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________________ वीरवाण कुछ वीरमकुं नह कैया उचभी अपणाई। बारै गांव ज बगसीया भेले हुय भाई ।। सात हजारां सांढीया दिन हेकण दगाई। मोटल सिरषा मारीया जीण सकड जवाई ।। पाधा पोसे षाजरु संक लोप सवाई। आपां ऊभां आपणी घर लाज गमाई ।।। मधु अषै मारको संच.... ........... || ६४ गुना अनेकां जारीया दलै लुणीयाणी । कर दरसण फरहासको पीता में पाणी ।। सो फरहास कटावीया अस मान गिरांणी। षाफर माल कुरांणकुं लष वेर लगांणी ।। दुझल मदु देपालदे भाषै आ वांणी । आज परा जो आलसां जोइया मन जांणी ।। अपणां बांधर अापणीके देदां पाणी । जावे घरसु जोइया के खुटै सलषांणी ।। आज बराछ करी समै अणचित्या जासां । जाण हली घण कंठली वरसाल मचासां ।। हरषत मन सुरा हुवा बधते गांवासां । जुडसां वीरम सांजरां बटका उडवासां ॥ ... . दूहा कहीया भड भायां दलै, बडपण कथन विचार । वीरमसुं जासो विडण, है जीतां ही हार ।। १४३ . बाई की मन जांणसी, भाई पाया भाय । .: . लष बेरै जाजो मती, घेरो जायर गाय ॥ १४४ .
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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