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वीरवांण . दलै बिगड़ी देखने की जेज न काई । तेजल संग दे मेलीया चुंडो अरु बाई । दोय दीहाड़ा पंथ बुही थळवटी आई । काका लाउ घर पालर तेजल पोहचाई ॥ टाबर चारै टोगड़ा जां साथे जावै । वाला बांदै बाछड़ा तक घोड़ा लावे ।। बाळक तोही न बीसरै घर रीत जणावै । वारट आलो बाछड़ा जोवण कज जावै ॥
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सूतो चूंडो नींद सुष, सिर अहि कीधो छत्र । जद आले मन जाणीयौ, है कोई छत्रपत ॥ अही फण कीधो उपरा, भुपत तप भारीह । पाल मन जद जाणीयो, प्रो कोई अवतारीह ।।
निसांणी आलो चूंडो अोळषै, मन हरष न मावै । चढ़ीया पालो चूंडरज, मिलवा कज जावै ॥ मालासुं चूंडो मिलै केई कोड करावै । मुरधर चूंडो महपती मालो फरमावै ।। तोर बंधसी ताहरो चंडी वर पावै । अस तो चंडो आपसी मन चिन्ता मिटावै । ... .... दहा .. उगमसी नै आषीयो, मुषां ज लावण माल । चूडानै संग ले चढो, ढाबो थे हुय ढाल ।। वीरमदेरा वेठरी, : घड़े जंगों मन घात । नाहर भेलाः रै नहीं, बसुधा जाहर बात ॥
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