पहनकर निकल गये हैं, और मैं यहां नंगे बदन बैठी हूं। रणमल वहां से लौट गया, चाचा मेरा को मारा और दूसरे भी कई सीसोदियों को खेत रक्खा । प्रभात होते उन सबके मस्तक काट · कर उनकी चवंतरी (. चंवरी ) चुनी, बछों की बहे बनाई और वहां सीसोदियों की बेटियों को राठौडी के साथ परणाई । सारे दिन विवाह कराये, मेवासा तोड़ा और वह स्थान मेरों को देकर राव रणमल पीछा चित्तौड़ गया, राणा कुभा को पाट बैठाया। दूसरे भी. कई बागी सरदारों को मेवाड़ से निकाला और देश में सुख शांति स्थापित की।
(चित्तौड़ में राणा कुंभा के शुरू जमाने में राव रणमल पर ही राजप्रबन्ध का दारमदार हो गया था और उसने राणा के काका राव चूण्डा लाखावत को भी वहां से विदा करवा दिया जो मांडू के सुल्तान के पास जा रहा था । ) एक दिन राणा कुंभा सोया हुआ था और एका चाचावत. पगचंपी कर रहा था कि उसकी आंखों में से आंसू निकलकर राणा के पग पर बूदे गिरी । राणा की आंख खुली, एका को.रोता हुआ देख कारण पूछा तो उसने अर्ज की : कि मैं रोता इसलिए है कि अब देश सीसोदियों के अधिकार में से निकल
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वीरवाण
बायगा और उसे राठोड़ लेंगे । राणा ने पूछा, क्या तुम रणमल को मार सकते हो? अर्न . .. की कि जो दीवाण के हाथ हमारे सिर पर रहे तो मार सकते हैं । राणा ने श्रीज्ञा दी । राणा,
एका चाचावत और महपा पंवार ने यहं मत दृढ़ किया तथा रात्रि के समय सोते हुए राव रणमल पर चूक कर उसे मारा । इसका सविस्तार हाल मेवाड़ की ख्यात में राणा के वर्णन में लिख दिया है । राव रणमल ने भी मरते मरते राजपतों के प्राण लिये । एक को कटार से मारा, दूसरे का सिर लोटे से तोड़ दिया और तीसरे का प्राण लातों से लिया । राणा की एक छोकरी 'महल चढ़ पुकारी "राटोड़ों! तुम्हारा रणमल मारा गया ।" तब रणमल के पुत्र जोधा कांधल अादि वहां से घोड़ों पर चढ़कर भागे । राणा ने उनके पकड़ने को फौज भेजी, लड़ाई हुई और उसमें कई सरदार. मारे गये । बरड़ा चन्द्रावत शिवराज, पूना, ईदा आदि । चरड़ा ने पुकारा "बड़ा बीजा!" तो एक दूसरा बीजा बोल उठा कि गला फाड़कर आप मरता हुआ दूसरों को भी ले मरता है । चरड़ा ने कहा कि मैं तुझको नहीं पुकारता हूँ । भीमा बरसल, वरजांग भीमावत मारे गये और भीग चूण्डावत पकड़ा गया।
मांडल ने तालाब में अपने अपने घोड़ों को पानी पिलाया । उस वक्त एक ओर तो जोधा और सत्ता दोनों सवार अपने घोड़ों को पिलाते थे, और दूसरी तरफ कांधल अपने अंश्व को जलपान कराता था। कांधल ने उन दोनों सवारों से पूछा ( तुम कौन हो आदि )। जोधा ने काँधल की आवाज पहचानी, उससे बात की, दोनों मिले और वहीं जोधा ने उसे रावताई का टीका दिया । दोनों भाई मारवाड़े में आये ।
. . . दोहा--पागे सूरन काढ़िया तुंगम काढ़ी आय ।। . ... ... .. जे मिसगणो सेजडी, लड रिणमल राय || . . . . .
रांव रिणमल नींदा भरै श्रावय लौह घणे उबारै, कटारी काढ़ मरघणी तिय आगै सुरन तुंगकिणी । तो दिन मेवाड़े तो विपख्य की पापं सांसन्नी तरपणं वही जै वैसा सक भकरणं . कृतघं । छंद अशुद्ध से हैं अर्थ ठीक नहीं लगता)। जै रिणमल होवत दल अतार कुभ करण बहन्त किसी पर । माथा सूल सही सुरताणां, अोस मुद्रावत आणां । जै वरती वी आणां । वे हूं सिंघावी चीलो हिन्दू अनैं हमीर मीर जै लुलिया भांजै । जै भग्गो पीरोज, खेत्रा जाह खड़े जै मारै । महमद गजगमारै संभेडो रिणमल राव विसरामिये । कु.भा की मन वीकसै छलायो छदम ते कूड़ कडकर, जेम सीह. आगै ससे । ...
... ( इसमें राव रणमल के वीरकृत्यों का वर्णन है जो उसने राणा के हित किये, और अंत में कहा है कि राणा ने छले छाकर रणमल को ऐसा मारा जैसे सिंह को ससा ने .मारा. था। (छंद शुद्ध न होने से सही अर्थ नहीं किया जा सकता है । ).. ..
