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वीरवार
. नर्वद सतावत ने राणाजी को अांख दी जिसकी बात-जब राणा मोकल और राव . रणमल मंडोवर पर चढ़ आये ( सत्ता के पुत्र ) नर्वद ने युद्ध किया और घायल हुया । उस वक्त उसकी बाई अांख पर तलवार बही, जिससे वह अांख फूट गई । राणा नर्बद को उठा कर अपने साथ लाया, घाव बंधवाये और मरहमपट्टी करवाये उसको चंगा किया । लाख रुपये की वार्षिक आय का कायलाणे का ठिकाना उसे जागीर में दिया । राणा मोकल चाचा मेरा के हाथ से मारा गया और राणा कुम्भा पाट बैठा, उसने राव रणमल को चूक कर मरवाया । नर्वद तब भी दीवाण ही के पास रहता था। एक दिन दीवाण दर्बार में बैठे थे तत्र किसी ने कहा कि "आज नर्बद जैसा राजपूत दूसरा नहीं है" राणा ने पूछा कि उसमें क्या गुण है जो इतनी प्रशंसा की जाती है ? उत्तर दिया कि दोबाण उमसे कोई भी चीज मांगी जावे वह तुरन्त दे देता है । राणा ने कहा हम उससे एक चीज मांगते हैं , क्या यह दंगा ? अर्ज हुई कि देगा । नमद उस दिन मुजरे को ही नहीं पाया था। दीवाण ने अपने एक खवास को उसके पास भेज कहलाया कि "दीवाण ने तुमसे अांख मांगी है।" नर्बद ...बोला- दूंगा । खवास की नजर बचा पास ही भलका पड़ा हुआ था, जिससे आंख निकाल रूगाल में लपेट उसके हवाले की । यह देख खवास का रंग फर्क हो गया क्योंकि दीवाण ने खवास को पहले समझा दिया था कि यदि नर्वद तेरे कहने पर आंख निकालने लगे तो निकालने मत देना, परन्तु नर्बद ने तो अखि निकाल हाथ में दे दी। खवास ने वह रूमाल दीवाण के नजर किया और दीवाण ने अांख देखकर बहुत ही पश्चाताप किया। आप नर्बद के डेरे पधारे, उसको बहुत अश्वासन देकर उसकी जागीर ड्योढ़ी करदी। ..
___ मुहणोत नैण सी री ख्यात भाग १ अनुवादक श्री राम नारायण दूगड़,
काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित