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वीरवांण
राती वासो दैण रच, मन जुध चोथे माल । वीरम घड़सी वरजीया, माधैनै जगमाल ॥ वीरम घड़सी वीरवर, पाल माल परभात । अब यां अरीयां उपरा, रचसां जुध अधरात ॥
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रावळजी वीरमदेजी कंवरजी जगमालजी रावळजी घड़सीजी भाटी जवाई जेसलमेरीया नै सोलंषी माधोसिंघजी प्रधान वीरमदेजीरा झगड़ा लिषते ।
नीसांणी अजब ऊपर ऊरीयां घड़सी रिण घोड़ा। एकण घाव उतारीया जंगम वड जोड़ा । पाहड़पान पछाड़ियो विजड़ा दुजोड़ा ।. तेजलषां जुध . तीसरै चिमनो चोथोड़ा ।। पीरपान रिण पंचमै सारंग छटोड़ा। इकां षट ही पूटगा घर ढहगा घोड़ा ।. जद आयो जैतकर जस पाट भलोड़ा। माल वधांवां मोतीयां भर थाळ वडोड़ा। घड़सी बाई गरजके बागेषां ऊपर ।। गुरज धमोड़ी बागड़े घड़सीके धु पर ।। .. घोड़ा सहतो गुड़ गयो लुटीयो धरती पर । जांण कबूतर छुट गयो हातांबाजीगर ।।। १२ जितै पाग जगमालदे पछटी बागे पर। वगतर सहतो वोटकै निरलंग कियो नर ॥ . कीरमिर वाही करगसुं दुजै इका पर । जाण चमंकी वीजळी करकाळे डंबर ।। . १३ राधै फिर पग रोपीया इकै अड पाई। राधै ऊपर रूक रस वीरमदे वाई ।।