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________________ पोरंवांग वीरम षाग वजाय, कल चाले लोधो किलो । दोड़ी भाडगनेर दिस, ध्राहां देती धाय ॥ ६७ ६८ अोइ नीयाव अघात, सोह भाई भड़ सांभलो । वीरम षाग विहंडिया, सक धावड़ सुत सात ॥ कूकी तणो कथन, दांणव सुणी देपालदे । जोइयो पण, लीधो जरू, इण भव षाणो अन्न ।। ६६ हिंद देषे हेत, पांच दिनां मै पामणा । सक धावड़ पंच साजिया, षल कीया रिण षेत ॥ ७० । ७१ दुजड़ां हत देपाल, दाणे बल देपाल. दे। दीसै तू जायो दला, कुल. जोयां पैगाल ॥ सीस न वाधै सूत, वाध दला तें वींटियो । अबही रोस न उपजै, कायर फोट कपूत ॥ ७२ बोल कोल अरु बाप, दोय न .चै देपाल दे । जावां मै वेगा जुड़ा, वै वीरम वै आप ॥ सूरै कथन सुणेह, दल तणा देपाल दे । अंबर छिबंतो ऊठियो, केहर ज्यू करणणेह ॥ ७४ पमंगां हुवा पिलांग, हूँकल. दल तह मह हुऐ। अंग भिड़े उबांबरो, जरदां कड़ी जैवांण ।। रुड़ दमांमा राग, हूर अपछर मन हरषिया । जंग मैं चड़िया जोइया, धरे सीस ध्रीयाग ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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