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वीरवांण
अायो बीरम आपणो षित छोड़र षोले । लज सांकळ तोड़े लिया मदपुर मचोळे ।।
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दहा
कठा लगा कथ कुड़, दाढ़ भड़ भायां दलो। धमतां धमतां धूड़, सोनो ही होवै सदा ॥ १३५
नीसांणी दलैषान विचार कर परधान पठाया। लष वरै वीरम कनै ए जाब कैवाया ।। जगड़ तणी षग झाट सैभंग वीरम आया । आयाकुं आदर दिया हम लीध बघाया । लष वेरो रहवासकं दळजी दरवाया। धरती चोबी गांमड़ा सब राज समाया । उस मांसुं वीरम तनै आधा बगसाया । डांण वलै . उचका दिया आदा अपणाया । चोबी गाम चबुतरा किह काज बैठाया । षोसे इकसठ षाजरु सफरै . राषाया ।। जोइया पग मांडे जिती धरनीही रहाया । हाती रहै न जुटिया केहर उकराया । मीलीयां चिडीयां महलै अहि जाणक आया । जांणक डोकर षोलडै विच बाघ वसाया । . क्या तेरा अवगुण किया हम लीध नीभाया । पायरहिं दुगुण कियां सब जाय भुलाया ।। हमहो भाइ सात हैं भुज आ भठ भाई । मधु सीरीषा मारका थोड़ा जग मांहि ।। साकुर भड़भी सांतरा दस ‘सहंसा सोई। तो. भी वीरमतै वडे इसड़ी हम मांई ।।
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