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वीरवाण
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विच त्रिय दा सोच वरांम, तठे इक रावत बोलियो ताम । उबारग रंकाए चित उदार, वसै अोय वीरम जूह विडार ।। मारु सलषावत भायांय मोड़, ठावो प्रोय बैठोय ठाविय ठोड़। रिमां पड़गोह षत्री रठ रांण, तपै भड़ वीरम ऊंचीय तांण ।। उठे थां मेलुय जेथ अपाल, जठ नह गंज सकै जगमाल । विचत्रियसांभल वैण विचार, त्यारी करंजीण षड़े तोवषार ॥ जोइयांय कूच किलो विण जांण, उतारोय कीध दरगह आंण । दलो मिल वीरम हूंत दुबाह, आपे कर जोड़ समाध अथाह ।। हुवो जद धूहड़ जूह विडार, धंजाय बंध सरणायां साधार। पुणे इम वीरमदेव पुंचाल, अठे थां षांन करै कुरण पाल ॥ जिते मो सीस षवां पर जांण, इतै कुण गंज सकै तो आंण । प्रथीपत तेड़ वडा परधान, सोलंषिय मोधोय पाथ समांन । दुसासण डाभी दुरजणसाल, कांनां जगमाल सुणी किरणाल । धुणे पग धूहड़ लाग ध्रीलाग, उड़ पड़ जाण षंडी वन आग । वह वह वाहर वाज त्रमाल, पमंगां ए पीठ मंडे पषराल । ओपे सिव जेहा ए गात अथाह, सूरा भड़ भीड़ य टोप सनाह. ।। भुजा डंड सावल. तोलेये भूप, रकेबांय पाव दिया जम रूप । दला कर आरंभ भीच दुझाल, मालावतसाल लियो जगमाल ।। षेड़ेचों ए छात षड़े कर षीज, भिड़ेवाय काकाय हूत..भतीजें । मिले पंथ सालल फँग मरद्द, गमागम उमट घोर गरद्द ॥ निहंसेय राग सिंधू नीयसांण, वलोवल छायाय रंभ विवाण । पुगा अस पेड़ेय भिच वेभीत, जंगांथह वीरमरी जग जीत ॥ ४
दहो बड़ो . कोपे कबर करूर, जलामल मेले. जगो । आयो वीरम ऊपरै, जोइयां वेध जरूर ॥ ५