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वीरवांग छंद मोतीदास
धरे जद रावत सीस ध्रियाग, विढे काहि ढोल वथोड़े वाग । षिमै फल साबल ऊपड़ बेह, छछोहाए पार लहै कुरण छेह ॥ अड़ीसल वीरम हतहां आज, सव्याजाए लेसिय पून सकाज । धुड़बय षेहांय काठ ध्रियाग, नागां अस धूज रसातल नाग ।। विढबाय हाल दलो धरवंद, उलटांय जांण असाढ्य इद । नरां मुष वाधेय सूरांयनूर, हले दल. साथेय जोगण हूर ॥ उमंगेय सांभल राड़ अगांम, तमासोये देषेत नारद तांम । अाया चढ़ सांड उमांपत ईस, सजे वाय माल सूरां भड़ सीस ।। उडे रज डमर व्योम अथाह, मिले निस जाणक भादव माह । दल कर वीरम हूंताय दाय, उरांतां सुर वितलीयोय प्राय ।। धुबे पड़ रोस अरराका धाक, हुबोहुब होय चहूं बल हाक । ढमंकैय वाहर बाहर ढोल, गां जड़ जीण दुवागाय षोल ।। कोपे अड़ अवर जोस करूर, सणा वित लीधाय वीरम सूर । सजे वट सूथण जांमियसार, जड़े छकड़ाल. कड़ी जोय धार ॥ प्रोपे सिर गूधर टोप अथाह, विण दस-तांनांय हाथ जवाह । जोइयांय साजण जैत जुहार, सुरा भड़ भीड़ छतीसुयसार । दुवाहांय भीचक तेड़ दुभल्ल, अमरोगेय गालेय नेस अमल्ल । अमलाय वाथेय जोस उगम्म, हुवो भड़ सारांये जीण हुकम्म । अमोलख उजल गात असाध, सजे हव साषत वैग समाध । अल वल्ल लेतिय झंप अपार, तांणे तंग हाजर कीध तयार ॥
चढंतांय वीरम देवड चिंत, पला गुहः पाप रांणी सुप्रवीत । • तवैगल मांगलियांगिऐ त्रास, उभे कर जोड करी अरदास ॥ रचो कोई दाव पत्री रढ राण, दल वित प्राज़ लियो दइवाण । किजै नह अाज चढे किरणाल., सत्रां चाय चींतविय सुप्रषाल ।।