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घोरवाण दोय साद फोही विपरीत दिया, सुतैय सुतल णक सांभळिया। सुण साद भयंकर सांवरणरो, जाग्यो दळ नायक जांमणरो॥ दइवांण जुझाउय ढोल दियो, सुगनी अब तेड़ हुँ वैग सियो । दा इम सीग्राय हूँत दलो, भण आज सुनग्ग भूडो क भलो । लड़ काढण वैर परत लियो, कमवज घरां सूय कुच कीयो । कर जोड़ सीयो अरदास करै, पण गोग अजु तीहै नीर परै ।। सुगनीराय वैण दलै संभळे, किरणाळ सुतो सुष नोंद करै । अस पेड़ कमंध जराइ इतै, प्रायोय भड़ काळजे उकळते ॥ . वैरीय जड़ काढ षत्री विषमो, सुप्रवीत धुबे अधरांत समे। सुपै अस जेळय भड़ां सघरां, केवांणिय षापांय छेक करां ।। रिम सीस पासो चित धार रळी, कमधापत भूषेय बाव कळी । चित देस दिसा नह चेतवियो, कमधज दळे सिर लोहकियों ।। कट अोध अरि त्रीय इस कढी, घणहैं सुष थाळ कटी घरटी। प्रिसणां घर ध्राह देवाड़ पड़े, चक्रवत महेवय नीर चड़े ॥ कर जैत सवैर कठै कलियों, वेह सात्रव गोग घरां वलियो ।
दूहा . .. रिण गेगि कर रीस, दल्ला सिर झोकी दुझल । घरटी एकण घाव सु, वड हुय वटका वीस ॥
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तें गोगा रिण ताळ, रिम सिर झाड़ी रळ तली। ... कट अोषण अरि त्रिय इ सकट, साठ सोना रा थाळ ॥ ११३
जे दिन दोयण जीत, वळियो काढण वैर नै । दाणव चढियोजेण दिस, पाय इयो सुप्रवीत ॥
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