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वीरवारण
ऐ तोले औराक, बोलण घड़ उवाबरो। मेल वचन नह मानियो, वीरमदे वैडाक ॥
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पाछा आय प्रधान, कथन दला हूंतां कहै । मरसी का तोय मारसी, जालण हरो जवान ॥ कर झाले केवांण, नर वीरम सहजे नहीं । देषे नह जुड़सी दला, इण भव ओ अवसांण ॥ कीधा पून अनेक, भ्रूहड़ लषवेरै धणी । डारण मड़ षिमिया दलै, अन नर षिमे न एक ॥
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कवित छपै
पोह जिह हीज प्रभात, पहल सिकार पधारे । हड़वड़ भड़ हैवरां, निहस वाजते नंगारै ॥
डारण वीरम देहु, दुरंग वहतां तद दीठे । पेष सुरग पिंजरो, उरहि परजले अंगीठो ॥ षड़ आतुर तोषार, प्रगट नजदीक पधारे । गढपत कुण इण गांम, चितहि राठोड़ उचारे ॥ पूछ नकीब प्रसीध, स्यांम सू अरज सुणाई । दला तणो दइवाण, वसै धावड़ वरदाई ॥ तण सलषेस तिवार, ध्रोह वीरम मम धारे । वसुधा राखण वात, वे हद बोलियो वकारै ।। जयचंद हरो जयचंद जिम, हिंदू कंवर वजर हियो । सातहूँ पुत्र धावड़ हणे, कमधज किलो कायम कियो ।