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वीरवाण एक वर्ष के पुत्र चूण्डा को आल्हा चारण के पास पहुँचाने का आदेश दे वह राणी मांगलियाणी सहित सती हो गई।
(जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम खण्ड; पृष्ठ १६३)
श्री विश्वेश्वरनाथ रेऊ "यह सलखाजी के पुत्र और रावल मल्लिनाथजी के छोटे भाई थे । यद्यपि मल्लिनाथ जी ने इन्हें खेड़ की जागीर दी थी, तथापि जोहिया दला की रक्षा करने के कारण इनके और मल्लीनाथजी के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इससे इन्हें खेड़ छोड़ देना पड़ा। वहां से पहले तो यह सेतरावा की तरफ गए और फिर चूंटीसरा में जाकर कुछ दिन रहे । परन्तु वहां पर भी घटनावश एक काफिले को लूट लेने के कारण शाही फौज ने इन पर चढ़ाई की । इस पर यह जांगलू में सांखला ऊदा के पाम चले गये । इसकी सूचना मिलने पर जब बादशाही सेना ने वहां भी इनका पीछा किया, तब यह जोहियों के पास जा रहे । जोहियों के मुखिया कल्ला ने भी इनकी पहले दी हुई सहायता का स्मरण कर इनके सत्कार का पूरा पूरा प्रबन्ध कर दिया । परन्तु कुछ ही दिनों में इनके और जोहियों के बीच झगड़ा हो गया । इसी में वि० सं १४४० (ई० सं० १३८३) में यह लखवेरा गांव के पास वीरगति को प्राप्त हुए । विरमजी के पांच पुत्र थे: १. देवराज, २. चूंडा, ३. जैसिंह, ४. विजा और ५गोगादेव ।
(मारवाड़ का इतिहास प्रथम खण्ड) . "वीरवाण की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कवि ने मुसलमान होते हुए भी धार्मिक उदारता का परिचय दिया है । जोहिया मुसलमानों की सहनशीलता का परिचय भी प्रस्तुत काव्य द्वारा प्राप्त होता है । जोहियों ने वास्तव में वीरमजी और उनके साथियों की हठधर्मी पूर्ण कामों और अपराधों से विवश होकर ही युद्ध किया था। फिर वीरमजी की रानी मांगलियाणी ने जोहिया मुसलमानों को अपना राखीवन्ध भाई बनाया तो दोनों ही पक्षों ने अपने उच्च सम्बन्धों का निर्वाह किया। यहां तक कि चूण्डाजी भी अपने मामा पर तलवार चलाने के लिये नहीं तैयार होते हैं और गोगादेवजी को वीरमजी का बदला लेने के लिये भेजते हैं।
___ "वीरवाण" में वीररस का उत्कृष्ण निरूपण हुआ है । "वीरवाण" वास्तव में वीररस-प्रधान काव्य है और इसमें आलंबन, उद्धीपन, स्थाई एवं संचारी भावों का विस्तृत वर्णन हुआ है। युद्ध के कारण मध्य युगीन परिस्थितियों के सर्वथा अनुरूप हैं जैसे स्त्री हरण, मार्ग में जाते हुए धन का लटना, घोड़ों ऊंटों और गायों को घेरना, धार्मिक भावनाओं पर .. आघात करना आदि । युद्ध का वर्णन तो कवि कल्पना और अोझ से ओतप्रोत हुआ है ।
'वीरवाण' की तीसरी विशेषता कथा-वस्तु का सुसंगठित होना - है । काव्य सम्बन्धी प्रत्येक घटना पिछली घटनाओं से जुड़ी हुई है और वीरमजी तथा जोहियों के युद्ध में संघर्ष चरम सीमा पर पहुँचता है । संघर्ष का अन्त गोगादेव द्वारा जोहियों से बदला लेने से होता है और यहीं काव्य पूर्ण भी होता है । इस प्रकार काव्य की कथा वस्तु भी पूर्ण संगठित है।
- 'वीरवाण' की भाषा राजस्थानी है । 'वीरवाण' की भाषा पूर्ण रूपेण परिमाजित नहीं होते हुए भी विषय के अनुरूप ओजपूर्ण है । भाषा में कई स्थलों पर पंजाबी प्रभाव भी