.....महपा परमारे पई के पहाड़ों से भागकर मांडू के बादशाह महमूद के पास जा रहा
था । जब राणा कुंभा ने बादशाह पर चढ़ाई की तब राव रणमल राणा के साथ था।
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योरवांरण :
सीमा पर युद्ध हुअा उस वक्त महमद हाथी पर लोहे के कोठे में बैठा हुआ था, राव रणमल' ने चाहा कि अपने घोड़े को उड़ाकर बादशाह को बर्छा मारे, परन्तु किसी प्रकार बादशाह को राव का यह विचार मालम हो गया । उसने तुरन्त अपने खवास को जो पीछे बैठा हुआ था, . अपनी जगह बिठा दिया और आप उसकी जगह जा बैठा । इतने में रणमल ने घोड़ा उड़ाकर बछी चलाई, वह कोठा तोड़कर खवास की छाती के पार निकल गई। उसने चिल्ला कर कहा "हजरत मैं तो मरा ।" यह शब्द रणमल के कान पर पड़े और उसने जाना कि बादशाह बच गया है। बादशाह हाथी की पीठ पर पीछे की ओर बैठा था और राव की यह प्रतिज्ञा थी कि वह पीठ पर तलवार कभी न चलाता था। उसने फिर घोड़ा उड़ाया, बादशाह के बराबर पाकर उसको उठाया और एक शीला पर दे पटका जिससे उसके प्राण निकल गये । महपा को बादशाह मांडू के गढ़ में छोड़ पाया था । नत्र राणा मांडू पहुंचा तो गढ़वालों ने महपा को कहा कि अब हम तुमको नहीं रख सकते हैं । राव रणमल ने उसे मांगा तब वह घोड़े पर चढ़कर गढ़ के दरवाजे आया और वहां से नीचे कूद पड़ा। जिस टौर से महपा कुदा उसको पाखंड कहते हैं । पीछे महपा को सिकोतरी का वरदान हुया ।
( दूसरी बात इस तरह पर लिखी है )-राव चूण्डा काम आया तब टीका राव रगमल को देते थे कि रणधीर चूण्डावत दरबार में पाया । सत्ता वहां बैठा हुया था । रणधीर ने उसको कहा कि "मत्ता कुछ देवे तो टीका तुम्हें देवे।" सत्ता ने कहा कि "टीका रणमल का है, जो मुझे दिलायो तो भूमि का आधा भाग तुझे देऊ।" तब रणधीर ने घोडे से उतर दरबार में जाकर सत्ता को गद्दी पर बिठा दिया और रणमल को कहा कि तुम • पट्टा लो । उसने मंजूर न किया और वहां से चल दिया, राणा मोकल के पास जा रहा। राणा ने उसकी सहायता की और मंडोर पर चढ़ पाया । सत्ता भी संमुख लड़ने को पाया। गणधीर नागौर जाकर वहां के खान को सहायतार्थ लाया । ( उस वक्त नागोर में शम्सखां गुजरात के बादशाह अहमदशाह की तरफ से था। ) सीमा पर युद्ध हुआ, रणमल तो खान से भिड़ा और सत्ता व रणधीर राणा के संमुख हुए ! राणा भागा और नागौरी खान को रगामल ने पराजित कर भगाया । मुत्ता और रणमल दोनों की फौजवालों ने कहा कि विजय रणमल की हुई है, दोनों भाई मिले, परस्पर राम राम हया, बात-चीते की, रणमल पीछा राणा के पास गया और सत्ता मंडोवर गया ।
सत्ता के पुत्र का नाम नर्बद और रणधीर के पुत्र का नाम नापा था । ( सत्ता अांखों से बेकार हो गया था इसलिए ) राज-काज उसका पुत्र नर्वद करता था । एकबार नर्बद ने मन में विचारा कि रणधीर धरती में अाधा भाग क्यों लेता है, मैं उसको निकाल दूंगा। थोड़े ही दिनों पीछे ४००) रुपये कहीं से याये, उनका आधा भाग नर्बद ने दिया नहीं, . दूसरी बार नापा ने एक कमान निकलवाकर खींचकर चढ़ाई और तोड़ डाली । नर्बद ने कहा भाई तोढी क्यों?
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. वीरवाण . .. · नापा बोला धरती का हासल आवे उसमें से प्राधा मांगू, कल थैली आई थी उसमें से मुझे क्यों न दिया ? नर्वद ने आधे रुपये दे दिये ! वह पाली के सोनगिरों का भांजा और नापा सोनगिरों का जमाई • था । एक दिन नर्बद ने अपने मामा से पूछा "मामाजी, तुमको मैं प्यारा या नापा ? "कहा-मेरे तो तुम दोनों ही बराबर हो, परन्तु विशेष प्यारा तू है, क्योंकि तेरे पास रहते हैं। नर्बद ने कहा कि जो ऐसा है तो नापा को विष दे दो । मामा ने कहा "भाई मुझ से ऐसा नहीं हो सकता' । नर्बद ने एक दासी को लोभ देकर मिलाया और नापा को विष दिलवाया जिससे वह मर गया। अब रणधीर ने अपने अादमी मेज कामदार मृतमद्धियों से पूछाया कि यह सेना किस कार्य के लिए इकट्ठी की जाती है परन्तु उन्होंने यही उत्तर दिया कि "हम नहीं जानते।" वे आदमी पाकर दयाल मोदी की दूकान पर बैठ गये । नर्वद इस दयाल से सलाह किया करता था, जब बालक था तब से रणधीर ने उसको पालना की थी। रणधीर के मनुष्यों ने मोदी से सामान लिया । उसने और तो सब चीजें दे दी, पर तु वृत्त न दिया । जब उन्होंने घी मांगा तो उत्तर दिया कि "काले के पीला है.।" और फिर घत दिया । रणधीर के मनुष्यों ने पीछे आकर कहा-राजा, यह पता नहीं लगता कि कटक (कस पर तैयार हो रहा है । उसने पूछा-दयाल मोदी ने तुमको कुछ कहा ? उत्तर-और तो कुछ भी नहीं कहा, परन्तु घृत देते ।समय यह शब्द कहे थे कि "काले के पील बहुत है ।" रणधीर बोला-दयालिया और क्या कहता, काला मैं और पीला मेरा सुवर्ण सो वह कटक मेरे ही पर है । तब उसने भी सेना सजी, फिर आप राणा के पास गया । राणा ने पछा-मामाजी, कैमे आये ?” रणमल ने भी उत्तर दिया कि तुझे मंडोव देने के लिए अाए हैं राणा ने सहायता देनी कही । ये राणा को लेकर सत्ता पर चढ़े । सत्ता ने अपने पुत्र नर्बद से कहा कि तू भी नागोरी खान को ले बा । नर्बद कोस तीनेक तो गया, परन्तु जब ताप पड़ी तो पीछा फिर आया और छिपकर माता-पिता की बातचीत सुनने लगा । सत्ता ( अपनी स्त्री सोनगिरी से कहता है-"सोनगिरी ! नर्बद जानता है कि मेरा पिता कपूत है जो रणधीर को आधा भाग देता है, परन्तु रणधीर के बिना मंडोवर रह नहीं सकता। अब नर्वद नागौरी खान को लेने गया है सो खान पाने का नहीं, क्यों कि वह रणमल के हाथ देख चुका है। यह भी अच्छा हुआ, मै लड़ मरूंगा।" (पिता के ऐसे वचन सुनकर ) नर्बद बोल उठा--"मुझे नागोरी खान के पास किसलिए भेजा, मैं भी युद्ध करूंगा और काम आऊगा।" सत्ता बोला--"मैं भी यही कहता था।" नर्मद ने नारा बनवाया, युद्ध किया और खेत पड़ा । इतने रजपूत उसके साथ मारे गये-- ईदा चोहथ, ईदा जीवा आदि।।
नवंद निपट घायल हया था और उसकी एक आंख फूट गई थी। राणाजी उसको उठवाकर अपने साथ ले गये और रणमल को राणा ने मंडोवर की गद्दी पर बिठाकर टीका दिया । सत्ता भी राणा के पास जा रहा और वहीं उसका देहांत हुआ।
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वीरवारण
( दूसरे स्थान में ऐसा भी लिखा है)-"जब राव चूण्डा मारा गया तो राजतिलक . रणमल को देते थे, इतने में रणधीर चूण्डावत दार में आया । सत्ता चूण्डावत वहां बैठा हृया था, उसको रणधीर ने कहा कि सत्ता ! कुछ देवे तो तुझे गद्दी दिला दू।" सत्ता बोला कि "टीका रणमल का है ।" रणधीर ने अपने वचन की सत्यता के लिए शपथ खाई, तब सत्ता ने कहा कि श्राधा राज तुझे दूगा । रणधीर तुरन्त घोड़े से उतर पड़ा और सत्ता के ललाट पर तिलक कर दिया । रणमल को कहा कि कुछ पट्टा ले लो, वह उसने मंजूर न किया
और राणा मोकल के पास गया । राणाने सहायता की, सत्ता भी सम्मुख हुआ और रणधीर राण नागोरी खान को लाया । सीमा पर लड़ाई हुई, रणमल तो खान के मुकाबले को गया और रणधीर ने बसना के राणाजी से युद्ध किया । राणाजी हार खाकर भागे, परन्तु खान को रणमल ने भगा दिया । सत्ता व रणमल दोनों के साथियों ने जय ध्वनि की, रणमल अपने दोनों भाईयों से मिला, बातचीत की, पीछा मोकल जी के पास चला गया । सत्ता गद्दी वैठा और रान करने लगा । कालांतर में सत्ता व रणधीर के पुत्र हुए, सत्ता के पुत्र का नाम नर्बद और रणधीर के पुत्र का नाम नापा था।
रणमल नित गोटें करता था इसतिर सोनगिरों के भले अादनी देखने को आये थे। उन्होंने पीछे नाडोल जाकर कहा कि माटोड काम का नहीं है, यह तुम से न चूकेगा, तुमको मारेगा, इसलिए तुमको उचित है कि अपने यहां इसका निवाह करदो । तत्र लाला सोनगिरा की बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया। फिर भी सोनगिरों ने देखा कि यह यादमी अच्छा नहीं है, तब उन्होंने रणमल पर चूक करना विचारा । एक दि। रामल सोया हुआ था तब लाला सोनगिर ने याकर अपनी स्त्री से कहा कि "रामी बाई रांड हो जायगी ?" स्त्री बोली "भले ही हो आवे, यदि एक लड़की मर गई तो क्या ।" ठकुराणी ने अपने पति को मन्त्र का प्याला पिलावर मुलाया और बंटी से कहा कि रणमल से चूक है, उनको निकाल दे ! शमी ने याकर पति को सूचना दी कि भागो ! चूक है । घातक उसे मारने को याये, परन्तु वह पहले ही निकल गया और घर जाकर सोनगिरी से शत्रुता चलाई, परन्तु वे वार पर न चढ़ते थे । उनका नियम था कि सोमवार के दिन अाशापुरी के देहरे जाकर गोठ करते, अमल वागगी लेते और मस्त हो जाते थे । एक दिन जब वे खा पीकर मस्त पड़े हुए थे तो श्राचानक रामल उन पर चढ़ याया और उसने रात्रको मार कर अखाये के
च में डाल दिया। ऊपर लगे साले की डाला। कहा, मैंने साराजी से वचन धागह। उनमा लाना लिया, रागा मोकल से मिलने के बारले गया और वहीं रहने लगा । तत्र चाचा मीदिया श्री माता पंवार ने मोडल को मारा ता रणमल को उन भूक का भेद मानुम हो गया था, पन्यु समापो सुख पचर न हुई। एक दिन मा श्रीर चाना महती . मोरिये मेरः गोजीमा का काम था ! रणमल ने यो आसन साथ लगा दिये थे किनमें नया करने वाला मदा ने मलेसी को अपने में मिलाने का बहुत
प्रयान ाि, माया नन। आगन ने माकर मार गुना राबताने यदा श्रीर उगने FREE, I मनाम पर विश्वासन किया। मान मंटोर गया और
