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वीरवांण
दूहा
दलै कबीला देसन, बहिर ज कीधा वेग । साथे बंदव सात ही, तिके उरसरी तेग ।। षेड मिलणनै आवीयो, वीरमसुं अधरात । चौड़े षोली चूकरी, वीरम आगळ बात ।। मदू न दीनी मोलमै, उणसुं बधी उपाध । वीरमनै दीधी बीडंग, सागे जका समाध ॥ वीरमरै उणहीज वषत, पमंग हुवा पलाण । दसैं साथ चढ़ीयो दुझल, जोवण धर साहिवाण ॥ कुसले षेमे काढीया, जोइयांने धण जांण । जोइया पर वीरम जबर, रोकीया अवसाण ॥ दलो पेड़ पूगो दुझल, हम न आवै हात । जद धिकीयो जगमालदे, भिडवा कज भारात ॥.
. नीसांणी . राष्या सरणे राव बड़ जग साष जपते । मांझी बैदळ मारका मन भार भारमते ॥ जगड़ षिजाया जोइयां जमराज विरतै । सांमा वीरम साळल्या असमान छिबंतै । वरदायी वीरम कमध जुडीया जुध जंगा। सझ दोऊ दळं सांफला कर तेगां नंगा ॥ वीरम मुडै न वीरवर जावै नह जंगा। एकणजोया वास तै हुय सेन विरंगा । माल विछोडै मांझीयां कीधा मन चंगा ॥ जद धिकीयो जगमाल मन रोस न मावै । वीरम काज विगाड़ियो, सो नांहि सुंहावै ।।
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