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________________ १८ वीरवारण ( दूसरे स्थान में ऐसा भी लिखा है)-"जब राव चूण्डा मारा गया तो राजतिलक . रणमल को देते थे, इतने में रणधीर चूण्डावत दार में आया । सत्ता चूण्डावत वहां बैठा हृया था, उसको रणधीर ने कहा कि सत्ता ! कुछ देवे तो तुझे गद्दी दिला दू।" सत्ता बोला कि "टीका रणमल का है ।" रणधीर ने अपने वचन की सत्यता के लिए शपथ खाई, तब सत्ता ने कहा कि श्राधा राज तुझे दूगा । रणधीर तुरन्त घोड़े से उतर पड़ा और सत्ता के ललाट पर तिलक कर दिया । रणमल को कहा कि कुछ पट्टा ले लो, वह उसने मंजूर न किया और राणा मोकल के पास गया । राणाने सहायता की, सत्ता भी सम्मुख हुआ और रणधीर राण नागोरी खान को लाया । सीमा पर लड़ाई हुई, रणमल तो खान के मुकाबले को गया और रणधीर ने बसना के राणाजी से युद्ध किया । राणाजी हार खाकर भागे, परन्तु खान को रणमल ने भगा दिया । सत्ता व रणमल दोनों के साथियों ने जय ध्वनि की, रणमल अपने दोनों भाईयों से मिला, बातचीत की, पीछा मोकल जी के पास चला गया । सत्ता गद्दी वैठा और रान करने लगा । कालांतर में सत्ता व रणधीर के पुत्र हुए, सत्ता के पुत्र का नाम नर्बद और रणधीर के पुत्र का नाम नापा था। रणमल नित गोटें करता था इसतिर सोनगिरों के भले अादनी देखने को आये थे। उन्होंने पीछे नाडोल जाकर कहा कि माटोड काम का नहीं है, यह तुम से न चूकेगा, तुमको मारेगा, इसलिए तुमको उचित है कि अपने यहां इसका निवाह करदो । तत्र लाला सोनगिरा की बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया। फिर भी सोनगिरों ने देखा कि यह यादमी अच्छा नहीं है, तब उन्होंने रणमल पर चूक करना विचारा । एक दि। रामल सोया हुआ था तब लाला सोनगिर ने याकर अपनी स्त्री से कहा कि "रामी बाई रांड हो जायगी ?" स्त्री बोली "भले ही हो आवे, यदि एक लड़की मर गई तो क्या ।" ठकुराणी ने अपने पति को मन्त्र का प्याला पिलावर मुलाया और बंटी से कहा कि रणमल से चूक है, उनको निकाल दे ! शमी ने याकर पति को सूचना दी कि भागो ! चूक है । घातक उसे मारने को याये, परन्तु वह पहले ही निकल गया और घर जाकर सोनगिरी से शत्रुता चलाई, परन्तु वे वार पर न चढ़ते थे । उनका नियम था कि सोमवार के दिन अाशापुरी के देहरे जाकर गोठ करते, अमल वागगी लेते और मस्त हो जाते थे । एक दिन जब वे खा पीकर मस्त पड़े हुए थे तो श्राचानक रामल उन पर चढ़ याया और उसने रात्रको मार कर अखाये के च में डाल दिया। ऊपर लगे साले की डाला। कहा, मैंने साराजी से वचन धागह। उनमा लाना लिया, रागा मोकल से मिलने के बारले गया और वहीं रहने लगा । तत्र चाचा मीदिया श्री माता पंवार ने मोडल को मारा ता रणमल को उन भूक का भेद मानुम हो गया था, पन्यु समापो सुख पचर न हुई। एक दिन मा श्रीर चाना महती . मोरिये मेरः गोजीमा का काम था ! रणमल ने यो आसन साथ लगा दिये थे किनमें नया करने वाला मदा ने मलेसी को अपने में मिलाने का बहुत प्रयान ाि, माया नन। आगन ने माकर मार गुना राबताने यदा श्रीर उगने FREE, I मनाम पर विश्वासन किया। मान मंटोर गया और
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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