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वीरवारण पोछे से राणा पर चूक हुआ। उसने अचलदास खींची की मदद के वास्ते गढ़ से नीचे अाकर डेरा किया था तब महपा ने चाचा को कहा कि आज अच्छा अवसर है, फिर हाथ अाने का नहीं ; तब चाचा मेरा और महपा बहुत सा साथ लेकर आये । राणाजी ने कहा कि “ये. खातणवाले श्राते हैं सो अच्छा नहीं है । जौ गेहूँ में न आने चाहिये, यह मर्दाना के विरुद्ध है ।" उस वक्त मलेसी डोडिया ने अर्ज की कि आपको राव रणमल ने चिताया था कि ये आपसे चूक करना चाहते हैं । राणा बोला कि ये हरामखोर अभी क्यों आये ? मलेसी ने अर्ज की कि दीत्रण ! पहले तो मैंने न कहा, परन्तु अब तो आप देखते ही हैं । (चाचा मेरा अान पहुँचे) घोर संग्राम हुअा, नौ आदमियों को राणा ने मारा और पांच को हाड़ी राणी ने यमलोक में पहुँचाया, पांच का काम मलेसी ने तमाम किया, अन्त में राणा मारा गया। चाचा व महपा के भी हलके से घाव लगे, कुंवर कुंभा बचकर निकल गया । ये उसके पीछे लगे, कुमा पटेल के घर पहुँचा । पटेल के दो घोड़ियां थी। उसने कहा कि एक घोड़ी पर चढ़कर चले जाओ और दूसरी को काट डालो, नहीं तो वे लोग - ऐसा समझेगे कि इसने घोड़ी पर चढ़ाकर निकाल दिया है । कुभा ने वैसा हो किया ।
जो लोग खोजने आये थे वे पीछे फिर गये । मोकल को मारकर चाचा तो राणा बना और महपा प्रधान हुश्रा । कुभा श्राफत का मारा फिरता रहा । जब यह समाचार रणमल को लगे तो वह सेना साथ लेकर आया, चाचा से युद्ध हुआ और वह भाग कर पई के पहाड़ों पर चढ़ गया । रणमल ने कुभा को पाट बैठाया और श्राप उन पहाड़ों में गया, बहुत दौड़ धूप की, परन्तु कुछ दाल न गली, क्योंकि बीच में एक भील रहता था, जिसके बाप को रणमल ने मारा था । वह भील चाचा व महपा का सहायक बना । एक दिन रणमल अकेला घोड़े पर सवार उस भील के घर जा निकला । भील घर में नहीं थे, उनकी मां वहां बठी थी। उसको बहन कहके पुकारा और बढकर उससे बातें करने लगा। भीलनी बोली • कि वीर ! तैने बहुत बुरा किया, परन्तु तुम मेरे घर आ गये अब क्या कर सकती हूँ। अच्छा श्रय घर में जाकर सो रहो । राव ने वैसा ही किया। थोड़ी देर पीछे वे पांचों भाई भील पाये उनकी मां ने उनसे पूछा कि वेटा ! अभी रणमल यहां यावे तो तुम क्या करो? कहा, कर क्या, मारे; परन्तु बड़े बेटे ने कहा-" मां! जो घर पर आवे तो रणमल को न मारें।" मा ने कहा-शावाश बेटा ! घर पर आये हुए तो वैरी को भी मारना उचित नहीं।" रणमल को पुकारा कि वीर बाहर या जावो । वह श्राकर भीलों से मिला । उन्होंने उसकी यहा सेवा मनुहार की और पूछा कि तुम मरने के लिए यहां कैसे लाये ? कहा कि भानजो! . मन प्रतिज्ञा की है कि चचा को मार तय अन्न खाऊ परन्तु करू क्या तुम्हारे पागे कुछ यस नहीं चलता है। भीली ने कहा, अब हम तुमको कुछ भी ईजान पहुंचायेंगे । फिर रामल अपने योद्धाओं को लेकर पहाड़ तले आया; भीलों ने कहा कि पहाड़ के मार्ग में एक सिंहनी रमती रे सो मनुष्य को देख कर गर्जना करेगी। रगमन तो पगडंडी नक्षता दुग दिनी के ससपना पना, यह गई उसी, तुरना मकान (अद्रकमल ) ने तलवार मीनी उस पर वार किया और वहां काट पर उसके दो टुबो कर दिये। निंदनी का शब्द सुनकर पर रहने वालों ने सहा कि सावधान ! परगावा एक दो बार बोनने पाई थी इसलिए
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( दूसरे स्थान में ऐसा भी लिखा है )-"जब राव चूण्डा मारा गया तो राजतिलक . रणमल को देते थे, इतने में रणधीर चूण्डावत दर्वार में आया । सत्ता चूण्डावत वहां बैठा हुया था, उसको रणधीर ने कहा कि सत्ता ! कुछ देवे तो तुझे गद्दी दिला दू" सत्ता बोला. कि "टीका रणमल का है ।" रणधीर ने अपने वचन की सत्यता के लिए शपथ खाई, तत्र सत्ता ने कहा कि प्राधा राज तुझे दूगा । रणधीर तुरन्त घोड़े से उतर पड़ा और सत्ता के ललाट पर तिलक कर दिया । रणमल को कहा कि कुछ पट्टा ले लो, वह उसने मंजूर न किया
और राणा मोकल के पास गया । राणाने सहायता की, सत्ता भी सम्मुख हुआ और रणधीर राण नागोरी खान को लाया । सीमा पर लड़ाई हुई, रणमल तो खान के मुकाबले को गया और रणधीर ने बसना के राणाजी से युद्ध किया । राणाजी हार खाकर भागे, परन्तु खान को रणमल ने भगा दिया । सत्ता व रणमल दोनों के साथियों ने जय ध्वनि की, रणमल अपने दोनों भाईयों से मिला, बातचीत की, पीछा मोकल जी के पास चला गया । सत्ता गद्दी बैठा और राज करने लगा । कालांतर में सत्ता व रणधीर के पुत्र हुए, सत्ता के पुत्र का नाम नर्वद और रणधीर के पुत्र का नाम नापा था।
