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वीरवाण
कि वह तो गुढ़े को चला गया। पांच-सात दिन तक बीरम ने दल्ला को रक्खा, उसकी भले प्रकार पहुनई की, विदा होते वक्त उसने कहा कि बीरम ! अाज का शुभ दिवस मुझे अापके प्रताप से मिला है, जो तुम भी कभी मेरे यहां अायोगे तो चाकरी पहुँचूंगा मैं तुम्हारा रजपूत हूं । बीरम ने कुशलतापूर्वक उसे अपने घर पहुंचा दिया ।
मालाजी के पौत्रों और बीरमदेव से सदा खटाखट होती रहती थी, इसलिए महेवे का वास छोड़कर वीरम जैसलमेर गया; वहां भी ठहर न सका और पीछा नागोर पाया, जहां यह लगा गांवों को लूटने और धरती में विगाड़ करने, परन्तु जब देखा कि अब यहां रहना कठिन है तो जांगलू में ऊदा मूलावत के पास पहुंचा । ऊदा ने कहा कि वीरमजी! मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं कि मैं तुमको रख सकू, तुम आगे जायो, तुमने नागोर में उजाड़ किया . है सो यदि वहां का खान बाहर लेकर ग्रावेगा तो उसको मैं रोक दूगा । तब बीरम जोहियावाटी में चला गया । पीछे से नागोर का खान चढ़कर भाया, जांगलू के घेरा लगाया, ऊदा गढ़ के कपाट मूद भीतर बैट रहा । खान ने उसे कहलाया कि मालव और बीरम को हाजिर कर । तब ऊदा खान से मिलने के वास्ते गया और वहां कैद में पड़ा । उससे वीरमं "को मांगा तो कहा कि "बीरम मेरे पेट में है, निकाल लो।" खान ने ऊदा की मां को "बुलवाया और उससे कहा कि या तो वीरम को बता नहीं तो ऊदा की खाल खिंचवाकर "उसमें भुसा भरवाऊंगा । ऊदा की माता ने भी वही उत्तर दिया कि "वीरम अदा की खाल में नहीं है, उसके पेटे में है सो पेट चीर कर निकाल लो।" उसके ऐसे उत्तर से खान खुश हो गया, अपने साथ वालों से कहने लगा-"यारो ! देखा राजपूतानियों का बल, कैसी निधड़क होती हैं।" ऊदा को कैद से छोड़ा और वीरम का अपराध भी क्षमा कर दिया । । वीरम जोहियों के पास जो रहा । जोहियों ने उसका बहुत आदर किया, जाना कि यह आफत
का मारा यहां आया है। पास खर्च न होगा सो दाण में उसका विस्वा (भाग) कर दिया और बड़ा स्नेह दरमाया । वीरम के कामदार दाणं जगाहें तत्र कभी कभी तो सारा का सारा ' ले श्रावे और जोहियों को कह दे कि कल सब तुम ले लेना । यदि कोई नाहर वीरम की बकरी "मार डाले तो एक के बदले ११ बकरियाँ ले लेवें और कहे कि नाहर जोहियों का है । एक बार ऐसा हुया कि ग्राभोरिया भाटी, बुक्का को जो जोहियों का मामा व बादशाह का शाला था और अपने भाई सहित दिल्ली सेना में रहता था, बादशाह ने मुसलमान बनाना चाहा, वह भाग कर जोहियों के पास या रहा । उसके पास बादशाह के घर का बहुत माल, तरह तरह के गदेले गलीचे और बढ़िया बढ़िया वस्त्राभूषण थे । वे वीरम ने देखे और उनको . लेने का विचार किया। अपने आदमियों को कहा कि अपन बुक्कणं को गोट जीमने के बहाने उसके घर जाकर मार डालें और माल ले लेवें । राजपूत भी सहमत हो गये । तब वीरम ने बुधाण को कहा कि कभी हमें गोठ तो जिंमायो । बुक्कण ने स्वीकारा, तैयारी की और वीरम को बुलाया । वहाँ पहुँचते ही वह बुकगा. को मार उसका माल असत्रात्र और घोड़े अपने डेरे पर .ले श्राया । तब तो जोहियों के मन में विचार उत्पन्न हुया कि यह जोरावर अादमी घर में आ घुसा
सो अच्छा नहीं है। पांच सात दिन पीछे वीरम ने ढोल बनाने के लिए एक फरात का पेड़ कटवा