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सम्पादकीय टिप्पणी
वीरवांरण का कर्ता ढाढी बादर विशेष शिक्षित नहीं ज्ञात होता । साथ ही एका ढाढी को कृति होने से इसको काव्य शास्त्र की दृष्टि से शुद्ध करने और प्रतियां लिखने यो प्रयत्न भी बहुत कम हुए । मूल पाठ में किसी तरह का परिवर्तन करना हमने वैज्ञानिक दृष्टि से ठीक नहीं . समझा है । परिशिष्ट ३ के अन्तर्गत हमने देवगढ़ प्रति के पाठान्तर दिये हैं जिनसे अर्थ समझने में सुविधा रहती है।
वीरवांण में काव्य-शास्त्र की दृष्टि से अनेक भूलें दिखाई देती हैं किन्तु इस पाव्य की पूरी शुद्ध प्रतियां नहीं उपलब्ध हो जाती तब तक मूल पाठ में फेर-बदल करना उचित नहीं ज्ञात होता।