रणमल नित गोटें करता था इसलिए सोनगिरों के भले आदनी देखने को आये थे। उन्होंने पीछे नाडोल जाकर कहा कि नाठोड काम का नहीं है, यह तुम से न चूकेगा, तुमको मारेगा, इसलिए तुमको उचित है कि अपने यहां इसका विवाह करदो । तत्र लाला सोनगिरा की बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया । फिर भी सोनगिरों ने देखा कि यह आदमी अच्छा नहीं है, तब उन्होंने रणमल पर चूंक करना विचारा । एक दि । रगामल सोया हुया था तब लाला सोनगिरे ने आकर अपनी स्त्री से कहा कि "रामी बाई रांड हो जायगी ?" स्त्री बोली "भले ही हो अवे, यदि एक लड़की मर गई तो क्या ।". ठकुराणी ने अपने पति को मद्य का प्याला पिलाकर सुलाया और बेटी से कहा कि रणमल से चूक है, उनको निकाल दे ! रामी ने आकर पति को सूचना दी कि भागो ! चूक हैं । घातक उसे मारने को आये, परन्तु वह पहले ही निकल गया और घर जाकर सोनगिरों से शत्रुता चलाई, परन्तु वे वार . पर न चढ़ते थे। उनका नियम था कि सोमवार के दिन आशापुरी के देहरे जाकर गोठ करते, अमल वारुणी लेते और मस्त हो जाते थे । एक दिन जब वे खा पीकर मस्त पड़े हुए थे तो अचानक रणमल उन परं चढ़ पाया और उसने सबको . मार कर अखावे के कुंए में डाल दिया । ऊपर सगे साले को डाला | कहा, मैंने सासूजी से वचन धारा है। उनका इलाका लिया, राणा मोकल से मिलने के वास्ते गया और वहीं रहने लगा । तब चाचा सीसोदिया और महपा पंवारने मोकल को मारा तव रणमल को उस चूक का भेद मालूम हो गया था, परन्तु राणा.को कुछ खबर न हुई । एक दिन महपा और चाचा महेगी । डोडिये के घर गये जो राणा का खवास था । रणमल ने अपने जासूस साथ लगा दिये थे . कि देखें ये क्या बातें करते हैं । चाचा महपा ने मलेसी को अपने में मिलाने का बहुत प्रयत्न किया, परन्तु वह न मिला । जासूस ने जाकर सारा वृतांत रणमल से कहा और उसने राणा को सुनाया, परन्तु मोकल ने इस पर विश्वास न किया। रणमल मंडोवर गया और
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वीरवारण . पीछे से राणां पर चूक हुआ । उसने अचलदास खींची की मदद के वास्ते गढ़ से नीचे
आकर डेरा किया था तब महपा ने चाचा को कहा कि आज अच्छा अवसर है, फिर हाथ अाने का नहीं ; तत्र चाचा मेरा और महपा बहुत सा साथ लेकर आये । राणाजी ने कहा कि "ये खातणवाले आते हैं सो अच्छा नहीं है । जौ गेहूँ में न आने चाहिये, यह मर्दाना के विरुद्ध है।" उस वक्त मलेसी डोडिया ने अर्ज की कि आपको राव रणमल ने चिताया था कि ये आपसे चूक करना चाहते हैं । राणा बोला कि ये हरामखोर अभी क्यों आये ? मलेसी ने अर्ज की कि दीत्रण ! पहले तो मैंने न कहा, परन्तु अब तो आप देखते ही हैं। (चाचा मेरा आन पहुँचे ) घोर संग्राम हुआ, नौ आदमियों को राणा ने मारा और पांच को हाड़ी राणी ने यमलोक में पहुँचाया, पांच का काम मलेसी ने तमाम किया, अन्त में राणा मारा गया। चाचा व महपा के भी हलके से घाव लगे, कुवर कुभा बचकर निकल गया । ये उसके पीछे लगे, कुभा पटेल के घर पहुँचा। पटेल के दो घोड़ियां थी। उसने कहा कि एक घोड़ी पर चढ़कर चले जाओ और दूसरी को काट डालो, नहीं तो वे लोग ऐंसा समझेगे कि इसने घोड़ी पर चढ़ाकर निकाल दिया है । कुभा ने वैमा हो किया । जो लोग खोजने आये थे वे पीछे फिर गये। मोकल को मारकर चाचा तो राणा बना और महपा प्रधान हुआ । कुंभा अाफत का मारा फिरता रहा । जब यह समाचार रणमल को लगे तो वह सेना साथ लेकर आया, चाचा से युद्ध हुआ और वह भाग कर पई के पहाड़ों पर चढ़ गया । रणमल ने कुभा को पाट बैठाया और आप उन पहाड़ों में गया, बहुत दौड़ धूप की, परन्तु कुछ दाल न गली, क्योंकि बीच में एक भील रहता था, जिसके बाप को रणमल ने मारा था । वह भील चाचा व महपा का सहायक बना । एक दिन रणमल अकेला घोड़े पर सवार उस भील के घर जा निकला । भील घर में नहीं थे, उनकी मां वहां बैठी थी । उसको बहन कहके पुकारा और बढ़कर उससे बातें करने लगा । भीलनी बोली - कि वीर ! तैने बहुत बुरा किया, परन्तु तुम मेरे घर आ गये अब क्या कर सकती हूँ। अच्छा अब घर में जाकर सो रहो । राव ने वैसा ही किया। थोड़ी देर पीछे वे पांचों भाई भील आये उनकी मां ने उनसे पूछा कि वेटा! अभी रणमल यहां आवे तो तुम क्या करो? कहा. करें क्या, मार; परन्तु बड़े बेटे ने कहा-" मां! जो घर पर आवे तो रणमल को न मारें। मा ने कहा-शावाश वेटा ! घर पर आये हुए तो वैरी को भी मारना उचित नहीं।" रणमल को पुकारा कि वीर बाहर आ जावो । वह कर भीलों से मिला । उन्होंने उसकी बड़ी सेवा मनुहार की और पूछा कि तुम मरने के लिए यहां कैसे आये ? कहा कि भानजो ! मैंने प्रतिज्ञा की है कि चचा को मारू तब अन्न खाऊ परन्तु करू क्या तुम्हारे आगे कल बस नहीं चलता है । भीलों ने कहा, अब हम तुमको कुछ भी ईजा न पहुंचावेंगे । फिर रणमल अपने योद्धाओं को लेकर पहाड़ तले आया; भीलों ने कहा कि पहाड़ के मार्ग में एक सिंहनी रहती है सो मनुष्य को देख कर गर्जना करेगी। रणमल तो पगडंडी चढ़ता हुआ सिंहनी के समीप जा पहुंचा, वह गर्ज उठी, तुरन्त अडवाल (अडकमल ) ने तलवार खींची उस पर वार किया और वहीं काट कर उसके दो टुकड़े कर दिये । सिंहनी का शब्द सुनकर ऊपर रहने वालों ने कहा कि सावधान ! परन्तु वह एक ही बार बोलने पाई थी इसलिए
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वीरवाण
