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वीरवाण यो अवषांणो याद कर किरणाळ कहावै । परत कहै कण पर दलो दोय तेग न मावै ।। एकण घर दोय राजवी वकवाद वढावै । इण घर रहणो आपरो थिर नाही थावै ॥ वीरम मालो बिछड़े भडं दोनु भाई। वीर भरत ज्यू राम विन बसीयो वन माई ॥ जुध कर लीनो जोइयां इहां अांच न आई। साज... मंडाया साकुरा वीरम वरदाई ॥ पणं लीनों जल पीणरो माला घर मांई। . नरं चढ़ीयों पाटण नवी की जैज न काई ।। .......... दूहा .. ... माळे कियो मनावणो, मांगलीयांणी तेंड । या धर वीरम आपरी षित वापोती पेड़ः ।। १०३ मालक यो सुष सातमों, पोह वीरम परताप । जोया पोहचावै ज दिनां आजे वेगा पाप.॥ .. १०४
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.. नीसाणी...... वीरम धीरप मालनै चढ पुर चलाया। .. साथ लिया. दळ सांवठा थळवटी आया । कमधज भूषा केहरी अंत . क्रोध अघाया। गहलोतां ऊपर गरज रचित रोस चढाया ।। पडिया पैगां पेड़सुं . अण चिंत्या पाया। . भड.. असायच भोमीयां सज सुर सवाया ॥ . पळ भष पाया पळचरां अछरां वर पाया ।... सूरा कट पड़ीयां समर गुण जोगण गाया ॥..