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________________ वीरवारणं भटियाणी लाडां कुतल केलणोत की वेटी, पुत्र अरड़कमल ... - सोना, मोहिल ईसरदास की बेटी, पुत्र कान्हा । । ईदों केसर गोगादे उगाणोतरी बेटी, पुत्र-भीम, सहसमल . वरजांग, रूदा, चांदा, ऊजु । ____ मंडोवर हाथ थाने पर राव चूण्डा ने और बहुत सी धरती ली और उसका प्रताप.... दिन ब दिन बढ़ता गया । उस वक्त नागोर में खोखर राज करता था और उसके घर में राव चूण्डा की साली थी। उसने रांव को गोठ देने के लिए. नागोर के गढ़, में बुलाया। वह चार-पांच दिन तक वहां रहा और वहां की व्यवस्था देखकर अपने राजपूतों से कहा कि चलो नागोर लेवें, राजपूत भी इससे सहमत हो गये | एक दिन वह राजपूतों को साथ ले नागोर में जा घुसा, खोखर को मारा, दूसरे सब लोग भाग गये और नागौर में राव को दुहाई फिरी । वह वहां रहने लगा और अपने पुत्र सत्ता को मंडोवर रक्खा । नागोर नगर सं० १५१२ (सं० १२१५ होंगे ।) कैमास दाहिमे ने बसाया था । एक दिन राव चूण्डा दरबार में बैठा था कि एक किसान ने आकर कहा कि महाराज मैं चने बोने को खेत में हल चला रहा था कि कुएं के पास एक खड्डा दीख पड़ा। सम्भव है, उसमें कुछ द्रव्य हो । यह विचार कर कि वह धन धरती के धनियों का है मैं आपको इत्तला करने आया हूँ । राव ने अपने आदभी उसके साथ द्रव्य निकालने को भेजे। उन्होंने जाकर वह भूमि खोदो, परन्तु माल वहुत गहराई पर था, सो हाथ न आया । उन्होंने आकर राव चूण्डा से कहा तो राव स्वयं वहां गया और बहुत से वेलदार लगाकर पृथ्वी को बहुत गहरी खुदवाई, तो उसमें से रसोई के बर्तन निकले अर्थात्-चरवे, देंगे, कूडियां, थालियां आदि । राव ने उनको देख, ऊपर गछावड़े का नाम था और ऐसा लेख भी था । कि जो इस भांति रसोई कर सके वह इन बर्तनों को निकाले । राव ने कहा कि इनको यहीं डालदो । तब सरदारों ने कहा कि इनमें से एक अाध चीज तो लेनी चाहिये, तब एक पली ( तेल या घी निकालने की )-ली। नागोर आकर उसको तुलवाई तो १५ पैसे भर की उतरी । राव'चूण्डा ने आज्ञा दी कि यागे को मेरे रसोवड़े में इस पली से घी परोसा जावे, सबको एक एक पूरी पली मिले, यदि आधी देवे तो रसोड़दार को दंड दिया जावेगा। एक दिन अरड़कमल चूण्डावत ने भैंसे पर लोह किया । एक ही हाथ में भैसे ..के दो टूक हो गये, तब स। सरदारों ने प्रशंसा कर कहा कि वाह वाह ! अच्छा लोह हुआ। राव चूण्डा बोला कि क्या अच्छा हुया, अच्छा तो जब कहा जावे कि ऐसा घाव राव रामगदे अथवा कुंवर सादा (नादूल) पर करे । मुझको भाटी (राणगदे) खटकता है उसने गोगादेव को जो विष्ठाकारी (बेइज्जती) दी वह निरन्तर मेरे हृदय का साल हो रही है। अरपकमल ने पिता के इस कथन को मन में धर लिया, उस वक्त तो कुछ न बोला, परन्तु कुछ काल बीतने पर सादे कुबर को अवसर पाकर मारा। इसके बदले राव राणगदेव ने
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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