उन्होंने सोचा कि किसी पशु को देखकर बोली होगी। इतने में तो रणमल घोड़े को नीचे छोड़ कर पहाड़ पर चढ़ गया और दर्वाजे पर जाकर बी मारा। भीतर जो मनुष्य थे, चौक पड़े और कहा, रणमल आया । चाचा मेरा से लड़ाई हुई, सीसोदियों को मार कर पांवों तले पटका चाचा मारा गया और महपा स्त्री के कपड़े पहन कर पहाड़ के नीचे कूद भाग गया । रणमल ने चाचा की बेटी के साथ विवाह किया, मनुष्यों के घरों के बाजोट और .. वर्छियों की चंवरी बना कर वहां सीसोदियों की कई कन्याए रणमल ने अपने भाइयों को विवाह दी और पीछा लौटा ।
महपा भाग कर मांडू के बादशाही की शरण गया । जब यह खबर राणाजी को हुई तब उन्होंने बादशाह पर दबाव ढाल कर कहलाया कि हमारे चोर को भेज दो। बादशाह ने महपा को कह दिया कि अब हम तुमको नहीं रख सकते हैं । महपा ने .. उत्तर दिया कि मुझको कैद करके शत्रु को मत सौंपिर और आप घोड़े सवार हो गढ़ के द्वार पर आ घोड़े समेत नीचे कूद पड़ा । घोड़ा तो पृथ्वी पर पड़ते ही मर गया और महपा भाग कर गुजरात के बादशाह के पास पहुँचा । जब उसने वहां भी बचाव की कोई सूरत न देखी तो चित्तौड़ ही की तरफ चला । वहां राज्य तो राणाजी करते थे, परन्तु राज का सत्र काम रणमल के हाथ में था । महपा रात्रि के समय लकड़ियों का भार सिर पर घर कर नगर में पैठा। उसकी एक स्त्री अपने पुत्र सहित वहां रहती थी, जिसको उसरे सुहागन कर रक्खा था । उसके घर आया, पत्नी ने अपने पति को पहचान कर भीतर लिया । अव वह घर में बैठा रहे और सूत के मोहरे व रस्से बनावे । एक दिन एक मोहरी अपने पुत्र को देकर कहा कि जाकर दीवाण के नजर करने और जो दीवाण कुछ प्रश्न करे तो अर्ज करना कि महपा हाजिर है । वेटे ने हजूर में जाकर मोहरी नजर की और दीवाण ने पूछा तो अर्ज कर दी कि महपा हाजिर है । राणा ने उसे बुलाया । उसने अर्ज की कि मेवाड़ की धरती राठोड़ों ने ली । यह बात सुनते ही दीवाण के मन में यह भय उत्पन्न हो गया कि ऐसा न हो कि रणमल मुझे मार कर राज लेले । राणा ने सेना एकत्रित की और वे रणमल को चूक से मार डालने का विचार करने लगे । रणमल के डोम ने किसी प्रकार वह भेद पा लिया और राव से कहा कि दीवाण श्राप पर चूक करना चाहते हैं, परन्तु राव को उसकी बात का विश्वास न आया तो भी अपने सब पुत्रों को वह तलहटी ही में रखने लगा । (अवसर पाकर ) एक दिक चूक हुआ। २५ गज पछेवड़ी राव के पलंग से लपेट दी, जिसपर राव सोया हुया था । सत्रह मनुष्य राव को मारने के लिये आये, जिनमें से १६ को तो राव ने मार डाला । और महपा भाग कर बच गया । रणमल भी मारा गया । यहां रणधीर चूण्डावत, सत्ता भाटी लूणकरणोत, रणधीर, सुरावत और दूसरे भी कई काम आये । (रणमल के पुत्र) जोधा, सीहा, नापा तलहटी में थे भाग निकले । उनके पकड़ने को फौज . भेजी गई, जिसने आडावला ( अर्वली) पहाड़ के पास उन्हें जा लिया और वहां युद्ध हुआ, . जहां चरड़ा, चांदराय, अरडकमलोत, पृथ्वीराज, तेजसिंह आदि और भी राठौड़ों के सर्दार मारे गये परन्तु जोधा कुशलतापूर्वक मंडोवर पहुँच गया ।
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वीरवार
. नर्वद सतावत ने राणाजी को अांख दी जिसकी बात-जब राणा मोकल और राव . रणमल मंडोवर पर चढ़ आये ( सत्ता के पुत्र ) नर्वद ने युद्ध किया और घायल हुया । उस वक्त उसकी बाई अांख पर तलवार बही, जिससे वह अांख फूट गई । राणा नर्बद को उठा कर अपने साथ लाया, घाव बंधवाये और मरहमपट्टी करवाये उसको चंगा किया । लाख रुपये की वार्षिक आय का कायलाणे का ठिकाना उसे जागीर में दिया । राणा मोकल चाचा मेरा के हाथ से मारा गया और राणा कुम्भा पाट बैठा, उसने राव रणमल को चूक कर मरवाया । नर्वद तब भी दीवाण ही के पास रहता था। एक दिन दीवाण दर्बार में बैठे थे तत्र किसी ने कहा कि "आज नर्बद जैसा राजपूत दूसरा नहीं है" राणा ने पूछा कि उसमें क्या गुण है जो इतनी प्रशंसा की जाती है ? उत्तर दिया कि दोबाण उमसे कोई भी चीज मांगी जावे वह तुरन्त दे देता है । राणा ने कहा हम उससे एक चीज मांगते हैं , क्या यह दंगा ? अर्ज हुई कि देगा । नमद उस दिन मुजरे को ही नहीं पाया था। दीवाण ने अपने एक खवास को उसके पास भेज कहलाया कि "दीवाण ने तुमसे अांख मांगी है।" नर्बद ...बोला- दूंगा । खवास की नजर बचा पास ही भलका पड़ा हुआ था, जिससे आंख निकाल रूगाल में लपेट उसके हवाले की । यह देख खवास का रंग फर्क हो गया क्योंकि दीवाण ने खवास को पहले समझा दिया था कि यदि नर्वद तेरे कहने पर आंख निकालने लगे तो निकालने मत देना, परन्तु नर्बद ने तो अखि निकाल हाथ में दे दी। खवास ने वह रूमाल दीवाण के नजर किया और दीवाण ने अांख देखकर बहुत ही पश्चाताप किया। आप नर्बद के डेरे पधारे, उसको बहुत अश्वासन देकर उसकी जागीर ड्योढ़ी करदी। ..
