________________
२८
वीरवाण उर दोनूय माजिय आहड़िया, जोइया अरु धूहड़राव जुवो। हर हूर रथां उदमाद हुवी, भूखीय थटं ग्रीधरण मांस भषै ॥
पड़ सूर धधकैय सीस परे, गज थट्ट गरट्ट ऊछट्ट गृहां। अरण थट्ट भिड़े उमंगें असहां, षगझट विकट्ट कुवट्ट पिरै॥
चट पट्ट प्रांमंषये ग्रोध चरै, तदं रत विकट्ट उपट्ट तरै । घण मट्ट फुट पर रिट्ट धिरै, घम चक्क भभक्क थर थरक धुवो।।
हुब ठक अरक्क थरक्क हुवो, कंधड़क बड़क बड़क्क कड़ी। सजड़क जड़क वैहै सजड़ी, सबड़क बड़क भषै संवळा ॥
गुडळक गळक्क गीघाण गाळ, रही ढक्क विठक्क धधक्कर जी। विरहक्क कटक्क ललक्क वजी, फिफरक्क फरक्क फरक्क फुरै ।।
घण डक्क त्रक्क त्रक्क घुरै, वप श्रोण धधक्क धधक्क वहै । रथ रंभ अरक्क थरक्क रहै, जग टोप कड़ी जडळक्क जड़े ॥
पिड लोथ दड़क्क दड़क्क पड़े, हुय हक्क अछक्क कढ़क्क हुवै । निधरणक्क गहकां चंडी गुरबै, घड़ दोय अकारण होय ॥
घड़ी पित सूर वरै रंभ हूर पड़ी, इम जोस दोउं दळ आफलियू। तटीय इळ अंत रळतळियु, पित सूरज राह निवाज षड़े ॥
लपवेरो अने नवकोट लड़े, वेयभीठ अरीठ गरीठ भिड़े। पांडीसांय रोठ नोत्रीठ पड़े, काळ कीठ वट्टि सदी? किये ॥