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वीरवाण षल कय षाग हल केय षाप, उचकेए छकेय साकूर आप । डहकेय डायण वाय वैडाक, बहकेय रंक हुवा हक बाक ॥ चहकेय चील पंषी कल चाल, कहकेय रंभ गल चंप माल । रैवंतांय वाजेय पोड़ रडक्क, धरा पुड़ धूजय गोम धड़क्क । वणे मनु दांमण दीह वीचाल , मिले निस भाद्रव मेघाय माल । घमंकेय गूघर पाषर घोर, इला विच भंग पड़े चहूं ओर ।। सत्रां दिस वीरमदे सुभियांण, कमंधज ढीलविया केयकाण । धाड़ायत बाहरवां रिंण ठाण, दलां मुह मेज हुवो दइ वाण ।। अड़े सिर व्योम सजोम अरोड़, रिमासुय आपड़ियो रायठोड़ । मांडो पग धीर धरो मन माय, जोइयांय आज सको नह जाय ॥ षिमै फल साबल नागिय षाग, रुड़ दल कावल. सिंधव राग । चवै हक ग्रीध वीरांवांचेल., मिले दल दोय इणी मुहमेल ॥ गमागम श्रावट रुक गरीठ, रिमां पड़ साबल. सेलाय रीठ । सत्रां दिस वीरम वाहेय सार, आजुरणोय काल तणो उणियार ॥ धको कोइ साज सकै नहीं धींग, तइ मुष दाखेय दाद त्रसींग । चोड़ पल धुहड़ लाषइ चाक, वीरोल य लाष षलां वैयडाक ।। षत्री गुर वीरम धुणैए षाग, विछुटोय जांणक सांकल वाघ । चांपे नर कोण वियो जुग चाल , करै कुरण देषत टालोय काल । छाडाहर जाहर वाधैय छोह, लाषां सुऐ श्रावण जायोय लोह। कठै केइ सूराय आवैय काम, तके केइ कायर अोलाय तांम ॥ पड़ताय देषेय भीचकंचार, जोइयांय दाव कीयो जिणवार । ताली मुष दाख होकारिय ताम, घुरे जद कावल गेहर घाम ॥ सुरणे जद गोहर ढोल समाध, आइ जद माथेय पुन असाध । असल्लिय ताजण गोत उडांण, जची छिब नाच अपच्छर जाण ॥
रागां बल. चांपिय धुहड राव, घाले जद वीरम चावक घाव । . भलतिय उभिय षांधोय झाड, रही पग रोप विचाल य राड़ ॥