___ मुहणोत नैण सी री ख्यात भाग १ अनुवादक श्री राम नारायण दूगड़,
काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित
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सम्पादकीय टिप्पणी
मुहणोत नेणसी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "मुहणोतनेणसीरी ख्यात' में राजस्थान के इतिहास पर विस्तार से लिखा है । मूल ग्रन्थ राजस्थानी भाषा में है जिसका प्रकाशन "राजस्थान पुरातन ग्रन्य माला" में किया जा रहा है । इस ख्यात का हिन्दी रूपान्तर नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित हो चुका है।
___ “वीरवाण" सम्बन्धी कई घटनाओं के विषय में भी मुहणोत नेणसी ने अपनी ख्यात में लिखा है । मुहणोत नेणसी के वक्तव्य से काव्य के ऐतिहासिक पक्ष को समझने में बहुत सहायता मिलती है । साथ ही वीरमजी, गोगाजी आदि काव्यगत चरित्रों के सम्बन्ध में कई नवीन सूचनायें प्राप्त होती हैं । इसलिये मुहणोत नेणसीरो ख्यात के सम्बन्धित अंशों को यहां प्रकाशित किया गया है।
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परिशिष्ट ५
शब्दार्थ
अखा = सौंपकर । अखंदा = कहा। अछरां = अप्सराएँ। अछक्की = अतृप्त । अणचिंत्या = अचानक । श्रणी = फौज । अपती = अविश्वसनीय । अवखी = दु:ख के समय । अवीह = निडर। अरक = सूर्य । अरिगंज खाग उठाय = शत्रु को नष्ट
करने वाली तलवार उठाकर । अवलिया = औलिया। अस = अश्व। असमर = तलवार । असफड़ = घोड़ों का चीरा हुआ भाग। . अहराव = सों का राजा। अहि = सर्प । यासंग-शक्ति । अारांण = युद्ध। प्रायस = अाज्ञा ।
- आमष = आमिख ।
आफू-अफीम । आपो = देवो। श्रापांणी = पुरुषार्थी। श्रादू = आरंभ से । आजोका = जिसको नक ( चैन) ही न
पड़े। इल = पृथ्वी । . . ईख = देखकर । उकती-सूझ । उजीर = वजीर । उथपै = हटाना। उपाध = बखेड़ा। उमियां = उमा। ऊधी = उलटी। उबांणी = नंगी तलवार ! उललिये गड्डे = गाड़ी उलटने पर। उरस = आकाश । ऊरिया = घोड़े से हमला करना। ऐशकियां = घोड़े। श्रोडां = तरफ । अोध = खानदान । अोलादीला = आसपास
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वीरवांरण
अोसके = पांव पीछे हटा दिये। कत्थ = बात। कमीण = विवाह में नेग लेने वाले
व्यक्ति जैसे नाई, कुम्हार,
बढ़ई यादि । कमंधा = राठौड़ जाति के राजपूत । करग = हाथ । करलाया = क्रन्दन किया । कर तेगां नंगा = नंगी तलवारे हाथ में
लेकर।
कलह - युद्ध । कव = कवि। कांग = मर्यादा । कामेती = कर्मचारी। किरमिर = तलवार । किरणाला = तेजस्वी। किलमा = मुसलमान । कूक - फरियाद, शोर । कूक कराणी %= पुकार की। कृकाऊ = पुकारू। कुड़ = झट । केकांण = घोड़ा। केवांण = तलवार । केवि = कई। कोड़ीधर = करोड़ों के मूल्य वाले । खगवाढ़ खिराणी = तलवारों की धारे
खिर गई। खड़िया = चला खथ्ये = तेजी से खल - शत्रु । खांगां खलकायां = तलवारों से काट
. डाले। त्रांचा तांणां = खींच तान कर। खाजरू - बकरे।
खापां = तलवार ! खाफर - काफिर । खामंद = खाविंद । खिम खून = कितने ही। खिताई = अपराधों को क्षमा किया। खिमंदे = सहन करेंगे। खूनियों = अपराधियों। खूर चलाया = घोड़े बढ़ाये। खेचर = अाकाश पर विचरने वाले । वेग = घोड़ा। खंगां = घोड़े खोज - चिन्ह । खोलड़ = झोपड़ी। प्रभ = गर्व । गल = बात गवराये :- गीतों मे गाये गये । गह में भरियोड़ा = बमंड में भरा हुया। गायणिया = गाने वाली स्त्रियां । । गिलणक = गिरने को। गुणिया = गुनी जन । गैरिया = होलीपर डंडों से खेलने वाला। .. गैगा = गयण,याकाश । गैत्र = अदृप्य । घड़ा = सेना। घमोड़ी = जोर से मारी। . घोरां घलवाया = कत्रों में मुलादिया।
चखलल्ले = लाल अांखे । ..चवे = कहना। .
