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________________ १४० वीरवांण लष वेरोरो वाणीयो, उरे पण मिलियो आय । वागा ढोलांरी विगत, सारी कही सुणायः ॥ . १३६ मदु सुण पग मांडीया, हणीया छाती हात । जद सजीया भड जोया, संहंस दसुं इक साथ ।। सझतां भड़ मदु कयो, करै मुंजावर कूक । पीणी देष र पीवता, जको कटायो रूष ॥ दे टोपी हाते दला, बणां फकीरी वेस । .. मांगे पासां मुलकमें, नहँ प्रासां इण देस ।। __नीसांणी . पीरां करवा पट कीया, आय आगळ दल । जीण करै मदु जवन मुंछां बळ घलै ॥ हीरा लै षंध थाळे अस आय अललै । कर पुररो लगांम दे जर पाषर घलै ।। आ जोका जोया इसा धरती उथलै । दलो हकालै दाटवै भड़ ओगण भूलै । वीरमसुं जुध बाजबा चित चेत न चलै ।। मालै अरु जगमाल मिल क्या गोठ रचाई। जांरो सरणो ताकीयो धणिया पधराई ॥ वे हीज मारण ऊठीया सोहीज़ सीहाई। मांगळीयांणी मोटको गुण कीनो बाई ॥ अपां कुसळे काढीया वीरम वरदाई । सिंध दिली दोऊ फोज सज प्रांपा पर आई ।। वीरम बदलै अापणे समसेर चलाई। प्रांपा. धरती आपणी पाछी जद पाई ॥ मदु वै दिन मारकां भूलो मत भाई ।। :
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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