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वीरवाण जमदढ बांमै अंग भीड़ जड़ी, सज पेटिय ऊपर सांबरड़ी। घण वज्जर काळ लुहार घड़ी, गुण भार अठार कबांण गहै ।। नर नाहर साज तंडी वन है, प्रत वाढ अणी छड़ ओपवियो। लंयंकाळ कराळ सेलाळ लियो, तति अत्तिय जेरव होंय त्तिसी ॥ करवतिय ततिय जांण कसी, लड़वा सुत वीरम. भेद लहै । दीय रूक अचूक रकेब डहै, तेयथेट असलिय षेत तरणी ॥ वपवाह अली बंध ढाल विणी, मोहरां दस तीन उभै मुररो। तैय ऊपर सीस त? तुररी, भड़नाळ चषां सैयचोळ भड़े ॥ जमरूपिय सार छतीस जड़े, बोला जड़ काढण उबबरो। कैकोंणीय पंडव जीण करो, सुज वायक पंडव संभळिया ॥ . वप वाधेय जोस विलकुलिया, कंध थापल रषत दूर कियो । दाणे मुष ब्रद लगांम दियो, ह भटक पीठ कियो पुररो । सक गात कियो सुध साकुर रो, ध्रत गूगळ अग्गर षेव घजो । तन भीडियो साज जड़ाव तणो, पेसूज वरिणय हद गात परी ॥ केयकारिण सिंचारिण नैप त्यार करी, षोयले जद पंडव लेरषली। करती इम तंडव मोर कली, चत्रसाल अचप्पळ तेज चषां ॥ रस लग लगांण उडांण रुषां, वध तेज समांण विमांण वहै। . गुरण वांण कवारण जीवाण ब्रहै, अंगराग वीणीयोये गात इसौ । तथथये करंतीय रंभ त्तिसो, गहपूर त्रमाळ सिंधु गडड्ड । चक्रवत्त सिंचरिणय पीठ चड़े, अस पेड़ेय धूहड़ उतवळो । ते कोय चणे चौळ चाढे त्रसळो, चक च्यारुय देस चळ चलिया। सोय पांच इसा भड़ सालळिया, सुत वीरम गोग प्रवीत सहां ॥ दिपैय मुष सूरज चंद दहां, जोइयां जड़ काढण काळ जिसा । दळ हलेय भाडानेर दिसा, गैग ढाळ जटाळ वैताळ गजै ।।