चिगायो %= बहकाया । चित्त विटालिया = बुद्धि बिगड़ गई ।
चूक = धोखे से मारना। . चोहटां = बजार। . चंचल = घोड़ा। छांनै = छिपकर ।
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वीरवाण
छिवंता - स्पर्श करते हुए। छोरू - बच्चे । ज्याग - यज्ञ। जरंदा - पच सकेगा। जरां - तव । जळ चाढां - पाव चढ़ायें। जहुवांर - जुहार, मुजरा जाव - जवाव । जारिया - सहन किया। जीण करे - जीन कसना। जेज - देर। जेवड़ा - रस्से। टोळा - ऊँटों का झुण्ड । टिल्ला -धबका। ठाला - वेकार । .. ठहके - ठहर जाना। डंवर - बादल । . डांगी-कर वसूल करने वाला अहलकार । डूमड़ा - ढोली। डोकर - बुढिया। डोफा - वेवकूफ। डोळी - डोली जिसमें घायलों को उठाया
. जाता है। .. तरवारी - तलवार। 'तवाई - आपत्ति की जांच । तागा-मरने को तैयार होना। ताजण - घोड़ी। तेरू - तैराक । तेरे तुगां - फोजों का समुह । तिरसां - प्यासे । . तोखार - घोड़ा। थट - समूह । थपै- स्थापित करना ।
थान - स्थान । . दाटिया-रोका।
दाठ - रोकता है ।
दिन घोळे - दिन दहाड़े। दिहाडां - दिन । दुझाल - योद्धा । दुथणी - दो स्तनों वाली से उत्पन्न
मनुष्य मात्र । दोयण - शत्रु । धकचाळा - युद्ध । घज - ध्वज । धन - गौधन । धरिणयाप - स्वामीत्व । ध्राह - अातंक। धारू - एक प्रसिद्ध भक्त । धीव - झड़ी। धू - मस्तक । . धूड़ - धूलि । धूप - खांडा। धूंसवा - ध्वंस करने को। धूंस - रण के नक्कार। . घेख - वैर। घोवा - अंजलि भरकर । ' घोम - क्रोधित । नखतेत - अच्छे नक्षत्रों वाला । नंगारे बंबापड़ - नक्कारे पर चोव पड़ी। नाठा - भगे। नालेर - नारियल । नाळियां - बन्दूकें। नेजा - भाला। नेम -नियम । पख -पक्ष। पखराळा - पाखर से युक्त। . पड़प्पण-बूता । पड़े - चित्र। पण - प्रतिज्ञा। पमंग - घोड़ा। परदलो - कमर में बांधने का पट्टा -
जिसमें तलव
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वीरवाण
परत - विलकुल । पल - मांस । पलचर - मांस भक्षी। पलाणी - घोड़ों पर जीन कसे । पाखती- पाव। पाखर - घोड़े के लोह के कवच । पारणां-हाथ । पाडव - चरवादार । पाड़िया - भारे । पाणी राळियो - प्रांसू बहाये । पालवा - मना करने को। पाळा - पैदल । पालिया - मना किया। पिंड -- शरीर । पेटो - भेद। पोहर - एक पहर। पोहता - पहुंचे। पोह - उपा काल । पखरिणगा - मांसाहारी पक्षी। पंखराव - गरूड़। , पंचोल -पंचायत । फरणवर - शेपनाग। फरहास -- एक प्रकार का वृक्ष । फाचरा - लकड़ी के टुकड़े। .. वगतर कुठां वीड़िया - बख्तर की कडियां
कसकर। . वकारे - ललकारना । बटका - टुकड़े। वड़नाळ - एक प्रकार की बन्दूक। . वडाला - बढ़ाई युक्त । वक्के - कहते हैं। वधाया - स्वागत किया। वपसक बढाळा - जिससे बड़े-बड़े भी
__ भयभीत हो जावें। स-वर्प। वाकर -बकरे। .
वामण - ब्राह्मण आदि । . वारठ - बारहठ, चारण । वारा-समय। वागी झाट - जोर से तलवारें चली। वाहर - छोटी फौज । वीजळ - तलवार। बीजाई - दूसरा। विरदा रूख वाळा - यश के रक्षक । वूडसी - डूब जायगा। वेली - साथी। भथ्ये - तूणीर । भाण - सूर्य्य । भाजिया - भग गये। भारात - युद्ध । भाळवा - देखने को। भिड़ज - घोड़ा। भुजपारण - भुजबल। भंड - बदनामी। भूतावळ - भूतों से। म - मत । मन वेठियो - मन रखा । मलफाणी - शेर की उछल । महल - स्त्री। मांगे खासां - मांगकर खायेंगे। मारणस - मनुष्य । मिणधारी - मणिधारी। मियानां - म्यांनों से। गुंजावर - मजाफर । मुझ हंदा - मेरा। मुसकरण - मुश्की घोड़ा । मोकलू- भेजू। मंगर - मेला । मंडलीक - बड़ा राज। रकेवां- रकाव। रगतूर - रण के बाजे। . रत-रत्त। .
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वीरवांण
राइका - रैबारी जाति जो ऊंट चराती है। राड़धरा - मारवाड़ के गांव का नाम है । रावत - बहादुर । रीमा - शत्रु । . रूक - तलवार । लागत – लानत । लिगार - बिलकुल । लियो वडाय - कटा लिया। लीह - लकीर। लूण उजाळियो - नमक हलाली की ।। लंगर - योद्धा। वनराव - सिंह। वरमालतां - विवाह करते समय । .. वळ - खाद्य सामग्री। वासख - वासुकि नाग । . . . वागां ढोलांरी विगत - ढोल बजाने का
वृत्तान्त । वाळियो - वैर लिया। वास - सहायक । विडंगां - घोड़े। विमाह - विवाह। विय्याह - विवाह । . वींटिया - घेर लिया। वीराद वीरांणी - वीरों में भी उत्तम वीर। वीहगेस - गरूड़। वीहडै - मारना। सखरी - अच्छे । श्रग - स्वर्ग। सताबी - जल्दी के। सपतास - सूर्य का सपताश्व घोड़ा।
समसेर संभाई - तलवार उठाई। समापो - देवो। समीयांण - सज्जन । सलखाणयां - सलखेजी के पुत्र । सल्ला - सलाह। साकरण - एक प्रकार की डाकिन । साकुर - घोड़ा। साख - फसल। साखत - घोड़े का साज । सांणी - तबेले का दरोगा। सादुलो - शार्दूल। साधिया - जोड़ दिये। साबळ - भाला। सामठा - बहुत । सामेळ - स्वागत । सायर - सागर। सावंत - योद्धा। सिरगळ - शृगाल। सिंलग्गी - सुलगी। सींचांणे - बाज पक्षी। सोण - श्रोणित। सोबायत - सूबेदार। सोहडां - योद्धा। हणसी – मारेगा। हेरू - तलास करने वाले । : है - हय, घोड़ा। हैकरण - एक । हैवर - घोड़ा। . होकार - हूंकार। त्रामंक - नक्कारां।
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक-पुरातत्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी .
प्रकाशित राजस्थानी और हिन्दी ग्रन्थ
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मूल्य २.०० ८. भगतमाळ, ब्रह्मदासजी चारण कृत । सम्पादक-श्री उदराज उज्ज्वल । मूल्य १.७५ ६. राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग १।। मूल्य ७.५० १०. राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिर के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग २। मूल्य १२.०० ११. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १. मुंहता नैणसी कृत । सम्पादक-श्री बदरीप्रसाद ___ साकरिया।
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मूल्य ८.२५ १३. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, भाग १ ।
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। मूल्य ४.५० राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर । Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. .:
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