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________________ योरवांरण : सीमा पर युद्ध हुअा उस वक्त महमद हाथी पर लोहे के कोठे में बैठा हुआ था, राव रणमल' ने चाहा कि अपने घोड़े को उड़ाकर बादशाह को बर्छा मारे, परन्तु किसी प्रकार बादशाह को राव का यह विचार मालम हो गया । उसने तुरन्त अपने खवास को जो पीछे बैठा हुआ था, . अपनी जगह बिठा दिया और आप उसकी जगह जा बैठा । इतने में रणमल ने घोड़ा उड़ाकर बछी चलाई, वह कोठा तोड़कर खवास की छाती के पार निकल गई। उसने चिल्ला कर कहा "हजरत मैं तो मरा ।" यह शब्द रणमल के कान पर पड़े और उसने जाना कि बादशाह बच गया है। बादशाह हाथी की पीठ पर पीछे की ओर बैठा था और राव की यह प्रतिज्ञा थी कि वह पीठ पर तलवार कभी न चलाता था। उसने फिर घोड़ा उड़ाया, बादशाह के बराबर पाकर उसको उठाया और एक शीला पर दे पटका जिससे उसके प्राण निकल गये । महपा को बादशाह मांडू के गढ़ में छोड़ पाया था । नत्र राणा मांडू पहुंचा तो गढ़वालों ने महपा को कहा कि अब हम तुमको नहीं रख सकते हैं । राव रणमल ने उसे मांगा तब वह घोड़े पर चढ़कर गढ़ के दरवाजे आया और वहां से नीचे कूद पड़ा। जिस टौर से महपा कुदा उसको पाखंड कहते हैं । पीछे महपा को सिकोतरी का वरदान हुया । ( दूसरी बात इस तरह पर लिखी है )-राव चूण्डा काम आया तब टीका राव रगमल को देते थे कि रणधीर चूण्डावत दरबार में पाया । सत्ता वहां बैठा हुया था । रणधीर ने उसको कहा कि "मत्ता कुछ देवे तो टीका तुम्हें देवे।" सत्ता ने कहा कि "टीका रणमल का है, जो मुझे दिलायो तो भूमि का आधा भाग तुझे देऊ।" तब रणधीर ने घोडे से उतर दरबार में जाकर सत्ता को गद्दी पर बिठा दिया और रणमल को कहा कि तुम • पट्टा लो । उसने मंजूर न किया और वहां से चल दिया, राणा मोकल के पास जा रहा। राणा ने उसकी सहायता की और मंडोर पर चढ़ पाया । सत्ता भी संमुख लड़ने को पाया। गणधीर नागौर जाकर वहां के खान को सहायतार्थ लाया । ( उस वक्त नागोर में शम्सखां गुजरात के बादशाह अहमदशाह की तरफ से था। ) सीमा पर युद्ध हुआ, रणमल तो खान से भिड़ा और सत्ता व रणधीर राणा के संमुख हुए ! राणा भागा और नागौरी खान को रगामल ने पराजित कर भगाया । मुत्ता और रणमल दोनों की फौजवालों ने कहा कि विजय रणमल की हुई है, दोनों भाई मिले, परस्पर राम राम हया, बात-चीते की, रणमल पीछा राणा के पास गया और सत्ता मंडोवर गया । सत्ता के पुत्र का नाम नर्बद और रणधीर के पुत्र का नाम नापा था । ( सत्ता अांखों से बेकार हो गया था इसलिए ) राज-काज उसका पुत्र नर्वद करता था । एकबार नर्बद ने मन में विचारा कि रणधीर धरती में अाधा भाग क्यों लेता है, मैं उसको निकाल दूंगा। थोड़े ही दिनों पीछे ४००) रुपये कहीं से याये, उनका आधा भाग नर्बद ने दिया नहीं, . दूसरी बार नापा ने एक कमान निकलवाकर खींचकर चढ़ाई और तोड़ डाली । नर्बद ने कहा भाई तोढी क्यों?
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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